पालक विटामिनों और खनिज पदार्थों से भरपूर फसल है. इसे सेहत का खजाना भी कहा जाता है. इस की पत्तियों का प्रयोग सब्जी के अलावा नमकीन पकोड़े, आलू के साथ मिला कर और भुजिया बना कर किया जाता है.

पालक खाने से शरीर को पोषक तत्त्व हासिल होते हैं. ज्यादा मात्रा में प्रोटीन, कैलोरी, खनिज पदार्थ, कैल्शियम और विटामिन ए, विटामिन सी का यह एक मुख्य साधन है जो दैनिक जीवन के लिए बहुत जरूरी है.

भूमि व जलवायु

पालक की खेती ठंडे मौसम में किए जाने की जरूरत होती?है. इस की खेती के लिए ज्यादा तापमान की जरूरत नहीं होती, लेकिन कुछ जगह पर वसंत मौसम में भी इसे पैदा करते हैं यानी जायद की फसल के साथ पैदा करते?हैं.

खेत की तैयारी

पालक की खेती सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन सब से उत्तम बलुई दोमट होती है. पालक को हलकी अम्लीय जमीन में भी उगाया जा सकता है. उर्वरा शक्ति वाली जमीन में बहुत ज्यादा उत्पादन किया जा सकता?है.

पालक के खेत में पानी के निकलने का सही बंदोबस्त होना चाहिए. जमीन का पीएच मान 6.0 से 6.7 के बीच ही अच्छा होता है.

3-4 बार खेत की जुताई कर खेत को तैयार करना चाहिए. जुताई के समय हरी या सूखी?घास, खरपतवार वगैरह को खेत से बाहर निकाल कर जला देना चाहिए.

गोबर की खाद और रासायनिक खादों का इस्तेमाल?: पालक की फसल के लिए 18-20 ट्रौली गोबर की सड़ी खाद और 100 किलोग्राम डीएपी प्रति हेक्टेयर की

दर से बोने से पहले खेत तैयार करते समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए व पहली और दूसरी कटाई के बाद 20-25 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर देने  से फसल की पैदावार अच्छी मिलती है.

घर के बगीचे के लिए?भी यह एक मुख्य फसल है. क्यारी तैयार करते समय 4-5 टोकरी गोबर की सड़ी खाद या डाई अमोनियम फास्फेट 500 ग्राम 8-10 वर्गमीटर के लिए मिट्टी में बोआई से पहले मिला देते?हैं. बाद में फसल को बढ़ने के बाद काटते?हैं तो हर कटाई के बाद 100 ग्राम यूरिया उपरोक्त क्षेत्र में छिड़कना चाहिए, जिस से पत्तियों की बढ़वार जल्दी होती है और सब्जी के लिए पत्तियां जल्दीजल्दी मिलती रहती हैं.

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उन्नतशील प्रजातियां

पालक की कुछ मुख्य प्रजातियां हैं जिन को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा बोने की सिफारिश की जाती?है, वे निम्नलिखित हैं:

पालक आल ग्रीन : इस प्रजाति को बोने से एकसाथ हरी पत्तियां हासिल होती?हैं. पत्तियां 40 दिन में कटने के लिए तैयार हो जाती हैं. पत्तियां छोटीबड़ी न हो कर एकजैसी होती हैं. वृद्धि काल अंतिम सितंबर से जनवरी माह में शुरू का समय होता है. इसे 5-6 बार काटा जा सकता है.

पालक पूसा ज्योति : यह प्रजाति ज्यादा पैदावार देती?है. पत्तियां समान, मुलायम होती?हैं और गहरे हरे रंग की होती हैं. पहली कटाई

40-45 दिनों में शुरू हो जाती है. सितंबर से फरवरी माह के अंत तक पत्तियों की बढ़वार ज्यादा होती है.

फसल की 8-10 बार कटाई की जाती है.

यह फसल 45,000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पैदावार देती है.

पालक पूसा हरित : इस प्रजाति के पौधे ऊंचे, एकसमान और अच्छी बढ़वार वाले होते हैं. यह ज्यादा पैदा देने वाली प्रजाति है जो सितंबर माह से मार्च माह तक अच्छी बढ़वार करती है.

तय दूरी पर करें बोआई

पालक की बोआई का उचित समय सितंबर से नवंबर माह का है. देरी से बोई जाने वाली फसल फरवरी माह में भी बोई जाती है

जो देर तक सब्जी देती है. इस तरह से नवंबर माह से अप्रैल माह तक पालक की सब्जी मिलती रहती है.

पालक को कतारों में भी बोया जाता है जो कि आगे सुविधाजनक रहता है. कतार से कतार की दूरी 20-35 सैंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 5-10 सैंटीमीटर रखते हैं. बीज की गहराई 1-2 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.

बोने का तरीका

पालक की बोआई 2 तरीकों से की जाती?है. पहली विधि में बीज को खेत में छिटक कर बोते हैं. इसे छिटकवां विधि कहते हैं. दूसरी विधि में बीज को समान दूरी पर कतारों में बोते?हैं. कतारों की विधि सब से अच्छी रहती है. इस में निराई, गुड़ाई और कटाई आसानी से हो जाती है.

पालक के खेत के लिए बीज की

40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा की जरूरत होती?है. अच्छे अंकुरण के लिए खेत में नमी का होना जरूरी है. बोने के बाद बीज को जमीन की ऊपरी सतह में मिला देना चाहिए.

बगीचे के लिए बीज की मात्रा 100-125 ग्राम 8-10 वर्गमीटर क्षेत्र के लिए सही होती?है. पालक को गमलों में भी लगाया जा सकता है. एक गमले में 4-5 बीज बोने चाहिए. गमलों से भी समयसमय पर अच्छी पैदावार मिलती है. बोने के बाद बीज को हाथ से मिट्टी में मिला देना चाहिए और पानी अंकुरण के दौरान देना चाहिए.

सिंचाई और निराईगुड़ाई: पालक की फसल के लिए पहली सिंचाई अंकुरण के 6-7 दिन बाद करनी चाहिए. बीज की बोआई जमीन में पर्याप्त नमी होने पर करनी चाहिए. इस तरह से सर्दियों में 12-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए.

जायद या देर से बोने वाली फसल के लिए सिंचाई की ज्यादा जरूरत पड़ती?है. इस तरह से पालक की फसल के लिए सिंचाई व नमी को लगातार बनाए रखना बहुत ही जरूरी है.

बगीचे की फसल के लिए भी नमी के लिए जरूरत के मुताबिक सिंचाई करते रहना चाहिए. गमलों में नमी के मुताबिक 2-3 दिन के बाद और जायद की फसल के लिए रोज शाम के समय ध्यान से पानी देते रहना चाहिए. पानी देते समय यह ध्यान रहे कि गमलों में लगे पौधे टूटे नहीं और फव्वारे से पानी ज्यादा ऊपर से नहीं देना चाहिए.

पालक की फसल में रबी फसल के खरपतवार ज्यादा हो जाते हैं. इन को पहली, दूसरी सिंचाई के तुरंत बाद खेत में निराईगुड़ाई करते समय उखाड़ या निकाल देना चाहिए. इस प्रकार से 2-3 निराइयां फसल में करना जरूरी?है. ऐसा करने से फसल की उपज ज्यादा अच्छी मिलती है.

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पालक की कटाई: पालक की कटाई डेढ़दो महीने के बाद शुरू हो जाती?है. पालक की शाखाओं को कुछ ऊपर से काटना चाहिए, जिस से अगला फुटाव जल्दी हो जाए. नाइट्रोजन की मात्रा देने से और भी जल्दी शाखाएं तैयार हो जाती हैं. इस तरह से एक फसल से 4-5 कटाइयां मिल जाती हैं. बाद में कटाई न कर के बीज के लिए छोड़ा जा सकता है. कटाइयां 8-10 दिन के अंतराल पर करते रहनी चाहिए. कटाई दरांती या हंसिया से करनी चाहिए.

रोगों से पौधों का बचाव : पालक की फसल में 2 बीमारियां ज्यादा लगती हैं, जो फसल को नुकसान पहुंचाती हैं. पहली है, डंपिंग औफ और दूसरी है पाउडरी मिल्ड्यू.

डंपिंग औफ बीमारी में छोटा पौधा पिचक जाता?है और मर जाता?है. यह बीमारी पायथीयम अल्टीयम कवक द्वारा लगती है. इस पर नियंत्रण के लिए सैरासन या सीडैक्स कवकनाशक से बीजों को उपचारित कर के बोना चाहिए.

पाउडरी मिल्ड्यू बीमारी से पालक की फसल को ज्यादा नुकसान होता है. इस बीमारी में पौधों की पत्तियों पर छोटेछोटे पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं जो आगे चल कर बड़ा रूप ले लेते हैं और पूरा पौधा ही खराब हो जाता है. नियंत्रण के लिए सल्फर का धूल भी फायदेमंद होता है. ऐसे रोगी पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए.

पालक की फसल में कुछ कीट भी नुकसान पहुंचाते हैं. कैटरपिलर व ग्रासहोपर मुख्य कीट हैं जो फसल पर लगते हैं. इन पर नियंत्रण के लिए बीएचसी या डीडीटी पाउडर का छिड़काव करना चाहिए. पालक को छिड़काव से 10 दिन बाद तक इस्तेमाल में नहीं लाना चाहिए.

उपज : पालक की उपज प्रत्येक किस्म या प्रजाति के ऊपर निर्भर करती है. पूसा आल ग्रीन 30,000 किलोग्राम और पूसा ज्योति की उपज 45,000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपज हासिल होती है. औसतन प्रत्येक प्रजाति की उपज 25-35 हजार किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पैदावार मुहैया हो जाती है. बगीचे में भी 20-25 किलोग्राम पत्तियां हासिल हो जाती हैं जो समयसमय पर मिलती रहती हैं.

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