जब मंचीय कवि कुमार विश्वास आम आदमी पार्टी से जुड़े थे तो उन्हें अपने मित्र अरविंद केजरीवाल से बड़ी उम्मीदें थीं कि लोकसभा चुनाव हारने के एवज में वे उन्हें राज्यसभा भेज देंगे, लेकिन हुआ उलटा कि उन्हें आप से ही बाहर कर दिया गया. यह कसक अक्सर कुमार विश्वास को सालती रहती है और वे हर कहीं अपने भूतपूर्व यार को दगाबाज वगैरह कविताओं के जरिए बताते रहते हैं.

चुनाव प्रचार के दिनों में शाहीनबाग मसले पर उन्होंने केजरीवाल को गुंडे सप्लाई करने वाला बताया था. अभी तक जिन लोगों को यह समझ नहीं आ रहा कि केजरीवाल ने कुमार को अपने विश्वास से बाहर क्यों किया था, उन्हें सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले वे वीडियो देखने चाहिए जिन में कुमार विश्वास रामकथा बांच रहे हैं और वर्णव्यवस्था की पूरी धूर्त निष्ठा से हिमायत करते नजर आ रहे हैं.

दरअसल, केजरीवाल ने मायावती के अंजाम से सबक लिया है कि पंडित सतीश मिश्रा जैसा मनुवादी असिस्टैंट कैसे नैया डुबोता है.

दत्तक ठाकरे

दूसरे करोड़ों लोगों की तरह मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने भी सोचा यही होगा कि कुछ भी हो जाए, उन के कजिन व शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ सरकार नहीं बनाएंगे. लेकिन जब ऐसा हो ही गया तो उन्हें पहली बार समझ आया कि असल नादान और अपरिपक्व तो वे खुद हैं जो चाचा बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी अपने को मानते और समझते रहे थे.

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साबित हो गया कि घुटना पेट की तरफ ही मुड़ता है, इस के बाद भी राज, उद्धव नाम के घुटने के टूटने का उबाऊ इंतजार करते रहे. अब खुद पूरी तरह टूट चुके राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी मनसे के झंडे को पूरी तरह भगवा कर मैसेज दे दिया है कि अमित शाह अगर चाहें तो वे भाजपा की गोद में जाने के लिए तैयार हैं. लेकिन पहले से ही अपने दर्जनभर कमजोर दत्तक पुत्रों की नालायकी से परेशान भाजपा किसी नए राजदुलारे के पालनपोषण का जोखिम उठाएगी, फिलहाल ऐसा लग नहीं रहा.

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