मध्य प्रदेश के राज्यपाल राम नरेश यादव 8 सितम्बर को विधिवत विदा हो जायेंगे और उनकी जगह कोई नया राज्यपाल आ जाएगा लेकिन राम नरेश मुद्दतों तक याद किये जायेंगे. वजह है उनका चर्चित महाघोटाले ‘व्यापमं’ से हार्दिक लगाव. जिसे कुछ लोग भ्रष्टाचार भी कहते हैं क्योंकि इस में उनकी भागीदारी किसी सबूत की मोहताज नहीं रही. अभी भी वे व्यापमं घोटाले से पूरी तरह बरी नहीं हुए हैं.

व्यापमं की जांच कर रही सीबीआई कब क्या कर गुजरे कहा नहीं जा सकता. भोपाल के राज भवन मे रहते अपने जमाने के इस दिग्गज नेता ने भी आत्म कथा लिखने का विकसित होता राजसी शौक पूरा करते अपनी जिंदगी पर एक 200 प्रष्ठ की किताब लिख डाली और नामकरण किया ‘मेरी कहानी’ जिसमें उनकी राजनातिक जिंदगी का सफरनामा है. कांग्रेस के प्रति आभार है और आडवाणी, चरण सिंह और वी पी सिंह जैसे तत्कालीन कई दिग्गजों का जिक्र ही नहीं हैं. व्यापमं घोटाले में उनकी भूमिका और संलिप्तता का उल्लेख भी नहीं है जिससे यह कहानी बगेर सुंदर काण्ड के रामचरित मानस जैसी होकर रह गई है.

रामनरेश यादव की कहानी का औपचारिक विमोचन मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया जिनकी हर सम्भव कोशिश यह रही थी कि एस टी एफ जांच के दौरान यादव को केन्द्र सरकार हटाये नहीं और न ही उनसे सख्ती से पेश आए. इस कहानी मे यादव ने ईमानदारी से इस बात की तो चर्चा की है कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह उन पर आंख बंद कर भरोसा करते थे पर व्यापमं वाले हिस्से को वे नहीं लिख पाये जबकि इस घोटाले मे फंसे उनके बेटे शैलेश यादव की रहस्यमय मौत हो गई थी और उनका विश्वशनीय ओ एस डी धनराज यादव तो भर्तियों के बदले घूस लेने के आरोप मे गिरफ्तार भी हुआ था.

 जांच के दौरान यह भी चर्चा थी कि गिरफ्तारी के डर से और पिता की प्रतिष्ठा की खातिर शैलेश यादव ने खुदकुशी कर ली या फिर इस तनाव को बर्दाश्त न कर पाने  के कारण उसकी असामयिक मृत्यु हो गई. सच जो भी हो रामनरेश यादव उससे कन्नी काट गये हैं यानि कलम के साथ न्याय नहीं कर पाये हैं. राजनेताओं द्वारा लिखी किताबें अब पहले सी बिकती नहीं हैं क्योंकि उनमे मुद्दे की कम आत्म मुग्धता, चाटुकारिता और विवादों व वैचारिक मतभेदों का जिक्र ज्यादा रहता है.

इसके अलावा ये किताबें पेशेवर लेखक लिखते हैं जिससे किताब या संस्मरण में लेखक की मूल भावनायें नहीं आ पाती. इनका पाठक वर्ग भी सीमित रहता है. ‘मेरी कहानी’ जैसी किताबों मे सच कम चटपटी गपबाजी और सियासी सनसनी ज्यादा रहती है जिससे ये अपनी अहमियत खो बैठती हैं. किताब का प्रकाशन उनके बेटे अजय यादव ने किया है जिसमे हैरत की एक बात यह भी है कि रामनरेश यादव ने मध्य प्रदेश के राज भवन के संस्मरणों का जिक्र न के बराबर किया है.

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