कृषि मेले की शुरुआत में सब्जियों की खेती में नैशनल लैवल पर पहचान बना चुके ‘पद्मश्री’ जगदीश प्रसाद पारीक ने किसानों के साथ अपने अनुभव साझा किए. साथ ही, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के राष्ट्रीय औषध पादप मंडल के सदस्य और जड़ीबूटियों की खेती के राष्ट्रीय सितारे राकेश चौधरी ने किसानों को संबोधित करते हुए खरपतवार को खरपतवार न समझते हुए उसे आमदनी में इजाफा करने का जरीया बनाने की बात कही.
उन्होंने कहा कि किसान खेत में उगी वनस्पतियों को पहचान कर उन्हें फार्मेसियों को मुहैया कराएं. खेत में अपनेआप उग रही वनस्पतियों को खरपतवार समझ कर उखाड़ने के बजाय उन के बारे में जानकारी ले कर उन्हें बेचा जाए. दरअसल, यह खरपतवार नहीं जंगली बूटियां हैं.
कैलाश चौधरी, कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री
जोधपुर : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान द्वारा किसान मेला और कृषि नवाचार दिवस (किसान वैज्ञानिक संगोष्ठी) का पिछले दिनों आयोजन किया गया. इस का उद्घाटन कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री, भारत सरकार, कैलाश चौधरी ने किया.
उन्होंने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि राजस्थान में बाजरा फसल का उत्पादन क्षेत्र बहुत बड़ा है. बाजरे के उत्पादों बिसकुट, केक, ओट्स वगैरह बना कर किसान ज्यादा से ज्यादा आमदनी हासिल कर सकते हैं. बाजरे के मूल्य संवर्द्धन में किसानों के लिए अभी भी काफी संभावनाएं हैं.
काजरी द्वारा तैयार किया गया बाजरे के केक को काटते हुए उन्होंने कहा कि इस केक को बनाने में मुश्किल से एक किलोग्राम आटा लगा होगा और इस की कीमत 1,000 रुपए है, क्या यह समझने के लिए काफी नहीं है कि प्रोसैसिंग से किस तरह से किसान अपनी आमदनी में इजाफा कर सकते हैं.
राजस्थान में अनेक तरह के बहुमूल्य औषधीय महत्त्व के पेड़पौधे खेजड़ी, नीम, आक, तुंबा, ग्वारपाठा वगैरह हैं. जिन की मार्केट की जानकारी हासिल कर तमाम चीजें बना कर बेचने से आमदनी बढ़ाई जा सकती है.
कटाई के तुरंत बाद फल, सब्जियों के उत्पाद का पूरा उपयोग करने के लिए प्रोसैसिंग यूनिट लगाएं, जिस से आमदनी में बढ़ोतरी हो.
जब यहां के उत्पाद देश के बडे़बड़े बाजारों और विदेशों में निर्यात होने लग जाएंगे तो आमदनी को बढ़ने से कौन रोक सकता है.
किसान की आमदनी दोगुनी हो, इस के लिए किसानों को प्रचुर मात्रा में उन्नत बीज मुहैया कराए जाने की व्यवस्था की जाएगी.
कृषि शोध द्वारा खेती में लागत को कम करने के लिए तमाम प्रयास जारी हैं. फसल भंडारण की व्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में तेजी से काम चल रहा है. किसानों को मार्केट उपलब्ध करवाया जा रहा है, ताकि किसानों को उन की मेहनत का पूरा फायदे मिले.
किसानों की भलाई के लिए चलाई जा रही किसान उत्पादन संघ (एफपीओ), प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना, प्रधानमंत्री मानधन योजनाओं के बारे में तमाम तरह की जानकारी देते हुए उन्होंने किसानों को इन योजनाओं से जुड़ कर फायदा लेने के लिए आगे आने का आह्वान किया.
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि जेडीए के पूर्व अध्यक्ष प्रोफैसर महेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा कि मरुस्थल में खेतीकिसानी के विकास में काजरी का खासा योगदान है.
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वहीं दूसरी ओर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर के सहायक महानिदेशक डाक्टर एसपी किमोथी ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि नवीनतम तकनीकियों को किसानों तक पहुंचाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र और अटारी द्वारा विस्तार गतिविधियां, तकनीकी हस्तांतरण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं.
काजरी के निदेशक डाक्टर ओपी यादव ने वहां मौजूद अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्थान की शोध परियोजनाओं और उपलब्धियों की जानकारी दी.
पंतनगर में संपन्न हुआ अखिल भारतीय किसान मेला
देहरादून : पिछले दिनों पंतनगर में 4 दिवसीय अखिल भारतीय किसान मेले का शुभारंभ हुआ. 27 सितंबर से 30 सितंबर, 2019 तक चलने वाले किसान मेले का उद्घाटन प्रगतिशील किसान रेखा भंडारी ने किया. वे पिथौरागढ़ जिले की रहने वाली हैं. उन्हें प्रधानमंत्री वाईब्रैंट गुजरात ग्लोबल एग्रीकल्चर समिट में श्रेष्ठ किसान पुरस्कार से सम्मानित कर चुके हैं.
रेखा भंडारी कई स्वयंसहायता समूहों से भी जुड़ी हुई?हैं. साल 2016 में उन्हें नेपाल में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर अतिथि व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया जा चुका है.
किसान मेले का उद्घाटन गांधी मैदान में सुबह 11 बजे किया गया. गोविंद वल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर के कुलपति डाक्टर तेज प्रताप और निदेशक प्रसार शिक्षा डाक्टर पीएन सिंह ने मेले में लगे विभिन्न महाविद्यालयों और अन्य संस्थाओं के स्टालों का भ्रमण किया.
मेले में विवि के विभिन्न महाविद्यालयों, शोध केंद्रों और कृषि विज्ञान केंद्रों, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त विभिन्न फर्मों की ओर से अपनेअपने उत्पादों और तकनीकों का प्रदर्शन किया गया.
मेले में विभिन्न फार्म के ट्रैक्टर, कंबाइन हार्वैस्टर, पावर टिलर, पावर वीडर, प्लांटर, सबस्वायलर, सिंचाई यंत्रों और अन्य आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रदर्शन कर वहां आने वाले लोगों और किसानों को उन के बारे में जानकारी दी गई.
विवि की ओर से उत्पादित रबी की विभिन्न फसलों के साथ ही सब्जियों, फूलों, औषधीय फलों वगैरह के पौधों और बीजों की बिक्री के लिए भी स्टाल लगे.
गांव में जाति भेदभाव
‘फार्म एन फूड’ पत्रिका के 16 सितंबर, 2019 अंक के संपादकीय में सही लिखा है कि हिंदू वर्ण व्यवस्था में निचलों का पैसा लूटा गया है और उन्हें अपने बराबर नहीं समझा गया है. गांवदेहात में भी यही सब देखने को मिलता है.
यह बात एकदम सही है कि 1947 के बाद भूमि सुधार कानूनों की वजह से बहुत से किसानों के पास वे जमीनें आ गईं जो पहले ऊंची जातियों के पास हुआ करती थीं. शिक्षा के मामले में भी ओबीसी आरक्षण का विरोध सवर्णों ने किया था तो इसलिए कि वे नहीं चाहते थे कि मंडल आयोग के जरीए कल तक दास और सेवक बने पर समझदार थोड़ी हैसियत वाले लोग बराबरी की जगह लेने लगें.
इस के अलावा लेख ‘कृषि यंत्र अनुदान से किसानों को फायदा’ जानकारी से भरा लगा.
कमाल की जानकारी
‘फार्म एन फूड’ पत्रिका के 16 सितंबर, 2019 अंक में छपा लेख ‘कृषि यंत्र अनुदान से किसानों को फायदा’ जानकारी से भरा लगा.
बहुत से किसान तो यह भी नहीं जानते होंगे कि सरकार कृषि यंत्रों पर अनुदान भी देती?है. चूंकि ऐसे यंत्र महंगे होते हैं और उन्हें बहुत से किसान अपने दम पर नहीं खरीद पाते हैं तो इस तरह के अनुदान उन की काफी मदद करते हैं.
महेंद्र सिंह, जयपुर
सौंफ है फायदेमंद
‘फार्म एन फूड’ पत्रिका के 16 सितंबर, 2019 अंक में छपे ज्यादातर लेख जानकारी भरे लगे. इस अंक में छपा लेख ‘औषधीय फसल सौंफ’ काफी जानकारी से भरा लगा.
सौंफ की खेती भारत के बहुत से राज्यों में होती है लेकिन किसान इसे उपजाने का रिस्क नहीं लेते?हैं. अगर वे वैज्ञानिक तरीके से सौंफ की खेती करें तो उन्हें यकीनन फायदा होगा और उन की मिट्टी भी उपजाऊ बनी रहेगी.
रामेश्वर मिश्रा, मुजफ्फरपुर
खेती की दशा
‘फार्म एन फूड’ पत्रिका के 16 सितंबर, 2019 में छपा लेख ‘गिरती अर्थव्यवस्था के दौर में खेती की दशा’ में आंखें खोलने वाली जानकारी मिली. सच बात तो यह है कि किसान किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में अहम होते?हैं लेकिन इस के बावजूद भारत जैसे बड़े देश में खेती के बारे में बहुत ज्यादा ठोस कदम नहीं उठाए जाते?हैं. बहुत सी योजनाएं बनती?हैं, लेकिन वे कागज पर ही रह जाती?हैं. अगर इन पर गंभीरता से विचार हो तो अर्थव्यवस्था पर काबू पाया जा सकता?है.
‘कुछ कहती हैं तसवीरें’ में फ्रांस में शैवाल की खेती के बारे में जान कर हैरानी हुई कि काई जैसे दिखने वाले शैवाल में इतने ज्यादा गुण होते?हैं और उन से सुपरफूड बनाया जा रहा है.
आदेश कुमार, हापुड़
सेमिनार
धान उत्पादन पर दिया गया प्रशिक्षण
मेरठ : सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ और अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान फिलीपींस के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय कार्यालय, वाराणसी के सहयोग से कृषि महाविद्यालय के सभागार में 3 दिवसीय प्रशिक्षण का शुभारंभ कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफैसर आरके मित्तल और अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान फिलीपींस के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय कार्यालय के निदेशक डाक्टर अरविंद कुमार द्वारा किया गया.
इस मौके पर किसानों को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफैसर आरके मित्तल ने कहा कि विश्वविद्यालय का प्रयास है कि कृषि विज्ञान केंद्रों और विश्वविद्यालय के माध्यम से किसानों को तकनीकी जानकारी का आदानप्रदान किया जाए जिस से उन की आमदनी में बढ़ोतरी हो सके.
कुलपति प्रोफैसर आरके मित्तल ने कहा कि देश की आबादी तकरीबन 1.35 मिलियन तक पहुंच गई?है, लेकिन उसी अनुपात में भारत का खाद्यान्न उत्पादन महज 85 मिलियन तक ही पहुंच पाया है.
उन्होंने कहा कि धान की 35 प्रजातियां तो ऐसी हैं जो पोषण से भरपूर हैं, वहीं 5 प्रजातियां ऐसी?भी हैं, जिन में प्रोटीन और जिंक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.
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कुलपति प्रोफैसर आरके मित्तल ने जानकारी देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय ने अभी हाल ही में नगीना बासमती धान की प्रजाति विकसित की?है जो किसानों के बीच जल्दी ही पहुंचेगी.
उन्होंने बताया कि धान की फसल में पानी भी अधिक लगता है, जिस से पानी का लैवल लगातार गिर रहा है. साथ ही,मिट्टी संरक्षण और मिट्टी विखंडन एक बड़ी समस्या?है, इस से निबटना होगा.
वैसे तो धान की विभिन्न प्रकार की प्रजातियां हैं जिन को किसान अपने खेत में उगा सकते हैं. इस के अलावा संकर धान को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि ऐसे शोध की जरूरत है जिस में कम मीथेन उत्सर्जन यानी छोड़ने की तकनीक और कम पानी में उगने वाली प्रजातियों को विकसित किया जा सके.
डाक्टर अरविंद कुमार, अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान फिलीपींस के क्षेत्रीय निदेशक ने अपने संबोधन में कहा कि आने वाले समय में भारत में गिरता भूजल लैवल भी चिंता का विषय है. किसानों को कम पानी में उगने वाली प्रजातियों का चयन करना चाहिए जिस से पानी की बचत होगी और उत्पादन भी अच्छा मिल सकेगा.
उन्होंने आगे बताया कि कुपोषण से बचने के लिए भी भारत सरकार तमाम तरह के काम कर रही?है. इस के लिए बायोफोर्टिफाइड फूड वितरण की व्यवस्था की जा रही है.
निदेशक डाक्टर एस. पवार ने कहा कि किसानों की लागत बढ़ रही है और आमदनी कम हो रही?है, इसलिए किसानों को ऐसी खेती करने पर जोर देना होगा जिस में कम लागत और अधिक उत्पादन हो.
उन्होंने आगे कहा कि देश में वैज्ञानिक और किसानों के सहयोग से हरित क्रांति आई और उस के परिणामस्वरूप आज हम जनता को भरपूर भोजन दे पा रहे हैं.
प्रशिक्षण में आए आगंतुकों का स्वागत अधिष्ठाता कृषि प्रशासन से डाक्टर एसके सचान और उद्घाटन सत्र का संचालन कार्यक्रम समन्वयक प्रोफैसर रामजी सिंह द्वारा किया गया. ठ्ठ
कार्यशाला
केवीके की कार्यशाला हुई आयोजित
नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने पिछले दिनों राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र परिसर में आयोजित ‘सी’ और ‘डी’ श्रेणियों के तहत और कुछ ‘बी’ श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले कृषि विज्ञान केंद्रों की एकदिवसीय समीक्षा कार्यशाला का उद्घाटन किया.
उन्होंने ‘सी’ व ‘डी’ श्रेणियों के तहत आने वाले केवीके से कड़ी मेहनत करने का आग्रह किया. अगले मूल्यांकन में ‘ए’ श्रेणी को लक्षित करने के लिए उन्होंने केवीके को प्रोत्साहित किया.
उन्होंने किसान उत्पादक संगठनों यानी एफपीओ के तकनीकी बैकस्टौपिंग और विभिन्न कृषि उपज के विपणन में केवीके की भूमिका पर भी जोर दिया.
उन्होंने साल 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करने और देश के किसानों में विश्वास पैदा करने के लिए केवीके क्षमता पर जोर दिया और केवीके से आग्रह किया कि वे अपनी बुनियादी सुविधाओं के बारे में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधिकारियों को सूचित करें.
डा. त्रिलोचन महापात्र, महानिदेशक (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) और सचिव (कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग) ने हालिया कार्यक्रमों जैसे कृषि कल्याण अभियान, जल शक्ति अभियान, राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम और वृक्षारोपण कार्यक्रम वगैरह में केवीके की सक्रिय भागीदारी के बारे में बताया.
डा. त्रिलोचन महापात्र ने केवीके खासकर ‘सी’ और ‘डी’ श्रेणियों के तहत आने वाले केवीके को मजबूत करने के लिए रणनीतियों को विकसित करने पर जोर दिया.
डा. वीपी चहल, अतिरिक्त महानिदेशक, (कृषि विस्तार), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने कार्यशाला की सिफारिशों को पेश किया.
वहीं दूसरी ओर डा. रणधीर सिंह, अतिरिक्त महानिदेशक (कृषि विस्तार) ने आभार जताया. कार्यशाला में 63 केवीके के प्रमुखों के साथ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया.
उपलब्धि
चने की 2 बेहतर किस्मों का हुआ विमोचन
नई दिल्ली : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अखिल भारतीय समन्वित चना अनुसंधान परियोजना ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची (झारखंड) में आयोजित 24वें वार्षिक समूह बैठक में जीनोमिक्स की सहायता से विकसित चना की 2 बेहतर किस्मों ‘पूसा चिकपी 10216’ और ‘सुपर एनेगरी 1’ को जारी किया है.
डाक्टर त्रिलोचन महापात्र, महानिदेशक (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) और सचिव (कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग) ने कहा कि यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद संस्थानों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और इक्रिसैट जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन के सहयोग की सफलता की कहानी?है.
उन्होंने कहा कि प्रजनन में इस तरह के जीनोमिक्स हस्तक्षेप से जलवायु परिवर्तन से प्रेरित विभिन्न प्रकार के तनावों से पार पाते हुए चना जैसे दलहनी फसलों की उत्पादकता में वांछित बढ़ोतरी होगी.
महानिदेशक ने अन्य फसलों में 24 नई उच्च पैदावार वाली किस्मों के प्रजनन के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा नई कार्यनीति पर प्रौद्योगिकी के बारे में विस्तार से बताया.
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में इसी रणनीति से चना में नई उच्च पैदावार देने वाली किस्मों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने से देश में दलहन उत्पादन और उत्पादकता में बढ़ोतरी की उम्मीद है.
डा. पीटर कारबेरी, महानिदेशक, इक्रिसैट ने चना के उन्नत किस्मों के रूप में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, रायचूर और इक्रिसैट के सहयोग को देख आभार व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि इक्रिसैट के सहयोगी प्रयासों से न केवल भारत में, बल्कि उपसहारा अफ्रीका में भी छोटे किसानों को फायदा होगा.
मुहिम
छात्रों के लिए जल शक्ति अभियान
चेन्नई : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केंद्रीय खारा जल जीवपालन अनुसंधान संस्थान, चेन्नई के साथ मिल कर कृषि विज्ञान केंद्र, कांचीपुरम, तमिलनाडु ने 5 सितंबर और 10 सितंबर, 2019 को उच्च विद्यालय के छात्रों के लिए बाहरी (आउटरीच) गतिविधियों का आयोजन किया.
इस अभियान के एक भाग के रूप में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद सिबा और कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने 5 सितंबर, 2019 को चेन्नई हाईस्कूल, मायलापुर के छात्रों के साथ आयोजन किया.
वहीं दूसरी ओर 10 सितंबर, 2019 को टोंडियारपेट में मुरुगा धनुसकोडी गर्ल्स हायर सैकेंडरी स्कूल के छात्रों के लिए निबंध लेखन, अभिरुचि प्रतियोगिता और श्रव्यदृश्य प्रस्तुतियों का बेहतरीन तरीके से आयोजन किया गया.
इस के अलावा वहां मौजूद छात्रों को जल संसाधनों की कमी के बारे में विस्तार से बताया गया. इतना ही नहीं, जल प्रदूषण से होने वाली तमाम बीमारियां और इस के प्रभाव के बारे में विस्तार से बताया गया. साथ ही, वनरोपण, वर्षा जल संचयन यानी बरसात के पानी को जमा करना, संरक्षण और पानी के कुशल उपयोग के महत्त्व पर विस्तार से जानकारी दी गई.
इस मौके पर वहां मौजूद रहे छात्रों को जल संरक्षण का संकल्प भी दिलाया गया. इस अभियान में 1500 से भी अधिक स्कूली छात्रों ने भाग लिया.
जानकारी
विदेश में खेती का पाठ पढ़ने जाएंगे छात्र
कानपुर : खेतीकिसानी के बदलते तौरतरीकों को सीखने के लिए कृषि शिक्षा पाने वाले छात्र अब विदेश जा कर भी ट्रेनिंग ले सकेंगे. वहां अनाज, सब्जी, दलहनी फसलों के अलावा मशरूम, ब्रोकली और रंगबिरंगी शिमला मिर्च उगाने के ऐसे तरीकों की पढ़ाई करेंगे जो किसी भी मौसम में अधिक पैदावार दें.
संयुक्त शोध और आधुनिक तकनीक के बारे में विस्तार से जानने के लिए चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय यानी सीएसए ने वैगनिंगन यूनिवर्सिटी, नीदरलैंड्स व विश्व सब्जी केंद्र, ताइवान के पास इस बारे में एक प्रस्ताव भेजा है.
दोनों संस्थानों के साथ सीएसए ने प्रोफैसर व छात्रों के शैक्षणिक आदानप्रदान के लिए करार करने का प्रस्ताव भेजा है. इन विदेशी संस्थानों में जा कर वे खेतीकिसानी की नई विधियों को सीखने के साथसाथ वहां के खेतों में उन का प्रयोगात्मक अध्ययन कर सकेंगे.
वैगनिंगन यूनिवर्सिटी व विश्व सब्जी केंद्र के अलावा वह ताइवान व थाईलैंड के कुछ अन्य कृषि संस्थानों व शोध केंद्रों पर टे्रनिंग हासिल करेंगे. इस के लिए भी योजना बनाई जा रही है.
निदेशक शोध प्रो. एचजी प्रकाश कृषि के आधुनिक यंत्रों व खेती की नई तकनीक जानने के लिए पीएचडी व स्नातकोत्तर अंतिम साल के छात्रों को इन संस्थानों में भेजा जाएगा. साथ ही, खेती की बढ़ती चुनौतियों जैसे जलवायु परिवर्तन, एकीकृत खेती के बारे में वे विदेश से जानकारी हासिल कर के इसे अपने देश में लागू करेंगे.
सीएसए के पौलीहाउस में अब सब्जियों की सिंचाई स्प्रिंकलर यानी टपक सिंचाई विधि से की जाएगी. इस के लिए यहां पर माइक्रो इरीगेशन यूनिट लगाए जाने की रूपरेखा बना ली गई है.
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संयुक्त निदेशक शोध डाक्टर डीपी सिंह ने बताया कि ताइवान स्थित विश्व सब्जी केंद्र जा कर इस का मौडल देखा गया है. वहां पर माइक्रो इरीगेशन के जरीए टमाटर, बैगन, हरी मिर्च, थाईलैंड लौकी, कद्दू, खीरा, करेला की खेती कर के पानी का पूरा इस्तेमाल किया जाता है. यह सिंचाई की ऐसी तकनीक है, जिस में पानी सीधे जड़ों में पहुंचता है.
सीएसए में भी खीरा, लौकी,?टमाटर, कद्दू शिमला मिर्च व ब्रोकली समेत अन्य सब्जियों की खेती इसी विधि से किए जाने के साथ छात्रों को भी उस का पाठ पढ़ाया जाएगा.
भूसे से पोषक तत्त्व ही गायब, पशुओं में खून की कमी
रायपुर : राज्यस्तरीय रोग अन्वेषण प्रयोगशाला की एक रिपोर्ट ने प्रदेशभर के पशुपालकों को चिंता में डाल दिया है. पिछले 5 महीनों में की गई तकरीबन 8,000 से ज्यादा दुधारू पशुओं की जांच में 2,000 से ज्यादा पशु एनीमिक पाए गए यानी उन के खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य से भी बहुत कम पाई गई.
दुधारू पशुओं में हीमोग्लोबिन की मात्रा 7 से 14 प्रति जीडी (ग्राम डाल्यूशन) होनी चाहिए, जबकि इन पशुओं में यह मात्रा 5 ग्राम ही पाई गई.
पशु विशेषज्ञों का कहना है कि यूरिया के बढ़ते प्रयोग, फसल की कटाई में हार्वेस्टर के उपयोग और हरे चारे की कमी की वजह से यह समस्या आई है.
पिछले कुछ समय से पशुपालक शिकायत कर रहे थे कि उन के पशु दूध कम दे रहे?हैं, कमजोर दिखाई देते हैं और कई बार चक्कर खा कर गिर जाते हैं.
इन बढ़ती शिकायतों को देखते हुए पशु चिकित्सकों द्वारा राज्यस्तरीय रोग अन्वेषण प्रयोगशाला में मवेशियों के खून की जांच शुरू कराई गई. अप्रैल से अगस्त माह के बीच खून के कुल 9,359 नमूने जांचे गए, जिन में गाय, भैंस और बकरियों के तकरीबन 8,000 नमूने शामिल थे. जांच में 2,170 दुधारू पशुओं में होमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य से कम थी.
पशु चिकित्सकों के मुताबिक, हीमोग्लोबिन की कमी की मुख्य वजह भोजन में पोषक तत्त्वों की कमी है.
यूरिया का बढ़ता प्रयोग : पशु विशेषज्ञ बताते हैं कि खेती में यूरिया के बढ़ते प्रयोग से उत्पादन तो बढ़ रहा है, लेकिन पोषक तत्त्वों की कमी होती जा रही है.
फसलों के अवशेष को दुधारू पशु चारे के रूप में इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इस में अब पोषक तत्त्वों की मात्रा ज्यादा नहीं रही. पशुओं का पेट तो भरता है, लेकिन पर्याप्त तत्त्व नहीं मिलते.
हार्वेस्टर का उपयोग : पशु चिकित्सक मानते?हैं कि फसलों की कटाई में हार्वेस्टर का उपयोग पोषक तत्त्वों को खत्म कर देता है. जब किसान हार्वेस्टर से गेहूं की फसल काटता है तो केवल बालियां ही एकत्र की जाती हैं, जबकि बाकी हिस्सा खेत में ही बेकार छूट जाता है. इन डंठलों में पोषक तत्त्वों की खासी मात्रा होती?है.
हरे चारे की कमी : प्रदेश में हरे चारे का संकट है, क्योंकि राज्य में गेहूं से ज्यादा धान की खेती होती है. हालत यह हो जाती?है कि सीजन खत्म होने के बाद महज 50 फीसदी पशुओं को ही हरा चारा मिल पाता है. हरे चारे की कमी भी दुधारू पशुओं में हीमोग्लोबिन की कमी की एक बड़ी वजह है.
हालांकि गोठान योजना से इस समस्या को दूर करने की कोशिश की जाएगी. गोठान योजना के जरीए हरा चारा तैयार करने की योजना है.
समस्या
किसानों के लिए बनेगा मौल
जम्मू : जम्मू में 70 करोड़ रुपए की लागत से विभिन्न सुविधाओं वाला कृषि मौल का निर्माण किया जाएगा. इस मौल के जरीए किसानों एक छत के नीचे विभिन्न प्रकार की सुविधाएं मिलेंगी.
अधिकारियों ने पिछले दिनों यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि जम्मू के बिश्नाह में प्रस्तावित मौल बुनियादी ढांचा विकास परियोजना का हिस्सा है और इसी प्रकार की परियोजना को कश्मीर संभाग के लिए भी मंजूरी दी गई?है.
मिली जानकारी के मुताबिक, कृषि मौल में शीतगृह भंडारण यानी कोल्ड स्टोरेज की सुविधा, ट्रैक्टर, पावर ट्रिलर, स्प्रे उपकरण, उर्वरक, कीटनाशक और जैविक उर्वरक उपलब्ध होंगे.
साथ ही, किसानों को यहां मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला, फसल कटाई के उपकरण और कृषि के अन्य उपकरण मुहैया होंगे. किसान इन उपकरणों को किराए पर ले सकते?हैं या खरीद सकते हैं. ठ्ठ
संकट
तिलहनदलहन की फसलों पर खतरा
लखनऊ : सितंबर में हुई बारिश ने उमस से राहत दिलाने के साथ मौसम तो खुशगवार बनाया, पर किसानों की चिंताएं बढ़ा दीं. उड़द, मूंग की फसलों में यह समय फूल आने का होता?है. ऐसे में बरसात आने से फूल खेतों में गिर गए.
हालांकि कृषि विशेषज्ञ डाक्टर विनोद कुमार त्रिपाठी की मानें तो उड़द और मूंग की उन फसलों में नुकसान की संभावना कम है, जहां फली आ गई हैं.
कृषि निदेशालय के उपनिदेशक आरएस जैसवारा की मानें तो यह बारिश का पानी अगर अरहर के खेतों में रुका रहा तो फसलों को नुकसान पहुंचाएगा. उत्तर प्रदेश में इस बार 1099.15 हजार हेक्टेयर में दलहन की बोआई की गई है.
इस के अलावा सोयाबीन की फसल भी खेत में कटी पड़ी है. ऐसे में बारिश के पानी से सोयाबीन के दागी होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
जानकारों की मानें, तो सब से ज्यादा नुकसान तिलहन को होगा. बुंदेलखंड में तिल की अधिक खेती होती है.
जिन राज्यों में जहां पहले तिल बोई गई थी, वहां फसल तैयार है और उस की कटाई होने वाली थी. ऐसे में बारिश आने से फली के टूटने से तिल खेत में ही गिर जाने का खतरा?है. जिन फसलों में फूल आने का समय है, वहां बारिश से फूल गिर जाएगा.
कृषि विशेषज्ञ डा. विनोद कुमार त्रिपाठी की मानें तो बारिश से तिल की फसलों में सब से ज्यादा खतरा फंगस का है. ?प्रदेश में इस बार 550 हजार हेक्टेयर में तिलहन की फसलों की बोआई हुई है.
सुविधा
कृषि मशीनें किराए पर लेने के लिए मोबाइल एप
नई दिल्ली : कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया है कि देशभर के किसान अब ‘सीएचसी फार्म मशीनरी’ मोबाइल एप के जरीए ट्रैक्टर और दूसरी मशीनों को किराए पर ले सकते?हैं.
उन्होंने किसानों को नई कृषि तकनीकों के खेत पर प्रदर्शन, बीज केंद्र और मौसम परामर्श का फायदा उठाने में मदद उपलब्ध कराने के लिए एक और मोबाइल एप ‘कृषि किसान’ भी पेश किया.
उन्होंने बताया कि हम छोटे और सीमांत किसानों को सशस्त बनाने की कोशिश कर रहे है. उन तक पहुंचने के लिए हम ने मोबाइल एप तकनीक का उपयोग करने के बारे में सोचा है. जिस तरह से आप एप का इस्तेमाल कर के ओला या उबर कैब बुक करते हैं, हम ने उसी तरह से कृषि मशीनें किराए पर लेने के लिए एकसमान एप लाने का फैसला किया है.
उन्होंने बताया कि सभी सेवा प्रदाताओं और किसानों को एक साझा मंच पर लाया गया है. उन्होंने कहा कि अब तक इस मोबाइल एप पर 1,20,000 से अधिक कृषि यंत्रों और उपकरणों को किराए पर देने के लिए 40,000 कस्टम हायरिंग सैंटर पंजीकृत किए गए?हैं.
इस एप को ‘क्रांतिकारी सेवा’ बताते हुए उन्होंने कहा कि एप के माध्यम से किसान यह जान सकते?हैं कि उन के खेत के पास कौन सा केंद्र किराए पर मशीनें देने वाला है. वे मशीनों का फोटो अपने मोबाइन पर देख सकते?हैं. कीमत के बारे में मोलभाव कर के और्डर दे सकते?हैं.
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कृषि किसान एप में सरकार के पास जियो टैगयुक्त फसल प्रदर्शन करने वाले खेत और बीज केंद्र हैं, जो न केवल उन के प्रदर्शन को दिखा सकता?है, बल्कि किसानों को उस का फायदा उठाने में मदद कर सकता है.
संबंधित अधिकारी ने बताया कि बीज के मिनी किट बीज की संख्या बढ़ाने के लिए किसानों को वितरित किए जा रहे?हैं और अब जब वे ‘जियो टैग’ हैं, जिस से सरकार यह पता लगा सकती?है कि मिनी किट का उपयोग किया जा रहा?है या नहीं. इस ऐप के माध्यम से सरकार प्रायोगिक तौर पर 4 जिले भोपाल (मध्य प्रदेश), वाराणसी (उत्तर प्रदेश), राजकोट (गुजरात) और नांदेड़ (महाराष्ट्र) में खेत स्तर पर मौसम के बारे में परामर्श देगी.
ये दोनों मोबाइल एप मुफ्त?हैं और इन्हें गूगल प्लेस्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है. ठ्ठ
कामयाबी
वैज्ञानिकों ने ईजाद की लाल भिंडी
?वाराणसी : उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों को 23 साल बाद एक बड़ी कामयाबी मिली है.
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के वैज्ञानिकों ने भिंडी की नई प्रजाति विकसित कर ली है, जो कि हरी के बजाय लाल है. इस नाम काशी लालिमा रखा गया है.
सब्जी वैज्ञानिकों ने बताया कि यह भिंडी औक्सीडैंट, आयरन और कैल्शियम सहित कई पोषक तत्त्वों से?भरपूर है. इस की कई किस्मों को विकसित किया गया है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक, आम भिंडी की तुलना में इस की कीमत ज्यादा है. काशी लालिमा भिंडी की अलगअलग किस्मों की कीमत 100 रुपए से ले कर 500 रुपए प्रति किलोग्राम तक है.
वैसे, भारत के तमाम राज्यों में हरी भिंडी ही ज्यादा चलन में?है. लाल रंग की भिंडी केवल पश्चिमी देशों में मिलती है. भारत वहीं से अपने उपयोग के लिए इसे मंगाता आया है.
खुशखबरी यह है कि अब भारत को लाल भिंडी के लिए दूसरे देश का मुंह नहीं देखना होगा. भारतीय किसान भी अब इस का उत्पादन कर सकेंगे.
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के एक अधिकारी ने इस बारे में बताया कि साल 1995-96 में ही इस भिंडी की खोज के लिए काम शुरू हो गया था. वैसे, संस्थान से काशी लालिमा भिंडी का बीज बोने के लिए आम किसानों के लिए दिसंबर महीने से ही मिलने लगेगा. ठ्ठ
जानकारी
देशी गाय किसानों के लिए वरदान
भरतपुर : लुपिन फाउंडेशन द्वारा बीते दिनों पब्लिक स्कूल सेवर मे 6 दिवसीय प्राकृतिक कृषि प्रशिक्षण शिविर के तीसरे दिन कृषि विशेषज्ञ और ‘पद्मश्री’ डाक्टर सुभाष पालेकर ने देशी गाय की अहमियत और जीवाणु अमृत बनाने की विधियों की जानकारी दी. इस प्रशिक्षण शिविर में 19 राज्यों के तकरीबन 6,000 किसान, कृषि विशेषज्ञ और कृषि विषय के छात्रों ने हिस्सा लिया.
प्रशिक्षण शिविर में डाक्टर सुभाष पालेकर ने बताया कि देशी गाय का दूध, गोबर और गौमूत्र इनसान के लिए एक प्रकार का वरदान है. देशी गाय के दूध में ओमेगा 3 फैटी एसिड, लियोनिक एसिड सहित विटामिन ए और डी सहित अन्य उपयोगी प्रोटीन होता है जो सेहत के लिए काफी उपयोगी माना गया?है. साथ ही, गौमूत्र खून को साफ करने के साथसाथ विषाणुरोधक होता है.
उन्होंने बताया कि देशी गाय के गोबर में कार्बन, नाइट्रोजन, अमोनिया, एडोल जैस तत्त्व होते?हैं, जो पौधों की बढ़ोतरी में सहायक होने के साथ सूक्ष्म जीवाणुओं के लिए भी भोज्य पदार्थ का काम करते?हैं.
उन्होंने गाय के गोबर को यूरिया का कारखाना बताते हुए कहा कि गोबर में सही मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फेट व जैविक कार्बन जैसे तत्त्व मिलते?हैं.
डाक्टर सुभाष पालेकर ने खेती के लिए जीवाणु अमृत बनाने की विधि के बारे में कहा कि इस के लिए 200 लिटर पानी में 10 किलोग्राम देशी गाय का गोबर,
5 लिटर गौमूत्र के अलावा एकएक किलो गुड़ व बेसन और एक मुट्ठी खेत की मिट्टी का उपयोग किया जाता है. जीवाणु अमृत बनाने के लिए इन सभी वस्तुओं को एक बड़े ड्रम में घोल कर कई दिनों तक रखा जाता?है, ताकि उस में जीवाणु पैदा हो सके. इस के बाद इस घोल का फसलों पर छिड़काव किया जाता है ताकि फसलों व खेत की मिट्टी में ये जीवाणु पहुंच कर पौधों में सही पोषक तत्त्व दे सकें.
जीवाणु अमृत डालने के बाद किसी भी तरह के कैमिकल खादों की जरूरत नहीं होती. यहां तक की सिंचाई के लिए भी महज 10 फीसदी पानी की ही जरूरत होती?है.
प्रशिक्षण शिविर में उन्होंने बताया कि किसान ज्यादा मात्रा में कैमिकल खादों का इस्तेमाल कर रहे?हैं. इस की वजह से जमीन में पानी सोखने की कूवत घट गई है, वहीं फास्फेट व दूसरे हानिकारक तत्त्वों की मात्रा बढ़ जाने से कठोर हो गई है, जिस की वजह से बारबार सिंचाई करनी पड़ती?है.
कैमिकल खादों और कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल की वजह से खाने की चीजें जहरीली हो गई?हैं जो इनसानी सेहत पर बुरा असर डाल रही?हैं, जबकि प्राकृतिक कृषि विधि में जीवाणु अमृत का इस्तेमाल होने की वजह से खाने की चीजें पौष्टिक होने के साथ अधिक गुणकारी होती हैं, क्योंकि इन में सभी तरह के तत्त्व मौजूद होते हैं.
ईजाद
ड्रैगन फ्रूट सीताफल की प्रजाति विकसित
छत्तीसगढ़ : दुर्ग जिले के धमधा ब्लौक के ग्राम धौराभाठा, जहां 450 एकड़ में फैले हैं फलों के फार्महाउस, इस में जैविक तरीके से खेती हो रही है. यहां तकरीबन 18 वैरायटी के फलों की खेती की जा रही है.
यहां मध्य भारत में सीताफल के सब से विस्तृत 150 एकड़ में फैला फार्महाउस बालानगर प्रजाति का सीताफल उपजाया जा रहा?है जो सब से बड़े आकार का होता है.
उल्लेखनीय है कि इस वैरायटी में पल्प 80 फीसदी तक होता है. यहां सीताफल प्रोसैसिंग प्लांट भी?है.
इस फार्महाउस के संचालक और जेएस ग्रुप के एमडी अनिल शर्मा बताते?हैं कि उन के यहां गिर प्रजाति की 150 गाय?हैं. उन के गाबर का उपयोग जैविक खाद के रूप में होता है. जैविक खाद का पूरी तरह प्रयोग होने से मार्केट में इस की अच्छी मांग है.
उन्होंने बताया कि यहां रोबोटिक तरीके से खेती की जा रही है. यहां इजराइल का सिस्टम काम कर रहा है और पानी जैविक खाद आदि की जरूरत मशीन से तय कर ली जाती है.
फार्महाउस के संचालक अनिल शर्मा ने बताया कि प्रदेश में कांकेर सीताफल के बड़े उत्पादक जिले के रूप में उभरा है. इस प्रोसैसिंग प्लांट का लाभ उन्हें भी मिल रहा है क्योंकि यहां माइनस 20 डिगरी सैल्सियस तापमान में पल्प 1 साल तक महफूज रह सकता है.
सहूलियत
बना पीएम किसान पोर्टल
नई दिल्ली : प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के लाभ के लिए देशभर के किसानों को अब राज्यों का मोहताज नहीं होगा.
केंद्र सरकार ने अब पीएम किसान पोर्टल बना दिया है, जिस पर किसान अपने विस्तृत ब्योरे के साथ खुद ही रजिस्टे्रशन करा सकता है.
इस का सब से ज्यादा फायदा पश्चिम बंगाल के तकरीबन एक करोड़ किसानों को मिल सकता है. लेकिन यहां की सरकार ने अभी तक एक भी किसान के नाम प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के लिए केंद्र सरकार के पास नहीं भेजा?है.
इस योजना में हर किसान को साल में 3 किस्तों में 6,000 रुपए की आर्थिक मदद मुहैया कराई जाती?है.
हालांकि देश के ज्यादातर राज्यों के किसानों को इस का फायदा मिलने लगा है, लेकिन पश्चिम बंगाल की गैरभाजपा सरकार ने इस में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई?है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सार्वजनिक मंचों से इस योजना की आलोचना करती रही?हैं. लिहाजा, राज्य के किसानों की सूची इस बाबत केंद्र के पास नहीं भेजी जा रही है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने उन किसानों की सुविधा के लिए अलग पोर्टल बनाया?है, जिस से किसान खुद भी सीधे जुड़ सकते हैं.
फैसला
फसल अवशेष न जलाने की शपथ
लखनऊ : कृषि भवन के सभागार में पिछले दिनों प्रदेश मेें जुटे किसानों को कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने फसलों के अवशेष न जलाने की शपथ दिलाई. साथ ही, उन्होंने प्रदेश में रिकौर्ड अनाज उत्पाद के लिए वहां उपस्थित किसानों को बधाई दी.
कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही आगामी रबी फसलों को ले कर कृषि व संबंधित विभागों द्वारा की गई तैयारियों की जानकारी देने को आयोजित राज्यस्तरीय रबी उत्पादकता गोष्ठी, 2019 में बोल रहे थे.
उन्होंने कहा कि आज की खेती वैज्ञानिक और उन्नत तरीकों से हो गई है. मिलियन फार्मर्स स्कूल के जरीए भी किसानों को कृषि के उन्नत साधनों और कृषि रक्षा के उपायों के बारे में बताया जा रहा है.
उन्होंने फसल अवशेष को खेत में ही मिला कर जमीन में मृदा संरक्षण और उर्वराशक्ति को बढ़ाने पर जोर दिया.
उद्यान मंत्री श्रीराम चौहान ने कहा कि कृषि क्षेत्र की अपनी सीमित सीमा?है, जब तक इस में बागबानी, पशुपालन, मत्स्यपालन और मधुमक्खी पालन को शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक किसानों की आय दोगुनी होना नामुमकिन है.
गोष्ठी में जालौन से आए किसान सुभाष त्रिवेदी ने अपनी समस्या रखते हुए कहा कि अनुदान से जो ट्यूबवैल सरकार लगवा रही है, उन की कीमत तकरीबन सवा लाख रुपए है, जबकि वही ट्यूबवैल प्राइवेट कंपनियां महज 50 हजार से 60 हजार रुपए में लगा रही है. मंत्रीजी दोनों की कीमतों में अंतर क्यों है.
साथ ही, उन्होंने उद्यान विभाग द्वारा ड्रिप एवं स्प्रिंकलर विधि के सिंचाई के जो पाइप मुहैया कराए जा रहे?हैं, उन के रेट भी ज्यादा हैं और उतने मजबूत भी नहीं हैं.
इस पर उद्यान मंत्री श्रीराम चौहान ने कहा कि आपूर्तिकर्ता फर्म की जांच करा कर कुसूरवारों पर नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी.
जलसा
रबी किसान मेले का आयोजन
पलवल : मेहर चंद गहलोत, उपाध्यक्ष, हरियाणा पशुधन विकास बोर्ड और सदस्य, आईएमसी, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा आयोजित ‘रबी किसान मेला’ का उद्घाटन किया.
कृषि और किसान कल्याण विभाग, हरियाणा सरकार के सहयोग से नेताजी सुभाष चंद्र स्टेडियम, पलवल में मेले का आयोजन किया गया?था.
उन्होंने किसानों द्वारा बेहतर कृषि प्रौद्योगिकियों के उपयोग पर जोर दिया. टिकाऊ और लाभदायक कृषि उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने शोधकर्ताओं, किसानों, विकासात्मक एजेंसियों और कृषि उद्योगों सहित विभिन्न हितधारकों के बीच घनिष्ठ सहयोग के लिए भी आग्रह किया.
गहलोत ने केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं, जैसे मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, प्रधानमंत्री बीमा योजना और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की सराहना की.
डा. पीसी शर्मा, निदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और अध्यक्ष, रबी किसान मेला ने इस से पहले किसानों से अपील की कि वे अच्छा रिटर्न पाने के लिए बागबानी, पशुधन, मत्स्यपालन और खाद्य प्रसंस्करण जैसे उच्च आय वाले उद्यमों को तेजी से अपनाएं.
उन्होंने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखने वाले विभिन्न सरकारी योजनाओं का फायदा उठाने पर जोर दिया.
इस मौके पर 5 प्रगतिशील किसानों को सम्मानित किया गया. मेले के दौरान लवणता प्रबंधन, फल विविधीकरण, एकीकृत खेती, बागबानी फसलों, मशरूम की खेती के लिए विभिन्न उन्नत तकनीकों का प्रदर्शन किया गया.
इस मौके पर गोष्ठी आयोजित की गई. तकरीबन 2,600 किसानों ने भाग लिया. ठ्ठ
जानकारी
बीज उत्पादक कंपनियों को जारी किया लाइसैंस
नई दिल्ली : देश में विकसित पौष्टिक गेहूं एचडी 3226 (पूसा यशस्वी) का बीज तैयार करने के लिए बीज उत्पादक कंपनियों को इस का लाइसैंस जारी कर दिया गया. गेहूं के इस बीज की बिक्री अगले साल से शुरू हो जाएगी.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्रा ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रौद्योगिकी नवाचार दिवस के मौके पर बीज उत्पादक कंपनियों को लाइसैंस जारी किया.
इन कंपनियों को रबी फसल के दौरान गेहूं की इस नई किस्म का प्रजनक बीज उपलब्ध कराया जाएगा. किसानों को अगले साल से सीमित मात्रा में इस का बीज उपलब्ध कराया जाएगा.
एचडी 3226 किस्म को हाल में जारी किया गया?है. इस की सब से बड़ी विशेषता यह है कि इस में गेहूं की अब तक उपलब्ध सभी किस्मों से ज्यादा प्रोटीन और ग्लूटीन है. इस में 12.8 फीसदी प्रोटीन, 30.85 फीसदी ग्लूटीन और 36.8 फीसदी जिंक है. अब तक गेहूं की जो किस्में हैं, उन में अधिकतम 12.3 फीसदी तक ही प्रोटीन है. इस गेहूं से रोटी और ब्रैड को तैयार किया जा सकेगा.
इस गेहूं के प्रजनक और प्रधान वैज्ञानिक डाक्टर राजबीर यादव ने बताया कि 8 साल के दौरान इस बीज का विकास किया गया?है. आदर्श स्थिति में इस की पैदावार प्रति हेक्टेयर 70 क्विंटल तक ली जा सकती है. यह गेहूं रतुआ और करनाल मल्ट रोधी है.
उन्होंने कहा कि भारतीय गेहूं में कम प्रोटीन के कारण इस का निर्यात नहीं होता?था जो समस्या खत्म हो जाएगी.
उन्होंने बताया कि इस गेहूं की भरपूर पैदावार लेने के लिए इसे अक्तूबर के आखिर में या नवंबर के पहले हफ्ते में लगाना जरूरी है. इस की फसल 142 दिन में तैयार हो जाती है.
यह किस्म पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान व उत्तराखंड के तराई क्षेत्र, जम्मूकश्मीर और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों के लिए सही है. जीरो टिलेज तकनीक के लिए भी गेहूं की यह किस्म सही है.