टैक्स डिपार्टमेंट के सामने गड़बड़झाले का एक नया पिटारा खुल गया है. करीब 10 दिनों पहले इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की जांच इकाई ने मुंबई में कम-से-कम पांच लोगों को नोटिस भेकर कहा था कि वे चार टैक्स हेवेंस यानी जर्सी, गुएर्नसे, आइल ऑफ मैन और ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स में अपनी विदेशी कंपनियों और फाइनैंशियल स्ट्रक्चर्स की जानकारी दें. ये नोटिस इनकम टैक्स ऐक्ट के सेक्शन 131 के तहत भेजे गए थे. यह सेक्शन छिपाई गई आमदनी के बारे में सबूत जुटाने से जुड़ा है.

विभाग के कदम ने संबंधित लोगों और उनके फाइनैंशियल अडवाइजर्स को सन्न कर दिया है जो अब यह अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि टैक्स अधिकारियों को उनके बारे में जानकारी कैसे मिली. पनामा पेपर्स या एचएसबीसी जिनेवा अकाउंट्स के मामलों से उलट अब तक ऐसी कोई रिपोर्ट सामने नहीं आई है, जिसमें कहा गया हो कि लॉ फर्मों, बैंकों या इन टैक्स हेवेंस में दूसरे सर्विस प्रोवाइडर्स के सर्वर्स में हैकरों ने सेंध लगाई है. इन जगहों के साथ भारत ने भले ही सूचना साझेदारी के समझौते किए हों, टैक्स विभाग टैक्स हेवेंस से कोई सूचना तभी हासिल कर सकता है, जब वह भारत में टैक्स कानूनों के उल्लंघन के संदेह में किसी व्यक्ति के बारे में खास सवाल करे.

मामले की जानकारी रखने वाले एक शख्स ने ईटी को बताया, 'इन पांचों लोगों के पास इन जगहों पर कंपनियां और ट्रस्ट स्ट्रक्चर्स हैं. हालांकि इनमें से किसी के मामले में टैक्स सर्वे, रेड या जांच का कदम नहीं उठाया गया है. विभाग को किसी तरह सूचना मिल गई, लेकिन हमें स्रोत का पता नहीं. इससे ऐसे कई लोगों में खलबली मच गई है, जिन्होंने पिछले साल की ब्लैक मनी स्कीम में खुलासा नहीं किया था. चूंकि सूचना लीक हुए किसी डेटा पर आधारित नहीं है, लिहाजा आरोपी इस आधार पर अपना बचाव नहीं कर सकते हैं कि सूचना चुराई गई है और इसलिए उसे अदालत में सबूत के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता है.'

विभाग के नोटिस का जवाब देने के बाद संबंधित व्यक्ति को टैक्स ऑफिस में बुलाया जाता है, जहां उसका हलफनामा लिया जाता है.

टैक्स और फॉरन करेंसी नियमों के इसी तरह के उल्लंघन के मामलों में विभाग को सलाह दे चुके एक सीनियर लॉयर ने कहा, 'नोटिस पाने वाले सभी पांच लोग कमोडिटीज और मैन्युफैक्चर्ड गुड्स के एक्सपोर्टर हैं. विदेश में रखी गई रकम आमतौर पर कमीशन इनकम के रूप में दिखाई जाती है और कहा जाता है कि एक्सपोर्ट ऑर्डर्स हासिल करने में मदद देने वाले विदेशी बिचौलियों को वह पैसा चुकाया गया. हालांकि ज्यादातर मामलों में ऐसे बिचौलियों की भूमिका में एक्सपोर्टर्स की फर्जी कंपनियां ही होती हैं.' इन चार टैक्स हेवेंस में बनाई गई विदेशी कंपनियों की लिस्ट में इन पांच लोगों के नाम कंपनियों के शेयरहोल्डर्स के रूप में भी दर्ज नहीं हैं.

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