बौलीवुड में 35 वर्ष पहले फिल्म ‘सारांश’ से अभिनय कैरियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता अनुपम खेर एकमात्र ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने अपनी असफलता की ताकत पर ऐसा मुकाम बनाया है जो कि हर किसी के वश की बात नहीं है. सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर अवार्ड, राष्ट्रीय पुरस्कार, पद्मश्री, पद्मभूषण के अलावा कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों  से सम्मानित अनुपम खेर पिछले 15 वर्षों से रंगमंच पर भी सक्रिय हैं.

उन्होंने 2 किताबें लिखी हैं. उन का अभिनय स्कूल चल रहा है. देश व विदेश के विश्वविद्यालयों में मोटिवेशन लैक्चर देते हैं. उन्होंने स्वयं अपनी आटोबायोग्राफी लिखी है, जो कि अगस्त में बाजार में आएगी. बौलीवुड में 515 फिल्मों के साथसाथ हौलीवुड में भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का डंका बजाया है. हाल ही में उन्होंने अमेरिका के चर्चित सीरियल ‘न्यू अम्सटर्डम’ में भारतीय डाक्टर का किरदार निभाया है.

आप के 35 वर्षों के अभिनय कैरियर के पौइंट्स क्या रहे?  इस पर अनुपम कहते हैं, ‘‘पहली बात तो यह कि मेरा मध्यांतर है. मेरे कैरियर का पहला पड़ाव या टर्निंग पौइंट तो मेरे कैरियर की पहली फिल्म ‘सारांश’ ही थी. मैं ने 28 वर्ष की उम्र में 65 वर्ष के इंसान का किरदार निभाया था. पहली ही फिल्म के लिए फिल्मफेयर अवार्ड मिलना भी टर्निंग पौइंट था. यदि मेरे कैरियर की शुरुआत किसी फिल्म में हीरो से हुई होती, तो शायद आप आज मेरे इस औफिस में बैठ कर बातें न कर रहे होते. पता नहीं मैं क्या काम कर रहा होता या कहीं और आगे चला गया होता.

‘‘टर्निंग पौइंट यह भी रहा कि मैं ने खुद को किसी सीमा में नहीं बांधा. मैं ने किसी ढर्रे पर चलते हुए काम नहीं किया. आप तो अच्छी तरह जानते हैं कि उन दिनों तो ‘टाइप कास्ंिटग’ होती थी. कलाकार ने कैरियर की शुरुआत में पहला रोल जिस तरह का किया, उसी तरह के रोल उसे मिलते थे. पर मैं ने इस ढर्रे के खिलाफ जा कर ‘कर्मा’ भी की, ‘रामलखन’ भी की और ‘खोसला का घोंसला’ भी की. ‘ए वेडनेस्डे’ भी की. ‘ऐक्सिडैंटल प्राइम मिनिस्टर’ की.

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‘‘मेरा मानना है कि टर्निंग पौइंट्स सिर्फ सफलता के नहीं होते बल्कि असफलता के भी होते हैं. यदि आप ने असफलता के टर्निंग पौइंट को पकड़ लिया, तो आप को शानदार सफलता मिलती है. मैं ने अपनी प्रोडक्शन कंपनी खोल कर कुछ फिल्में व टीवी सीरियल बनाए, पर उस में मैं लगभग दिवालिया हो गया. यह भी मेरे कैरियर का बहुत बड़ा टर्निंग पौइंट था.

‘‘1994 में जब फिल्म ‘हम आप के हैं कौन’ की शूटिंग के दौरान (5 मिनट) मुझे फेशियल पैरालाइसि हुआ था, वह भी टर्निंग पौइंट था.

‘‘2002 में जब मैं ने अंतर्राष्ट्रीय फिल्म ‘बेंड इट लाइक बैकम’ में अभिनय कर अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा जगत में कदम रखा, वह भी टर्निंग पौइंट था.

‘‘मैं बौलीवुड का इकलौता ऐसा कलाकार हूं जिस ने अपनी जीवनी पर नाटक किया. जबकि किताब के रूप में अपनी जीवनी अब लिखी है जो कि अगस्त में बाजार में आएगी. 15 वर्षों से यह नाटक कर रहा हूं, जिस का नाम है, ‘कुछ भी हो सकता है.’ मैं अकेला ऐसा कलाकार हूं जिस ने अपनी जीवनी पर किताब लिखने से पहले नाटक किया. मैं पहला ऐसा कलाकार हूं जिस ने अपनी जीवनी से पहले लाइफ कोचिंग पर ‘द बेस्ट थिंग अबाउट यू इज यू’ नामक किताब लिखी, जो कि पिछले 7 वर्षों से विश्व की बैस्टसैलर बुक है. यह भी मेरे कैरियर व जीवन का टर्निंग पौइंट था.

‘‘5 फरवरी, 2005 को मेरा ऐक्ंिटग स्कूल ‘ऐक्टर्स प्रिपेअर्स’ खोलना भी टर्निंग पौइंट था. मैं ने वीरा देसाई रोड पर एक छोटे से कमरे में इस ऐक्टिंग स्कूल की शुरुआत की थी. आज आप जहां बैठे हैं, वहां पूरे 3 फ्लोर में मेरा ऐक्टिंग स्कूल है. मेरे इस ऐक्टिंग स्कूल से जितने भी लोग निकलते हैं, वे मेरे राजदूत हैं.’’

पिछले 35 वर्षों में सिनेमा में जो बदलाव आए हैं, उन्हें आप किस तरह से आंकते हैं?  इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, ‘‘जो समाज में  बदलाव आए हैं, जो जीवन में बदलाव आए हैं, वही बदलाव सिनेमा में आए हैं. अब फिल्म इंडस्ट्री में प्रोफैशनलिज्म आ गया है. प्रोफैशनलिज्म तो हो गया मगर भाईचारा निकल गया. सच कहा जाए तो भाईचारा में फिल्में अच्छी बनती थीं. पहले हम और आप यानी कि पत्रकार और कलाकार इस तरह से नहीं मिलते थे.

‘‘आप को याद होगा, पहले हम और आप कहीं भी किसी भी फिल्म की शूटिंग के सैट पर अचानक मिल जाते थे और बातें कर लेते थे.

‘‘पहले कलाकार के पास मोबाइल फोन और मोबाइल वैन नहीं हुआ करती थी. सभी कलाकार सैट पर एकसाथ बैठ कर गपशप किया करते थे. अब तो दोनों चीजें हैं. कलाकार कैमरे के सामने आ कर अपना सीन देता है और फिर सीधे अपनी मोबाइल वैन में जा कर दुबक जाता है.

‘‘इस के बावजूद भारतीय फिल्में तकनीकी दृष्टिकोण से काफी बेहतर हो गई हैं. अब काफी फिल्में बन रही हैं. कंटैंट वाला सिनेमा बनने लगा है. अब काफी लोगों को काम मिल रहा है. टीवी सीरियल के साथ ही वैब सीरीज बन रही हैं.’’

क्या प्रोफैशनलिज्म के चलते अब कलाकारों पर से निर्माता का विश्वास खत्म हो गया है? इस पर अनुपम कहते हैं, ‘‘मैं ने अब तक 515 फिल्मों में अभिनय किया है. इन में से कम से कम 400 फिल्में ऐसी हैं जिन के एग्रीमैंट मैं ने फिल्म की रिलीज के बाद साइन किए जब निर्माता ने कहा कि अब एग्रीमैंट पर साइन कर दीजिए, इन्कम टैक्स फाइल करना है. पर आज की तारीख में तो 50 पन्नें का एग्रीमैंट निर्माता पहले साइन कराता है, उस के बाद हमें शूटिंग के लिए सैट पर बुलाता है.  इन में कलाकार कितना छींकेगा, यह भी लिखा होता है. पहले कलाकार व निर्माता के बीच आपसी विश्वास होता था.’’

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आप ने हाल ही में अमेरिकन सीरीज ‘न्यू अम्सटर्डम’ की है, कैसा अनुभव रहा? इस पर वे बताते हैं, ‘‘जी हां, मैं दूसरों को यह निर्णय नहीं करने देता कि मुझे क्या करना चाहिए. जब मैं ने देखा कि यहां पर लोग मुझे लीजैंडरी ऐक्टर कह कर हाशिए पर डालना चाहते हैं, तो मैं विदेश चला गया. मैं ने अूमेरिका जा कर ‘नयू अम्सटर्डम’ नामक सीरीज की, बहुत लोकप्रियता मिली. इस में मैं ने एक भारतीय न्यूरोसर्जन डाक्टर का किरदार निभाया है. जुलाई में इस का दूसरा सीजन शूट करने के लिए अमेरिका जाने वाला हूं.

आप के जीवन की दूसरी व्यस्तताएं क्या हैं?  इस पर वे कहते हैं, ‘‘किताबें लिखता हूं. पूरे विश्व में मोटिवेशन लैक्चर देता हूं. मेरे मोटिवेशन लैक्चर का विषय होता है ‘पावर औफ फेलिअर’. मतलब, असफलता की क्या ताकत है. इस पर लैक्चर देता हूं. औक्सफोर्ड सहित विश्व की हर बड़ यूनिवर्सिटी में मोटिवेशन लैक्चर देने जाता हूं. मैं अपनी जिंदगी जीता हूं. मेरी जिंदगी बहुत बड़ा खजाना है. मैं कहां से कहां पहुंचा हूं. मैं ने कभी हार नहीं मानी.’’

आप ने काफी समय पहले कई हौलीवुड व अंतर्राष्ट्रीय फिल्में की थीं, तो कभी हौआ खड़ा करने का प्रयास नहीं किया? इस पर अनुपम कहते हैं, ‘‘हम ने जब विदेशों में काम किया, तब वह दौर अलग था. उस वक्त सोशल मीडिया का दौर नहीं था. मैं ने सोशल मीडिया को भी अपनाया. आज मेरे 1.33 करोड़ फौलोअर्स हैं. आप को वक्त के साथ चलना होगा. जमाने को बदलने से बेहतर है अपनेआप को बदलो.’’

आगे की योजना के बारे में बताते हुए अनुपम खेर कहते हैं, ‘‘मुझे 35 वर्षों ने बहुतकुछ सिखाया है. इन 35 वर्षों ने जो कुछ सिखाया है, उसे अब अगले 35 वर्षों तक अमल में लाना चाहता हूं.

‘‘मुझे ऐसा लगता है कि मुझे अभी बहुतकुछ करना है. कुछ ही दिन पहले की बात है, मैं अपने ऐक्ंिटग स्कूल में जब बच्चों को पढ़ा रहा था, तो मुझे एहसास हुआ कि अभी मुझे बहुतकुछ सीखना है. आजकल के बच्चों को देख कर आप काफीकुछ सीख सकते हैं. जब इंसान सोचने लगता है कि मैं जानता हूं कि मैं क्या कर रहा हूं, तो वहीं से आप की सीख खत्म हो जाती है.  मेरे लिए मुकाम से ज्यादा अहमियत यात्रा रखती है.’’

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