आज कल हर छात्र यही चाहता है कि कौलेज खत्म होते ही उसे एक अच्छी सी नौकरी मिल जाये. उसके लिये अधिकतर बच्चे प्रोफेशनल कोर्स की तरफ अपना रुख अपना रहे हैं पहले बच्चे साइंस स्ट्रीम का मतलब सिर्फ डौक्टर या इंजीनीयर बनना ही समझते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है क्योंकि अब इनके आलावा और भी कई कोर्सेज होते है. ऐसा ही एक कोर्स है बायोइन्फार्मेटिक्स जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं.
बायोइन्फार्मेटिक्स होता क्या है
यह जिव विज्ञान का नया क्षेत्र है यह कोर्स इन्फोर्मेशन टेक्नोलौजी और बायोटेक्नोलौजी से मिलकर बना है. यह एक स्पेशलाइज्ड कोर्स है. इसके माध्यम से जीन खोजना, जिनोम असेंबली, ड्रग डिजाइन, ड्रग डिस्कवरी, प्रोटीन स्ट्रक्चर अलाइनमेंट, प्रोटीन स्ट्रक्चर प्रिडिक्शन आदि क्षेत्रों में इसका प्रयोग किया जा रहा है इसका इस्तेमाल खासतौर पर मौलिक्यूलर बायोलौजी में होता है. यह एक कम्प्यूटर टेक्निकल एप्लिकेशन है.
जरूरी योग्यता
साइंस स्ट्रीम से 12 वीं पास करके इसमें दाखिला लिया जा सकता है. भारत में इसकी बढ़ती संभावनाएं हैं. ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन में इस विषय के साथ आपको माइक्रोबायोलौजी, फार्मेसी, वेटेनरी साइंस, मैथ्स और फिजिक्स इन सभी के बारे में जानना आवश्यक होता है.
इसमें आप B.Sc इन बायोइन्फरमेटिक्स ,B .Tech इन बायोइन्फार्मेटिक्स ,B.Sc (Hons.) इन बायोइन्फरमेटिक्स और BE इन बायोइन्फार्मेटिक्स की पढ़ाई कर सकते हैं.
भारत में बढ़ती संभावनाएं
भारत में बायोइन्फार्मेटिक्स का क्षेत्र अत्यधिक तेजी से आगे बढ़ रहा है. इसकी अनुलम्ब वृद्धि का कारण यह है कि इस क्षेत्र में आईटी और बायोटेक्नोलौजी के बीच सुंदर समन्वय है. भारत की जैव-विविधता, मानव संसाधन, इंफ्रास्ट्रक्टरल सुविधाओं तथा सरकारी पहल को देखते हुए आनेवाले वर्षों में भारत बायोइन्फार्मेटिक्स क्षेत्र में काफी आगे तक जायेगा और भारत को नई उपलब्धियां भी दिलवाएगा. आईडीसी द्वारा किए गए अध्ययन से पता चलता है कि भारत में बायोसाइंस विकास की अपार संभावनाएं है.
क्या करते हैं बायोइन्फोर्मेटिस्ट
इस फील्ड में कंप्यूटर टेक्नोलौजी के जरिए बायोइन्फोर्मेटिस्ट बायोलौजिकल डेटा का एनालिसिस करते है. इसके साथ ही इनका काम डेटा स्टोरेज करना भी होता है और डेटा को एक-दूसरे से मिलाना भी. इसके माध्यम से खासतौर पर किसी पौधे के जीन्स में किस प्रकार के परिवर्तन करना, जानलेवा बीमारी के लिए उत्तरदायी जीन्स समूह का पता करना, औषधि निर्माण में सहायता आदि में किया जाता है. यह एक उभरता हुआ इंटरडिसिप्लिनरी रिसर्च क्षेत्र है तथा जिंदगी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इसका उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है.