पिछले कई महीनों से भारतीय मीडिया में यह चर्चा होती रही है कि रियो ओलिंपिक में भारतीय दल किसी भी दक्षिण एशियाई देश के मुकाबले सब से बड़ा दल है. इस से उम्मीद बढ़ गई थी कि इस बार बीजिंग और लंदन ओलिंपिक से भी ज्यादा मैडल भारत की झोली में आएंगे पर खिलाडि़यों के खराब प्रदर्शन से उम्मीदों पर पानी फिरता नजर आ रहा था लेकिन पिछले 11 दिनों से पदकों से खाली भारत की उम्मीद एक पल के लिए तब झूम उठी जब हरियाणा के रोहतक की साक्षी मलिक ने अंतिम राउंड में अपनी प्रतिद्वंद्वी किर्गिस्तान की पहलवान आइसुलू ताइने अबेकोवा को हरा कर कांस्य पदक हासिल कर लिया. यह देश के लिए गर्व की बात है पर साक्षी जहां पलीबढ़ीं यानी हरियाणा में, वहां पुरुष आबादी के मुकाबले महिला आबादी का अनुपात बेहद खराब है. यह समाज के लिए एक संदेश भी है. साक्षी के मातापिता बधाई के हकदार हैं कि घोर पुरुष वर्चस्व वाले क्षेत्र में वे अपनी बेटी को पहलवानी के क्षेत्र में उतारने के लिए हर कदम पर उस के साथ खड़े रहे.

दूसरी तरफ देश की एक और बेटी हैदराबाद की बैडमिंटन खिलाड़ी पी वी सिंधू ने सेमीफाइनल में जापान की नोजोमी ओकुहारा को हरा कर भारत का पदक पक्का कर दिया. लेकिन अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में भारत अभी बहुत पीछे है. रियो में ज्यादातर भारतीय खिलाडि़यों का प्रदर्शन निराशाजनक ही रहा है. सवाल है कि खिलाडि़यों के खराब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार कौन है? जाहिर है खेल संघ और सरकारी तंत्र. खिलाडि़यों को न तो बेहतर कोचिंग मुहैया कराई जाती है और न ही बेहतर ट्रेनिंग की व्यवस्था की जाती है. पश्चिमी देशों के मुकाबले ओलिंपिक में हमारे खिलाड़ी हमेशा फिसड्डी साबित हुए हैं. यदि एकाध मैडल जीत लिया तो लगता है मानो पूरी दुनिया जीत ली. खेल संघ और खेल मंत्रालय 1-2 मैडल में ही बड़ीबड़ी हांकना शुरू कर देते हैं.

ओलिंपिक जैसे खेलों में भारतीय खिलाडि़यों को विदेशी खिलाडि़यों से सीखने की जरूरत है. संसाधनों की कमी व प्रतिभाओं की उपेक्षा के साथसाथ राजनीतिक दखलंदाजी से उबरना होगा. खिलाडि़यों को आधुनिक तकनीकें मुहैया करा कर योग्य खिलाड़ी बनाना होगा. उन के खानपान से ले कर स्वास्थ्य तक का खयाल रखना होगा. लेकिन ऐसा होता कहां है. यहां तो डोपिंग विवाद, हौकी में कप्तानी को ले कर विवाद, टैनिस में आपसी अहम का विवाद, खेल गांव में खराब सुविधाओं का विवाद, बौक्ंिसग में खेल महासंघ के गठन नहीं होने का विवाद और न जाने कितने विवाद. खेल से पहले ही इतने विवाद हो जाते हैं कि कोई भी खिलाड़ी मानसिक रूप से कमजोर पड़ जाता है. इस से ऊपर उठना होगा, तभी कुछ उम्मीद की जा सकती है.

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