उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के हैदरगढ़ इलाके की रहने वाली रेहाना की शादी 16 साल की उम्र में लखनऊ के परवेज से हो गई थी. रेहाना का परिवार गांव में रहता था. वह वहां के रहनसहन की आदी थी. 5वीं जमात तक पढ़ी रेहाना को पढ़नेलिखने का शौक था. उस के वालिद ने आगे स्कूल भेजने से बेहतर उस की शादी करना मुनासिब समझा. रेहाना को समझा दिया गया कि निकाह के बाद लखनऊ जाना, तो वहां पढ़ने के लिए अच्छेअच्छे स्कूल मिलेंगे.
रेहाना निकाह के बाद लखनऊ आ गई. वहां पर उस ने अपनी पढ़ाई की बात की, तो किसी ने उस की बात को तवज्जुह नहीं दी. धीरेधीरे वह रोजमर्रा की जिंदगी में उलझ गई. शादी के सालभर बाद ही रेहाना को एक बच्चा भी हो गया. रेहाना का पति नौकरी करने विदेश चला गया. अब वह कुछ दिन लखनऊ रहती, तो कुछ दिन मायके हैदरगढ़ चली जाती. इस बीच ससुराल में उस का कुछ मनमुटाव भी होने लगा. यह बात विदेश में नौकरी करने गए रेहाना के पति परवेज को भी पता चली, तो वह उसी को जिम्मेदार ठहराने लगा. रेहाना को यह पता नहीं था कि परवेज के मन में क्या है?
एक दिन फोन पर बात करते ही दोनों के बीच झगड़ा होने लगा. गुस्से में आ कर परवेज ने रेहाना को ‘तलाक तलाक तलाक’ कह कर तलाक दे दिया.इस बात की जानकारी रेहाना के मायके और ससुराल वालों को भी हुई. उन लोगों ने बात को संभालने के बजाय दोनों का अलगाव कराने का फैसला कर लिया. निकाह के 4 साल के अंदर ही 20 साल की रेहाना तलाकशुदा औरत बन कर ही मायके में रह कर मेहनतमजदूरी कर के अपना पेट पालने को मजबूर हो रही है.
यह केवल रेहाना की बात नहीं है. गांवों और कसबों में रहने वाली कमजोर परिवार की बहुत सारी मुसलिम लड़कियां इस तरह की परेशानियों से गुजर रही हैं. कुछ सालों में उत्तर प्रदेश और बिहार के गांवकसबों में रहने वाली लड़कियों के मातापिता उन की शादी शहरों में करने लगे हैं, ताकि वे सुखी जिंदगी गुजरबसर कर सकें. शादी के समय अपनी अच्छी माली हालत बताने वाले लड़कों के परिवार शादी के बाद लड़कों को नौकरी करने किसी और देश या शहर भेज देते हैं, जहां पर वे नौकरी करते हैं. घर में उन का रहना कम होने लगता है.पतिपत्नी के अलग रहने से दोनों के बीच दूरियां बढ़ती जाती हैं. एक समय ऐसा आता है कि ये दूरियां तनाव, लड़ाईझगड़े में बदल जाती हैं. फोन, ह्वाट्सऐप और सोशल मीडिया के बढ़ते चलन से बातबात पर तलाक देने की घटनाएं बढ़ गई हैं. छोटीछोटी बातचीत और लड़ाईझगड़े में ये मर्द अपनी औरतों को तलाक देने लगे हैं. मुसलिम तलाक कानून 3 तलाक को ले कर पसोपेश की हालत में है. ऐसे में इस का खमियाजा औरतों को उठाना पड़ता है.
आंकड़े बताते हैं कि साल 2014 में महिला शरीआ अदालतों में 235 तलाक के मामले आए थे. इन में से 66 फीसदी मामलों में बातचीत करतेकरते मुंहजबानी तलाक ही लिया गया था. जिन औरतों को तलाक मिला, उन में से 90 फीसदी से ज्यादा औरतें इस तरह के तलाक से खुश नहीं हैं. मुसलिम समाज में आज भी 55 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में ही कर दी जाती है. इन में से आधी औरतों के पास निकाहनामा नहीं होता है. मुसलिम समुदाय में इस तरह के तलाक की अहम वजह किसी और से शादी भी होती है. 90 फीसदी औरतें अपने पतियों की दूसरी शादी के खिलाफ हैं. मुसलिम समाज में घरेलू हिंसा के मामले भी बढ़े हैं. औरतें बातबात पर तलाक के डर से अपनी बात किसी से कहने में डरती हैं. उन को लगता है कि इस से उन का पति उन को तलाक दे देगा. तलाक के डर से वे मारपीट को चुपचाप सहती रहती हैं.
छोटी छोटी वजहें
बातबात पर तलाक देने के मामलों को देखा जाए, तो बहुत छोटीछोटी वजहें सामने आती हैं. रेहाना ने बताया कि उस के पति ने लड़ाईझगड़ा शुरू करने से पहले कहा था कि तुम को खाना बनाना नहीं आता. जब भी तुम गोश्त बनाती हो, उस में तेल ज्यादा रहता है. उस को खाने के बाद हमारे घर वालों का पेट खराब हो जाएगा. वे बीमार हो जाएंगे. जब तुम घर के लोगों के लिए खाना तक नहीं बना सकती हो, तो तुम्हारे साथ निकाह कर के रहने का क्या फायदा? इस के बाद ही उस ने तलाक दे कर रेहाना को छोड़ दिया. दरअसल, मुसलिम कानून में औरतों के बजाय आदमियों को ज्यादा हक दिए गए हैं. ऐसे में औरतें हमेशा अपने को असुरक्षित महसूस करती हैं. आदमियों को लगता है कि 3 बार तलाक कहने से उन को बीवी से छुटकारा मिल जाएगा. एक बार तलाक हो जाने के बाद कोई भी औरत की बात को सही नहीं मानता. ऐसे में आदमियों के हौसले बढ़ते जाते हैं.
समाज के दूसरे तबकों को देख कर मुसलिम बिरादरी की लड़कियां भी फैशनेबल पोशाक में रहना चाहती हैं. जब वे ऐसा करती हैं, तो उन के समाज के कट्टरवादी लोग एतराज करते हैं. यहीं से औरतों का विरोध होने लगता है.
20 साल की फरहाना ने बताया कि उस ने इंटर तक की पढ़ाई पूरी की थी. शादी के बाद वह अपनी सहेलियों से मिलती, तो वे सब फैशन से रहती थीं. एक बार उस ने भी फैशनेबल पोशाक पहन ली. इस से उस की सास नाराज हो गईं और इस बात की शिकायत उस के पति को कर दी, जिस के बाद मारपीट से शुरू हुई कहानी तलाक तक पहुंच गई. इस तरह के हालात का सामना कर रही रजिया ने बताया कि उस का तलाक इसलिए हो गया, क्योंकि अपनी ननद की शादी में उस ने कपड़ों और गहनों की खरीदारी की थी. यह बात ननद की ससुराल वालों को पसंद नहीं आई. ननद की ससुराल वालों की शिकायत पर उसे तलाक दे दिया.
पहले भारतीय समाज में शादी टूटने की घटनाएं कम होती थीं. हाल के कुछ सालों में ये घटनाएं बढ़ चुकी हैं. शादी टूटने की सब से ज्यादा घटनाएं मुसलिम बिरादरी में बढ़ रही हैं. महज 10 सालों के अंदर शादी टूटने की घटनाएं 3 गुना ज्यादा बढ़ गई हैं. छोटेबड़े सभी शहरों में एकजैसे हालात हैं. देश में सब से ज्यादा तलाक मुंबई में होते हैं. एक साल में मुंबई में औसतन 11 हजार, दिल्ली में 8 हजार और लखनऊ में 3 हजार तलाक होते हैं. दिल्ली में हर साल फैमिली कोर्ट में 15 हजार से ज्यादा अर्जियां तलाक के लिए डाली जाती हैं. केरल, पंजाब और हरियाणा में तलाक के मामले तेजी से बढ़े हैं. वहां हर साल 3 से 6 हजार तलाक के केस फाइल होते हैं.
तलाक की कहानी
मुसलिम तबके में किसी आदमी को अपनी पत्नी से छुटकारा पाने के लिए तलाक शब्द को कहने का हक हासिल है. 3 बार तलाक शब्द को दोहरा कर वह पत्नी को तलाक दे सकता है. मुसलिम धर्म के जानकार मानते हैं कि इस तरह बातबात पर तलाक लेना सही नहीं है. तलाक शब्द को एकसाथ ही 3 बार में नहीं बोला जा सकता है. एक महीने में एक बार ही तलाक बोला जा सकता है. इस से पतिपत्नी को तलाक लेने में 3 महीने तक का समय मिल जाता है.
सही बात यह है कि लोग इस बात का पालन नहीं करना चाहते. लोग एक बार में ही तलाक शब्द को 3 बार में बोल कर तलाक लेना पसंद करते हैं. मुसलिम तबके के लोग भी इस बात को ज्यादा प्रचारित नहीं करना चाहते कि तलाक को किस तरह से देना होता है. मर्द इस भ्रम को बनाए रखना चाहते हैं, जिस से वे औरतों का शोषण कर सकें. कम पढ़ीलिखी लड़की इस तरह के दबाव में आ कर टूट जाती है. वह 3 बार कहे गए तलाक को ही सही मान लेती है. वह इस को अपनी किस्मत मान कर समझौता कर लेती है. कम उम्र में तलाक होने से औरतें जिंदगीभर दुख भोगती रहती हैं. इस में से कई दिमागी बीमारियों का शिकार हो कर टूट जाती हैं.
रेहाना कहती है, ‘‘तलाक देने के तरीकों से मुसलिम औरत हमेशा नुकसान में रहती है. जब तक 3 तलाक को सही तरह से इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, तब तक मर्द मनमानी करते रहेंगे.’’ तलाक को ले कर सुप्रीम कोर्ट ने भी सुझाव दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शादी का रजिस्ट्रेशन कराने के साथ ही शादी में दिए गए स्त्रीधन और मिलने वाले सामान की पूरी लिस्ट भी बनाई जाए. इस के बाद भी अभी तक इस बात पर अमल नहीं किया गया है. अगर 3 तलाक के गलत इस्तेमाल से शादियों को टूटने से बचाना है, तो सुप्रीम कोर्ट की बात को मानना ही पडे़गा. मर्दों को लगता है कि अगर तलाक देने के तरीके में कोई रुकावट आएगी, तो उन की मनमानी पर असर पड़ेगा, जिस से वे औरत को आसानी से तलाक दे कर दूसरी शादी नहीं कर सकेंगे.
सोशल साइटें बनीं सौतन
पिछले 4-5 सालों में सोशल साइटों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है, जिस में आदमी और औरत दोनों ही अलगअलग दोस्त बनाते हैं. सब से बड़ा जरीया फेसबुक और ह्वाट्सऐप हैं. पहले यह लत शहरों तक ही सिमटी थी, पर अब मोबाइल फोन, फेसबुक और ह्वाट्सऐप गांवकसबों तक पहुंच गए हैं. बातबात पर तलाक के मामलों को अलग कर के देखा जाए, तो सोशल साइटें तलाक की अहम वजहें बन रही हैं. स्कूल में पढ़ाने वाली सलमा फेसबुक और वाट्सऐप दोनों का इस्तेमाल करती थीं. वे जब स्कूल से वापस आतीं, तो कुछ देर सोशल साइट्स पर बिताती थीं. एक बार उन के पति ने उन का फोन देखा तो पता चला कि सलमा रात को किसी मर्द दोस्त से चैटिंग कर रही थी. पति ने इस बात को ले कर पहले झगड़ा शुरू किया और बाद में सलमा को तलाक दे दिया. मुसलिम बिरादरी में अभी भी औरतों पर तमाम तरह की पाबंदी हैं. ऐसे में सोशल साइटें सौतन बन गई हैं. बातबात पर होने वाले तलाक में फेसबुक और ह्वाट्सऐप की बातों को सुबूत की तरह से पेश किया जाने लगा है. 50 फीसदी से ज्यादा लोग अपने साथी के अकाउंट पर नजर रखते हैं. 60 फीसदी लोग यह चाहते है कि उन की पत्नी अपने मोबाइल फोन में किसी तरह का पासवर्ड लौक न लगाएं.
30 फीसदी लोगों में फेसबुक और वाट्सऐप को ले कर हफ्ते में एक बार झगड़ा जरूर होता है. सोशल साइटों ने शादीशुदा जिंदगी में परेशानी खड़ी कर दी है. इस का सब से ज्यादा असर मुसलिम बिरादरी पर पड़ रहा है. अब मुसलिम बिरादरी भी इन मामलों को ले कर जागरूक होने लगी है. 3 तलाक कानून से उस की परेशानियां और भी ज्यादा बढ़ती जा रही हैं.
मुसलिम देश भी हैं परेशान
भारत में 3 तलाक भले ही चल रहा हो, पर मुसलिम देशों में इस पर बैन लगाया जाना शुरू हो गया है. पाकिस्तान में 3 तलाक को बंद कर दिया गया है. मुसलिम देशों में गुस्से, नशे और जोश में दिए गए तलाक को सही नहीं माना जाता है. अलगअलग देशों में तलाक को ले कर अलगअलग कानून हैं. मुसलिम देशों में औरतों की हालत बेहद खराब है. यूरोपीय देशों में मुसलिम जोड़ों के लिए अलग कानून है. 3 तलाक को वहां भी अच्छा नहीं माना जाता है. इस को रोकने के वहां भी अलगअलग कानून बने हैं. उन देशों में रहने वालों के माली और सामाजिक हालात भारत से अलग हैं. ऐसे में भारत में 3 तलाक को ले कर ज्यादा जागरूकता नहीं है. भारत में तमाम औरतों ने अपने संगठन बना कर 3 तलाक का विरोध करना शुरू किया है. इस से समाज में जागरूकता तो आ रही है, पर अभी भी बड़ा हिस्सा 3 तलाक को सही मानता है. आपसी विरोधऔर सहमति के बीच 3 तलाक का प्रचलन जारी रहने से औरतों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. सब से ज्यादा परेशानी गांवकसबों में रहने वाली औरतों के सामने आती है. कम पढ़ीलिखी गरीब औरतें अपनी शिकायत तक सही से नहीं करा पाती हैं. 3 तलाक ने इस तरह की औरतों की जिंदगी को बरबाद कर दिया है.