अयोध्या पूरी दुनिया में सबसे चर्चित है. राममंदिर पर आने वाले फैसले के मद्देनजर यहां पर हाई एलर्ट है. अयोध्या के हाई एलर्ट का यह हाल है कि एक घर में 2 शवों के साथ एक लड़की 2 माह तक रहती रही किसी को पता नहीं चला. जब शव सड़ने लगे उनकी बदबू से कालोनी के लोगों को चैन की नींद लेना मुश्किल हो गई तब पुलिस को शिकायत की गई.

पुलिस ने दरवाजा तोड़ कर देखा तो अंदर वीभत्स नजारा दिखा. कालोनी के रहने वाले ही नहीं यहां का प्रशासन भी संवेदनशील होता तो यह नहीं हो पाता. क्या किसी सभ्य समाज में ऐसी घटना की कल्पना हो सकती है. एक गजटेड अधिकारी का परिवार इस दशा में पंहुच गया पर किसी ने उसकी सुध नही ली. किसी परिवार की ऐसी हालत एक दिन में नहीं हुई होगी. जिससे पता चलता है कि सरकार के पास ऐसा कोई तंत्र नहीं है तो ऐस लोगों की हालत पर निगरानी कर सके.

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उत्तर प्रदेश की सरकार अयोध्या में रामराज्य की स्थापना के लिये कृत संकल्प है. अभी पिछले ही सप्ताह अयोध्या में करोड़ो रूपये खर्च करके घरघर को रोशन किया गया. अयोध्या को रोशन करने के लिये 6 लाख से अधिक दीयें जलाने का विश्व रिकार्ड  भी बनाया गया. दीवाली के अवसर पर पूरी अयोध्या दीपोत्सव से जगमग हो रही थी पर इसी अयोध्या में एक घर ऐसा भी था जिसमें एक लड़की अपनी मां और बहन के शव के साथ सोन को मजबूर थी. पड़ोसी और शासन प्रशासन के किसी अमले को इसकी जानकारी नहीं थी. अयोध्या की सुरक्षा व्यवस्था में लगी पुलिस और दूसरी जांच और गुप्तचार एजेंसी तक को इसकी जानकारी नहीं हो पाई थी.

जिस परिवार की घटना है वह परिवार कोई ऐसा वैसा गरीब परिवार नहीं था. एसडीएम जैसे प्रशासनिक पद पर रहे बृजेंद श्रीवास्तव का परिवार था.

अयोध्या की देवकाली कोतवाली नगर क्षेत्र में पूर्व एसडीएम बृजेंद् श्रीवास्तव का मकान आदर्श नगर कालोनी में था. 1990 में बृजेंद श्रीवास्तव ने आत्महत्या कर ली थी. बृजेंद श्रीवास्तव के परिवार में उनकी पत्नी पुष्पा, और तीन बेटियां रूपाली, विभा और दीपा रहती थी. कुछ साल पहले रूपाली की भी मौत हो चुकी थी. अब मां पुष्पा दोनो बेटियो विभा और दीपा के साथ रहती थी.

परिवार में एक बाद एक होने वाले हादस में पूरे परिवार की मानसिक हालत ठीक नहीं थी. इस बात की जानकारी पड़ेसियों को थी. कालोनी के लोगों से इस परिवार की बहुत बातचीत नहीं थी.

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करीब दो महीन से इस घर से कोई बाहर नहीं निकला. इस बात की जानकारी कालोनी के लोगों को थी. इसके बाद भी ना तो कालोनी के लोगों और ना ही जिला प्रशासन को इस बारें में कोई जानकारी हुई.

दशहरा और दीपावली जैसे त्यौहार बीत गये. हर घर रोशन हुआ. केवल इस घर को छोड़कर. किसी पडोसी ने इनके विषय में नहीं सोंचा. अयोध्या के दीपो की रोशनी पूरी दुनिया में चर्चा का विषय रही. उस की रोशनी पूर्व एसडीएम बृजेंद श्रीवास्तव के परिजनो तक नहीं पहुंची. 2 माह तक दीपा अपनी मां पुष्पा और बहन विभा के शव के साथ घर में रहती रही. उनके बगल ही सो जाती थी. जब शव 2 माह तक सडडने लगे उनकी बदबू कालोनी वालों को परेशान करने लगी तो उन लोगों ने पुलिस को शिकायत की.

सूचना पर आई पुलिस को दीपा अपनी मां और बहन के शव के साथ सोती मिली. दोनो शव आधे से अधिक सड़ चुके थे. जिनकी हड्डियां तक बाहर आ चुकी थी. सीओ सिटी अरविंद चैरसिया ने बताया कि शव करीब 2 माह के लग रहे है. पोस्टमार्टम के बाद ही मौत का कारण पता चल सकेगा. पुलिस ने दीपा को सरकारी संरक्षण गृह में भेज दिया है. अयोध्या की इस घटना से दिलो को झंझोड कर रख दिया है. अभी तक यह सोचा जाता था कि मुम्बई जैसे बड़े शहरों में अपार्ट मेंट में ही ऐसी घटनायें घट सकती है. छोटे शहरों में रहने वाले नागरिक ज्यादा संवेदनशील है. अयोध्या की घटना ने बता दिया कि शहर छोटा हो या बड़ा इससे फर्क  नहीं पड़ता. फर्क पड़ता है तो इस बात से कि वहा के रहने वाले नागरिकों की सोच कैसी है ?  हो सकता है कि मंदिर के फैसले की गूंज में यह घटना दब जाये पर यह सभ्य समाज के लिये ठीक नहीं है.

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