मैं 10 सालों से घर से बाहर हूं, 21वीं सदी में होश संभालने वाली जनरेशन ने शायद की ऐसा कोई दौर देखा हो. लॉकडाउन, जिससे हम सब गुजर रहे हैं. कभी पढ़ाई तो कभी नौकरी लिए मैं कई राज्यों में गई. मैं सेल्प डिपेंडेट और स्ट्रांग लड़की हूं, छोटी-छोटी बातों से घबराना मेरी आदत नहीं. जिंदगी में कई मुश्किलें आईं, जिनका मैनें मजबूती से सामना किया है. शाम के समय मैं न्यूज देख रही थी जब लॉकडाउन की घोषणा हुई. कुछ देर के लिए समझ नहीं आया कि क्या करना है.

खैर ऑफिस का काम घर से करना था तो रोज कुछ आर्टिकल लिखने शुरू किए, क्योंकि मुझे लिखने से खुशी मिलती है. कुछ दिनों बाद काम करने की इच्छा भी खत्म होने लगी, हालांकि मेरे बॉस काफी सपोर्टिव नेचर के हैं और कंपनी का वर्क कल्चर भी अच्छा है. धीरे-धीरे मन भारी रहने लगा और घर की याद आने लगी. हम हमेशा अपनी फैमिली को अपने बिजी होने का एहसास दिलाते हैं जबकि उनके बिना हम कुछ भी नहीं है.

कई बार ऐसा हुआ कि शाम को 5 या 6 बजे लंच कर रही हूं, घर से फोन आता तो बोल देती हां, खा लिया है. मेरे पापा मुझे रोज शाम को फोन करते हैं शायद ही ऐसा कभी हुआ कि उनका फोन मेरे पास नहीं आता हो, इस बीच इनका दिन में दो से तीन बार फोन आता है. क्या बताउं उनको कि कुछ करने का मन नहीं करता. हां, मुझे सब पता है कि पॉजिटिव सोचें, ये करें, वो करें…अकेले नहीं होता यार.

हम सभी को खुद के लिए टाइम चाहिए, ब्रेक चाहिए लेकिन अकेले कितना टाइम कोई बिताएगा. मैनें गाने भी सुन लिए, किताबें भी पढ़ लीं, डांस भी कर लिया, गार्डेनिंग भी कर लगी, कुंकिंग तो रोज करती ही हूं, दोस्तों को कैचअप कर लिया फिर भी दिमाग शांत नहीं है. शायद मनुष्य प्रजाति कि यही समस्या है कि जब ऑफिस जाना हो तो प्रॉबल्म और अब घर पर रहना है तो प्रॉब्लम. किसी चीज से संतुष्टि नहीं मिलती…

मैं बहुत पॉजिटिव नेचर की हूं लेकिन जो अफने अंदर महसूस कर रही हीं वही अभी लिख रही हूं. शायद कई लोगों को यह निगेटिव लगे, लेकिन अकेले घर में कैद रहकर वर्क फ्रॉम होम इतना भी आसान नहीं है जितना हमें लगता था.

अरे अकेले क्या, अगर हसबेंड-वाइफ दोनों वर्किंग हैं और वर्कफ्रॉम होम पर हैं, तो अक्सर वाइफ सुबह उठकर सीधा किचन में चली जाती है और हसबैंड बेड पर सोए रहते हैं. वो घर का सारा काम निबटाती है, ऑफिस का काम भी करती है और अगर दो मिनट पति के पास जाकर कुछ अपने लिए बोल दे तो उसे सुनने को भी मिल जाता है कि दिख नहीं रहा, मैं ऑफिस का काम कर रहा हूं. जैसे पति के ऑफिस काम महत्वपूर्ण है वाइफ को तो फ्री की सैलरी मिलती हो. हर चीज में बेचारी वाइफ को ही कंप्रमाइज करना पड़ता है. हालांकि कुछ पति शायद अपनी पत्नी का हाथ बटाते हो..,पर कितने?

हालांकि घर में रहना जरूरी है तो मैं भी रोज खुद को सेल्फ मोटिवेट करती हूं. अपने लिए खाना बनाती हूं, काम करती हूं और दोस्तों और फैमिली से टच में रहती हूं…पर शायद कुछ कमी सी लगती है. ऐसा लगता है शायद अपने घर होती …मां के पास, बेटू के साथ खेलती, भाभी के साथ गॉसिप करती, पापा की राजनीतिक- सामाजिक बातें सुनकर हां में हां मिलाती और भाइयों से लड़ती तो यह समय आसानी से कट जाता…

हां मुझे भी घर जाना है. लॉकडाउन ने यह चीज तो सिखा ही दी कि जीने के लिए कुछ नहीं चाहिए, बस आपका परिवार का साथ और घर का खाना मिलता रहे यही काफी है…

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...