बिहार में सोन नदी के दियारा इलाके में बालू माफिया की करतूत देख कर साफ हो जाता है कि उसे पुलिस का कोई खौफ ही नहीं है. दियारा के आसपास के इलाकों के लोग फौजी और सिपाही नाम से मशहूर 2 गिरोहों का साथ देते हैं. मनेर के दियारा इलाके की एक बड़ी खासीयत यह है कि वहां के तकरीबन हर घर में एक फौजी है. फौज में रहने के दौरान उन की पोस्टिंग जब जम्मू व कश्मीर में होती है, तो वे वहां अपने नाम से राइफल या बंदूक का लाइसैंस जारी करा लेते हैं और दियारा इलाके में बालू के गैरकानूनी खनन में लगे अपराधी गिरोहों को ढाईतीन हजार रुपए के मासिक किराए पर दे देते हैं.
बालू निकालने के लिए जिन जेसीबी और पोकलेन मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है, वे लोकल बाहुबलियों की होती हैं. एक मशीन की कीमत 40 लाख से 50 लाख रुपए होती है और उसे खरीदना आम आदमी के बूते की बात नहीं है. सोन नदी से गैरकानूनी रूप से बालू निकालने और उस से करोड़ों रुपए की कमाई करने वाले शंकर दयाल सिंह उर्फ फौजी और उमाशंकर सिंह उर्फ सिपाही को पटना, भोजपुर और सारण जिलों की पुलिस पिछले कई सालों से ढूंढ़ रही है, पर उन पर हाथ नहीं डाल सकी है.
मूल रूप से कैमूर जिले के रहने वाले फौजी पर दर्जनों हत्याओं और पुलिस पर गोलियां चलाने का आरोप है. सिपाही गिरोह का सरगना मनेर थाने की सूअरमरवा भरवा पंचायत का मुखिया है. इन दोनों के बीच बालू घाट पर कब्जा जमाने को ले कर अकसर खूनी भिड़ंत होती रहती है. 30 और 31 जुलाई, 2016 को इन दोनों गुटों के बीच अंधाधुंध फायरिंग से सोन का दियारा का इलाका थर्रा उठा था. फायरिंग में कोइलवर के प्रमोद पांडे की मौत हो गई थी और दोनों ओर के दर्जनों लोग घायल हो गए थे. प्रमोद फौजी गिरोह का सदस्य था. 30 मार्च, 2014 को पुलिस ने फौजी को उस के 9 गुरगों के साथ पकड़ा था. उस के पास से बड़े पैमाने पर देशी और विदेशी हथियारों का जखीरा बरामद किया गया था, लेकिन जेल से छूटने के बाद वह फिर से बालू खनन के गैरकानूनी काम में लग गया.
दियारा के जिस इलाके को ले कर खूनी जंग छिड़ी हुई है, उस जमीन के बारे में सरकार और प्रशासन के बीच ही विवाद का माहौल बना हुआ है. 2 अगस्त, 2016 को पटना और भोजुपर जिले के एसपी और 3 ब्लौकों के सर्किल अफसरों की बैठक में जमीन को ले कर बातचीत हुई. पटना और भोजपुर को जोड़ने वाले महुई हाल का इलाका साल 1920 के सर्वे के हिसाब से पटना को मिल गया था. साल 1972 में हुए सर्वे के मुताबिक उसे भोजपुर का हिस्सा करार दिया गया, लेकिन आज तक उसे मंजूरी नहीं मिल सकी. इस लिहाज से उसे पटना का ही इलाका बताया जा रहा है. बिहटा और आनंदपुर गांव के किसान भी इस सरकारी हेरफेर से उलझन में हैं. किसानों की जमीन की रसीद पटना जिले से ही कट रही है.
फौजी ने इन्हीं किसानों से बालू निकालने का एग्रीमैंट कर रखा है. सिपाही गुट जबतब इस एग्रीमैंट का विरोध कर अपना कब्जा जमाना चाहता है, जिस से गोलीबारी होती है. सिपाही गिरोह का कहना है कि यह जमीन सरकार की है. बालू वाली जमीन ठेके पर लेने के बाद सरगना वहां से बालू निकालने के लिए पोकलेन मशीन और नावों का इंतजाम कराता है. गौरतलब है कि सड़क रास्ते से बालू ढोने वाली गाडि़यों का चालान काटा जाता है, पर नदी रास्ते से जाने वाली नावें बंदूक के जोर पर ही चलती हैं. महुई महाल से बालू निकाल कर माफिया वाले उसे नाव के जरीए छपरा ले जाते हैं और बेच देते हैं. दियारा इलाके के काफी दूर होने की वजह से अपराधी गिरोह जम कर चांदी काटते हैं. वहां पुलिस और प्रशासन के अफसरों का पहुंचना काफी मुश्किल है. इस का फायदा उठाते हुए फौजी और सिपाही गिरोह ने अपनीअपनी चैकपोस्ट भी बना रखी हैं और उस रास्ते से गुजरने वाली नावों से टैक्स वसूलते हैं.
पटना के एसएसपी मनु महाराज ने सोन नदी में नाव चलाने पर रोक लगा दी थी, इस के बाद भी बालू माफिया नाव चला रहे हैं और बालू को निकालने में लगे हैं. दिनरात सैकड़ों नावें बालू ढोने में लगी हैं. नाविकों का कहना है कि उन के पास रोजीरोटी का दूसरा कोई जरीया नहीं है. सरकार पहले किसी दूसरे रोजगार का इंतजाम करे, उस के बाद ही नाव चलाने और बालू ढोने पर रोक लगाए. गौरतलब है कि नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मनेर के पास सोन नदी के दियारा इलाकों के चौरासी, रामपुर और सूअरमरवा में बालू निकालने की मंजूरी नहीं दी है. उस के बाद भी गैरकानूनी तरीके से बालू की निकासी जारी है. सोन नदी में रोज 2 हजार से ज्यादा नावें बालू ढोती हैं. एक नाव पर 8 से 10 आदमी काम करते हैं. मनेर के पास सोन नदी से उठाई गई बालू को डपरा के डोरीगंज, मांझी, पहलेजा, सिंगही, झौवाढाला वगैरह घाटों पर उतारा जाता है. लोकल ठेकेदार उस बालू को खरीद कर जमा करते हैं. उस के बाद बालू को उत्तरपश्चिमी बिहार के अलगअलग जिलों में ऊंची कीमतों पर बेचा जाता है.
पुलिस सूत्र बताते हैं कि गैरकानूनी रूप से बालू खनन करने वाले माफिया की पहुंच पुलिस और सरकार के आला अफसरों तक है, जिस की वजह से उन लोगों के खिलाफ कोई कड़ी कार्यवाही नहीं हो पाती है. सोन नदी से बालू निकालने की खबर मिलने के बाद 4 अगस्त, 2016 को पुलिस दियारा इलाके में दलबल के साथ पहुंच तो गई, पर किसी तरह की कार्यवाही नहीं कर सकी और न ही नावों को जब्त कर सकी. पुलिस टीम में कोई ऐसा नहीं था, जिसे नाव का इंजन स्टार्ट करना आता हो. पुलिस को देखते ही बालू मजदूर नावों को छोड़ कर नदी में कूद गए. पुलिस उन्हें ढूंढ़ती रह गई, पर एक भी मजदूर हाथ नहीं आ सका
पिछले दिनों हुई खूनी भिड़ंत के बाद पुलिस ने दियारा के आसपास के इलाकों में ताबड़तोड़ छापामारी की और फौजी के एक भाई कृष्ण सिंह और उस के 2 बेटों अभिमन्यु सिंह और नीरज सिंह को दबोच लिया. साथ ही, फौजी के 3 गुरगों अनिल कुमार, रामबाबू राय और शशि कुमार को भी गिरफ्तार कर लिया. उन के पास से पुलिस ने 3 पिस्तौल और 7 जिंदा कारतूस बरामद किए. तीनों को भोजपुर और मनेर से पकड़ा गया था. फौजी के भाई और बेटों ने पुलिस को बयान दिया कि उस के भाई और पिता क्या काम करते हैं, उन्हें कुछ भी पता नहीं है. पुलिस ने 24 पोकलेन मशीनों और 4 नावों को भी कब्जे में ले लिया है. एसएसपी मनु महाराज का दावा है कि सोन के दियारा इलाकों में हर हाल में गैरकानूनी बालू का खनन रोका जाएगा. इस के लिए पटना, भोजपुर और सारण की पुलिस मिल कर घाटों की निगरानी करेगी. यहां पुलिस बल तैनात किए जाएंगे. दियारा इलाके में पुलिस के पहुंचने में काफी समय लग जाता है, इसलिए वहां स्थायी रूप से पुलिस बलों की तैनाती जरूरी है.