बचपन से ऐसा सुना कि ईश्वर की इच्छा के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिल सकता. मतलब ईश्वर अदृश्य रह कर हर चीज देख रहा है. इसका मतलब तो यही हुआ कि हर काम, चाहे वह अच्छा हो या बुरा, उसके होने का जिम्मेदार ईश्वर है. बचपन से सुना कि ईश्वर सर्वव्यापी है. यानी ईश्वर हर जगह मौजूद है. हर जगह आप पर उसकी नजर है. जरा सोचिए कई दिन के बाद आपके घर के नल में साफ पानी आया. आप फटाफट कपड़े उतार कर बाथरूम में घुसे कि ठंडे-ठंडे पानी से नहाने का मजा ले लें, हफ्ते भर का मैल धो लें और अचानक आपको ख्याल आया कि ईश्वर सब देख रहा है. आप घबरा उठेंगे. मुंडी उठा कर इधर-उधर ताकेंगे. नहाने का मजा काफूर हो जाएगा. हो सकता है ईश्वर आपके नल की टोंटी पर चढ़ा बैठा हो आपको उस रूप में देखकर आनन्द ले रहा हो, जिस रूप में आपका जन्म हुआ. यह तो शर्म से पानी-पानी हो जाने वाली बात है. अब अगर ईश्वर की इच्छा के बगैर संसार में पत्ता भी नहीं हिलता तो ईश्वर जरूर उस बदमाश और लालची किसान की करतूतों को भी अदृश्य और अमूक होकर देखता होगा जो अपने लौकी के खेत में बैठा लौकियों में औक्सीटोसिन के इंजेक्शन ठोंकता है, ताकि वह जल्दी से बड़ी होकर उसको खूब सारा मुनाफा दे सकें. या उस दूधिये को भी ईश्वर देखता होगा जो शुद्ध दूध की जगह पेंट और यूरिया से सिंथेटिक दूध बना कर अपने ग्राहकों को बेचता है. मुनाफा कमाने के लिए ये लोग कितने मासूम और निर्दोष लोगों की जिन्दगी में बीमारी के बीज बो रहे हैं, यह देख कर भी अगर ईश्वर सामने आकर उन्हें नहीं रोकता तो फिर काहे का ईश्वर? या फिर यह मानें कि वह किसान या दूधिया जो गलत कार्य कर रहे हैं, उसमें ईश्वर की मर्जी समाहित है क्योंकि उसकी रजा के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता!

तर्क की कसौटी पर कसें तो क्या ईश्वर के सर्वव्यापी होने जैसी बातें गले से उतरती हैं? अगर ईश्वर सर्वव्यापी होता या ईश्वर की इच्छा से ही सारे कार्य होते तो इस दुनिया में कोई भी गलत काम हो ही नहीं सकता था. मगर अच्छे कार्यों से कहीं ज्यादा इस दुनिया में गलत कार्य ही हो रहे हैं. तो क्या यह माना जाए कि बलात्कारियों, लुटेरों, डकैतों, हत्यारों, घूसखोरों, भ्रष्टों को ईश्वर का वरदहस्त प्राप्त है. वह ईश्वर की मर्जी से ही सारे घिनौने कार्य कर रहे हैं?

ईश्वर या धर्म से जुड़ी तमाम बातें तर्क के तराजू पर बहुत हल्की पड़ जाती हैं. आखिर हम क्यों ऐसी बातों के पीछे अपना सर्वस्त्र दिये दे रहे हैं? हर बच्चा जन्म से नास्तिक होता है. धर्म, ईश्वर और आस्तिकता से उसका परिचय इस दुनिया में आने के बाद कराया जाता है, इसी दुनिया के लोगों द्वारा. कल्पना कीजिए कि कोई बच्चा ऐसी जगह पैदा हो जहां धर्म और ईश्वर का प्रलाप न हो, तो वह बच्चा आजीवन नास्तिक ही रहेगा. वह अपने कार्यों के होने के लिए किसी अनदेखी शक्ति के भरोसे नहीं बैठा रहेगा, बल्कि अपने श्रम से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करेगा. वह जीवन में सफल होगा या असफल, इसका दोष वह किसी और को नहीं देगा, बल्कि इसका जिम्मेदार वह स्वयं होगा. नास्तिकता उसे मजबूती देगी, डर से मुक्त रखेगी, शंकाओं और आशंकाओं को उसके पास फटकने भी न देगी.

आस्तिक लोगों की तुलना में नास्तिक व्यक्ति जीवन में ज्यादा सफल होते हैं. दुनिया के जितने भी महान वैज्ञानिक और दार्शनिक हुए हैं, उनमें से एकाध को छोड़ दें तो बाकी सभी आजीवन नास्तिक ही रहे हैं. जहां तर्क, विवेक, विचार, मौलिकता और वैज्ञानिकता है वहां नास्तिकता ही होगी.  नास्तिक व्यक्ति खुद में पूरी मजबूती और आस्था रखता है. वह किसी दूसरे के भरोसे कभी नहीं रहता. मेरी नजर में नास्तिक व्यक्ति ही जीवन को पूर्णता में जी पाते हैं. आस्तिक व्यक्ति जहां हर पल डर-डर कर जीता है, वहीं नास्तिक व्यक्ति डर से कोसों दूर रहता है. यही नहीं नास्तिक होने के और भी कई फायदे हैं.

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भय-मुक्त जीवन

मैंने पहले ही कहा कि नास्तिक व्यक्ति के जीवन में डर का कोई स्थान नहीं होता. कोई उसे ईश्वर, अल्लाह या गॉड का नाम लेकर डरा नहीं सकता. उसके मन में कभी यह भय पनप नहीं सकता कि मैंने अमुक काम नहीं किया तो ईश्वर मुझे दंडित करेगा. आस्तिक लोग सदा ही भय में घिरे रहते हैं. बचपन से यह भय उनके दिल में उनके आस्तिक माता-पिता, दोस्त-रिश्तेदारों, गुरुओं द्वारा बैठाया जाता है. हाय! आज मैंने मन्दिर में मत्था नहीं टेका, आज जरूर मेरे साथ कुछ बुरा होगा. हाय! आज मेरी सुबह की नमाज छूट गयी, अल्लाह मुझे दोजख में सौ कोड़ों की सजा देगा. जबकि नास्तिक व्यक्ति इस तरह के किसी भी डर से हमेशा मुक्त रहता है. तो नास्तिक होने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप दबंग और निडर हो जाते हैं.

अंधविश्वास से मुक्ति

अगर आप नास्तिक हैं तो आपका रास्ता अगर बिल्ली काट जाए तो आपको कोई फर्क नहीं पड़ता. आप आराम से खरामा-खरामा चले जाते हैं. आस्तिक आदमी डर कर रुक जाता है. हनुमान चालीसा का पाठ करता है. फिर इंतजार करता है कि कोई दूसरा व्यक्ति पहले उस रास्ते से गुजर जाए फिर वह निकले. उसके बाद भी अनहोनी की कल्पना उसका कलेजा कंपाए रखती है.

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घर से बाहर निकलते वक्त कोई छींक दे, तो राम, राम! क्या अशुभ हो गया. अब तो बनता काम भी बिगड़ जाएगा. घर से निकलते वक्त घरवाली खाली बर्तन लेकर सामने प्रकट हो जाए तो आशंका और बलवती हो जाती है. आज तो पक्का कुछ अशुभ होने वाला है. घरवाली को दो-चार उलटी बातें बोल कर उसका भी मूड बिगाड़ दें. बाहर निकले और कोई काना आदमी सामने पड़ जाए तो आस्तिक व्यक्ति उलटे पांव वापस लौट आता है कि अब तो कोई काम बनेगा ही नहीं. मगर नास्तिक आदमी को इन बातों की कोई फिक्र नहीं होती. वह इन बातों की ओर ध्यान भी नहीं देता. डर और आशंका तो उसे छूकर भी नहीं जाती. वह तो आराम से अपने तय कार्यक्रम के अनुसार अपने काम पर निकलता है और काम करके लौट आता है.

अपने श्रम पर विश्वास

नास्तिक होने का फायदा यह है कि व्यक्ति अपने बाहुबल, ज्ञान और क्षमता पर विश्वास करता है. खुद पर विश्वास करके वह धन और मान-सम्मान कमाता है, न कि धन प्राप्त करने के लिए उसे किसी लक्ष्मी, कुबेर, अल्लाह या गॉड से मदद की दरकार होती है. आस्तिक व्यक्ति को यदि उसकी इच्छानुसार धन प्राप्त नहीं हो पाता तो वह इसका दोष भी ईश्वर पर ही मढ़ देता है, अपनी कमजोरी की ओर उसका ध्यान कभी नहीं जाता. जबकि नास्तिक व्यक्ति नाकाम होने पर अपनी कमी और कमजोरी का विश्लेषण करता है और अगली बार इस कमी को दूर करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है.

पैसे की बचत

आस्तिक व्यक्ति अपनी कमाई का चौथाई हिस्सा जागरण, हवन, यज्ञ, पूजापाठ, कीर्तन, मजार इत्यादि पर खर्च कर देता है. आस्तिक आदमी इक्कीस रुपये से लेकर हजारों रुपयों तक का प्रसाद मन्दिरों-मजारों पर चढ़ा देते हैं, मगर किसी गरीब के बच्चे के मुंह में दो निवाले नहीं डालते. अनिष्ट के डर से शनि देव पर मनो लीटर सरसों का तेल चढ़ा देते हैं, मगर किसी गरीब के झोंपड़े में दिया जलाने नहीं जाते. हजारों रुपयों की चादरें खरीद कर मजार पर चढ़ाते हैं पर सड़क किनारे पड़े ठंड से कंपकपाते भिखारी के तन पर एक पुराना कपड़ा भी नहीं डालते. क्या उन्हें यह नहीं पता कि उन्होंने मजार पर जो मंहगी चादर चढ़ायी है, उनके वहां से बाहर निकलते ही मजार के कर्ताधर्ता वह चादर उतार कर वापस बाहर लगी दुकान पर बेच देते हैं. सब पता है मगर फिर भी चढ़ाए जाते हैं. मन्दिरों में कितना दूध चढ़ता है और नालियों में बह जाता है. कितना फल चढ़ाया जाता है. कितना पैसा बर्बाद होता है इसमें. यह पैसा अगर किसी गरीब के बच्चे की परवरिश के लिए दान दे दिया जाए तो शायद इस देश में कोई गरीब न रहे. भारत के मन्दिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों, गिरिजाघरों में जितना पैसा, सोना और बहुमूल्य वस्तुएं बंद है, वह इस देश की गरीबी मिटाने के लिए पर्याप्त हैं, पर शायद आस्तिकों का ईश्वर नहीं चाहता कि गरीबों का भला हो.

नास्तिक व्यक्ति न तो मन्दिरों-मजारों पर जाता है और न इस तरह का कोई खर्च करता है. यह उसके लिए एक्स्ट्रा बचत है. यह बचत वह अच्छे कार्य में लगा सकता है, इससे किसी की भलाई कर सकता है, अथवा बैंक में जमा करके धनवान बन सकता है.

उपवास के दिखावे से मुक्त

नास्तिक व्यक्ति के सामने व्रत, उपवास या रोजे रखने की मजबूरी नहीं होती. उसे दिन भर भूखा रह कर शाम को खाने पर टूट पड़ने की जरूरत भी नहीं है. न ही वह फल, दूध और मेवे खाकर उपवास रखने का ढोंग करता है. वह ढोंग और दिखावे से बिल्कुल दूर रहता है.

इसके विपरीत आस्तिक व्यक्ति व्रत-उपवास के चलते दुनिया भर के दिखावे करता है. व्रत के नाम पर मंहगे फल, मिठाइयां, मेवे खाता है. मुसलमान रोजे रखते हैं और शाम के वक्त उनकी इफ्तारी का खाना किसी दावत के खाने से कम नहीं होता है. आजकल तो बकायदा इफ्तार पार्टियां होती हैं. खूब पैसा खर्च किया जाता है, मगर किसी भूखे के लिए दो वक्त का खाना किसी की रसोई से नहीं निकलता.

पुनर्जन्म की सोच से मुक्ति

नास्तिक व्यक्ति पुनर्जन्म की अवधारणा में विश्वास नहीं करता. लिहाजा वह इस डर से मुक्त रहता है कि पता नहीं उसके इस जन्म के कर्म के कारण उसका अगला जन्म किस योनि में हो जाए. इसके साथ ही नास्तिक व्यक्ति श्राद्ध आदि कर्मकांडों से भी दूर रहता है और उसे धूर्त और लालची पंडों की जेबें नहीं भरनी पड़तीं. जबकि आस्तिक आदमी हर साल पितृ विसर्जन के नाम पर श्राद्ध और तर्पण में कितना पैसा इन पंडों की भेंट चढ़ा देता है. पूर्वजों को खुश करने के लिए वह सब कुछ करता जाता है जो करने के लिए पंडे उससे कहते हैं. मन में डर बना रहता है कि न किया तो पता नहीं पुनर्जन्म में क्या-क्या कष्ट भोगने पड़ें.

भूत-प्रेत-साये का डर नहीं

नास्तिक आदमी को भूत-प्रेत का भय नहीं होता. वह खुद को ही सबसे बड़ा भूत समझता है और चुनौती देता है कि कोई उस पर भूत छोड़ कर तो दिखाये. उस पर किसी भूत, किसी प्रेत या साये का असर नहीं होता है क्योंकि उसके मुताबिक यह सिर्फ मन का वहम है. नास्तिक व्यक्ति जादू-मंत्र, टोने-टोटके, श्राप, जिन्न, नजर लगना जैसे अंधविश्वासों से पूरी तरह मुक्त होता है. जबकि आस्तिक आदमी जीवन भर इन चीजों से डरा रहता है.

गंदी नदी में स्नान से बचाव

नास्तिक आदमी के सामने अमावस्या, एकादशी, कुम्भ, अर्द्धकुम्भ, छठ जैसे पर्वों में गंदगी से बिजबिजाती नदियों, नालों आदि में नहा कर खुद को बीमारी की ओर ढकेलने की कोई मजबूरी नहीं होती है. वह रोजाना आराम से अपने घर के साफ पानी में स्नान करता है. वहीं आस्तिक आदमी पैसे खर्च करके नदी पर चढ़ाने के लिए पहले प्रसाद खरीदता है, फिर वाहन पर खर्च करके नदी तक पहुंचता है, फिर वहां के गंदे पानी में डुबकियां लगाकर तमाम तरह की बीमारियों के कीटाणु शरीर पर टांक कर लौटता है. समय, ऊर्जा और धन का कितना नुकसान, और कहीं गम्भीर बीमारी की चपेट में आ गये तो स्वास्थ्य भी गया. नास्तिक आदमी इस सबसे बचा रहता है.

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ज्योतिष के जंजाल में नहीं फंसता

नास्तिक व्यक्ति राशिफल, ज्योतिष या बाबाओं आदि के चक्कर में कभी नहीं पड़ता. इन पर धन और समय की बर्बादी से वह सदा बचा रहता है. वह अपने हिसाब से अपने कार्य करता है. दिन-मुहूर्त देख कर कार्य करने की विवशता उसके सामने नहीं होती. वह जब चाहे यात्राएं करता है. उसके आगे यात्रा के लिए मुहूर्त देखने का बंधन नहीं रहता. जबकि आस्तिक आदमी खुद पर भरोसा न करके अखबारों में छपे राशिफल पर भरोसा करते हैं, टीवी चैनलों पर बैठे ज्योतिषियों या बाबाओं की बातों पर भरोसा करके काम करते हैं. बाबा ने कह दिया कि आज का दिन शुभ नहीं है तो वह घर से भी नहीं निकलता, भले इससे कितना बड़ा नुकसान क्यों न हो जाए. ज्योतिषी ने कह दिया कि कुंडली में राहु-केतु-शनि की नजर तुम पर टेढ़ी है तो फिर उस नजर को सीधा करने के लिए ज्योतिषी बाबा जितना मंहगा उपाये बताएं वह आंख मूंद कर करता जाता है.

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