भाजपा नेता दयाशंकर सिंह द्वारा मायावती के खिलाफ कहे अपशब्दों का बदला बसपा के लोगों ने दयाशंकर के घर की महिलाओं को गाली देकर लिया. कबिलाई समाज में ऐसा होता रहा है. कई बार महिलाओं के साथ र्दुव्यवहार का बदला महिलाओं के साथ र्दुव्यवहार करके लेते देखा जाता रहा है. रामायण से लेकर महाभारत तक में ऐसे तमाम उदाहरण मिलते हैं.

रावण ने बहन सूपर्णखां के अपमान का बदला लेने के लिये सीता का अपहरण किया. बसपा यानि बहुजन समाज पार्टी तो हमेशा मनुवाद का विरोध करती रही है. रामायण और महाभारत की कहानियों से उसका कोई लेना देना नहीं है. इसके बाद भी बसपा ने कबिलाई संस्कृति पर चलते हुये अपनी नेता मायावती के अपमान का बदला लेने के लिये जिस तरह से दयाशंकर के घर की बहन बेटियों का खुलेआम मंच से गाली दी, वह कुत्सित मानसिकता की निशानी है.

शिक्षा और सभ्य समाज भी पुरुषवादी कुत्सित मानसिकता को दूर नहीं कर पाई है. बसपा छ साल पहले भी इस तरह की मानसिकता का परिचय दे चुकी है. उस समय एक अखबार के मालिक को गालियां देते उससे अपने घर की मां बहनों को पेश करने का नारा लगाया गया था. दो पुरुषों की लड़ाई में महिला को गाली क्यों दी जाती है? यह समझ में आने वाली बात नहीं है. बसपा ने जो किया यह पुरुषवादी कुत्सित मानसिकता की निशानी है. जिसमें दो पुरुषों के बीच लड़ाई होने पर उसके घर की महिला को ही गाली दी जाती है. यह चलन गांव, कबीले और अनपढ़ लोगो का माना जाता था. जहां बात बात पर औरतों के नाम वाली गाली देने का रिवाज था. कई बार तो शादी विवाह में गाये जाने वाले लोकसंगीत में भी इस तरह की गालियों का प्रयोग होता था. सभ्य और शिक्षित समाज से इस तरह की उम्मीद नहीं की जाती है.

बावजूद इसके औरतों को गालियां देने का सिलसिला जारी है. केवल राजनीतिक दलों की ही बात नहीं है. आम दिनों में समाज का बड़ा तबका आपस में ऐसी गालियों का आदान प्रदान करता है. हम बसपा के लोगों की आलोचना कर रहे हैं. यह जरूरी भी है. इससे भी अधिक जरूरी है कि हम अपने जीवन में यह सकंल्प ले कि पुरुषों की लड़ाई में हम औरतों को गाली नहीं देंगे. बसपा नेताओं के खिलाफ दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह भी मुकदमा लिखायेंगी. कानून की नजर में गाली गलत है. वह किसी के खिलाफ भी कयों न दी गई हो? समझने वाली बात यह है कि ऐसे मुकदमों में जल्दी फैसला नहीं आता, जिससे दोषी को सजा नहीं मिलती.

बसपा नेता मायावती कहती हैं ‘दलित समाज के लोग मुझे देवी मानते हैं. अगर कोई उनकी देवी को गलत बोलेगा, तो वो विरोध जरूर करेगे.’ बसपा के कार्यकर्ता बहुत ही अनुशासित तरीके से अपना विरोध कर रहे थे. इसके बाद भी जिस तरह से वह गालियों का प्रयोग कर रहे थे, उससे साफ लगता है कि बसपा का नेतृत्व इस बात से सहमत था. बसपा के प्रदर्शन में पार्टी के सभी बड़ नेता मंच पर मौजूद थे. ऐसे में इस तरह की गालियां किसी सभ्य समाज की निशानी नहीं कही जा सकती. हर दल के नेता और कार्यकता ही नहीं सभी को यह शपथ लेनी चाहिये कि वह औरतों को गाली देकर जलील करने का काम नहीं करेगा.                    

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