फलों के बाग लगाना लोगों का शौक भी होता है और आमदनी का अच्छाखासा जरीया भी साबित होता है. मगर बगैर पूरी जानकारी के बाग लगाना मुनासिब नहीं होता. पूरी पड़ताल कर के वैज्ञानिक तरीके से बाग लगाने में ही ज्यादा भलाई है. उत्पादन और जनसंख्या के हिसाब से हमें केवल 48 ग्राम फल और 136 ग्राम सब्जियां ही प्रति व्यक्ति प्रतिदिन मिल रही?हैं. फलों का उत्पादन देश की जनता की जरूरत के हिसाब से नहीं हो पा रहा?है. उत्पादन बढ़ाने के लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा रकबे में बाग लगाए जाएं और उन स्थानों का सही इस्तेमाल किया जाए, जहां दूसरी खेती नहीं की जा सकती है.

फलों के बाग की योजना : ज्यादातर फलों के पेड़ लंबे समय के लिए होते?हैं. इसलिए बाग इस तरह लगाए जाएं ताकि उन से फायदा मिलता रहे, देखने में अच्छा लगे, देखभाल में कम खर्च हो, पेड़ स्वस्थ रहें और बाग में मौजूद साधनों का पूरा इस्तेमाल हो सके. उद्यान यानी बाग की योजना इस प्रकार की होनी चाहिए कि हर फल वाले पेड़ को फैलने के लिए सही जगह मिल सके व फालतू जगह नहीं रहे और हर पेड़ तक सभी सुविधाएं आसानी से पहुंच सकें.

फलों के उत्पादन के लिए सिंचाई का इंतजाम, मिट्टी व जलवायु वगैरह ठीक होने चाहिए. उद्यान यानी बाग में काम करने के लिए मजदूर व तकनीकी कर्मचारी भी होने चाहिए.

जमीन का चयन : फल उद्यानों यानी फलों के बगीचों के लिए गहरी, दोमट या बलुई दोमट मिट्टी अच्छी रहती है. जमीन में अधिक गहराई तक कोई भी सख्त परत नहीं होनी चाहिए. जमीन में भरपूर मात्रा में खाद होनी चाहिए व जल निकासी का सही इंतजाम होना चाहिए. लवणीय व क्षारीय जमीन में बेर, आंवला, लसोड़ा, खजूर व बेलपत्र आदि फल लगाने चाहिए.

फलदार पौधों का चयन : राजस्थान की जलवायु में खासतौर से आम, पपीता, करौंदा, आंवला, नीबू, अनार, बेल, बेर व लसोड़ा आदि फलों की खेती आसानी से की जा सकती?है. जिन भागों में पाले का ज्यादा असर रहता?है, उन इलाकों में आम, पपीता व अंगूर के बाग नहीं लगाने चाहिए. अधिक गरमी व लू वाले इलाकों में लसोड़ा व बेर के पेड़ लगाने चाहिए. अधिक नमी वाले इलाकों में मौसमी, संतरा व किन्नू के पेड़ लगाने चाहिए.

वायुरोधी पेड़ लगाना : गरम व ठंडी हवाओं और अन्य कुदरती दुश्मनों से रक्षा करने के लिए खेत के चारों ओर देशी आम, जामुन, बेल, शहतूत, खिरनी, देशी आंवला, कैथा, शरीफा, करौंदा, इमली आदि फलों के पेड़ लगाने चाहिए. इन से कुछ आमदनी भी होगी व खेत गरम व सर्द हवाओं से भी बचा रहेगा. अगर बाग का इलाका कम हो तो केवल उत्तर व पश्चिम दिशा में 1 या 2 लाइनों में इन वृक्षों को लगा सकते?हैं. ध्यान रहे कि इन पेड़ों की जड़ें बाग में घुस कर पोषक तत्त्वों का इस्तेमाल करने लग जाती हैं, जिस का तनीजा यह होता है कि उद्यान की उपज में कमी आने लगती है. इस से बचने के लिए उद्यान व बाड़ के बीच में 3 साल में 1 बार 3 फुट गहरी खाई खोद कर जड़ों को काट देना चाहिए.

सिंचाई : बगीचा लगाने से पहले सिंचाई कैसे होगी, इस पर ध्यान देना जरूरी है. पानी की कमी वाले इलाकों में बूंदबूंद सिंचाई विधि का इस्तेमाल करना चाहिए, जिस से पानी व मेहनत दोनों की बचत होगी और पौधों को जरूरत के हिसाब से पानी मिलने के कारण पैदावार में बढ़ोतरी होगी. सिंचाई की नालियां पौधों की कतारों के बीच से निकाल कर दोनों ओर पौधों की जरूरत के हिसाब से थाले बना कर जरूरत के हिसाब से पानी दिया जाना चाहिए. पौधों की कतार में सीधे सिंचाई करने से पौधों में रोग फैलने की संभावना बढ़ जाती है और नाली का पहला पौधा काफी कमजोर हो जाता है. लवणीय व क्षारीय पानी सभी फलों के पेड़ों के लिए सही नहीं होता?है. इन इलाकों में आंवला, बेर, खजूर, कैर, लसोड़ा आदि फलों के पेड़ लगाने चाहिए. पानी के भराव वाले इलाकों में पानी निकास का सही इंतजाम होना चाहिए.

फल के पेड़ों का सही दूरी पर रेखांकन करना ?: उद्यान का रेखांकन करने के लिए सब से पहले खेत के किसी एक किनारे से जरूरी दूरी की आधी दूरी रखते हुए पहली लाइन का रेखांकन करते हैं. इस के बाद हर लाइन के लिए जरूरी दूरी रखते हुए पूरे खेत में दोनों किनारे से इसी विधि द्वारा रेखांकन कर लेते हैं व निशान लगी जगहों पर पौधे रोपते हैं. बगीचों को वर्गाकार विधि से ही लगाना चाहिए, क्योंकि यह सब से आसान तरीका है. इस में सभी प्रकार के काम आसानी से किए जा सकते हैं. पौधे लगाने से 1 महीने पहले (मईजून) गड्ढे खोद कर 20 से 25 दिनों तक गड्ढों को खुला छोड़ देना चाहिए, ताकि तेज धूप से कीटाणु खत्म हो जाएं. गड्ढे खोदते समय ऊपर की आधी उपजाऊ मिट्टी एक तरफ रख देनी चाहिए व आधी मिट्टी दूसरी तरफ डालनी चाहिए.

गड्ढों की भराई : गड्ढों की खुदाई के 1 महीने बाद गड्ढों को गोबर की सड़ी हुई खाद 20 से 25 किलोग्राम, सुपर फास्फेट 250 ग्राम, मिथाइल पैराथियान 4 फीसदी 50 ग्राम, नीम की खली 2 किलोग्राम, क्षारीय जमीन हो तो 250 ग्राम जिप्सम और गड्ढे की मिट्टी डाल कर भर देना चाहिए. मिश्रण में खेत की ऊपरी मिट्टी को मिलाना चाहिए. बरसात शुरू होने से पहले मिश्रण से गड्ढे को खेत की सतह से कुछ ऊंचाई तक दबा कर भर देना चाहिए व काफी मात्रा में पानी डाल देना चाहिए, ताकि गड्ढे की मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाए. पौधों की रोपाई जहां तक मुमकिन हो 2 से 3 बार अच्छी बारिश होने के बाद ही करनी चाहिए.

रोपाई : सरकारी व अच्छी नर्सरी से खरीदे गए पौधों को तैयार गड्ढों में रोप देना चाहिए. रोपाई जुलाईअगस्त में शाम के समय करनी चाहिए. पौधे को रोपने से 2 घंटे पहले लिपटी हुई घास पिंड व पालिथीन थैली को?थोड़े समय के लिए पानी में रख कर उस में भरी हवा को बाहर निकालें जिस से पौधा लगाते समय पिंड की मिट्टी बिखरे नहीं. पौधा लगाने से पहले लिपटी हुई घास व पालीथीन थैली को मिट्टी के पिंड से हलके से हटा देना चाहिए व जड़ों को पूरी तरह बचा कर रखना चाहिए. पौधे पर लगे पैबंद वाले स्थान व शाखा के जुड़ाव वाले बिंदु को जमीन के तल से 25 सेंटीमीटर ऊपर रखना चाहिए. जरूरत हो तो पौधे को सहारा दें ताकि पौधा झुके नहीं. पौधा लगाने के बाद सिंचाई करें व जरूरत के हिसाब से पानी देते रहें. पैबंद के नीचे से निकलने वाली शाखाओं व रोग लगी शाखाओं को हटाते रहें. पौधा सूखने लगे तो उस में हलकी निराई कर के केंचुए की खाद में क्लोरोपाइफास नाम की दवा मिला कर दें व सिंचाई करें. छाछ व चाय का पानी भी छिड़का जा सकता?है. अगर पत्तियों पर किसी प्रकार का कीट दिखाई दे तो रोगोर नाम की दवा का छिड़काव करना चाहिए.

सिंचाई : शुरू के 2 महीने तक पौधों को पानी की ज्यादा जरूरत होती?है. इस समय 2-3 दिनों के अंतर पर पानी देना चाहिए. 2 सिंचाइयों के बीच का समय जगह, मौसम, जमीन, फलों की किस्म, फलन का समय व वहां की जलवायु आदि पर निर्भर करता?है.

* अगर बारिश के मौसम में बारिश होती रहे तो पानी देने की जरूरत नहीं होती?है.

* सर्दी के मौसम में 10 से 15 दिनों के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए.

* पाला पड़ने की संभावना हो तो फसलों में ज्यादा पानी देना चाहिए.

* गरमी के मौसम में 7 से 10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए.

जलनिकास : बाग को उस की जरूरत से कम पानी देने से पेड़ों की बढ़वार कम होती है, जबकि जरूरत से अधिक पानी देने से भी नुकसान होता है.

पानी की अधिक मात्रा देने से जमीन पर पानी भर जाता?है और पेड़ों के खाद्य पदार्थ जमीन की निचली सतहों में चले जाते हैं. फलों में पानी की अधिक मात्रा होने के कारण मिठास कम हो जाती है व स्वाद खराब हो जाता?है. इसलिए ज्यादा पानी को तुरंत खेत से निकाल देना चाहिए. उद्यान क्षेत्र का जलस्तर 2 से 3 मीटर नीचे रहना चाहिए.

सधाई और कटाई : पौधों में शुरू से ही सधाई कर के जमीन से तकरीबन 5 से 6 फुट तक सीधा खड़ा करने के बाद चारों दिशाओं में फैलाना चाहिए. पौधे का बीच का हिस्सा हमेशा खुला रखना चाहिए. बाद में खराब शाखाओं को काट कर निकाल देना चाहिए.

* बेर के पौधे में गरमी के मौसम (मई) में जब पौधा पूरी तरह सोई हुई अवस्था में हो तब 1 साल पुरानी बढ़वार का अगला चौथाई भाग काट देना चाहिए.

* अंगूर के पौधों में 10 से 15 जनवरी के आसपास कटाई करनी चाहिए. इस में किस्म के अनुसार बीते  साल की बढ़वार में

4-12 कलिकाओं को छोड़ कर कटाई करनी चाहिए.

* आम, नीबू, अमरूद, चीकू, अनार, आंवला आदि के पेड़ों में कभी भी ज्यादा कटाई नहीं करनी चाहिए. जरूरत होने पर रोग लगी व सूखी शाखाओं को निकाल देना चाहिए.

* पपीते के पौधे में कांटछांट की जरूरत नहीं होती है.

कीटों व बीमारियों से रक्षा : पेड़ों को तमाम कीटों व बीमारियों नुकसान होता?है, इसलिए उन का समय पर सही इलाज करना जरूरी?है.

* कीटों की रोकथाम के लिए रोगोर, मैलाथियान, फास्फोमिडान, हैस्टाथियान वगैरह का छिड़काव 2.0-2.5 मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी में मिला कर 7 दिनों के अंतर पर

2 से 3 बार करना चाहिए.

* कवकों से लगने वाली बीमारियों को रोकने के लिए सल्फेक्स, डाइथेन एम

45, रिडोमिल, कुबेर, स्योर, साफ, एट्राक्लोर वगैरह कवकनाशी दवाओं की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.

* तना गलन रोकने के लिए कवकनाशी (कापर आक्सी क्लोराइड, डाइथेन एम 45) दवा जमीन में डालनी चाहिए.

* दीमक की रोकथाम के लिए

25-30 मिलीलीटर क्लोरोपाइफास को 10 लीटर पानी में मिला कर 15 दिनों के अंतर पर 3 बार जड़ के आसपास डालना चाहिए.

खराब मौसम से बचाव : खराब मौसम फलों के पेड़ों को नुकसान पहुंचाता है. कम तापमान से बचाने के लिए बगीचे में जगहजगह पर आग जला कर धुआं करना चाहिए. पाले से पहले सिंचाई कर के, वायुरोधी पट्टियां लगा कर और बाग में बड़े पंखे लगा कर पौधों का बचाव किया जा सकता है. अधिक गरमी से पेड़ों को बचाने के लिए वायुरोधी पट्टियां लगा कर पेड़ों के ऊपर हलका छप्पर लगाने के बाद सिंचाई कर के पेड़ों के मुख्य तनों पर सफेदी करनी चाहिए.

फालतू पेड़ों को निकालना : यदि फलों के पेड़ों को सही दूरी पर नहीं लगाया गया है, तो फालतू पेड़ों को उखाड़ कर सही फासले पर कर देना चाहिए. अगर फल पेड़ों के बीचबीच में कुछ पेड़ मर गए?हों, तो उन की जगह दूसरे पेड़ लगाने चाहिए, ताकि जमीन का पूरा इस्तेमाल हो सके.  

खास फलों की कुछ किस्में

फल    किस्में

आंवला  कृष्णा, कंचन, एनए 7, आनंद 1, बनारसी

अमरूद लखनऊ 49, अर्कामृदुला, इलाहाबादी सफेदा, रेडफ्लेस

नीबू    कागजी, बारहमासी, पंत लाइम, विक्रम, परमलिन

बेर     गोला, सेव, उमरान, मुंडीया

अनार  गणेश, अरक्ता, मृदुला सिंदूरी

आम   दशहरी, दशहरी 51, लंगड़ा, तोतापुरी, केशर, हापूस

पपीता  कुर्गहनीड्यू, पूसा मेजस्टी, पूसा नन्हा, हनीड्यू, पूसा डेलीसीयस, रेडलेडी

करौंदा  देशी

अंगूर   थामसन सीडलैंस, अर्काकश्णा, अर्काश्याम, ब्यूटी सीडलैस, परलेट

खजूर   हलावी, खरदावी, शामरान, बरही

खास फलों के पेड़ों की दूरी व गड्ढों का आकार

फसल  पौधों व कतारों के      गड्ढों का      प्रति हेक्टेयर

       बीच की दूरी (मीटर)    आकार (फुट)   पौधों की संख्या

आंवला  8×8   3×3×3 156

आम   10×10/8×8   3×3×3 100/156

नीबू/मौसमी     5-6×5-6     1.5×1.5×1.5 277

अमरूद 8×8   2.5×2.5×2.5 156

लसोड़ा  10×10 3×3×3 100

करौंदा  4×4   1.5×1.5×1.5 625

अंगूर   3×3   1.5×1.5×1.5 1111

पपीता  3×3   1.5×1.5×1.5 1111

पपीता  2×2   1.5×1.5×1.5 2500

अनार  4×4   1.5×1.5×1.5 625

बेर     6×6   3×3×3 277

– डा. राजू लाल भारद्वाज

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