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सफलता की गारंटी नहीं होते ब्यूटी पेजेंट्स

हौलीवुड की सुपरस्टार ऐक्ट्रैस हेली बेरी सब से ज्यादा कमाई करने वाले सितारों की लिस्ट में कई सालों तक टौप पर रहीं. लेकिन उन के बारे में यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि इस जेम्स बौंड गर्ल को साल 1986 की मिस वर्ल्ड की प्रतियोगिता में 6वां स्थान दे कर एक तरह से अयोग्य घोषित कर दिया गया था. जबकि उस साल की विजेता रही मिस वर्ल्ड जिसेले लारोंडे को त्रिनिदाद टोबैगो की पहली मिस वर्ल्ड होने गौरव मिला.

साल 1986 से अब तक करीब 30 साल से भी ज्यादा गुजर चुके हैं. उस साल की मिस वर्ल्ड जिसेले कहीं गुमनामीभरा जीवन जी रही हैं जबकि हेली बेरी आज भी दुनिया में कामयाब सितारा की हैसियत रखती हैं.

इस तुलना का उद्देश्य किसी खास शख्सियत की असफलता को आंकना या किसी को महिमामंडित करने का नहीं, बल्कि यह बताना भर है कि मिस वर्ल्ड, मिस यूनीवर्स, मिस प्लेनेट, मिस अर्थ, मिस इंडिया, मिस एशिया पैसिफिक, मिस इंडिया वर्ल्ड, मिस इंडिया यूनिवर्स जैसी ब्यूटी पेजेंट्स यानी सौंदर्य प्रतियोगिताओं के विजेता होने का मतलब यह नहीं कि अब आप का कैरियर हवाई स्पीड से आसमान को छू लेगा.

ब्यूटी कौंटैस्ट्स की 90 प्रतिशत विजेता महिलाओं का कैरियर किसी खास मुकाम पर नहीं पहुंच सका है जैसा कि उन के जीतने के समय प्रतीत होता है. भारत में भले ही इन सौंदर्य प्रतियोगिताओं को कामयाबी और शोहरत की गारंटी मानने की गलतफहमी हो लेकिन आंकड़े और असलियत कुछ और ही बयां करते हैं.

रिऐलिटी शो सरीखी है इन की जीत

भारत की ओर से इस साल मिस वर्ल्ड का खिताब जीत कर आईं मानुषी छिल्लर अभी पूरे देश में सितारा बनी हुई हैं. सरकार उन के नाम पर एक के बाद एक इनाम और तोहफों की बारिश कर रही है. निजी कंपनियां कई मौडलिंग असाइंमैंट देने के लिए बेताब हैं और फिल्म इंडस्ट्री  कतार में खड़ी है कि वह मानुषी को फिल्मों में लौंच कर के ही दम लेगी.

लेकिन क्या इतना सबकुछ होने के बावजूद इस बात की गारंटी है कि मानुषी छिल्लर अपनी मौजूदा जीत की कामयाबी और सितारा कद को बरकरार रख पाएंगी? बिलकुल नहीं. ज्यादातर मामलों में तो ऐसा ही देखा गया है. दुनियाभर में जितने भी ब्यूटी पीजेंट हुए हैं उन में ज्यादातर की विजेता बहुत जल्दी ही कामयाबी की लाइमलाइट से बाहर हो गईं जबकि अन्य क्षेत्रों से आई महिलाओं ने ज्यादा नाम व शोहरत कमाई. यह हाल सिर्फ विदेश का ही नहीं, बल्कि भारत समेत दुनिया के हर देश का है.

सच तो यह है कि इन की जीत किसी रिऐलिटी शो सरीखी है जहां बड़े स्तर पर आयोजन होता है. दुनियाभर के दर्शक और जज आप का टैस्ट लेते हैं. जीतने पर एक बड़ी रकम और कुछ दिनों के लिए सुर्खियां मिलती हैं. लेकिन इस के बाद इन विजेताओं का कैरियर किस दिशा में जाता है, इस बात को किस को पड़ी होती है. स्पौंसर्ड कंपनियां, आयोजक और सैटेलाइट चैनल अपना मुनाफा कमा कर चलते बनते हैं और विजेता ग्लैमर व कामयाबी की लाइमलाइट में अंधा हो जाता है. वरना याद कीजिए कितने कौंटैस्ट, रिऐलिटी शोज और टैलेंट कंपीटिशंस के विनर्स अपनी कामयाबी को कायम रख पाए हैं? गिनती के नाम होंगे.

इन टैलेंट शोज की तरह ही मिस वर्ल्ड और मिस यूनीवर्स प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं, बड़ेबड़े सौंदर्य उत्पाद स्पौंसर करते हैं और रंगारंग जलसे में एक देश का प्रतिभागी जीत जाता है. लेकिन उस जीत के बाद उस प्रतिभागी का कैरियर गुमनामी की किस मांद में जा कर दम तोड़ देता है, इस की परवा किसी को नहीं रहती.

कितनी मिस वर्ल्ड व मिस यूनीवर्स कामयाब हैं?

सच को किसी सुबूत की जरूरत नहीं होती. जरा कुछ मिस वर्ल्ड या ब्यूटी पेजेंट्स के कैरियर पर नजर डाल लेते हैं, सब साफ हो जाएगा. अब तक भारत की ओर से कुल 6 महिलाओं ने मिस वर्ल्ड जैसे खिताब अपने नाम किए हैं. वर्ष 1966 में भारत की रीता फारिया पहली मिस वर्ल्ड बनीं. भारत और एशिया की पहली मिस वर्ल्ड होने का गौरव हासिल करने वाली रीता पेशे से डाक्टर हैं. खिताब जीतने के बाद उन से लोगों ने उम्मीदें लगाई थीं कि ये दुनिया में कुछ बड़ा करेंगी लेकिन मैडिकल पेशे को ही अपनाया और शादी कर के आयरलैंड में शिफ्ट हो गईं. बीच के कुछ साल उन्होंने  कुछ ब्यूटी कौंटैस्ट में बतौर जज सक्रियता दिखाई लेकिन आज उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर न के बराबर ही देखा जाता है.

फारिया के बाद लगभग 28 साल बाद 1994 में ऐश्वर्या राय ने मिस वर्ल्ड का खिताब जीता. यह वही साल था जब सुष्मिता सेन भी मिस यूनीवर्स बन दुनियाभर में सुर्खियां बटोर रही थीं. लेकिन उस के बाद क्या हुआ. दोनों ने बौलीवुड में कैरियर आजमाया. सुष्मिता सेन का कैरियर कुछ फिल्में करने के बाद खत्म हो गया और अब वे इक्कादुक्का ब्यूटी इवैंट्स में शिरकत करती दिखती हैं जबकि ऐश्वर्या राय बच्चन आज भले ही नामी हस्ती बन गई हैं लेकिन प्रतियोगिता जीतने के बाद उन्हें अचानक से कोई कामयाबी नहीं मिली थी. खिताब जीतने के बाद कई सालों तक वे रीजनल फिल्मों यानी तमिल और तेलुगु में संघर्ष करती रहीं, फिर जा कर उन्हें हिंदी फिल्मों में काम मिला. बौलीवुड में सितारा हैसियत हासिल करने में उन्हें कई साल लग गए. जाहिर है इस में उन की अपनी मेहनत ज्यादा थी, खिताब जीतने की भूमिका कम.

ऐश्वर्या के बाद डायना हेडन ने 1997 में फेमिना मिस इंडिया वर्ल्ड का ताज जीता, और फिर एक ही साल में मिस वर्ल्ड का ताज जीता. ऐसा कर के, वे 1966 व 1994 में रीता फारिया और ऐश्वर्या राय के बाद, मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता जीतने वाली तीसरी भारतीय बनीं. लेकिन जितनी तेजी से डायना ने कामयाबी हासिल की, उतनी ही तेजी से कैरियर के मोरचे पर वे औंधेमुंह गिर गईं. फ्लौप फिल्म ‘अब बस’, ‘ओथेलो’ के फिल्मी संस्करण, ‘तहजीब’, ‘बिग बौस’ के बाद वे फिल्म इंडस्ट्री से गायब हो गईं. फिल्म ‘अब बस’ (2004) से  जोरदार वापसी करने की कोशिश की थी. यह फिल्म हौलीवुड की सुपरहिट फिल्म ‘इनफ’ का रीमेक थी. पर इस फिल्म के बाद दर्शकों ने डायना को ही ‘अब बस’ कह दिया. इन दिनों वे किसी एनजीओ से  जुड़ी हैं.

डायना के बाद साल 1999 में युक्ता मुखी ने भी मिस वर्ल्ड का खिताब जीता. खिताब ने युक्ता को बौलीवुड मे एंट्री करने का सीधा रास्ता दिखाया. पर उन की फिल्म ‘प्यासा’ बौक्स औफिस पर एक बूंद पानी को तरस गई और कैरियर वहीं खत्म हो गया. न्यूयौर्क के रईस बिजनैसमैन प्रिंस टूली के साथ शादी रचा ली, थोड़े ही समय बाद युक्ता ने अपने पति प्रिंस टूली पर मारपीट करने और अप्राकृतिक यौनसंबंध बनाने का आरोप लगा कर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई है. खैर यह मामला तलाक पर जा कर खत्म हुआ.

वर्ष 2000 में प्रियंका चोपड़ा (मिस वर्ल्ड) और लारा दत्ता (मिस यूनीवर्स) ने इस खुशी को दोहराया. प्रियंका चोपड़ा ने भी कई सालों का संघर्ष और रिजैक्शन झेला और फिल्मी कैरियर बनाया, वरना साल 2000 में ही खिताब जीतते वे स्टार बन जातीं. उन के साथ ही मिस यूनीवर्स रहीं लारा दत्ता ने प्रियंका के साथ ही फिल्म ‘अंदाज’ से कैरियर स्टार्ट किया और वे अब ‘सिंह इज ब्ंिलग’ जैसी फिल्म में सहयोगी भूमिकाएं करने की मजबूर हैं. जाहिर है कैरियर औसत रहा उन का.

अन्य ब्यूटी पेजेंट्स भी ढाक के तीन पात

मिस वर्ल्ड खिताबों से परे अन्य ब्यूटी पेजेंट्स की बात करें तो यहां भी बहुत कम सुंदरियां हैं जिन्होंने अपने कैरियर में कुछ उल्लेखनीय किया, वरना सब खिताब के जीत के बोझ तले दब गईं. अभिनेत्री सेलिना जेटली को देख लीजिए, साल 2001 में फेमिना मिस इंडिया यूनिवर्स चुनी गईं, उस के बाद फिल्मों में ‘जानशीन’ से डैब्यू किया और कुछेक फिल्मों के बाद घरगृहस्थी संभालने को मजबूर हैं. मिस इंडिया वर्ल्ड 2010 मनस्वी मामगई,  मिस इंडिया इंटरनैशनल नेहा हिंगे का नाम भी अब कहां सुनने को मिलता है. साल 2000 में दीया मिर्जा  फेमिना मिस इंडिया में मिस एशिया पैसिफिक बनीं. उस के बाद वे मिस एशिया पैसिफिक भी चुनीं गईं. बाकी की कहानी सब को पता है.

फिल्म, राजनीति और विवाद भी काम न आए

गुल पनाग ने 1999 में मिस इंडिया का खिताब जीता और मिस यूनिवर्स में वे टौप टैन में आईं. बाद में मिस इंडिया गुल पनाग ने ‘मनोरमा सिक्स फीट अंडर’, ‘हैलो’, ‘धूप’ जैसी फिल्मों में काम किया. कहानी वही पुरानी. फिल्मों से राजनीति में आईं. आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ीं और एक अन्य अभिनेत्री किरण खेर से जा भिड़ीं. लेकिन असफलता ही हाथ लगी उन के. फिलहाल शौर्ट फिल्में कर कैरियर की गाड़ी किसी तरह खींच रही हैं.

गुल पनाग की तरह पूर्व मिस इंडिया नफीसा अली ने भी 2005 में दक्षिण कोलकाता से चुनाव लड़ा. लेकिन वे हार गईं. उन्होंने फिर 2009 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने की घोषणा की. लेकिन इस के बाद वे फिर से कांग्रेस पार्टी से जुड़ गईं और सोनिया गांधी से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए माफी भी मांगी.

नफीसा अली ने कई बौलीवुड फिल्मों में काम किया. लेकिन कभी पहली कतार की सफल अभिनेत्रियों में उन का नाम नहीं आया.

मधु सप्रे ने 1992 में मिस यूनिवर्स कौंटैस्ट में भारत का प्रतिनिधित्व किया. इस प्रतियोगिता में वे तीसरे स्थान पर रहीं. एक समय मौडलिंग जगत में उन के खूब चर्चे हुए थे एक विवादास्पद विज्ञापन में मिलिंद सोमन के साथ नग्न फोटोशूट को ले कर. फिलहाल, असफल कैरियर के साथ मधु सप्रे इटली में रह रही हैं और कभीकभी रैंप पर भी दिख जाती हैं.

मनप्रीत बरार ने 1995 में मिस इंडिया का खिताब जीता. मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में वे दूसरे स्थान पर रहीं. मेहर जेसिया ने 1986 में मिस इंडिया का खिताब जीता. उन्होंने फिल्म अभिनेता अर्जुन रामपाल से शादी की. इन का कैरियर भी मौडलिंग जगत तक सीमित रहा.

कई बार असफलता से भी ज्यादा बुरा हश्र हुआ है ब्यूटी पेजेंट्स का. मसलन, नफीसा जोसफ ने 12 साल की उम्र में मौडलिंग की दुनिया में कदम रखा और मिस इंडिया के मुकाम तक पहुंचीं. 2007 में मुंबई के अपने मकान में शादी टूटने की वजह से उन्होंने आत्महत्या कर ली.

2002 में मिस इंडिया चुनी गईं नेहा धूपिया, 2003 में मिस इंडिया का खिताब जीतीं. निकिता आनंद 2008 में मिस इंडिया वर्ल्ड चुनी गईं. पार्वथी ओमनाकुट्टन नायर 15 साल की उम्र में मिस इंडिया यूनिवर्स (1965) चुनी गईं. इन सब ने मौडलिंग व फिल्मी क्षेत्र में हाथ आजमाए लेकिन असफल रहीं. 2004 में फेमिना मिस इंडिया चुनी गईं सयाली भगत, 2004 में मिस इंडिया कौंटैस्ट जीत चुकीं तनुश्री दत्ता का भी ऐसा ही हश्र हुआ.

ग्लैमर बनाम संघर्ष और मेहनत

ऐसा नहीं है कि ब्यूटी पेजेंट्स में भाग लेने और जीतने वाली प्रतिभाशाली नहीं होतीं, इसीलिए कैरियर के मोरचे पर उतनी कामयाब नहीं हो पातीं. दरअसल, हर कामयाब इंसान के पीछे उस का संघर्ष, रिजैक्शन, धैर्य और सूझबूझ का हाथ होता है. जो इन सब से गुजर कर मंजता है वह ही कामयाबी की लंबी पारी खेलता है.

लेकिन इन ब्यूटी पेजेंट्स में किसी भी प्रतियोगी विजेता को रातोंरात इतना बड़ा स्टार बना दिया जाता है कि उसे संघर्ष की अहमियत ही समझ नहीं आती. घर बैठे ही ढेरों औफर्स की लाइन लग जाती है और कम समय में बिना किसी मेहनत व संघर्ष से जब काम आता है तो सहीगलत का चुनाव करने की सोच मंद पड़ जाती है. यही कुछ शुरुआती गलत फैसले स्टारडम की शुरुआती झलक दिखा कर इन्हें असफलता की राह पर ढकेल देते हैं. इसीलिए कई मौडल और ऐक्ट्रैस ने ब्यूटी खिताब तो खूब जीती होती हैं लेकिन अपनी जीत को वे कामयाब कैरियर में तबदील करने में पूरी तरह से चूक जाती हैं.

बहुत कम होती हैं जो प्रियंका चोपड़ा, ऐश्वर्या राय या हेली बेरी की तरह लंबा संघर्ष कर सफलता हासिल करती हैं. ज्यादातर खिताबी ग्लैमर और स्टारडम के नशे में चूर हो कर संघर्ष और रिजैक्शन का सामना नहीं कर पातीं और नतीजतन, आरंभिक चमकदमक के बाद की उन की जिंदगी अपेक्षाकृत गुमनामी या असफलता की डगर में गुजरती है. आने वाली पीढ़ी और लड़कियों को सलाह है कि जो ऐसे दावे करते हैं कि एक बार ब्यूटी प्रतियोगिता जीत गए तो आप का कैरियर सैट हो जाएगा, उन की न सुनें. हर प्रतियोगिता में भाग लें और जीतें लेकिन कामयाबी के मूलभूत सिद्धांतों को अनदेखा न करें.

कैसे होता है चयन

मिस इंडिया प्रतियोगिता विश्व सौंदर्य प्रतियोगिता में शिरकत करने वाली भारतीय सुंदरियों का चयन करती है. इस प्रतियोगिता से 3 सुंदरियों को चुना जाता है जो मिस वर्ल्ड, मिस इंटरनैशनल और मिस अर्थ में भारत का प्रतिनिधित्व करती हैं. शुरूशुरू में इस तरह का कोई नियम नहीं था कि मिस इंडिया एक ही साल में मिस यूनिवर्स और मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकती. लेकिन बाद में जब फेमिना ने मिस इंडिया चुनने का जिम्मा संभाला तो इस में तबदीली की गई. अब इस प्रतियोगिता के विनर को मिस यूनिवर्स और रनरअप को मिस वर्ल्ड कौंटैस्ट में भेजा जाने लगा.

रोचक तथ्य

1995 से मिस इंडिया प्रतियोगिता में एक विनर चुनने का रिवाज समाप्त हो गया. यहां से 3 विनर चुनने की प्रथा शुरू हुई. अब तीनों ही विनर को बराबर की प्राइज मनी और ईनाम मिलते हैं. और इन्हें मिस इंडिया वर्ल्ड, मिस इंडिया यूनिवर्स और मिस इंडिया अर्थ का नाम दिया जाता है.

मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में इंदरानी रहमान भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली महिला थीं. भारत ने पहली बार 1953 में मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में शिरकत की.

मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में भारत ने पहली बार 1959 में भाग लिया. फ्लेयूर इजेकियल मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में शिरकत करने वाली पहली भारतीय थीं.

अब तक भारत ने दुनिया को सर्वाधिक मिस वर्ल्ड दिए हैं. इस मामले में भारत वेनेजुएला की बराबरी पर है. भारतीय सुंदरियों ने 1966, 1994, 1997, 1999 और 2000 व 2017 में मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता जीती है.

भारत की ओर से मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता के लिए 1963, 1964, 1965 और 1967 में किसी प्रतियोगी को नहीं भेजा गया.

दिसंबर 2009 में दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग में संपन्न हुए मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में प्रियंका चोपड़ा जज के रूप में शामिल हुईं.

प्रेमपत्र सी तुम

पीपल के पत्ते पर

मोरपंख की कलम से लिखे

प्रेमपत्र सी तुम

प्रेम की पहली पाती सी

सुकुमार रूमानियत में

डूबी लगती हो आज भी

अक्षरअक्षर तुम्हें पढ़ता

हरसिंगार के फूलों सा

झरता रहता हूं मैं

पढ़ता हूं तो रहस्यमयी सा

पाता हूं तुम्हें

नित नई सी लगती हो तुम

रोमांचित होता हूं उतना

जितना पहली बार

पढ़ते हुए हुआ था

तभी सहेज रखा है

धड़कनों के साथ सीने में

अधखुली चिट्ठी सा तुम्हें.

– विनीता राहुरिकर

इसराईल विवाद-1 : ट्रंप का येरूशलम को राजधानी मानना

येरूशलम को इसराईल की राजधानी का दरजा देने की अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा से विश्व राजनीति में तूफान आ गया है. यह अमेरिका की कूटनीतिक रणनीति के बदलाव का संकेत है और अमेरिका दुनिया का पहला देश बना जो आधिकारिक रूप से येरूशलम को इसराईल की राजधानी के रूप में मान्यता दे रहा है.

इतिहास में येरूशलम को यहूदियों की राजधानी होने के प्रमाण उपलब्ध हैं. ट्रंप ने अमेरिका के दूतावास को तेलअवीव से येरूशलम में शिफ्ट करने की भी घोषणा तो कर दी है लेकिन, यह इतना भी आसान काम नहीं है. अमेरिका की विदेश नीति का यह बदलाव मिडिल ईस्ट (खाड़ी देशों) के शक्ति संतुलन को बिगाड़ कर हिंसा भड़काने का कारण बन सकता है. अरब देश इस फैसले का उग्र विरोध कर रहे हैं.

महत्त्वपूर्ण बात यह है कि येरूशलम को इसराईल और फिलिस्तीन दोनों ही अत्यंत पवित्र मानते हैं. येरूशलम की भूमि को 3 धर्मों ईसाई, यहूदी व इसलाम में पवित्र माना गया है. इसराईल और फिलिस्तीन में लंबे समय से यह संघर्ष का कारण बना हुआ है. दोनों ही इस पर अपना नैसर्गिक अधिकार मानते हैं. इसराईल शुरू से ही इस पर दावा करता रहा है जबकि फिलिस्तीन इसे अपने देश की भविष्य की राजधानी मानता है.

1948 में इसराईल के स्वतंत्र राष्ट्र बनने से अभी तक किसी भी देश ने येरूशलम को इसराईल की राजधानी का दरजा नहीं दिया है. अपने कदम से मध्य एशिया में अमेरिका के समर्थक सऊदी अरब के शाह सलमान और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अलसीसी की चेतावनी को भी डोनाल्ड ट्रंप ने खारिज कर दिया है. इसराईल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इस कदम का दिल खोल कर स्वागत किया है जबकि फिलिस्तीन ने इसे मध्य एशिया में शांति प्रक्रिया खत्म होने का सूचक माना है. गाजा में ट्रंप और इसराईल के विरोध में उग्र हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं.

येरूशलम का इतिहास यहूदियों के संघर्ष, बलिदान और त्याग का रहा है. हिब्रू में येरूशलम को येरूशलाइम और अरबी में अलकुद्स के नाम से जाना जाता है. दुनिया का यह प्राचीन शहर बारबार आक्रमणकारियों का शिकार रहा है. यहीं से 3 धर्मों के उद्गम की मान्यता भी है, इसलिए ईसाई, यहूदी और इसलाम धर्म में इस जगह का विशिष्ट स्थान है. यही संघर्ष का कारण भी है. इस शहर की आत्मा पुराने शहर में दिखती है. संकरी गलियां, ऐतिहासिक स्थापत्य के विलक्षण नमूने इस के 4 भागों को ईसाई, मुसलिम, यहूदी और आर्मेनियन से जोड़ते हैं.

ईसाई धर्म : इसराईल में ईसाई हिस्से में पवित्र सेपुलकर चर्च है जो प्राचीनतम ईसा मसीह की गाथाओं से जुड़ा है कि यहीं ईसा को सूली पर चढ़ाया गया और कहा जाता है कि यहीं ईसा फिर से जीवित हुए.

इसलाम धर्म : मुसलिम हिस्से में गुंबदाकार डोम औफ रौक अथवा कुव्वतुल सखरह और अलअक्सा मसजिद हैं जो मुसलिमों के लिए हरम अलशरीफ यानी पवित्र स्थान है. मान्यता है कि पैगंबर मोहम्मद साहब मक्का से यहां आए और यहीं सभी पैगंबरों से दुआ की और वे यहीं से जन्नत तशरीफ ले गए.

यहूदी धर्म : यहूदी हिस्से में पवित्र दीवार है जहां अतीत में यहूदियों का मंदिर था, जिस की दीवारें आज भी इतिहास की निशानी के रूप में बची हुई हैं. यह यहूदियों की पवित्रतम जगह ‘होली औफ होलीज’ है. यहां लाखों यहूदी आ कर प्रार्थना करते हैं.

अमेरिका के फैसले के कारण

अमेरिका ने अपने इस ऐतिहासिक कदम से इसराईल-यहूदियों के प्रति अपनी पक्की दोस्ती पर फिर से मुहर लगा दी है. इस रणनीतिक फैसले से ट्रंप ने अमेरिका में रह रहे यहूदियों की शक्तिशाली लौबी को संतुष्ट कर दिया है. अमेरिका के विकास में यहूदियों का बड़ा हाथ है और ट्रंप ने उन का समर्थन पा कर अपने देश में अपनी स्थिति मजबूत कर ली है.

येरूशलम शहर पर हजारों सालों से कब्जा करने की जंग लड़ी गई. येरूशलम के लिए धर्मयुद्ध लड़े गए. लेकिन इतिहास और अतीत के अन्याय का प्रतिफल अब इसराईल को प्राप्त हो सकेगा. यह सभ्यताओं के संघर्ष का जीवंत उदाहरण है. ट्रंप के फैसले से द्विराष्ट्र की संभावना खारिज हो गई है जिस के अनुसार, येरूशलम को भविष्य में 2 हिस्सों में बांट कर यहूदियों और फिलिस्तीन के अंतहीन संघर्ष को समाप्त करने का सब से कारगर समाधान समझा जा रहा था. वैसे, ट्रंप ने अविभाजित येरूशलम शब्द का प्रयोग नहीं किया है, इसलिए यह विश्व कूटनीति में ट्रंप की नई चाल साबित होगी.

ट्रंप की घोषणा के माने

येरूशलम को इसराईल की राजधानी मानने की घोषणा कर ट्रंप ने अपने कार्यकाल में इसराईल-फिलिस्तीन समस्या का समाधान करने के स्पष्ट संकेत दे कर, श्रेय लेने की इच्छा व्यक्त कर दी है. इस से फिलिस्तीन की स्थिति और कमजोर हो गई है जबकि इसराईल सशक्त हो गया है. यही कारण है कि अरब राष्ट्र हिंसक हो रहे हैं और इसराईल में जश्न मनाए जा रहे हैं.

विश्व राजनीति में तूफान

ट्रंप के येरूशलम को इसराईल की राजधानी का दरजा देने की घोषणा से पूरी दुनिया में भूचाल आ गया है. फ्रांस, जरमनी, ईरान ट्रंप के इस फैसले का समर्थन नहीं कर रहे हैं. भारत के लिए दुविधा की स्थिति है, सो, उस ने संतुलित प्रतिक्रिया व्यक्त की है.

इस सब से यह स्पष्ट हो जाता है कि इन परिस्थितियों में डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा से विश्व राजनीति और इसराईल को ले कर नए समीकरण बनेंगे और यहूदी फिर से नए संघर्ष में उलझेंगे जो उन का इतिहास रहा है. आइए, यहूदियों के संघर्ष का ऐतिहासिक परिचय लें.

इसराईल निहायत छोटा सा देश है जो पश्चिमी एशिया की विकट भौगोलिक परिस्थितियों, चहुंओर दुश्मनों से घिरे होने के बावजूद संघर्ष में कभी घुटने नहीं टेकता. उस का मूल मंत्र है- ‘हम नहीं कहते कि हमारे ऊपर आतंकी हमला मत करो, लेकिन याद रखो, अगर हमारा एक नागरिक मारा गया तो हम उस देश में घुस कर उस के हजारों नागरिक मार डालेंगे.’

इसराईल की खूबियां

इतिहास में मिसाल बने यहूदी कई माने में अन्य प्रजातियों से अग्रणी हैं. कम संख्या होते हुए भी कड़ी मेहनत, दृढ़निश्चय, ईमानदार प्रयास, उच्च मनोबल, अजेय जज्बा, स्वाभिमान, देशभक्ति में उन को कोई संदेह नहीं है. इसलिए दुनिया के किसी भी कोने में रहने के बावजूद यहूदियों ने वहां अपनी योग्यता के दम पर दबदबा कायम किया है. उन्होंने व्यापार, वाणिज्य, कला, विज्ञान, साहित्य, शिक्षा के उच्च मापदंड स्थापित किए हैं. उन की काबिलीयत और मेहनतकश जीवन हमलावरों के नफरत का कारण बने. जब जिस का वश चला उन को अपनी धरती से बेदखल किया, इसलिए 1948 तक वे दरदर की ठोकरें खाते रहे. अनेक महान वैज्ञानिक यहूदी थे, जैसे आइंस्टाइन, आटोहोन यहूदी थे. यदि हिटलर यहूदियों का संहार नहीं करता तो शायद यहूदी जरमनी से पलायन कर अमेरिका में शरण नहीं लेते. तब परमाणु बम हिटलर के पास होता जो अमेरिका को मिला, जिस से वह दुनिया का नेता बन बैठा.

इसराईल चारों तरफ से दुश्मनों से घिरा है. दांतों के बीच जीभ की तरह उस की सुरक्षा आसान नहीं. बेइंतहा खतरों को झेलते हुए इसराईल का प्रथम उद्देश्य हर कीमत पर अपनी सुरक्षा करने की गारंटी बन गया है.

इसराईल एकमात्र यहूदी राष्ट्र है जो आकार और जनसंख्या में बहुत छोटा है. विकट भौगोलिक परिस्थितियां, संसाधनों की कमी के बावजूद इसराईल ने विकास की मिसालें कायम की हैं. प्राचीन शास्त्रीय भाषा हिबू्र यहां पुनर्जीवित हुई है. यहां महिलाओं को भी अनिवार्यरूप से सैनिकसेवा करनी होती है.

इसराईल का सैटेलाइट सिस्टम अनोखा है जिसे वह गुप्त रखता है. इसलिए कोई भी दुश्मन उस की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखता. सीमित पेयजल के बावजूद इसराईल ने 7 गुना खाद्यान्न की उत्पादन वृद्धि का चमत्कार कर दिखाया है. 20वीं सदी से 21वीं सदी में यहां हरियाली बढ़ी है.

इसराईल की वायुसेना का कोई मुकाबला नहीं. यह संपूर्ण देश ही बैलिस्टिक मिसाइल से लैस है. सो, इसराईल पर अगर दुश्मन रौकेट दागते हैं तो इस का मतलब है उन की मौत निश्चित है. कंप्यूटर के मामले में इसराईल का मुकाबला नहीं है. जन्म के बाद उस ने 7 लड़ाइयां लड़ी हैं. जिन में वह विजयी रहा है. अपनी राष्ट्रीय आय का सब से ज्यादा हिस्सा वह अपनी सुरक्षा पर खर्च करता है.

इसराईल सुरक्षात्मक नीति की जगह आक्रामक नीति पर चलता है. उस का ध्येय है- ‘अगर किसी ने हमारा एक नागरिक मारा तो हम उस के देश में घुस कर उस के हजार नागरिक मार डालेंगे.’ उस के दुश्मनों का संसार के किसी भी कोने में जिंदा रहना संभव नहीं. इसराईल में 90 प्रतिशत घरों में सौर ऊर्जा प्रयोग की जाती है. व्यापारिक मामलों में इसराईल का विश्व में तीसरा स्थान है. वहां 3,000 से ज्यादा हाईटैक कंपनियां हैं. इसराईल का सब से ज्यादा शरणार्थियों को अपने यहां बसाने का रिकौर्ड है. दुनियाभर के यहूदियों को जन्म लेते ही इसराईल की नागरिकता मिल जाती है. फिर उस का मन करे तो वहां बस सकता है.

गुप्तचर संस्था मोसाद

मोसाद के बिना इसराईल की कल्पना भी असंभव है. यह वहां की गुप्तचर संस्था है जो पूरी दुनिया से बेजोड़ है. चूंकि हजारों साल यहूदियों ने अपने अस्तित्व और राष्ट्र के लिए संघर्ष किया, इसलिए इसराईल देश की स्थापना के साथ ही ऐसे संगठन की जरूरत महसूस हुई जो पूरी दुनिया में इसराईल को महफूज रखे. अभी तक मोसाद यहूदियों के मापदंडों पर खरी उतरी है. इतिहास में इस की 13 दिसंबर, 1949 को स्थापना हुई. रोचक तथ्य यह है कि इसराईल के प्रधानमंत्री इसी संगठन से निकले हुए होते हैं.

यह संगठन संपूर्ण विश्व में इसराईल के हितों की रक्षा करता है. उस की तरफ उठने वाली हर आंख को फोड़ देना उस का उद्देश्य है. इस का नामकरण यहूदी पैगंबर मूसा के नाम पर हुआ. साफ है कि यहूदी असंभव से असंभव परिस्थितियों में भी हार मानने वाले नहीं हैं. उन का राष्ट्रवाद पूरे विश्व के लिए अनुकरणीय है. आगामी राजनीतिक परिदृश्य पूरी दुनिया के लिए कुतूहल का विषय होगा. अमेरिका और इसराईल के नए राजनीतिक समीकरण विश्व में क्या गुल खिलाते हैं, यह फिलहाल भविष्य के गर्भ में है.

अगले अंक में : यहूदियों ने सहीं सदियों यातनाएं.

मेरी स्किन बहुत नर्म है, लेकिन सर्दियों में सौफ्ट नहीं रहती. कृपया बताएं कि मैं क्या करूं जो मेरी स्किन हरदम सौफ्ट रहे.

सवाल
वैसे तो मेरी स्किन बहुत नर्म है, लेकिन सर्दियों में सौफ्ट नहीं रहती. कृपया बताएं कि मैं क्या करूं जो मेरी स्किन हरदम सौफ्ट रहे?

जवाब
आप इस मौसम में अपनी स्किन को हरदम सौफ्ट बनाए रखने के लिए पैक लगा सकती हैं. अंडे के पीले भाग में 1 चम्मच औलिव औयल, थोड़ा सा औरेंज जूस, कुछ बूंदें गुलाबजल की और थोड़ा सा लाइम जूस मिक्स कर के चेहरे पर लगाएं. सूखने पर चेहरे को सादे पानी से धो लें. ऐसा करने से त्वचा खिलीखिली नजर आएगी.

मैं एक लड़की के साथ कई बार संबंध बना चुका हूं. कल मैंने उसे एक लड़के के साथ मस्ती करते हुए देखा. मैं क्या करूं.

सवाल
मैं बालिग हूं और जिस लड़की से प्रेम करता हूं वह भी बालिग है. हम हर हदें पार कर चुके हैं. मैं उसे बेइंतहा प्यार करता हूं लेकिन पिछले दिनों मैं ने उसे किसी अन्य युवक के साथ मस्ती करते हुए देखा. यह देख मेरा दिल अंदर से रो पड़ा. और जब मैं ने इस बारे में बात की तो उस ने साफ कहा कि मैं तो सिर्फ तुम्हारे साथ टाइमपास कर रही थी और अब कभी तुम मुझ से बात मत करना. इस बात से मैं बहुत परेशान हूं और आत्महत्या का विचार भी कई बार मन में आता है.

जवाब
प्रेम में धोखा खाया व्यक्ति अकसर आत्महत्या करने के बारे में ही सोचता है. लेकिन ऐसे व्यक्ति कायर होते हैं जो किसी लड़की, वह भी ऐसी जो सिर्फ अपना हित साध रही थी, के लिए अपना जीवन ही खत्म कर लें. इसलिए आप ऐसी गलती भूल कर भी न करें.

पछताने के बजाय यह सोचें कि आप की जिंदगी तबाह होने से बच गई,  वरना शादी होने के बाद आप के साथ क्या होता, यह तो आप भलीभांति समझ गए होंगे. उस की हर याद को मिटाते हुए नए सिरे से अपनी जिंदगी शुरू करें और दोस्तों के साथ समय बिताएं.  आऊटिंग के लिए बाहर घूमने जाएं. अच्छीअच्छी पुस्तकें पढ़ें. इस से बुरी यादों से बाहर निकलने में आसानी होगी.

तो 2018 में चौदह बौलीवुड संतानें बौलीवुड इंडस्ट्री में अपनी किस्मत आजमाएंगी

अनमोल ठाकरिया

अभिनेत्री पूनम ढिल्लों और मशहूर फिल्म निर्माता अशोक ठाकरिया के 25 वर्षीय बेटे अनमोल ठाकरिया भी संजय लीला भंसाली प्रोडक्शन की फिल्म ‘‘ट्यूस्डे एंड फ्रायडे’’ से बौलीवुड में कदम रख रहे हैं. लंदन में पढ़ाई करके वापस लौटे अनमोल ठाकरिया ने शामक डावर से नृत्य का प्रशिक्षण हासिल किया है.

करण देओल

देओल परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य करण देओल भी अब बौलीवुड में कदम रख चुके हैं और उनकी पहली फिल्म ‘‘पल पल दिल के पास’’ 2018 में सिनेमाघरों में पहुंचेगी. जी हां! धर्मेद्र के पोते और सनी देओल के बेटे करण देओल ने भी बौलीवुड में अभिनेता के रूप में कदम रख दिया है. करण देओल की पहली फिल्म ‘‘पल पल दिल के पास’’ का निर्माण व निर्देशन उनके पिता सनी देओल ही कर रहे हैं. फिल्म की अस्सी प्रतिशत शूटिंग पूरी हो चुकी है.

करण कपाड़िया

अभिनेत्री डिंपल कपाड़िया की बहन और अभिनेत्री व कास्ट्यूम डिजाइनिंग के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी स्व. सिंपल कपाड़िया के बेटे करण कपाड़िया भी बौलीवुड में बतौर अभिनेता कदम रख रहे हैं. करण कपाड़िया की एक्शन रोमांचक फिल्म का निर्देशन बेहजाद खंबाटा कर रहे हैं.

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करण कपाड़िया का हौसला आफजाई करने के लिए इस फिल्म में डिंपल कापिड़या व अक्षय कुमार कैमियो करते नजर आएंगे.

मालविका मोहनन

दक्षिण भारत के चर्चित कैमरामैन कु मोहनन की बेटी मालविका मोहनन ने यूं तो 2017 में ही मजीद मजीदी की फिल्म ‘‘बियांड द क्लाउड’’ में ईशान खट्टर की बहन का किरदार निभाकर बौलीवुड में कदम रखा था. यूं तो यह फिल्म नवंबर 2017 में गोवा में संपन्न इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में न सिर्फ प्रदर्शित हुई बल्कि पुरस्कृत भी हुई. मगर प्यार, जिंदगी और रिश्तों की बात करने वाली यह फिल्म 2017 में सिनेमाघरों में रिलीज नहीं हुई, अब यह फिल्म 2018 में सिनेमाघरों में पहुंचने वाली है.

रोहण मेहरा

अभिनेता स्व.विनोद मेहरा के बेटे रोहण मेहरा को निर्माता संजय लीला भंसाली अपने प्रोडक्शन की फिल्म ‘‘बाजार’’ से बौलीवुड में लौंच कर रहे हैं.

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गौरव चोपड़ा निर्देशित इस फिल्म में सैफ अली खान और राधिका आप्टे भी होंगी.

अभिमन्यू दसानी

फिल्म ‘‘मैने प्यार किया’’ फेम अदाकारा भाग्यश्री के बेटे अभिमन्यू दसानी कई फिल्मों में बतौर सहायक निर्देशक काम करने के बाद अब रानी स्क्रूवाला निर्मित व बासन बाला निर्देशित फिल्म ‘‘मर्द को दर्द नहीं होता’’ से बौलीवुड में कदम रख रहे हैं. इस फिल्म की शूटिंग शुरू हो चुकी है. इस फिल्म के लिए खास तौर पर अभिमन्यू दसानी ने टायकोंडो, मिक्स मार्शल आर्ट, चोई क्वांग डो की ट्रेनिंग हासिल की. इस फिल्म में उनकी हीरोईन होंगी मशहूर टीवी स्टार राधिका मदान. राधिका मदान की यह पहली बौलीवुड फिल्म होगी.

दलक्वेर सलमान

दक्षिण भारत व मलयालम फिल्मों के सुपर स्टार ममूटी के बेटे दलक्वेर सलमान अब इरफान खान के साथ रोड ट्रिप वाली फिल्म ‘‘कारवां’’ के साथ बौलीवुड में कदम रखने जा रहे हैं. आकाश खुराना निर्देशित इस फिल्म में कृति खरबंदा भी हैं.

शर्मिन सहगल

संजय लीला भंसाली अब अपनी भांजी और अपनी बहन व फिल्म निर्देशक बेला सहगल की बेटी शर्मिन सहगल को अनाम फिल्म से लांच कर रहे हैं. लौस एंजेल्स से अभिनय की ट्रेनिंग लेकर आयी शर्मिन सहगल ने अपने मामा संजय लीला भंसाली के साथ बतौर सहायक निर्देशक फिल्म ‘‘बाजीराव मस्तानी’’ की थी.

मीजान

मशहूर हास्य अभिनेता जावेद जाफरी के बेटे मीजान को भी संजय लीला भंसाली अपनी भांजी शर्मिन के ही साथ अनाम फिल्म से लांच कर रहे हैं.

उत्कर्ष शर्मा

‘‘गदर’’ फेम मशहूर फिल्म निर्देशक अनिल शर्मा अपने बेटे को बौलीवुड में लौंच करने के लिए साइंस फिक्शन के साथ प्रेम कहानी वाली फिल्म ‘‘जीनियस’’ का निर्माण व निर्देशन कर रहे हैं.

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उत्कर्ष शर्मा ने बाल कलाकार के रूप में फिल्म ‘गदर : एक प्रेम कथा’ में अभिनय किया था.

इशान खट्टर

अभिनेत्री नीलिमा अजीम व अभिनेता राजेश खट्टर के बेटे तथा अभिनेता शाहिद कपूर के सौतेले भाई इशान खट्टर बौलीवुड से जुड़ चुके हैं. ईरानी फिल्मकार मजीद मजीदी निर्देशित तथा मुंबई में फिल्मायी गयी फिल्म ‘‘बियांड द क्लाउड’’ में वह मालविका मोहनान और जी वी शारदा जैसे भारतीय कलाकारों के साथ अभिनय कर चुके हैं.

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यह फिल्म नवंबर 2017 में गोवा में संपन्न इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कृत हो चुकी है. यह फिल्म प्यार, जिंदगी और रिश्तों की बात करती है. अब ईशान खट्टर, श्रीदेवी की बेटी जान्हवी कपूर के साथ करण जोहर निर्मित फिल्म ‘‘धड़क’’ भी कर रहे हैं, जो कि 2016 की मराठी भाषा की बहु चर्चित और सफल प्रेम कहानी प्रधान फिल्म ‘‘सैराट’’ का हिंदी रीमेक है.

सारा अली खान

सैफ अली खान और अमृता सिंह की बेटी सारा अली खान ने अंततः सुशांत सिंह राजपूत के साथ ‘कैराज इंटरटेनमेंट’ की फिल्म ‘‘केदारनाथ’’ से बौलीवुड में कदम रख रही हैं.

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अभिषेक कपूर उर्फ गट्टू निर्देशित इस फिल्म की आधी शूटिंग पूरी हो चुकी है. करीना कपूर और सोहा अली खान अभी से सारा अली खान के अभिनय की तारीफों के पुल बांधने लगी हैं.

जान्हवी कपूर

श्रीदेवी की बेटी जान्हवी कपूर की पहचान स्टाइलिश के रूप में पहले से बनी हुई है. अब वह ईशान खट्ट के संग करण जोहर निर्मित फिल्म ‘‘धड़क’’ से बौलीवुड में कदम रख रही हैं, जो कि 2016 की मराठी भाषा की बहु चर्चित और सफल प्रेम कहानी प्रधान फिल्म ‘‘सैराट’’ का हिंदी रीमेक हैं.

आयुष शर्मा

हिमाचल प्रदेश के चर्चित राजनीतिक परिवार से जुड़े आयुष शर्मा को लोग अब तक सलमान खान के बहनोई यानी कि सलमान खान की बहन अर्पिता खान के पति के रूप में ही पहचानते आए हैं.

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मगर 2018 में वह फिल्मी हीरो के रूप में पहचाने जाएंगे. फिलहाल वह अपनी फिल्म ‘‘लवयात्री’’ के लिए गुजरात में ट्रेनिंग हासिल कर रहे हैं. प्रेम कहानी वाली इस फिल्म का निर्माण स्वयं सलमान खान कर रहे हैं. अभिराज मीनावाला के निर्देशन में बनने वाली इस फिल्म के लेखक निरेन भट्ट हैं.

‘नवाबजादे’ में थिरकते नजर आएंगे श्रद्धा कपूर और वरुण धवन

गुरू रंधावा द्वारा स्वरबद्ध पंजाबी गीत ‘‘हाई रेटेड गबरू’’ को यूट्यूब पर 250 मिलियन दर्शक मिल चुके हैं. इसी बात से प्रेरित होकर फिल्म ‘‘नवाबजादे’’ का निर्माण कर रहे टीसीरीज के भूषण कुमार तथा रेमो डिसूजा ने इस गाने को नए सिरे से सफल फिल्म ‘‘एबीसीडी 2’’ की जोड़ी श्रद्धा कपूर और वरुण धवन पर फिल्माकर फिल्म का हिस्सा बनाने का निर्णय लिया. इससे श्रद्धा कपूर और वरुण धवन भी काफी खुश हुए.

उसके बाद रेमो डिसूजा ने खुद ही गाने ‘‘हाई रेटेड गबरू’’ को  नए ढंग और नई कदम ताल के साथ फिल्मांकन के लिए गाने की पुनःरचना की और खुद ही नृत्य निर्देशन कर इसे मुंबई के स्टूडियों में फिल्माया. मजेदार बात यह है कि इस गाने में जहां श्रद्धा कपूर और वरुण धवन की हौट जोड़ी नजर आएगी, वहीं इस गाने में उनका साथ ‘एबीसीडी 2’ के दूसरे कलाकारों यानी कि धर्मेश येलेंडे, राघव जुयाल और पुनीत पाठक ने भी हिस्सा लिया.

इस गाने की चर्चा चलने पर वरुण धवन ने कहा-‘‘यह गाना करके बड़ा मजा आया. इस गाने में धर्मेश, पुनीत व राघव के साथ नृत्य  करके हमें समझ में आया कि वह हमसे भी ज्यादा प्रतिभाशाली हैं. जब हमने सुना कि रेमो डिसूजा और भूषण कुमार जी इन कलाकारों के साथ यह फिल्म कर रहे हैं, तो हमें लगा कि हमें भी इसका हिस्सा बनना चाहिए. इसलिए जैसे ही हमारे सामने इस गाने को करने का आफर आया, मैं ने व श्रद्धा ने तुरंत हामी भर दी. मेरे लिए तो इसी बहाने श्रद्धा कपूर के साथ दूसरी बार परदे पर आने का मौका मिल रहा था. इसके अलावा यह गाना सफल है, तो सोने पे सुहागा वाली बात रही. अब शूटिंग करने के बाद के अनुभवों को बयां करने के लिए तो शब्द ही नहीं हैं.’’

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इस गाने का हिस्सा बनकर वरुण धवन से भी कहीं ज्यादा श्रद्धा कपूर उत्साहित हैं. वह कहती हैं-‘‘ऐसा कौन सा कलाकार है, जो रेमो डिसूजा, भूषण कुमार व वरुण धवन के साथ काम नहीं करना चाहेगा? इसके अलावा मैं तो ‘हाई रेटेड गबरू’ गाने की फैन बन चुकी हूं, इसलिए जैसे ही इस गाने का हिस्सा बनने का आफर मिला, मैंने लपक लिया. इसके लिए शूटिंग करना तो मजेदार रहा.’’

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जयेष प्रधान निर्देषित फिल्म ‘‘नवाबजादे’’ में धर्मेश येलेंडे, राघव जुयाल और पुनीत पाठक की मुख्य भूमिका है.

आखिर क्यों नर्वस हैं रिचा चड्ढा..?

रिचा चड्ढा के करियर में काफी कुछ उनकी सोच के विपरीत होता रहा है. फिल्म ‘‘मसान’’ के लिए ‘‘कान फिल्म फेस्टिवल” में अवार्ड और शोहरत बटोरने के बाद बड़े उत्साह के साथ उन्होंने राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता उमंग कुमार के संग फिल्म ‘‘सरबजीत’’ की थी, पर इस फिल्म में उनके साथ ऐसा कुछ हुआ कि अब वह मानती हैं कि ‘सरबजीत’ करना उनकी गलती थी.

तो अब एक बार फिर उनके साथ कुछ ऐसा होने वाला है, जो नहीं होना चाहिए था. वास्तव में रिचा चड्ढा को ‘‘एक्सेल इंटरटेनमेंट’’ के साथ काम करना अच्छा लगता है, इसी के चलते उन्होंने ‘फुकरे रिटर्न’ के बाद ‘एक्सेल इंटरटेनमेंट’ की फिल्म ‘‘थ्री स्टोरी’’ की. इससे पहले वह सुधीर मिश्रा के निर्देशन में फिल्म ‘‘दास देव’’ कर चुकी थी.

रिचा चड्ढा का मानना है कि हर कलाकार को कम से कम एक बार सुधीर मिश्रा के साथ जरूर काम करना चाहिए. मगर ‘दास देव’ का प्रदर्शन कई वजहों से पिछले दो वर्ष से रुका रहा और अब रिचा चड्ढा की यह दोनों फिल्में यानी कि ‘थ्री स्टोरी’ और ‘दास देव’ एक ही दिन 9 फरवरी 2018 को सिनेमा घरों में पहुंचने वाली हैं. इसी से रिचा चड्ढा काफी नर्वस हैं. रिचा के करियर में ऐसा पहली बार हो रहा होगा जब अनचाहे ही उनकी दो फिल्में एक ही दिन आपस में टकराने के लिए सिनेमाघरों में पहुंचने वाली हैं.

खुद रिचा चड्ढा कहती हैं-‘‘मैं एक साथ नर्वस और उत्साहित हूं. ऐसा बहुत कम होता है, जब किसी कलाकार की एक ही दिन दो फिल्में प्रदर्शित हों. कम से कम मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरी दो फिल्में एक ही दिन सिनेमाघरों में पहुंचेगी. पर मेरे उत्साह की वजह यह है कि मैने इन दोनों फिल्मों के साथ न्याय किया है. दोनों ही फिल्मों की विषयवस्तु अलग अलग है और दोनों से मुझे काफी उम्मीदे हैं.’’

पर बौलीवुड से जुड़े लोगों की राय में अलग अलग विषय की दोनो फिल्में होने के बावजूद हर कलाकार को कोशिश करनी चाहिए कि उनकी फिल्में आपस में न टकराएं. आखिर दर्शक एक ही समय में एक ही कलाकार की दो दो फिल्में कैसे पसंद करेगा? रिचा चड्ढा के लिए भी एक साथ अपनी दोनों फिल्मों को प्रमोट करना आसान नहीं होगा. उन्हे चाहिए था कि वह कोशिश करती कि उनकी यह फिल्में अलग अलग समय पर व कुछ अंतराल के बाद प्रदर्शित होती.

इस पर रिचा चड्ढा कहती हैं- ‘‘देखिए, एक कलाकार की हैसियत से फिल्म कब सिनेमाघरों में पहुंचेगी, इसका निर्णय मैं नहीं कर सकती. फिल्म को प्रदर्शित करने का अंतिम निर्णय तो निर्माता का ही होता है.’’

मुंबई हादसे में 200 लोगों की जान बचाने वाले ये थे दो बहादुर गार्ड

मुंबई के कमला मिल कंपाउंड के टेरेस रेस्तरां 1 अबोव रेस्तरां, लंदन टैक्सी बार और मोजो पब में 28 दिसंबर रात 12 बजकर 10 मिनट पर जब आग लगी, तो दृश्य बड़ा भयावह था. बांस और प्लास्टिक के छप्पर होने की वजह से चारों तरफ आग की लपटें इतनी जल्दी फैली, कि लोगों को उससे निकलने का मौका ही नहीं मिला और उसमें 15 लोगों की जानें चली गयी, जिसमें 12 महिलाएं और 3 पुरुष हैं. कुछ लोग अभी भी जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं. इस हादसे में 20 से 25 साल की उम्र वाली महिलाएं ही अधिक थी, जो अपने दोस्त का जन्मदिन मनाने वहां आई थी. कुछ महिलाएं अधिक उम्र की भी थी.

किसे पता था कि ये दिन उनके जीवन का आखिरी दिन होगा, आखिर ऐसे हादसे होते क्यों है? इसके जिम्मेदार कौन है आदि कई सवाल हैं. अपनी पीठ थपथपाने वाली सरकार आखिर ऐसे रेस्तराओं को परमिशन कैसे देती है? हादसे होने के बाद कार्यवाही की जाती है, पहले क्यों नहीं? इसका जवाब किसी के पास नहीं है. हर बार ऐसे हादसे होने के बाद ही जांच समिति बैठाई जाती है, जांच के आदेश दिए जाते हैं, पर होता कुछ नहीं.

जब ये हादसा कमला मिल कंपाउंड में हुआ और सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे और रेस्तरां के मालिक और कर्मचारी नदारद थे. केवल दो चौकीदार महेश पांडुरंग साबले और सूरज गिरी ने अपनी जान हथेली पर रखकर 200 से 250 लोगों की जानें बचाई. केवल 20 से 25 मिनट में उन्होंने सबको नीचे उतारा. हालांकि इसे करते हुए उन्हें चोटें आई, पर उन दोनों ने इसकी परवाह नहीं की, उन्हें ऐसे बेबस लोगों की जान बचानी थी.

महेश कहते हैं कि गुरुवार की रात को जब आग लगी, तो मैं नीचे की फ्लोर पर था. अचानक लोगों की चीख पुकार सुनकर ऊपर चढ़ा तो देखा कि लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे हैं. तब तक दोनों लिफ्ट बंद हो गई थी. वहां अग्निशामक यंत्र भी नहीं था. मैंने पीछे की तरफ जाकर इमरजेंसी डोर हाथ से तोड़ दिया. फिर सभी लोग उस पतली सीढ़ी से नीचे उतरे, इसमें 10 से 12 लोग घायल थे. उन्हें किसी तरह मैं और सूरज एम्बुलेंस के नजदीक लाये. इतनी भगदड़ थी कि कोई गिर रहा था, तो किसी के कपड़े जल चुके थे, किसी के पांव में चप्पल नहीं थी, लोग बेतहाशा अपनी जान बचाने की कोशिश कर रहे थे.

Kamala Mills fire tragedy
महेश पांडुरंग साबले

25 वर्षीय महेश को ऐसा करते हुए एक बार भी अपने लिए डर नहीं लगा. दुःखी स्वर में वे कहते है कि मैं ‘बर्थ डे गर्ल’ खुशबू बंसल को भी बचा सकता था, जब तक मैं उसके सामने पहुंच पाता, मेरे सामने आग का एक बड़ा गोला ऊपर से उस पर गिरते हुए देखा, उसकी चीख अभी भी मेरे कानों में गूंज रही है. इसके अलावा मुझे पता नहीं चला था कि कुछ लोग वाशरूम में अटके हैं, नहीं तो मैं उधर पहुंचने की भी कोशिश करता. ये तब पता चला जब फायर ब्रिगेड के कर्मचारी ने आग बुझाने के बाद वाशरूम का दरवाजा खोला और देखा कि सारे लोग एक दूसरे पर मृत पड़े हुए थे. आज भी सबकी चीख और पुकार मुझे याद आती है.

वहीं काम करने वाला 21 वर्षीय गार्ड सूरज गिरी ने लोगों को बचाते हुए गैस सिलिंडरों को सुरक्षित स्थान पर ले गए, ताकि आग की लपटों को फैलने से बचाया जाये, आग से सिलिंडरों के फटने से और भी अधिक जान माल की क्षति हो सकती थी. वह कहता है कि जब में ऊपर चढ़ा, तो वहां से निकलने का कोई भी रास्ता लोगों को पता नहीं था. सीढ़ियां पूरी तरह से बंद थी, कहीं से भी बाहर निकलने का रास्ता नहीं था. आग की भनक लगते ही सारे होटल कर्मचारी भाग चुके थे. चारों तरफ धुंआ और आग भरी थी, जिसमें से लोगों की हा-हाकार सुनाई पड़ रही थी. अगर इस तरह के गलत काम करने वाले रेस्तराओं की सही जांच होती और सीढ़ियां होती, तो इतनी संख्या में जानें नहीं जाती.

Kamala Mills fire tragedy
सूरज गिरी

ये रेस्तरां एक पॉश एरिया में है, इसलिए यहां का खाना काफी महंगा है, लेकिन यहां के होटल मालिक सुरक्षा को ताक पर रखकर व्यवसाय कर रहे थे. इस बारे में मुंबई महानगरपालिका की जनसंपर्क अधिकारी विजय खबाले पाटिल का कहना है कि अभी तक फायर बिग्रेड की तरफ से रिपोर्ट नहीं आई है, लेकिन इतना सही है कि सुरक्षा के मानकों को सही तरह से पालन नहीं किया गया. वैसे तो हर साल अथॉरिटी ऑडिट करती है और कुछ गलत दिखाई देने पर रेस्टोरेंट मालिकों को निर्देश भी देती है, लेकिन उन्होंने कितना पालन किया है, उसकी जांच भी सही तरीके से होना जरूरी है. आगे वैसा ही किया जायेगा. इसके अलावा रेस्तरां चलाने वाले को वहां की प्लानिंग के बारे में जानकारी एंट्री पॉइंट पर पोस्टर के जरिये देने की जरुरत है और ग्राहक भी उसे देखकर ही अंदर जाएं.

फायर वुमन हर्शिनी कान्हेकर कहती हैं कि ऐसे सभी होटलों में अग्निशामक यंत्र रखने की जरुरत है, साथ ही यह भी जरुरत है कि साल में दो बार ऐसे होटल, रेस्तरां और बड़ी बिल्डिंगों की ऑडिट हो, ताकि कमियों को समय रहते ठीक किया जा सकें. इसके अलावा ऐसी किसी घटना में अधिकतर मौतें दम घुटने से होती है, इसलिए ऐसे में अगर व्यक्ति किसी कपड़े या रुमाल को गीला कर नाक और मुंह पर बांध ले, तो दम घुटने से बच सकता है.

बात कुछ भी हो लेकिन इतना सही है कि दो गार्ड ने जिस बहादुरी से इतने लोगों को बचाया, ये काबिले तारीफ है, नहीं तो मृतकों की संख्या और भी बढ़ सकती थी.

मरहम नहीं है महरम : सवाल यह कि हज पर जाएं ही क्यों मुस्लिम महिलाएं

तीन तलाक नाम की कुप्रथा को खत्म करने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वह वाहवाही और बधाई मिली जिसके कि वे वाकई हकदार थे, लेकिन उम्मीद से कम वक्त में उन्होंने यह ऐलान कर अपने ही किए पर पानी फेर लिया है कि 45 की उम्र पार कर चुकी मुस्लिम महिलाएं अब बगैर महरम के हज पर जा सकती हैं. मन की बात के साल 2017 के आखिरी एपिसोड में की गई यह घोषणा कैसे एक कुरीति को बढ़ावा देती हुई है, उससे पहले यह समझ लेना जरूरी है कि यह महरम आखिर है क्या और क्यों नरेंद्र मोदी के मन में इस तरह खटका कि वे इसे खत्म करने पर उतारू हो आए.

इस्लाम में निर्देश हैं कि महिलाएं बिना किसी पुरुष अभिभावक या संरक्षक के हज यात्रा नहीं कर सकतीं, यानि हज करने के लिए महरम जरूरी है, इस्लाम के ही मुताबिक महरम वह पुरुष होता है जिससे मुस्लिम महिला शादी नहीं कर सकती मसलन पिता, बेटा, सगा भाई और नाति यानि नवासा. अभी तक मुस्लिम महिलाएं इनमें से किसी एक के साथ होने पर ही हज यात्रा कर सकतीं थीं, अब बक़ौल नरेंद्र मोदी यह ज्यादती खत्म की जा रही है और 45 पार कर चुकीं 4 या उससे ज्यादा मुस्लिम महिलाएं इकट्ठी होकर हज पर जा सकती हैं. इस बाबत मोदी की पहल पर इन महिलाओं को लाटरी सिस्टम से मुक्त रखा जाएगा.

मोदी जी यह जानकर हैरान थे कि अगर कोई मुस्लिम महिला हज करना चाहे तो वह बिना महरम के नहीं जा सकती थी और यह भेदभाव आजादी के 70 साल बाद भी कायम है, लिहाजा उन्होंने इस रिवाज को ही हटा दिया.

तीन तलाक के नतीजों से उत्साहित नरेंद्र मोदी अब इस्लाम में सीधे दखल देने पर उतारू हो आये हैं या फिर उन्हें वाकई मुस्लिम बहनों की चिंता है, इस पर भले ही बहस की गुंजाइशें मौजूद हों, पर यह बिना किसी लिहाज के दो टूक कहा जा सकता है कि हज उसी तरह किसी मुस्लिम के भले की बात नहीं जिस तरह हिंदुओं की तीर्थ यात्रा, इन दोनों का ही मकसद अपने अपने अनुयायियों को दिमागी तौर पर गुलाम बनाए रखने की साजिश है. पाप, पुण्य, मोक्ष, स्वर्ग, नर्क वगैरह पर सभी धर्म गुरु और धर्म ग्रंथ एक हैं, क्योंकि इन्हीं से उनकी दुकानदारी चलती है.

बिना महरम हज की आजादी धार्मिक अंधविश्वासों के पैमाने पर देखें तो मुस्लिम महिलाओं को मजहब और उसके ठेकेदारों के चंगुल में फंसाये रखने का टोटका है, जिससे मुसलमान औरतों को लगे कि अब उनका नरेंद्र मोदी से बड़ा हमदर्द और रहनुमा कोई नहीं, लेकिन इस फैसले ने एहसास करा दिया है कि मोदी चाहते यह हैं कि मुसलमान खासतौर से औरतें कहीं कठमुल्लाओं की पकड़ से आजाद न हो जाएं, इसलिए उन्हें अब धर्म के नाम पर बहकाया जाये और औरतों की आजादी बहाली के नाम पर एक बार फिर वाहवाही लूटी जाये.

हज या तीर्थ यात्रा से किसका क्या और कैसे भला होता है इसकी कोई तार्किक व्याख्या मोदी या फिर कोई दूसरा उदारवादी कर पाये तो बात समझ आए, लेकिन मोदी खुद विकट के धर्मभीरु और अंधविश्वासी हैं, जो बिना मंदिर में जाये चुनाव प्रचार भी शुरू नहीं करते और यही काम या बेवकूफी राहुल गांधी करने लगें, तो पूरा भगवा खेमा हाय हाय करने लगता है. हालिया गुजरात विधानसभा चुनाव इसके गवाह हैं कि वहां धर्म के नाम पर कैसे कैसे ड्रामे हुये थे, जिनमे विकास वगैरह की बातें गुम होकर रह गईं थीं.

वाकई मोदी महिलाओं का भला चाहते हैं तो उन्हें हज और तीर्थ यात्रा दोनों पर रोक लगाने का ऐलान करने की हिम्मत दिखानी चाहिए थी, वजह है धर्म, जो औरत जाति का सबसे बड़ा दुश्मन है, जिसके तहत वे पांव की जूती और भोग्या भर हैं. महिलाएं आजादी के 70 साल बाद भी क्यों सशक्त नहीं हो पा रहीं, यह बात प्रधानमंत्री के मन में आए और वे इस पर चिंतन मनन कर पाएं तो फिर उन्हें यह भी सोचने मजबूर होना पड़ेगा कि कैसे कैसे बाबाओं ने उनके कार्यकाल में भी महिलाओं की इज्जत से आश्रमों में ही खिलवाड़ किया. मथुरा, वृन्दावन की तरह खुद उनके लोकसभा क्षेत्र बनारस में भी लाखों विधवाएं पेट भरने के लिए भीख मांगने के अलावा दूसरे ऐसे काम करने मजबूर हैं जिनसे उनमें कोई गैरत नहीं रह जाती.

और इस बदहाली की वजह धर्म और उसके स्त्री विरोधी मूलभूत सिद्धान्त नहीं तो और क्या है. जिस दिन देश के सवा सौ नहीं तो सवा करोड़ लोग भी इस सवाल के जबाब में सड़कों पर आ खड़े होंगे उस दिन किसी महरम की जरूरत किसी हिंदुस्तानी औरत को नहीं रह जाएगी. औरत कैसे और किसके साथ काबा काशी जाये यह कोई मुद्दा ही नहीं, मुद्दा यह है कि आजाद भारत में कैसे महिला दिल्ली और भोपाल की सड़कों पर आधी रात को तफरीह करने की अपनी ख़्वाहिश पूरी कर पायें, इस बाबत मंत्रालयों को निर्देश दिये जाएं.

धर्म स्थलों पर जाने प्रोत्साहन और सहूलियतें देने से औरतों का कोई भला नहीं होने वाला, उनका असली भला तो स्कूलों और यूनिवर्सिटियों में जाने से होगा, जाने कब किस प्रधानमंत्री के मन में यह बात आएगी. बात और मंशा चूंकि सियासी है, इसलिए किसी नेता को इस हकीकत पर अफसोस नहीं होता कि आजादी के 70 साल बाद भी एक फीसदी मुस्लिम लड़कियां भी कालेज का दरवाजा नहीं देख पातीं. बहुसंख्यक हिन्दू युवतियां भी उच्च शिक्षा से वंचित क्यों हैं, इस पर सभी खामोश रहते हैं, हां बात हज या तीर्थ की हो तो जो सरकारें खुद पुण्य कराने पानी की तरह पैसा बहाती हों, उनसे क्या खाकर महिलाओं के भले या हितों की उम्मीद की जाये.

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