साल 1987 की बात है. सीकर के देवराला में रूपकंवर नाम की लड़की के पति मालसिंह की मौत हो गई थी. उस की चिता पर राजपूत समाज के लोगों ने मासूम रूपकंवर को बैठा कर जिंदा जला दिया था. उस समय राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबसिंह शेखावत भी राजपूत समाज से थे और उन्होंने बयान दिया था कि मामला धार्मिक है, इसलिए हस्तक्षेप करना उचित नहीं है.

जबकि कानून के मुताबिक मामला धारा 306 का था. बाकायदा गायत्री मंत्र पढ़े गए और पंडितों ने पुष्टि की थी कि रूपकंवर के अंदर ‘सत’ है और वह सती होने के योग्य है. कल्याणसिंह कालवी सहित देशभर के तमाम राजपूत नेता व तकरीबन 5 लाख के करीब लोग देवराला चुनरी की रस्म में पहुंचे और 30 लाख का चंदा इकट्ठा कर के मंदिरनिर्माण शुरू कर दिया.

आज राजपूत समाज के झंडाबरदार सती व जौहर के नाम पर राजस्थान के शिक्षामंत्री को गालियां दे रहे हैं. ये वे ही लोग हैं जो जौहर व सतीप्रथा को अपना गौरवशाली इतिहास बताते हैं. ये वे ही लोग हैं जो 2 दिन पहले सतीप्रथा पर रोक लगवाने में अंगरेजों के मददगार रहे ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति टूटने पर रोनाधोना मचाए हुए थे.

जब साल 1829 में विलियम बेंटिक ने सतीप्रथा पर रोक लगाई थी, तब भी इन का स्वाभिमान हिलोरे मार रहा था, मगर अंगरेजी हुकूमत के आगे इन की एक न चली थी.

इसी तरह साल 1303 में अलाउद्दीन खिलजी से हार के बाद चित्तौड़ के किले में एकसाथ 16 हजार रानियों के जौहर जैसी घटना को स्वाभिमान के साथ जोड़ कर अपना सीना चौड़ा करते हुए घूमते हैं.

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