विनम्रता, सद्भावना और प्यार से परिपूर्ण व्यवहार जो दूसरों पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ता है, को ही शिष्टाचार कहते हैं. हमें समाज में सभ्यता और सम्मान से रहना चाहिए. शिष्टाचार के नियमों का पालन हमें खुद भी सख्ती से करना चाहिए और अपने बच्चों को भी मैनर्स सिखाते रहना चाहिए. जब बात सार्वजनिक स्थानों पर शिष्टाचार की हो तो मैनर्स की हमें ज्यादा परवा नहीं रहती, इस से साफ जाहिर है कि शिष्टाचार पर हमारा सारा फोकस घर और जानपहचान वालों तक ही सीमित है. जिस समाज और देश में हम रहते हैं क्या उस के प्रति हमारी कुछ भी जिम्मेदारी नहीं हैं? जिन रास्तों से हम रोज गुजरते हैं, जिन सार्वजनिक स्थानों पर हम सैरसपाटे के लिए जाते हैं, जो सार्वजनिक वाहन हमें अपने गंतव्य तक पहुंचाते हैं क्या उन्हें साफसुथरा रखना हमारा नैतिक दायित्व नहीं बनता?

कैसे डैवलप करें शिष्टाचार

आजकल बच्चों को शिष्टाचार और संस्कार सिखाने के लिए बहुत से कार्यक्रम चलाए जाते हैं. इन की आवश्यकता उन घरों में ज्यादा है, जहां बच्चों की परवरिश मेड या नौकरों द्वारा होती है. आजकल अधिकांश घरों में पेरैंट्स के पास बच्चों के साथ बैठने का वक्त ही नहीं होता. पुराने समय में घरों में बड़ेबुजुर्गों और मांबाप के संरक्षण में पैदा होते ही बच्चों की पाठशालाकार्यशाला शुरू हो जाती थी. दरअसल, बड़ों के अनुशासन में बच्चे शिष्टाचार में निपुणता हासिल करते हैं, इसीलिए संस्कारी घरों में बच्चों के थोड़ा समझदार होते ही बड़े भी अपने व्यवहार को बदलना शुरू कर देते हैं, ताकि बच्चा शिष्ट बने, जोकि एक बेहद अच्छी सोच है. अपनी कमियों पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी है. आजकल के बच्चे काफी समझदार व स्मार्ट हैं. वे अकसर अभिभावकों से सवाल पूछते हैं कि जो काम आप खुद करते हैं, तो फिर हमें उसे करने से क्यों रोकते हैं?

प्रश्न उठता है कि किशोर शिष्टाचार को कैसे अपनी लाइफ का हिस्सा बनाएं? इस के लिए एक शिष्ट इंसान का छद्म मुखौटा लगा लेना काफी नहीं है. समाज में यदि सचमुच अपनी इमेज एक सभ्य व्यक्ति की बनानी है, तो शिष्टाचार को गहराई से जीवन में अपनाना होगा. इस के लिए अपने ऊपर कंट्रोल की जरूरत होती है. विनम्रता और सद्भाव शिष्टाचार की प्रथम सीढ़ी हैं, फिर धीरेधीरे अनुशासन और अभ्यास से शिष्ट आचरण को जीवन में ढालना ज्यादा मुश्किल नहीं है. कई बार किशोर जानते हैं कि हमारा व्यवहार ठीक नहीं है फिर भी वैसा ही व्यवहार रखते हैं. गलती बारबार रिपीट करना अशिष्टता है.

घर बाहर की दुनिया और शिष्टाचार

घर और बाहर के समाज में जमीनआसमान का फर्क होता है, उदाहरण के लिए घर की स्वच्छता का तो हम बहुत ध्यान रखते हैं, लेकिन सड़क या किसी सार्वजनिक स्थान पर कौन सफाई करता है? लेकिन कम से कम हम उसे और गंदा करने से तो बचा ही सकते हैं.

आइए, सीखें कुछ सामान्य शिष्टाचार, जिन्हें सार्वजनिक स्थानों पर जाते समय ध्यान में रखना चाहिए :

–       जब भी कहीं बाहर अपने या सार्वजनिक वाहन से जाएं तो ध्यान रखें खानेपीने की चीजों के खाली पैकेट व फलों के छिलके सड़क पर न फेंकें, इस के लिए घर से खाली पौलिथीन साथ ले कर चलें.

–       रास्ते या दीवार पर थूकना, भद्दे कमैंट्स लिखना, पान की पीक जहांतहां फेंकना ठीक नहीं है. खाली बोतल या किसी तरह का अन्य बेकार सामान डस्टबिन में ही डालें.

–       सार्वजनिक स्थल पर मित्रों के साथ धीमी आवाज में बात करें, गाली व अभद्र भाषा का प्रयोग कतई न करें. पेड़पौधों व सजावटी वस्तुओं को नुकसान न पहुंचाएं.

–       रास्ते में पड़ा सामान जैसे पत्थर आदि किसी दुर्घटना का कारण बन सकते हैं, इसे एक तरफ हटा दें.

– भीड़भाड़ वाली जगहों पर ट्रेन, मैट्रो व बस आदि में चढ़तेउतरते समय धक्कामुक्की न करें, विकलांगों, महिलाओं और बच्चों को प्राथमिकता दें.

–       सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान व नशा न करें.

–       सार्वजनिक सभा या लोगों के बीच किसी से इशारे या कानाफूसी न करें, उसी भाषा का प्रयोग करें जिसे सभी लोग समझ सकें. तीखी आवाज में बोलना, छींकना, खांसना, ठहाके लगा कर हंसना अशिष्टता है, इन से बचें.

–       किसी सार्वजनिक शोक सभा में प्रसंग से हट कर बातें शुरू

करना, दुखी व्यक्ति की बात न सुनना, अशिष्टता ही नहीं अमानवीयता भी है.

–       अस्पताल में बीमार व्यक्ति के साथ कम शब्दों में बात कर उसे जल्दी ठीक होने का आश्वासन दें, निराशाजनक बातें न करें.

–       सार्वजनिक स्थलों पर खासतौर से भीड़भाड़ वाली जगहों पर ड्राइव करते समय ट्रैफिक नियमों का पालन अवश्य करें. अपना फोन साइलैंट रखें. यदि ज्यादा आवश्यक हो तो मैसेज से या वाहन एक तरफ रोक कर संक्षिप्त बात करें. आजकल महानगरों में पार्किंग को ले कर काफी दुर्घटनाएं होने लगी हैं इसलिए किसी भी कंट्रोवर्सी से बचने के लिए पार्किंग स्थल पर ही गाड़ी पार्क करें.

–       स्मार्टफोन पर हर समय चिपके रहना आज किशोरों का शौक बन गया है. अकसर ऐसे समय में साथ वाले व्यक्ति

की उपेक्षा होती है. जरूरी बातों के बीच फोन को साइलैंट रखें.

–       किसी भी समारोह में खानेपीने संबंधी शिष्टाचार के लिए

अपनी प्लेट में जरूरत भर का खाना परोसें. अपने साथ आए लोगों को भी विनम्रता से खाना ला कर दें.

–       पिक्चर हौल में जोरजोर से बातें करना, किसी दृश्य पर चीख कर कमैंट्स करना या पिक्चर की कहानी पहले बता कर सारा सस्पैंस खत्म कर देना अशिष्टता है, इस से दूसरे दर्शकों को बुरा लग सकता है और उन के मनोरंजन का सारा मजा किरकिरा हो सकता है. पिक्चर हौल में गर्लफ्रैंड के साथ अश्लील हरकतें करना शिष्टाचार के खिलाफ है.

अत: जीवन में हर जगह शिष्टाचार की आवश्यकता होती है. व्यक्ति में कोई खास योग्यता या आकर्षण न भी हो, फिर भी वह शिष्टाचार के माध्यम से दूसरे के हृदय में अपने लिए सम्मान और एक विशिष्ट स्थान बना सकता है. मन की शांति और समाज में सद्भाव बनाए रखने के लिए भी हमारा शिष्ट होना बेहद जरूरी है.

आजकल हमारे समाज में अशिष्टता का माहौल बड़ी तेजी से फैल रहा है. अपनेआप में सीमित होते लोगों के बीच स्वार्थ और अमानवीयता ज्यादा बढ़ रही है, जो देश, समाज और खुद हमारी न्यू जनरेशन के लिए बहुत घातक है. आज उच्चशिक्षित लोग भी कृत्रिम शिष्टाचार को निभाते दिखते हैं. शिक्षा का उद्देश्य किशोरों को समाज के लिए सभ्य इंसान बनाना है. किशोरों को यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि अफसर बनना, अमीर बनना, महंगी गाडि़यों में घूमना या करोड़ों के सुविधाजनक घरों में रहना ही जीवन नहीं है. इन सभी के नशे में शिष्टाचार न भूलें. जीवन में और भी बातों के साथ अपनी सभ्यता, संयम, विनयशीलता, सभी के साथ आदरपूर्ण व्यवहार भी बहुत ही जरूरी है.                       

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...