दिल्ली के दक्षिणपुरी इलाके में हाल ही में इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना सामने आई. दरअसल, बच्ची के रोने से परेशान हो कर सौतेले पिता ने 3 साल की मासूम बेटी को गरम चिमटे से जला दिया. अफसोस की बात यह है कि इस काम में बच्ची की सगी मां सोनिया ने पति का साथ दिया. पड़ोसियों ने बच्ची के रोने की आवाज सुन कर चाइल्ड हैल्पलाइन में फोन कर दिया और आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया. बच्ची के साथ इस तरह के जुल्म करीब 4 माह से हो रहे थे. जब भी वह रोती, उस का सौतेला बाप उस के साथ ऐसे ही मारपीट करता था.
मौत की वजह बनी घरेलू हिंसा
10 सितंबर को दिल्ली में 21 दिन की बेटी की हत्या करने के आरोप में पिता को गिरफ्तार किया गया. दिल्ली के द्वारका के बिंदापुर क्षेत्र में एक कारोबारी व्यक्ति ने पत्नी से झगड़ा करने के बाद 21 दिन की बेटी की हत्या कर दी. आरोपी ने पहले अपनी बेटी का गला घोटा, फिर उसे पानी की टंकी में डुबो दिया. बच्ची की 23 वर्षीया मां ने पुलिस में अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. युवती द्वारा दर्ज शिकायत के मुताबिक, वह शुक्रवार को मायके जाने की योजना बना रही थी. बच्ची का जन्म 16 अगस्त को हुआ था. मुकेश इस बात को ले कर खुश नहीं था. वह बच्ची को छत पर ले कर गया और दरवाजा बंद कर इस घटना को अंजाम दिया.
20 जुलाई को मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में एक व्यक्ति ने शराब के नशे में अपनी डेढ़ वर्षीया मासूम बेटी की हत्या कर दी. वारदात को आरोपी की बड़ी बेटी ने देखा. पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया. युवक की पत्नी उस वक्त अस्पताल में भरती थी. रात के समय जब वह घर आया तो उस की छोटी बेटी रो रही थी. तब उस ने म झली बेटी को पीटा और छोटी बेटी को सिर के बल पटक दिया जिस से उस की मौत हो गई.
पिता ने किया यौन उत्पीड़न
18 अगस्त को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में रिश्तों को शर्मसार करने वाली घटना सामने आई. वहां एक ऐसे आरोपी को गिरफ्तार किया गया जिस पर अपनी बेटी से 2 साल तक रेप करने और बाद में उस की हत्या करने का आरोप है. आरोपी की पत्नी का निधन 15 साल पहले हो गया था. पीडि़ता की उम्र 19 साल थी.
बेटी के यौन उत्पीड़न का यह कोई पहला मामला नहीं है. इस से पहले देश की राजधानी दिल्ली से सटे गुरुग्राम में एक युवक को अपनी 8 साल की बेटी के साथ कई महीनों तक रेप करने के मामले में गिरफ्तार किया गया था. लड़की पिछले कुछ दिनों से सामान्य व्यवहार नहीं कर रही थी. जब पड़ोसियों ने उस से पूछताछ की तो उस ने यौन उत्पीड़न के बारे में बताया.
ये भी पढ़ें- कैसे करें जिद्दी बच्चे को कंट्रोल
बेरहम पिता
मार्च में बिहार के कंकड़बाग की एक बच्ची का वीडियो वायरल हुआ था जिस में 5 साल की बच्ची का पिता कभी उसे थप्पड़ मारता है, कभी उस के कंधे तक के बालों को मुट्ठी में भींच कर उस का सिर पटक देता है, तो कभी लात से मारता है.
बच्ची लगातार मार खा रही है. लेकिन एक बार भी अपने घावों को सहला नहीं रही. उस के मुंह से एक बार भी आह सुनने को नहीं मिली. उलटा, वह बारबार माफी मांग रही है, ‘‘पापा, हम से गलती हो गई. हम अपनी कसम खाते हैं कि कभी भी जन्मदिन मनाने के लिए नहीं कहेंगे. हम साइकिल नहीं मांगेंगे. हम को माफ कर दीजिए.’’
जैसे ही वीडियो वायरल हुआ, कंकड़बाग पुलिस ने इस शख्स को तुरंत हिरासत में ले लिया. बच्ची का नाम जयश्री है और पिता का नाम कृष्णा मुक्तिबोध है.
राजस्थान का वीडियो
राजस्थान के राजसमंद जिले में देवगढ़ थाना के तहत आने वाले फूंकिया के थड़ गांव से एक वीडियो वायरल हुआ जिस में 2 मासूम बच्चों को उन का पिता सिर्फ इसलिए खूंटी से बांध कर पीटता है क्योंकि मना करने के बावजूद बच्चे मिट्टी खाते थे और जहांतहां गंदगी कर बैठते थे. बच्चों के चाचा ने वीडियो बनाया और वायरल कर दिया. मामले पर पुलिस कार्रवाई हुई. बच्चों को पीटने वाला पिता गिरफ्तार हुआ. वीडियो बनाने वाले चाचा पर भी कार्रवाई की गई. इस वीडियो को देख कर कोई भी सिहर उठेगा.
ऐसे मामले एकदो नहीं, बल्कि हजारों की संख्या में हैं. पूरे देश में बच्चे घरेलू हिंसा के शिकार होते रहे हैं. दीगर बात यह है कि इस का कोई औफिशियल आंकड़ा तब ही रिकौर्ड होता है जब शिकायत होती है. ज्यादातर घरों में लोगों को ही अंदाजा नहीं कि बच्चे जानेअनजाने किस तरह घरेलू हिंसा का शिकार हो रहे हैं. बच्चों के प्रति मारपीट, उन की उपेक्षा, उदासीनता और अनदेखी, समय न दे पाना, अपेक्षाओं का बो झ, धमकाना जैसी बातें आम हैं. मानसिक प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के ऐसे मामले बच्चों के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं. कुछ मामलों में नौबत जान से हाथ धोने की आ जाती है.
यूनिसेफ की रिपोर्ट कहती है कि दुनियाभर में करीब 13 करोड़ बच्चे अपने आसपास बुलिंग यानी बड़े मजबूत बच्चों की धौंसबाजी व मारपीट या दादागीरी का सामना करते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, हर 7 मिनट में दुनिया में कहीं न कहीं एक किशोर को हिंसा के कारण अपनी जान गंवानी पड़ती है. ऐसी मौतों की वजह झगड़ों के बाद हुई हिंसा होती है.
21वीं शताब्दी के पहले 16 सालों (वर्ष 2001 से 2016 तक) में भारत में 1,09,065 बच्चों ने आत्महत्या की. 1,53,701 बच्चों के साथ बलात्कार हुआ. 2,49,383 बच्चों का अपहरण हुआ. कहने को हम विकास कर रहे हैं लेकिन हमारे इसी समाज में स्कूली परीक्षा में असफल होने के कारण 34,525 बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं. ये महज वे मामले हैं जो दर्ज हुए हैं. इन से कई गुना ज्यादा घरेलू हिंसा, बलात्कार और शोषण के मामले तो दर्ज ही नहीं होते हैं.
बच्चों का उत्पीड़न है खतरनाक
आमतौर पर माना जाता है कि बच्चों को अनजान लोगों से खतरा हो सकता है जबकि अभिभावक और रिश्तेदारों के पास उन्हें सुरक्षा मिलती है. पर हमेशा ऐसा ही हो यह जरूरी नहीं. अभिभावक, देखभाल करने वाला शख्स, ट्यूशन देने वाले टीचर या फिर बड़े भाईबहन और रिश्तेदार, इन में से कोई भी बच्चों के साथ बदसलूकी यानी बाल उत्पीड़न कर उन्हें ऐसी चोट दे सकता है जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक सेहत और व्यक्तित्व के विकास में बाधक बन सकती है. ऐसी वजहें बच्चे की मृत्यु का कारण भी बन सकती हैं. बच्चों के साथ इस तरह के उत्पीड़न कई तरह के हो सकते हैं.
शारीरिक उत्पीड़न का अर्थ उन हिंसक क्रियाओं से है जिस में बच्चे को शारीरिक चोट पहुंचाने, उस के किसी अंग को काटने, जलाने, तोड़ने या फिर उन्हें जहर दे कर मारने का प्रयास किया जाता है. ऐसा जानबू झ कर या अनजाने में भी किया जा सकता है. इन की वजह से बच्चे को चोट पहुंच सकती है, खून बह सकता है या फिर वह गंभीर रूप से बीमार या घायल हो सकता है.
भावनात्मक उत्पीड़न का अर्थ है अभिभावक या देखरेख करने वाले शख्स द्वारा बच्चे को नकार दिया जाना, बुरा व्यवहार करना, प्रेम से वंचित रखना, देखभाल न करना और बातबेबात अपमान किया जाना आदि. बच्चे को डरावनी सजा देना, गालियां देना, दोष मढ़ना, छोटा महसूस कराना, हिंसक बनने पर मजबूर करना जैसी बातें भी इसी में शामिल हैं. इन की वजह से बच्चा मानसिक रूप से बीमार हो सकता है. उस का व्यक्तित्व प्रभावित हो सकता है और उस के अंदर हीनभावना विकसित हो सकती है.
बाल यौन उत्पीड़न का मतलब यौन दुर्भावना से प्रेरित हो कर बच्चे को तकलीफ पहुंचाना और शारीरिक शोषण करना है. बचपन में यदि इस तरह की घटना होती है तो बच्चा ताउम्र सामान्य जीवन नहीं जी पाता. लंबे समय तक ऐसी तकलीफों से उपजा अवसाद बच्चे में अलगाव और खुद को खत्म कर डालने की भावनाएं पैदा कर सकता है. यौन संक्रमण, एड्स या अनचाहा गर्भ बाल यौन उत्पीड़न के खतरनाक परिणाम हैं.
ये भी पढ़ें- अच्छे संबंध और खुशी का क्या है कनैक्शन
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अध्ययन चाइल्ड एब्यूज इन इंडिया के मुताबिक, भारत में 53.22 फीसदी बच्चों के साथ एक या एक से ज्यादा तरह का यौन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न हुआ है.
बाल विवाह भी अभिभावक द्वारा बच्चों पर किए जाने वाले उत्पीड़न का एक रूप है. भारत के बहुत से हिस्सों में 12-14 साल या उस से भी कम उम्र की लड़कियों का ब्याह कर दिया जाता है. इस से पहले कि वे शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से विकसित हो सकें मांबाप उन्हें ससुराल भेज देते हैं. कम उम्र में शादी होने से बहुत सी लड़कियां अपने सारे अधिकारों से, विद्यालय जाने से वंचित हो जाती हैं.
अवहेलना करने का मतलब है जब अभिभावक साधनसंपन्न होने के बावजूद अपने बच्चे की शारीरिक व भावनात्मक जरूरतों को पूरा करने में असफल रहते हैं या फिर उन के द्वारा ध्यान न देने की वजह से बच्चा किसी दुर्घटना का शिकार हो जाता है.
सिर्फ अपेक्षाओं और प्रतियोगिताओं का बो झ ही नहीं सहते, हमारे बच्चे समाज के अंधविश्वास के भी शिकार हैं. मसलन, राजस्थान में बच्चों को होने वाली निमोनिया जैसी बीमारियों का इलाज उन को गरम सलाखों से दाग कर किया जाता है. भीलवाड़ा और राजसमंद में ऐसे कई मामले हो चुके हैं. बनेड़ा में 2 साल की मासूम बच्ची पुष्पा को निमोनिया होने पर इतना दागा गया कि दर्द से तड़पते हुए उस की सांसें टूट गईं. 3 महीने की परी को निमोनिया हुआ तो उस के शरीर में आधा दर्जन जगहों पर गरम सलाखें चिपका दी गईं.
शारीरिक हिंसा
कई दफा हिंसा से मौत का खतरा तो नहीं होता मगर बच्चे की सेहत, उस के विकास या आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है. हिटिंग, किकिंग, बीटिंग, बाइटिंग, बर्न्स, पौइजनिंग आदि द्वारा बच्चों को तकलीफ पहुंचाई जाती है. एक्सट्रीम केसेस में इस तरह की हिंसाएं बच्चे की मौत, अपंगता या फिर गंभीर चोटों के रूप में सामने आ सकती हैं. ये उन की मानसिक सेहत और विकास को भी प्रभावित कर सकती हैं.
चाहें या न चाहें, अकसर हमें गुस्सा आ ही जाता है और अकसर इसे हम अपने बच्चों पर निकालते हैं. गुस्सा भले ही उन पर आ रहा हो या नहीं, पर हाथ उठाने में देर नहीं लगती. कभी बच्चे पर अंकुश लगाने के लिहाज से तो कभी कम नंबर लाने पर, कभी उस की किसी मांग को पूरी कर पाने में असमर्थ होने पर तो कभी घरबाहर के तनावों की वजह से हम अपने बच्चे की पिटाई शुरू कर देते हैं. पर क्या आप जानते हैं कि इस का असर क्या होता है?
कई शोध बताते हैं कि अभिभावकों का मारनापीटना बच्चों के आत्मविश्वास पर असर डालता है, उन में हिंसा की भावना को जन्म देता है और डिप्रैशन पैदा करता है. चाइल्ड साइकोलौजिस्ट्स के मुताबिक, बच्चे, जो घर में शारीरिक, मानसिक प्रताड़ना के शिकार होते हैं, आगे चल कर आत्मविश्वास की कमी और कमजोर निर्णय क्षमता के साथ बड़े होते हैं. परिवार के साथ उन की दूरी इतनी बढ़ जाती है कि वे समाज में नए अपराधी की शक्ल में सामने आने लगते हैं.
14 साल के सोनू को जब गुस्सा आता है तो वह अपना आपा खो देता है. कभी दीवार पर हाथ मारता है तो कभी सिर. कभी सामने वाले पर बुरी तरह चीखनेचिल्लाने लगता है तो कभी हाथ में जो भी चीज है, जमीन पर दे मारता है. स्कूल और पासपड़ोस से सोनू की शिकायतें आने लगीं तो घरवाले चिंतित हो उठे.
घरवाले यह नहीं सम झ पा रहे थे कि सोनू के ऐसे बरताव के लिए वे खुद जिम्मेदार हैं. घरवालों ने उस के साथ बचपन में जैसा व्यवहार किया वही बरताव अधिक उग्र रूप में सोनू का स्वभाव बन गया था. घरवालों ने शुरू में कभी भी उस के गुस्से को गंभीरता से नहीं लिया. उस की सीमाएं और गुस्से के खतरे से उस को आगाह नहीं किया. न ही वे अपने बरताव में बदलाव लाए. नतीजा, अब सोनू का स्वभाव समाज में स्वीकार नहीं किया जा रहा.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चों के हिंसक बरताव की वजह घरों में हिंसा देखना भी है. जिस में पति का पत्नी को पीटना या मातापिता का बच्चों को मारना शामिल हैं. पहले वे अपने से छोटों पर हिंसा करते हैं. वयस्क हो जाने पर वे पत्नी पर और बाद में कभीकभी कमजोर हो गए मांबाप के साथ भी हिंसा कर डालते हैं.
अकसर हिंसा कर के आप बच्चे से अपनी बात मनवाते कम हैं, अपना नुकसान ज्यादा करते हैं. आप का मानसिक सुकून तो खोता ही है, बच्चे के व्यक्तित्व पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. बच्चों को प्यार से सम झाया जा सकता है और उस का असर अच्छा रहता है.
कई बार अभिभावक बात मनवाने के लिए हिंसा का इस्तेमाल करते हैं. वे बच्चों को बातबेबात थप्पड़ मार देते हैं. सब के आगे उन्हें डपट देते हैं. ऐसा होने पर बच्चों के मन में यह धारणा घर कर जाती है कि हिंसा का इस्तेमाल सही है.
ये भी पढ़ें- अवहेलना के जिम्मेदार बुजुर्ग खुद
सख्त रवैया क्यों
देखा जाए तो किसी भी घर में बच्चे आंखों के तारे होते हैं. लेकिन ज्यादा लाड़प्यार में बच्चे बिगड़ते हैं, यह थ्योरी बच्चों के प्रति सख्त रवैया भी लाती है. कहना न मानने पर डांटफटकार और मारपीट का चलन भी आम है. डिजिटल और सोशल मीडिया के दौर में, वैसे भी, बच्चे एकाकी जीवन जी रहे हैं. अभिभावक बच्चों को अपना समय नहीं दे पाते. एकल परिवारों की वजह से दादादादी तो घर में होते नहीं जो पीछे से बच्चे को संभाल लें, भाईबहन भी आजकल मुश्किल से होते हैं या नहीं भी होते. ऐसे में अकेला बच्चा घर में बैठ कर क्या करेगा. उस का भटकना संभव है. मगर इस वजह से वह कुछ गलती करता है तो क्या उसे मारनापीटना उचित है?
वैसे सवाल उठता है कि जिन घरों में रोजाना 4 बार पूजा होती है, समयसमय पर गीतापाठ, माता की चौकी, जागरण, मंदिरों के फेरे लगते हैं, वहां भी बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. ये सब उदाहरण इन घरों के हैं जो न नास्तिक हैं, न धर्मविरोधी. ये पूजापाठी परिवार हैं, प्रवचन सुनते हैं, फिर भी धर्म का परिवार चलाने में जरा भी योगदान नहीं. ये कैसे संस्कार हैं जिन के गुणगान हम करते रहते हैं?
जहां तक बात एजुकेशन सिस्टम की है तो कहना गलत न होगा कि नर्सरी क्लास से जो कंपीटिशन का दौर शुरू होता है वह अंत तक बना रहता है. बस्तों का बो झ ऐसा मानो बच्चे पूरा स्कूल कंधे पर लिए घूम रहे हों. स्कूल से छूटे तो कोचिंग की टैंशन शुरू. हर 2 माह पर एग्जाम और उस एग्जाम में बेहतरीन करने का दबाव ताकि बच्चे का भविष्य संवर सके. बच्चा हमारी खींची लकीर पर न चले तो हम नाराज और हिंसक हो उठते हैं. लेकिन, अभिभावक के रूप में हम कभी बच्चों की बेचैनी नहीं सम झते.
क्या मांबाप होने की जिम्मेदारी का मतलब बच्चों के साथ मारपीट का अधिकार है? अपनी उम्मीदों की गठरी हम अपने बच्चों के सिर रख कर क्यों चलते हैं? हमारी यह आस होती है कि हमारा बच्चा हमारी सारी उम्मीदों पर खरा उतरे. वह हमारे अधूरे सपनों को पूरा करे और इस के लिए छुटपन से ही हम उसे अनुशासन में रखने लगते हैं. अभिभावक अमीर हों, मध्यवर्ग के हों या फिर गरीब, तीनों वर्गों के लोग बच्चों के साथ हिंसा करते हैं भले ही तरीका अलगअलग क्यों न हो.
भविष्य की फिक्र में हम यह भूल रहे हैं कि बच्चों की जिंदगी में यह दौर दोबारा नहीं आएगा. बच्चों को ले कर समाज का नजरिया भी जरा अजीब है. हम ने अच्छी परवरिश का पैमाना सिर्फ बड़े स्कूल, हाई परसैंटेज और कामयाबी तक सीमित कर रखा है. यह कहा जाता है कि परवरिश बच्चों का भविष्य तय करती है. तो क्या बच्चों में बढ़ते अपराध या आत्महत्या के बढ़ते मामलों के लिए हम अपनी जिम्मेदारी से बच जाएंगे?
हिंसक होने की मूल वजह
यदि अभिभावक ने खुद बचपन में हिंसा का सामना किया हो, तो बड़े हो कर वे बच्चों पर हाथ उठाते हैं. कुछ अभिभावक अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाते. वे अभिभावक बच्चों की ज्यादा पिटाई करते हैं जिन का सैल्फएस्टीम लो होता है. कुछ अभिभावक खुद मानसिक रोगी होते हैं और अल्कोहल या ड्रग्स का सेवन करते हैं. सामान्यतया वे ही इस तरह की हरकतें करते हैं. जो एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स के चक्कर में होते हैं, वे भी ऐसी हरकतें करते हैं. आर्थिक समस्याएं होने पर भी मांबाप अपनी झल्लाहट बच्चों पर उतारते हैं.
बच्चों की पिटाई की जाए या नहीं
स्वीडन पहला यूरोपीय देश बना जहां बच्चों को मारनापीटना गैरकानूनी है. साल 2013 में फ्रांस की एक अदालत ने फैसला दिया था कि एक आदमी ने अपने 9 साल के बेटे को पीटने में ज्यादती कर दी है. उस ने पीटने से पहले अपने बेटे की कमीज उतरवा दी थी. उस पर 500 यूरो का जुर्माना लगाया गया. लेकिन इस फैसले से देश 2 भागों में बंट गया.
फ्रांस में बच्चों की पिटाई का इतिहास काफी पुराना है. कहा जाता है कि फ्रांसीसी राजा लुइस तेरहवें को एक साल की उम्र से पिता के आदेश पर लगातार पीटा जाता रहा था.
अन्य यूरोपीय देशों की तरह फ्रांस में भी बच्चों के खिलाफ हिंसा को अपराध बना दिया गया है. लेकिन, यह अभिभावकों को अपने बच्चों को हलके हाथ से अनुशासित करने का अधिकार भी देता है.
यह ‘हलके हाथ’ से अनुशासित करना क्या है और आपराधिक हिंसा क्या है, यह तय करने का अधिकार अदालतों को है, जिस से अकसर विवाद होते रहे हैं. हालांकि, ब्रिटेन और फ्रांस में हुए एक सर्वे में बच्चों को पीटने पर कानूनी प्रतिबंध के परिणाम करीबकरीब एकजैसे थे. हाल में ब्रिटेन में सर्वे में शामिल 69 फीसदी लोग इस के खिलाफ थे, वहीं फ्रांस में 67 फीसदी लोग इस के विरोध में थे.
ये भी पढ़ें- आखिर बड़ी उम्र के पुरुषों की तरफ क्यों आकर्षित हो रही हैं लड़कियां
अब समय आ गया है कि हम इस पर गंभीरता से विचार करें कि क्या सचमुच संस्कार और शिक्षा थोपने की आड़ में चाहेअनचाहे हम बच्चों के साथ अन्याय कर जाते हैं.