दुकान से घर लौटते हुए वह अचानक ही उदास हो उठता है. एक अजीब तरह की वितृष्णा उस के भीतर पैदा होने लगती है. वह सोचने लगता है, घर लौट कर भी क्या करूंगा? वहां कौन है जो मुझे प्यार दे सके, अपनत्व दे सके, मेरी थकान मिटा सके, मेरी चिंताओं का सहभागी बन सके? पत्नी है, मगर उस के पास शिकायतों का कभी न खत्म होने वाला लंबा सिलसिला है. न वह हंसना जानती है न मुसकरा कर पति का स्वागत करना.
वह जब भी दुकान से घर लौटता है, जया का क्रोध से बिफरा और घृणा से विकृत चेहरा ही उसे देखने को मिलता है. जब वह खाने बैठता है तभी जया अपनी शिकायतों का पिटारा खोल कर बैठ जाती है. कभी मां की शिकायतें तो कभी अपने अभावों की. शिकायतें और शिकायतें, खाना तक हराम कर देती है वह. जब वह दुकान से घर लौटता है तब उस के दिल में हमेशा यही हसरत रहती है कि घर लौट कर आराम करे, थकी हुई देह और व्याकुल दिमाग को ताजगी दे, जया मुसकरा कर उस से बातें करे, उस के सुखदुख में हिस्सेदार बने. मगर यह सब सुख जैसे किसी ने उस से छीन लिया है. पूरा घर ही उसे खराब लगता है.
घर के हर शख्स के पास अपनीअपनी शिकायतें हैं, अपनाअपना रोना है. सब जैसे उसी को निचोड़ डालना चाहते हैं. किसी को भी उस की परवा नहीं है. कोई भी यह सोचना नहीं चाहता कि उस की भी कुछ समस्याएं हैं, उस की भी कुछ इच्छाएं हैं. दिनभर दुकान में ग्राहकों से माथापच्ची करतेकरते उस का दिमाग थक जाता है. उसे जिंदगी नीरस लगने लगती है. मगर घर में कोई भी ऐसा नहीं था जो उस की नीरसता को खत्म कर, उस में आने वाले कल के लिए स्फूर्ति भर सके. जया को शिकायत है कि वह मां का पक्ष लेता है, मां को शिकायत है कि वह पत्नी का पिछलग्गू बन गया है. लेकिन वह जानता है कि वह हमेशा सचाई का पक्ष ही लेता है, सचाई का पक्ष ले कर किसी के पक्ष या विपक्ष में कोई निर्णय लेना क्या गलत है? जया या मां क्यों चाहती हैं कि वह उन्हीं का पक्ष ले? वे दोनों उसे समझने की कोशिश क्यों नहीं करतीं? वह समझ नहीं पाता कि ये औरतें क्यों छोटीछोटी बातों के लिए लड़तीझगड़ती रहती हैं, चैन से उसे जीने क्यों नहीं देतीं?
उसे याद है शादी के प्रारंभिक दिनों में सबकुछ ठीकठाक था. जया हमेशा हंसतीमुसकराती रहती थी. घर के कामकाज में भी उसे कितना सुख मिलता था. मां का हाथ बंटाते हुए वह कितना आनंद महसूस करती थी. देवरननदों से वह बड़े स्नेह से पेश आती थी. मगर कुछ समय से उस का स्वभाव कितना बदल गया है. बातबात पर क्रोध से भर जाती है. घर के कामकाज में भी हाथ बंटाना उस ने बंद कर दिया है. मां से सहयोग करने के बजाय हमेशा उस से लड़तीझगड़ती रहती है. किसी के साथ भी जया का सुलूक ठीक नहीं रहा है. समझ नहीं आता कि आखिर जया को अचानक हो क्या गया है…इतनी बदल क्यों गई है? उस के इस प्रकार ईर्ष्यालु और झगड़ालू बन जाने का क्या कारण है? किस ने उस के कान भरे कि इस घर को युद्ध का मैदान बना डाला है?
अब तो स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि जया अलग से घर बसाने के लिए हठ करने लगी है. अपनी मांग मनवाने के लिए वह तमाम तरह के हथियार और हथकंडे इस्तेमाल करने लगी है. वह जब भी खाना खाने बैठता है, उस के साथ आ कर वह बैठ जाती है. लगातार भुनभुनाती, बड़बड़ाती रहती है. कभीकभी रोनेसिसकने भी लगती है. शायद इस सब का एक ही उद्देश्य होता है, वह साफसाफ जतला देना चाहती है कि अब वह मां के साथ नहीं रह सकती, उसे अलग घर चाहिए.
उसे हैरानी है कि आखिर जया एकाएक अलग घर बसाने की जिद क्यों करने लगी है. यहां उसे क्या तकलीफ है? वह सोचती क्यों नहीं कि उन के अलग हो जाने से यह घर कैसे चलेगा? मां का क्या होगा? छोटे भाईबहनों का क्या होगा? कौन उन्हें पढ़ाएगालिखाएगा? कौन उन की शादी करेगा? पिताजी की मौत के बाद इस घर की जिम्मेदारी उसी पर तो है. वही तो सब का अभिभावक है. छोटे भाई अभी इतने समर्थ नहीं हैं कि उन के भरोसे घर छोड़ सके. अभी तो इन सब की जिम्मेदारी भी उस के कंधों पर ही है. वह कैसे अलग हो सकता है? जया को उस ने हमेशा समझाने की कोशिश की है. मगर जया समझना ही नहीं चाहती. जिद्दी बच्चे की तरह अपनी जिद पर अड़ी हुई है. वह चाहता है इस मामले में वह जया की उपेक्षा कर दे. वह उस की बात पर गौर तक करना नहीं चाहता. मगर वह क्या करे, जया उस के सामने बैठ कर रोनेबुड़बुड़ाने लगती है. वह उस का रोनाधोना सुन कर परेशान हो उठता है.
तब उस का मन करता है कि वह खाने की थाली उठा कर फेंक दे. जया को उस की बदतमीजी का मजा चखा दे या घर से कहीं बाहर भाग जाए, फिर कभी लौट कर न आए. आखिर यह घर है या पागलखाना जहां एक पल चैन नहीं?
इच्छा न होते भी वह घर लौट आता है. आखिर जाए भी कहां? जिम्मेदारियों से भाग भी तो नहीं सकता. उसे देखते ही जया मुंह फुला कर अपने कमरे में चली जाती है. अब उस का स्वागत करने का यही तो तरीका बन गया है. वह जानता है कि अब जया अपने कमरे से बाहर नहीं आएगी. इसलिए वह अपनेआप ही बालटी में पानी भरता है. अपनेआप ही कपड़े उठा कर गुसलखाने में चला जाता है. नहा कर वह अपने कमरे में चला जाता है. जया तब भी मुंह फुलाए बैठी रहती है. उसे उबकाई सी आने लगती है. क्या पत्नी इसी को कहते हैं? क्या गृहस्थी का सुख इसी का नाम है. वह जया से खाना लाने के लिए कहता है. वह अनमने मन से ठंडा खाना उठा लाती है. खाना देख कर उसे गुस्सा आने लगता है, फिर भी वह खाने लगता है.