देश में कोटा वर्तमान का ऐजुकेशन हब है जहां देशभर के नौनिहाल प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग लेने आते हैं, लेकिन यहां पहुंच कर उन्हें ऐसी अनेक परेशानियों को झेलना पड़ता है जिन्हें झेलते हुए उन की कमर टूट जाती है और हार कर उन्हें मौत को गले लगाना पड़ता है. जी हां, पिछले कुछ वर्षों से तो कुछ ऐसा ही हो रहा है.
यहां दी जा रही कुछ घटनाएं तो युवाओं द्वारा की जा रही आत्महत्या की महज बानगी हैं असलियत तो कुछ और ही है. आंकड़ों पर नजर डालें तो कोई भी वर्ष ऐसा नहीं गया जब यहां तैयारी करने आए युवाओं द्वारा आत्महत्या की घटनाएं न हुई हों.
4 दिसंबर, 2015 : गाजियाबाद की रहने वाली 17 वर्षीय सताक्षी गुप्ता, 6 वर्ष से यहां चाची के घर पर रह कर पढ़ाई के साथ प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. एक दिन सताक्षी ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली. पुलिस को कोई सुसाइड नोट नहीं मिला, लेकिन संदेह जताया गया कि पढ़ाई के दबाव के कारण उस ने यह कदम उठाया.
3 दिसंबर, 2015 : 19 वर्षीय मैडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे वरुण जिंगर ने किराए के मकान में फांसी लगा ली. सुसाइड नोट में उस ने लिखा कि खुद की गलतियों के कारण वह यह कदम उठा रहा है. वह कौन सी गलती थी, इस का कहीं कोई जिक्र नहीं है. पुलिस का मानना है कि पढ़ाई का दबाव बड़ा कारण था.
1 नवंबर, 2015 : 18 वर्षीय अंजलि आनंद 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद 2014 में कोटा आ गई. एसीपीएमटी क्रैक करने के लिए उस ने 1 साल की पढ़ाई ड्रौप की, लेकिन एक दिन फांसी लगा कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली. उस ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि अपनी मौत के लिए वह खुद जिम्मेदार है.
28 अक्तूबर, 2015 : इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे 17 वर्षीय विकास ने फांसी पर लटक कर खुदकुशी कर ली. उस के सुसाइड नोट में जिक्र है कि उस का रुझान इतिहास और कला में था, लेकिन मम्मीपापा की इच्छा थी कि वह इंजीनियर बने.
कई मामलों में पुलिस मोबाइल कौल की छानबीन नहीं करती. कुछ कोचिंग इंस्टिट्यूट के अधिकारियों का मानना है कि पुलिस केवल खानापूर्ति करती है. जब तक पुलिस हर केस की तह तक नहीं पहुंचेगी, तब तक असलियत का पता नहीं लगेगा. कुछ सामाजिक संगठनों ने बताया कि एक छात्र 5 से 7 घंटे कोचिंग संस्थान में बिताता है, बाकी समय वह बाहर रहता है.
उसे अकेलापन, बीमारी, पोषक तत्त्वों की कमी, परिवार का दबाव, आर्थिक तंगी, आजादी, रोकटोक जैसे कई कारक खुदकुशी के लिए प्रेरित कर सकते हैं. कई छात्र बेहिसाब खर्च करते हैं और कर्ज में डूब जाते हैं. कुछ का विपरीत सैक्स के साथ याराना हो जाता है. ये सब बहुत आसान है क्योंकि छात्र अकेला रहता है.
लगातार बढ़ती आत्महत्याओं को ले कर चिंतित राजस्थान सरकार ने एक ड्राफ्ट बनाने का मन बनाया है, क्योंकि राजस्थान में भी छात्रों द्वारा इस तरह की आत्महत्या करने की घटनाएं अकसर होती रहती हैं. इस कमेटी में कोचिंग संस्थान के संचालक भी शामिल होंगे.
ड्राफ्ट में निम्न बिंदुओं पर ध्यान दिया जाएगा :
– फीस में अंतर को कम किया जाए.
– ऐडमिशन के दौरान छात्र और अभिभावक दोनों की काउंसिलिंग हो.
– फैकल्टी की भी काउंसलिंग हो. फैकल्टी को तनावमुक्त बनाने के लिए प्रेरित किया जाए.
– एक बैच में छात्रों की संख्या सीमित की जाए.
कोचिंग संस्थानों की फीस और सालाना खर्च डेढ़ से 2 लाख रुपए तक होता है. ऐसे में अभिभावकों को काफी मुश्किलें होती हैं. छात्र पर भी काफी दबाव रहता है. कई पेरैंट्स तो बारबार महंगी फीस, रहनेखाने पर भारी खर्च के बारे में अकसर अपने बच्चों को जताते रहते हैं. ऐसे में छात्रों में हताशा और तनाव व्याप्त होना लाजिमी है.
मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में नियंत्रण के लिए राज्य स्तर पर नियम बनाने को ले कर आम सहमति बनी है. बैठक में कहा गया कि बच्चों में बढ़ते तनाव के लिए किसी एक को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं है.
उधर, कोटा के एसपी सवाई सिंह ने बताया कि लगभग सभी आत्महत्याएं फंदे से लटक कर की गई हैं.
जो भी आत्महत्या के मामले सामने आए, उन में 10% मामले प्रेम प्रसंग से जुड़े थे, अन्य सभी मामले पढ़ाई को ले कर उपजे तनाव से जुड़े थे. एक कोचिंग सैंटर संचालक ने बताया कि बच्चे हमारे पास तो केवल 4 से 5 घंटे रहते हैं. बाकी समय तो वे बाहर ही होते हैं. आत्महत्या के पीछे और भी कई कारण हो सकते हैं.
इन प्रावधानों पर चर्चा
– क्लास में छात्रों की संख्या कम की जाए.
– अभिभावकों की भी काउंसिलिंग हो.
– कैरियर काउंसिलिंग की जाए. प्रवेश परीक्षाओं में कटऔफ की वास्तविक स्थिति बताई जाए.
– हर रविवार को साप्ताहिक अवकाश अनिवार्य हो. ऐक्स्ट्रा क्लास या टैस्ट जैसी ऐक्टिविटीज न हों.
– अनुपस्थित रहने वाले विद्यार्थियों पर निगरानी रखी जाएगी.
– विद्यार्थियों की आयुवर्ग के हिसाब से मनोरंजक एवं मोटिवेशनल गतिविधियों का भी समावेश किया जाएगा.
पेरैंट्स की अपेक्षाएं
हर पेरैंट्स की अपने बच्चों से काफी अपेक्षाएं रहती हैं. इसलिए वे बच्चों को आईआईटी और मैडिकल परीक्षा क्रैक करने के लिए हर साल कोटा भेजते हैं. जहां इन से मोटी फीस वसूली जाती है और रहनेखाने का भी काफी खर्च आता है. इस के बावजूद यदि स्टूडैंट्स को हाथ कुछ आता नहीं दिखता तो उन के सामने आत्महत्या के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता. मांबाप अपनी दमित इच्छा को बच्चों के जरिए पूरी कराना चाहते हैं, जो उन की बड़ी भूल है.
बच्चों की इच्छा को जाने बिना उन्हें कठिन प्रतिस्पर्द्धा के लिए जबरदस्ती भेजना कतई न्यायोचित नहीं है. 12वीं तक साथ रहने के बाद बच्चों को एकदम अलगथलग रह कर अकेले समय बिताना कठिन हो जाता है.
उन के खाने के स्तर में निरंतर गिरावट, तंग कमरे और घुटन भरे माहौल में गुजारा करना वाकई चुनौती भरा है.
शुरुआती दौर में कोटा में चुनिंदा कोचिंग संस्थान थे, जहां कमरे बड़े और आरामदायक मिल जाते थे. सस्ते में अच्छा खाना मिल जाता था, लेकिन आज कोटा में पांव रखने की जगह नहीं है. ऐसे माहौल में युवा घुटन महसूस करते हैं और जिंदगी से बेजार हो कर मौत को गले लगा लेते हैं.
पेरैंट्स को अपने बच्चों से उतनी ही अपेक्षाएं रखनी चाहिए जितनी वे आसानी से पूरी कर सकें. पढ़ाई का प्रैशर न ही बनाएं तो बेहतर है.
युवा होने के कारण विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण भी स्वाभाविक है. ऐसे में बिना मार्गदर्शन के यहां रह रहे छात्रछात्राओं को गलत राह पर जाने में भी देर नहीं लगती. कोचिंग संस्थानों को केवल क्लास में अनुशासन कायम रखने और फीस से मतलब होता है तो लौज मालिक को केवल अपने किराए से. इस विषम परिस्थिति में लाखों युवा दिशाहीनता का शिकार हो रहे हैं.
प्रशासनिक बैठक में किए गए मुख्य निर्णय
– ऐग्जिट पौलिसी के तहत छात्र जब चाहें कोचिंग की पढ़ाई छोड़ सकते हैं. ऐसे में जितने समय उन्होंने पढ़ाई की है, उन से उतना ही शुल्क लिया जाए.
– प्रदेश में कोचिंग के लिए रैगुलेटरी सिस्टम बनाया जाएगा.
– तनावमुक्ति के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएं.
– हर कोचिंग संस्थान में 24 घंटे चालू रहने वाली हैल्पलाइ