जब भी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धाएं शुरू होती हैं, चाहे वे एशियाई खेल हों, कौमनवैल्थ गेम्स हों या फिर ओलिंपिक, कुछ खिलाड़ी डोपिंग मामले में फंस जाते हैं, जैसा कि भारतीय रेसलर नरसिंह यादव और इंद्रजीत सिंह डोपिंग के जाल में उलझ गए थे. उस के बाद नरसिंह ने नाडा को लिखित में दिया कि वह निर्दोष है और उन्हें फंसाया गया है. जब से रियो ओलिंपिक में हिस्सेदारी को ले कर नरसिंह यादव का नाम सामने आया है तब से ही वे विवादों में घिर गए. ओलिंपिक विजेता रेसलर सुशील कुमार ने तब आपत्ति दर्ज की थी और वे अदालत पहुंच गए जहां सुशील कुमार फेल हो गए थे और नरसिंह यादव पास.
मगर राष्ट्रीय डोपिंग निरोधक यानी नाडा द्वारा कराई गई जांच में नरसिंह यादव फेल हो गए. लेकिन नरसिंह ने तब भी लड़ा था जब सुशील कुमार ने ट्रायल की मांग की थी और इस बार भी लड़ा और यह साबित कर दिया कि नरसिंह उन खिलाडि़यों में से नहीं हैं जो हार मान जाते हैं. नाडा की अदालत ने उसे बरी कर दिया. इसी के साथ 74 किलोग्राम भार में रियो ओलिंपिक में जाने का उन का रास्ता साफ हो गया. लेकिन इस घटना ने फिर से डोपिंग की प्रवृत्ति पर सोचने के लिए विवश कर दिया है कि आखिर ऐसी दवाओं का सेवन करने की जरूरत क्यों पड़ती है जबकि दुनियाभर में डोपिंग को ले कर आचार संहिता है जिस का सभी देश पालन करते हैं. इस के लिए नाडा व वाडा यानी वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी ने कड़े नियम भी बना रखे हैं. बावजूद इस के, डोपिंग के मामले कम होने के बजाय बढ़ते जा रहे हैं.
खिलाडि़यों के लिए कई दवाओं पर प्रतिबंध लगा हुआ है लेकिन प्रतिस्पर्धा की इस दौड़ में खिलाड़ी ऐसी दवाओं का सेवन इसलिए करते हैं ताकि उन का रक्त संचार तेज हो जाए. दवाओं के सेवन के बाद वे अपनेआप को ज्यादा ताकतवर महसूस करने लगते हैं, उन की खेलने की क्षमता बढ़ जाती है. रूस में ऐसी दवाओं पर प्रतिबंध नहीं है, इसलिए ओलिंपिक महासंघ ने वहां के खिलाडि़यों पर प्रतिबंध लगा रखा है. हाल के दशकों में डोपिंग के मामले विश्वभर में बढ़ रहे हैं और तकरीबन हर खेल में खिलाड़ी इस मामले में फंस रहे हैं. चाहे वह क्रिकेट हो, टैनिस हो, फुटबौल हो, कुश्ती हो या फिर अन्य खेल. खिलाडि़यों, कोच, देश और खेल पदाधिकारियों को डोपिंग को ले कर सोचना होगा क्योंकि केवल कड़ा नियम बना देने से अगर डोपिंग के मामले रुक जाते तो शायद एक भी मामला सामने नहीं आता. खिलाड़ी इस बात को जानतेसमझते हैं कि अगर वे डोपिंग में पकड़े जाएंगे तो उन का कैरियर चौपट हो जाएगा, फिर भी वे ऐसी दवाओं का सेवन करते हैं. अगर खेल को डोपिंग मुक्त करना है तो इस के लिए खिलाडि़यों को ही आगे आना होगा क्योंकि वे अगर ऐसी दवाओं का सेवन ही नहीं करेंगे तो शायद ही कोई मामला सामने आए. कृत्रिम ताकत के सहारे पदक जीत लेना कोई खिलाड़ी नहीं कहलाएगा.