कवि, फिल्म पटकथा लेखक व गीतकार गुलजार का जन्म 18 अगस्त 1934 को हुआ था. अब तक वह सैकड़ों पुरस्कार पा चुके हैं. इन दिनों वह राकेश ओम प्रकाश मेहरा निर्देशित फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ की पटकथा लिखने की वजह से चर्चा में हैं. राकेश ओम प्रकाश मेहरा का दावा है कि गुलजार लिखित फिल्म ‘मिर्जिया’ का निर्देशन कर उनकी जिंदगी का एक घेरा/सर्कल पूरा हो गया.

गुलजार को अपना गुरू मानने वाले 53 वर्षीय राकेश ओमप्रकाश मेहरा जब 23 वर्ष के युवक थे, तब वह पहली बार गुलजार से मिलने गए थे. इस बारे में खुद राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने ‘‘सरिता’’ पत्रिका को बताया- ‘‘जब मैं 23 साल की उम्र का था, तब मैं मुंबई आया था. उस वक्त दिल्ली में विज्ञापन फिल्में वगैरह कर रहा था. मेरे दिमाग में था कि फिल्म बनाउंगा. 23 साल की उम्र और मध्यम वर्ग का लड़का क्या फिल्म बनाता? पर मैं गुलजार भाई तक पहुंच गया. उस वक्त मुंबई के पाली हिल में कोजीहोम  में उनका आफिस था. उनके आफिस पहुंचकर मैंने झूठ कहा कि मैं दिल्ली से सिर्फ गुलजार भाई से मिलने आया हूं. तो जो सामने बैठा था, उसको लगा कि यदि इसे गुलजार भाई से मिलने नहीं दिया, तो इसको बुरा लग जाएगा, बेचारा दिल्ली से आया है. गुलजार भाई ने अंदर से पूछवाया कि क्या मैं इसी मकसद से आया हूं? तो मैंने भी हां कह दिया. गुलजार भाई से मैं मिला और मैंने अपने बैग से ‘देवदास’ उपन्यास निकाल कर उनके सामने रख दिया. फिर सीधा सवाल किया कि आपने ‘देवदास’ पढ़ी है? मुझे इस कहानी पर फिल्म बनानी है, जिसकी पटकथा आप लिखें. अब 23 साल की उम्र में बेवकूफी की हद थी. आज मैं इस सवाल को करने से पहले दस बार सोचूंगा. वह समझ गए थे कि मेरे मन में क्या है?’’

राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने आगे कहा-‘‘उसके बाद मैंने ‘देवदास’ की कहानी के बारे में उनसे जिक्र किया, तो गुलजार भाई ने कहा कि तूने कहानी सही पकड़ ली है. मैं भी यही बनाना चाह रहा था. मैंने पहले एक बार कोशिश की थी, पर फिर बंद हो गयी. इसके बाद उन्होने पूछा कि निर्माता कौन है? मेरे पास कोई जवाब नहीं था. मैं तो उन्हें साइन करने के हिसाब से गया नहीं था. मुझे तो सिर्फ उनके दर्शन करने थे. कुछ दिन बाद मिलने का वादा करके चला आया था.’’

राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने आगे कहा-‘‘जब मैं ‘मिर्जिया’ के लिए गुलजार भाई से मिला था, तब गुलजार भाई ने कहा कि, ‘तू 27 साल पहले मेरे पास आया था. मुझे याद है. दाढ़ी बढ़ा लेने से तूने सोचा कि मैं तुझे भूल गया. जबकि ऐसा नही है. जब कि मैंने आज तक उन्हें इस बात का अहसास नहीं होने दिया था. मैंने यह बात अपने दिल में रख ली थी. जबकि ‘मिर्जिया’ से पहले मैंने गुलजार भाई से अपने करियर की पहली फिल्म ‘अक्स’ के गीत लिखवाए थे.’’

लगभग तीस साल पहले महज तेईस साल की उम्र में गुलजार से मिलने की वजह बताते हुए राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने कहा-‘‘गुलजार भाई आपको खुला छोड़ देते हैं. वह आपके उपर हावी नही होते हैं. वह आपके दोस्त बन जाते हैं. जब आप उनकी कविताएं पढेंगे, कहानियां पढ़ेंगे, उनके गाने सुनेंगें, तो वह आपको ऐसी जगह ले जाते हैं, जहां और कोई आपको ले नहीं जा सकता. उनके लिखे फिल्मी गीत नहीं कविताएं होती हैं. उन्होंने जिन फिल्मों का निर्देशन किया, वह फिल्में भी मुझे बहुत पसंद हैं. इसी वजह से गुलजार भाई गुलजार हैं.’’

राकेश ओम प्रकाश मेहरा गुलजार को अपना गुरू और भाई मानते हैं. मगर राकेश ओम प्रकाश मेहरा ठहरे रचनात्मक व एक सोच वाले इंसान. ऐसे में गुलजार के साथ भी उनकी असहमति होना स्वाभाविक है. इसी का जिक्र करते हुए राकेष ओमप्रकाष मेहरा ने कहा-‘‘

फिल्म ‘मिर्जिया’ के दौरान गुलजार के साथ सहमत और असहमति चलती रही. यह पहले से तय था कि मैं उनकी हर बात नहीं मानूंगा. उन्होंने एक सीन लिखा था, जिस पर मैं सहमत नहीं था. मैंने बच्चे की तरह कह दिया कि यह नहीं चलेगा. उन्होंने बड़ों की तरह डांट लगायी. बाद में उन्होंने उस सीन को हटा दिया. छह माह बाद मैंने कहा कि,‘यह सीन आपने क्यों हटाया? यह तो जरूरी है. तो उन्होंने कहा कि, ‘तुमने तो कहा था हटाने के लिए.’ मैंने कहा कि, ‘आप ऐसा क्यों लिखते हैं कि मुझे आपके लेखन को समझने में छह माह लग जाते हैं. आपके लेखन में परतों पर परते होती हैं.’

गुलजार के लेखन पर निर्देशन करने के समय धैर्य से काम करना होता है. जब हम खुद लिखते हैं, तो अंदर से आवाज आती है, क्योंकि मैंने लिखा है. दूसरे की लिखी चीजों को समझने के लिए अंदरूनी तौर पर आपको समय देना पड़ता है. उसे समझना पड़ता है. तो पटकथा की रंग में रंगना पडे़गा. उसे अपना बनाना पड़ेगा. तभी आप सफल निर्देशक हैं. यही एक निर्देशक की सबसे बड़ी चुनौती होती है. पटकथा लेखक के तौर पर उन्होंने पेंटिग्स बनाकर दे दी. पर उसमें सही रंग भरकर सुंदर बनाना निर्देशक का काम है. सिनेमा की सबसे बड़ी खासियत है पल पल इम्प्रोवाइज करना. मैं तो अपने कलाकार से कहता हूं कि कि मैं तो नए कलाकारों से भी सीखने आया हूं.’’

वह आगे कहते हैं-‘‘गुलजार भाई की लिखी पटकथा को निर्देशित करना आसान कदापि नहीं हो सकता. जब आप दूसरे की लिखी हुई अच्छी कहानी को लेते हैं और उसे अपने इंटरप्रिटेशन के साथ निर्देशित करते हैं, तो उसके मायने बदल जाते हैं. मसलन, जब अमिताभ बच्चन अपने बाबूजी हरिवंशराय बच्चन की कविता ‘मधुशाला’ पढ़ते हैं, तो उसके मायने अलग हैं. मैं पढूंगा, तो उसके मायने अलग होंगे. जब मैं गुलजार भाई की कहानी पर फिल्म बनाता हूं, तो उसके मायने अलग हैं.’’

राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने आगे कहा-‘‘गुलजार भाई से मेरा रिश्ता महज लेखक व निर्देशक का नहीं है. मैं उन्हें अपना गुरू मानता हूं. वह भले ही मुझे रोज ना पढ़ाते हों, मगर मेरे लिए गुरू हैं. तो वहीं मैं उन्हे बड़े भाई की तरह इज्जत देता हूं. हमारी दोस्ती ऐसी है कि जब भी मैं किसी मुद्दे पर उलझता हूं, तो सीधे उनके घर चला जाता हूं. वह हर मुश्किल का समाधान इतनी खूबसूरती से निकालते हैं कि दिक्कतें पल भर में छू मंतर हो जाती हैं. उनकी कविताओं में बच्चे जैसी मासूमियत व भोलापन साफ नजर आता है.’’

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