कोरोना के लगातार बढ़ते केसेस कई गंभीर सवाल पैदा कर रहे हैं जिन में एक बड़ा सवाल वेंटिलेटर्स का है. वर्ल्ड हैल्थ और्गनाइजेशन के अनुसार, कोविड-19 के 7 में से 1 रोगी को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत है, वहीं 5 फीसदी लोगों को वेंटीलेशन पर रख अत्यधिक देखभाल की आवश्यकता है. वेंटिलेटर वह मशीन होती है जिस से मरीज को सांस लेने में मदद मिलती है. जब व्यक्ति के फेफड़ों में फ्लुइड जमा हो जाते हैं और वह सांस नहीं ले पाता है. फेफड़ों के कमजोर होने या लंग फेलियर की स्थिति में यह मशीन लाइफ सेवर साबित होती है जो फेफड़ों को रक्त औक्सिजनेट करने में मदद करता है.
वुहान में हुए पहली कुछ स्टडीज के अनुसार, संक्रमित आबादी के 5 फीसदी लोगों को ईंटेंसिव केयर और 2.3 फीसदी लोगों को वेंटिलेटर पर रखना पड़ा था. अब खुद सोचिए 133 करोड़ की आबादी वाले देश भारत में यदि कोरोना का कहर इटली और चीन जैसा बरपा तो क्या वह वेंटिलेटर्स की इस मांग को पूरा करने में कामयाब होगा? सरकार ने अब तक वेंटिलेटर्स की सही गिनती नहीं बताई है परंतु आंकड़ों के अनुसार भारत में इस समय 30,000 वेंटिलेटर्स हैं. जबकि डाक्टरों के अनुसार भारत को मध्य मई तक तकरीबन 80,000 से 1,00,000 वेंटिलेटर्स की आवश्यकता हो सकती है. एक वेंटिलेटर की कीमत जहां 5 से 10 लाख रुपए के बीच है वहां यह चिंता का विषय है कि क्या इस जरूरत को मोदी सरकार पूरा कर पाएगी?
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वैश्विक तौर पर वर्तमान में वेंटिलेटर्स की मांग अत्यधिक बढ़ गई है. इस मांग को वैश्विक महाशक्ति यानी संयुक्त राष्ट्र अमेरिका भी पूरा करने में असमर्थ दिख रहा है. भारत ने जहां एक तरफ मार्च के आखिरी दिनों में भारत से निर्यात बंद कर दिया है वहीं वेंटिलेटर्स बनाने वाली कंपनियों के अनुसार ऐसे बहुत से उपकरण है जिन्हें विदेश से आयात करना बेहद आवश्यक है. भारत की स्थिति कोरोना वायरस ट्रांसमिशन के थर्ड स्टेज पर है, ऐसे में वेंटिलेटर्स की मांग को जल्द से जल्द पूरा करना अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाता है.
वेंटिलेटर बनाने वाली भारतीय कंपनी स्कंराय टैक्नोलोजीस ने अपनी वेंटिलेटर बनाने की दर बढ़ा दी है और कहा है कि वह 2 महीने में 1,00,000 वेंटिलेटर बना लेगी. कंपनी के फाउंडर विश्वप्रसाद अल्वा का कहना है कि वे अपने डिजाइन को अन्य कंपनियों के साथ शेयर करेंगे. यह कंपनी नीति आयोग, डीआरडीओ और कर्नाटक सरकार के साथ मिल कर लोकल स्त्रोतों से जरूरी कोन्पोनेंट्स उपलब्ध करने पर काम कर रही है. मैनुफेक्चरर कंपनियों के सामने सब से बड़ी दिक्कत यह आ रही है कि उन्हें जरूरी कोन्पोनेंट्स चीन और यूरोप से मंगाने पड़ते हैं जिस की खपत महामारी के चलते पूरी नहीं हो पा रही.
वडोदरा स्थित मैक्स वेंटिलेटर्स के सीईओ अशोक पटेल का कहना है, “हमारे वेंटिलेटर्स में 8 तरह के सेंसर्स होते हैं जो यूएस, जापान और यूरोप में बनते हैं. भारत में छोटे कोम्पोनेंट्स जैसे रेसिस्टर्स, केपेसिटर्स और डायोडीज तक नहीं बनाता जिस कारण इन्हें इम्पोर्ट करना जरूरी है.” यह कंपनी 150-170 वेंटिलेटर्स एक महीने में बनाने की कोशिश में है जबकि पहले यह संख्या केवल 70-80 थी.
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इस महामारी में वेंटिलेटर्स की कमी पूरी करने के लिए कुछ बड़ी कंपनियां सामने आ रही हैं. महिंद्रा एंड महिंद्रा अथवा एमएनएम के औटोमेटिव डिवीजन के मैनेजिंग डायरेक्टर पवन गोएंका ने ट्वीट कर बताया, ‘एक तरफ हम दो बड़े सार्वजनिक क्षेत्रक उपक्रम यानी पीएसयू के साथ मिल कर वेंटिलेटर्स का डिजाइन सरल कर उस के उत्पादन की दर बढ़ाने की तरफ कार्यरत हैं. हमारी इंजीनियरिंग टीम इस पर काम कर रही है. वहीं दूसरी तरफ हम वेंटिलेटर का औटोमेटिक वर्जन यानी बैग वाल्व मास्क वेंटिलेटर (जिसे अंबु बैग भी कहते हैं) पर काम कर रहें हैं. अप्रूव होने के बाद यह डिजाइन सभी के पास बनने के लिए चला जाएगा.’
मोदी सरकार अब कंपनियों को वेंटिलेटर्स की मांग पूरी करने के लिए सामने आने के लिए कह रही है. इन में मारुति सुजुकी, हुंडई, टाटा मोटर्स उल्लेखित हैं. मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड के चेयरमेन आर सी भार्गव ने एक इंटरव्यू में बताया, “सरकार वेंटिलेटर्स की बड़ी मांग का अनुमान लगा रही है. उस ने हमें भी अप्रोच किया है कि हम वेंटिलेटर्स बनाने में कार्यरत हों. हमारी टीम के कुछ लोग इस की संभावना पर विचार कर रहे हैं.”
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विश्वभर में आज वेंटिलेटर्स की मांग सामन्य से 10 गुना बढ़ चुकी है. यह मांग जबतक पूरी नहीं होती तबतक कोरोना वाइरस के हर रोगी को वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं हो सकेगा जिस का अर्थ है कि यदि एक वेंटिलेटर उपलब्ध है और 5 रोगी हैं तो सुविधा केवल उस रोगी को दी जाएगी जिस की उसे सब से ज्यादा जरूरत होगी चाहे बाकी चार इस बाबत इलाज से विमुक्त रहें. यह स्थिति भयावह है. इस से निबटना और वेंटिलेटर्स की मांग को समय से पहले पूरा करना बेहद आवश्यक है नहीं तो हमें वेंटिलेटर के अभाव में कोरोना वायरस पीड़ितों को लाशों में तब्दील होते देखने के लिए तैयार रहना चाहिए और इस की जिम्मेदार सीधेसीधे सरकार होगी .
फिलहाल जिस तरह से दिल्ली के आनंद विहार औऱ कश्मीरी गेट से गरीब व मजदूरों की जो भीड़ पलायन कर रही है अगर कोरोना की गिरफ्त में ये आ गए तो वेंटिलेटर तो दूर की बात है इन्हें अस्पतालों में बैड तक नहीं मिलेंगे.