देश की वर्तमान स्थिति कुछ इस तरह की है कि 21 दिनों के लिए लोगों को घर में शांत बैठने की जितनी हिदायतें दी जा रही हैं उतनी ही अशांति उन के मन में कौंध रही है. इस बात को समझने के लिए किसी का अर्थशास्त्री होना जरूरी नहीं कि देश की अर्थव्यस्था 2016 की नोटबंदी के बाद से ही चरमराई हुई है और अब लौकडाउन के बाद इस के पूरी तरह से ध्वस्त होने की गुंजाइश और अधिक बढ़ गई है.

दिहाड़ी मजदूरों की बाद करना व्यर्थ है क्योंकि उन के लिए यह स्थिति किसी त्रासदी से कम नहीं. वहीं, उच्च वर्ग से भी इस त्रासदी का सरोकार उतना अधिक नहीं क्योंकि उस का अकाउंट उस की जरूरतों के हिसाब से भरा हुआ है और आने वाले 2-3 महीने तो क्या उस से ज्यादा समय के लिए भी वह अपना भरणपोषण पहले की तरह ही कर सकता है.

ये भी पढ़ें-#coronavirus: भगवान नहीं विज्ञान दिलाएगा कोरोना से मुक्ति

तेलंगाना और महाराष्ट्र सरकार ने यह घोषणा भी कर दी है कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन में कटौती की जाएगी. हो सकता है अन्य राज्य सरकारें भी जल्द ही वेतन कटौती की घोषणा कर दें. सवाल उठता है मध्य वर्ग का कि वह किस तरह से अपने बजट को बनाए रख पाता है. यह वह वर्ग है जिस के अकाउंट में पैसा तो है पर इतना नहीं कि यह 2 महीने से ज्यादा घर बैठ कर खा सकता है. यह वह वर्ग है जो यदि हाथ पर हाथ रखे बैठा रहे तो इसे भी दिहाड़ी मजदूरों की तरह होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा.

आर्थिक मंदी का दौर

2016 की नोटबंदी और 2017 के जीएसटी लागू होने के बाद भारतीय अर्थव्यसथा लगातार गिरी है. कहने को तो भारतीय अब भी इस मार को झेल रहे थे कि उन को एक और मार कोरोना वायरस के रूप में पड़ गई. घर पर 21 दिनों के लिए रहने का मतलब है नौकरी पर न जा पाना. नौकरी पर न जाने का मतलब यह नहीं कि पैसा आना पूर्ण रूप से बंद हो गया है परंतु यह बात भी ध्यान में रखने वाली है कि हर व्यक्ति वर्क फ्रौम होम भी नहीं कर रहा है. इस का अर्थ है कि हर व्यक्ति के अकाउंट में महीने की निश्चित राशि शायद न आ पाए क्योंकि अर्थव्यवस्था की मार तो व्यक्ति की कथित कंपनी को भी पड़ रही है और ऐसे में कटौती होना निश्चित है. सरकार के इस अनायास लौकडाउन ने सप्लाई चैन को त्रस्त कर दिया है जिस का परिणाम आर्थिक क्षति के रूम में हम सभी को भुगताना पड़ रहा है. वैसे भी औनलाइन शौपिंग वैबसाइट्स बंद पड़ी हैं, फूड सप्लाई कम हुई है, आयातनिर्यात लगभग बंद है और साथ ही अनेक छोटे बड़े व्यापार घाटे में हैं.

ये भी पढ़ें-#coronavirus lockdown: लॉकडाउन में किन्नरों का लंगर

ध्यान देने वाली बात यह भी है कि इस लौकडाउन के बढ़ने की पूरी संभावना है. स्पष्ट तौर पर यह कोरोना वायरस तभी खत्म होगा जब इस की वैक्सीन आएगी. जब तक वैक्सीन नहीं बन जाती इस के पूरी तरह खत्म होने की संभावना नहीं है क्योंकि भारत ट्रांसमिशन के तीसरे स्टेज पर है जिस के बाद सब कुछ सामान्य होना मुश्किल है. वैक्सीन आने पर भी भारत के हर एक व्यक्ति को वैक्सीनेट करना चंद दिनों का काम नहीं है. यानी कम से कम एक साल तक हम सभी को कोरोना वायरस से जूझना पड़ सकता है.

ऐसे में यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी हो जाता है कि मध्यवर्ग समझदारी और सूझबूझ के साथ अपनी आर्थिक स्थिति पर ध्यान दे जिस से वह आने वाले वक्त के लिए पहले से ही तैयार हो व लौकडाउन खत्म होने के पश्चात उस पर अर्थव्यवस्था की मार कम पड़े.

खर्चों पर लगाम कसने की जरूरत

आप इस समय घर पर हैं जिस से आप का बाहर आनेजाने का खर्च, होटल में खाने का खर्च, मार्केट जा कर हजारों की शौपिंग का खर्च आदि बच रहा है. इस सेविंग को आने वाले समय के लिए बचाए रखिए. यह न हो कि लौकडाउन ओवर होते ही आप अपनी सेविंग्स एक बार में उड़ा दें. यह समय है अपने खर्चों को कंट्रोल करने का क्योंकि लौकडाउन खत्म होने के बाद भी आप के औफिस से शायद आप को आप की पूरी तनख्वाह न मिले और आप के बचे हुए पैसे भी हवा हो जाएं.

अपने खर्चों का एक खाका तैयार कर लें. आप को जिन चीजों की अत्यधिक जरूरत हो केवल उन पर ही खर्च करें. घर का बजट बनाएं और उस के हिसाब से चलें. मेडिकल इमरजेंसी के लिए हमेशा तैयार रहें. घर के बजट का एक हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं के लिए हमेशा बचाए रखें.

ये भी पढ़ें-स्वत्रंत पत्रकारिता के लिए जरूरी है कि पाठक सब्सक्राइब करके पढ़े डिजिटल

घर में सामन को ओवरस्टौक न करें. बड़ी मात्रा में चीजें खरीदने से पहले भी यह ध्यान में रखें कि यह चीजें कितने समय तक सही रह सकती हैं और क्या सचमुच आप को इतनी अधिक मात्रा में इन की जरूरत है या नहीं. जैसे खाद्य पदार्थों को सोचसमझ कर स्टौक करें. महंगाई के डर से ऐसा न हो कि आप घर में 20 किलो आलू जमा कर लें और उन में से 5 किलो पड़ेपड़े ही सड़ जाएं.

कई लोग एंजाइटी या तनाव के चलते औनलाइन शौपिंग करने लगते हैं और खुद को रोक नहीं पाते. यह आदत खासकर महिलाओं और लड़कियों में होती है. हालांकि, इस समय और्डर की शिप्पिंग नहीं हो रही लेकिन पेमेंट के साथ और्डर किया जा सकता है. यह वह समय नहीं हैं जब आप अपने पैसे बिना सोचे समझे शौपिंग में उड़ा सकें. सोचसमझ कर पैसे बचाएं न कि उड़ाएं.

एंटर्टेंमेंट रिसौर्सेस जैसे नेटफ्लिक्स या प्राइम की मैम्बरशिप लेने से बचें या लेनी हो तो किसी एक की ही लें. अगर आप हर पोर्टल की मैम्बरशिप लेंगे तो इस में भी आप की अच्छी खासी राशि व्यर्थ होगी. इसी तरह आप जिनजिन औनलाइन ऐप्स या पोर्टल पर पैसे भरते हैं, जिन की आप को कुछ खास जरूरत न हो, उन से सब्स्क्रिप्शन हटा सकते हैं.

अगर आप के बैंक से आप के बिलों की औटोमैटिक पेमेंट होती है तो यह बिलकुल सही समय है कि आप इस पर ध्यान दें. कुछ बिलों के भुगतान औनलाइन सही हैं परंतु अगर कोई ऐसे बिल हैं जिन की पेमेंट आप घर में रहते हुए नहीं करना चाहते तो उन्हें आप औटोमैटिक पेमेंट औपशन से हटा दीजिए.

इस समय किसी को उधार देने से पहले एक बार अच्छे से विचार करें. यदि कोई ऐसा व्यक्ति है जो लंबे समय तक पैसे ले कर वापस चुकाता नहीं है तो उसे बड़ी राशि उधार में न दें. मदद का हाथ बढ़ाना सही है परंतु सोचसमझ कर.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...