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संस्कृति की आड़ में तानाशाही

लड़कियों को परेशान करने और छेड़ने वालों की पकड़धकड़ करने के लिए उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने हर थाने में रोमियो स्क्वैड बनाया है, जो किसी भी गुट को पकड़ सकता है. इन को स्थानीय भारतीय जनता पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं का समर्थन भी है और ये पुलिस स्क्वैड के साथ डंडे लिए घूमते रहते हैं. लड़कियों को इस से चाहे कुछ दिन राहत की सांस मिल जाए पर अपराधों पर नियंत्रण करने के नाम पर अपनी पार्टी के लोगों को ठेके दे देना लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है.

इन स्क्वैडों ने हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों की तरह तुरंत न्याय करने और सजा देने का तरीका अपनाया है. कहीं 4 लड़के या जोड़े हाथ में हाथ डाले चलते नजर आए नहीं कि ये उन पर लाठियों से पिल पड़ते हैं. पुलिस वाले महज तमाशाई बने रहते हैं पर भगवा दुपट्टे वाले बिना वकील, बिना दलील के कानून और अदालतों के बिना न्याय प्रसाद के रूप में बांट कर वही आतंक का राज स्थापित करने में लग गए हैं, जो सदियों तक इस देश में राजघरानों या जमींदारों का होता था.

परिवारों को पहलेपहल चाहे राहत महसूस हो पर जल्द ही पता चलेगा कि भाईबहनों का भी घर से इकट्ठे निकलना खतरे से खाली नहीं रहेगा. कहने को अकेली युवतियां सुरक्षित होंगी पर रातबेरात यदि वे काम से लौट रही हों और ये रोमियो स्क्वैड उन पर वेश्यावृत्ति का आरोप लगा कर पिटाई कर दें, तो तब कोई सुनने वाला भी नहीं रहेगा.

पहले जो छेड़खानी होती थी उस में पुलिस बल उदासीन रहता था, पर अब पुलिस सक्रिय रहेगी पर सभ्यता और कानून की बातें करने वालों के मुंह बंद करने के लिए और स्क्वैडों व उन के सहायकों को संरक्षण देने के लिए. राजनीतिक दलों को छोडि़ए, वे तो फिर राख से उभर आएंगे पर जानबूझ कर या गलतफहमी के शिकार हुए परिवारों पर जो जख्म लगेंगे वे किसी मरहम से ठीक न होंगे. कानून व व्यवस्था बनाए रखना जरूरी है पर बेगुनाहों को रोकनाटोकना और संस्कारों व संस्कृति की आड़ में तानाशाही को थोपना देश को महंगा पड़ेगा. हर घरपरिवार सड़कछाप छेड़ने वालों से परेशान है पर इसे रोकने के लिए प्राकृतिक प्रेम भावना को ही समाप्त कर देना घातक है, समाज के लिए भी और लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित शासनपद्धति पर भी.

टोटकों से नहीं मेहनत से बढ़ें

आज के दौर में ज्यादातर लोग खुद को मौडर्न और आजाद खयालों का बताते हैं, लेकिन ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो परीक्षा के लिए कठिन मेहनत करने के बाद भी अच्छे अंक पाने के लिए टोटकों और ऐसे अंधविश्वासों पर भरोसा कर आगे बढ़ते हैं. आइए जानें कि टोटके कैसे होते हैं और किस तरह उन से हमारा भला नहीं बल्कि बुरा होता है : कुछ विशेष टोटके हैं, परीक्षा से पहले घर से कुछ मीठा खा कर जाना, पैंसिल बौक्स में तुलसी का पत्ता रखना, लकी स्टोन या फिर गुडलक कड़ा पहनना, शुभ व्यक्ति को देख कर घर से निकलना, घर से ऐग्जामिनेशन हौल में पहुंचने तक किसी से भी बात न करना, किताब में मोर पंख रखना आदि.

ये भी हैं अजीब बेतुके गुडलक चार्म

गुडलक पैन : कुछ छात्रों को लगता है कि उन का वह पुराना पैन जिस से लिखने पर पिछली क्लास में अच्छे अंक आए थे, यदि वे उसे ले कर जाएंगे तो अच्छे अंक आएंगे, क्योंकि वह उन का गुडलक पैन है, लेकिन होता कुछ और ही है. अब समय काफी बदल गया है और कई अच्छी क्वालिटी के स्मूथ और जल्दी लिखने वाले पैन आ गए हैं, लेकिन उन के बीच इस पुराने पैन से लिखने की वजह से पेपर छूट भी सकता है इसलिए ऐसी किसी बेतुकी बात पर विश्वास करने के बजाय एक अच्छा, नया और स्मूथ पैन लें ताकि परीक्षा हौल में पैन की समस्या से जूझने के बजाय आप का ध्यान अपने प्रश्नपत्र  में दिए गए प्रश्नों का जवाब लिखने में हो.

मैना देखना गुडलक : कई लोगों का मानना है कि ऐग्जाम से पहले एकसाथ 2 मैना का दिखना शुभ होता है, इस से पेपर अच्छा जाता है. इसी वजह से छात्र पेपर से पहले पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय अपना समय मैना ढूंढ़ने में बरबाद करते हैं और पेपर खराब हो जाने पर उस की वजह समय बरबाद करना नहीं बल्कि मैना का न मिलना बताते हैं. अब उन्हें कौन समझाए कि पेपर और मैना का आपस में कोई संबंध नहीं बल्कि परीक्षा और मेहनत का संबंध है.

केले की जड़ : कई अंधविश्वासी लोगों का मत है कि केले की जड़ को ऐग्जामिनेशन हौल में ले जाने से ऐग्जाम में अंक अच्छे आते हैं. केले की जड़ को पैन में घिसने से भी अच्छे अंक मिलते हैं.  जबकि सच तो यह है कि कई बार जड़ को पैन में घिसने के चक्कर में ऐग्जामिनेशन हौल में टीचर की नजर में आ जाता है और उन्हें लगता है कि दाल में कुछ काला है और टीचर द्वारा जांचपड़ताल में उस का समय बरबाद होता है, साथ ही उसे शर्मिंदगी भी उठानी पड़ती है.

लकी कलर के कपड़े पहनना : कुछ छात्रों का विश्वास होता है कि अगर वे रैड कलर के कपड़े पहन कर पेपर देने जाएंगे तो उन्हें अच्छे मार्क्स मिलेंगे, इस वजह से वे भरी गरमी में भी लाल रंग के कपड़े पहन कर जाते हैं, जबकि इस से अच्छे अंकों का कोई लेनादेना है, यह सोचना बेवकूफी है.

गुडलक रूमाल :  हर पेपर में एक ही रंग का रूमाल रखना लकी माना जाता है और यदि किसी कारणवश रूमाल खो जाए तो पेपर खराब होने का सारा दोष रूमाल खोने को दिया जाता है, जबकि उस बात का इस से कुछ लेनादेना नहीं है.

दही खाना : ऐग्जाम देने निकलने से पहले दही खाना शुभ माना जाता है, लेकिन कई बार यदि छात्र का गला खराब हो उसे सर्दी आदि लगी हो और वह दही खा ले तो उस की यह तकलीफ और बढ़ जाती है, जिस से पेपर पर असर पड़ता है.

सफलता मेहनत करने से मिलेगी टोटकों से नहीं

परीक्षा में अंक पढ़ाई करने से मिलेंगे : कुछ छात्रों को गलतफहमी रहती है कि परीक्षा में उतने अंक पढ़ाई कर के जवाब लिखने से नहीं मिलेंगे जितने कि टोटके करने से मिल जाएंगे. अगर ऐसे लोग फेल हो जाते हैं तो उन्हें लगता है कि उन के टोटकों में कुछ कमी थी इसलिए इस बार किसी अच्छे जानकार से पूछ कर कुछ करना पड़ेगा और अगर पास हो गए तो सारा क्रैडिट पढ़ाई के बजाय टोनेटोटकों को देते हैं.

लेकिन सच तो यह है कि कितनी भी पूजा कर लो, कितना भी शुभ और अशुभ का राग अलाप लो, यदि पढ़ाई नहीं की है तो कोई ताकत नहीं है जो परीक्षा में अच्छे अंक दिलवा दे, इसलिए इन बेकार की बातों को छोड़ कर अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में लगाएंगे तो किसी टोटके की जरूरत ही नहीं पड़ेगी वैसे ही अच्छे अंक आ जाएंगे.

सारे चैप्टर याद करोगे तो नंबर अवश्य मिलेंगे :  छात्र इस बात को नहीं समझ पाते कि अगर उन्होंने पाठ याद नहीं किया और प्रश्नपत्र में आने वाला कोई सवाल नहीं पढ़ा है तो अंक कैसे मिलेंगे? अगर सिलेबस को अच्छी तरह पढ़ा है तो परीक्षा में प्रश्नों के जवाब भी आ जाएंगे, लेकिन अगर पढ़ा ही नहीं तो उस में कोई भी कुछ नहीं कर सकता.

क्लास में पढ़ाई पर ध्यान दें : कक्षा में टीचर द्वारा जो पढ़ाया जाता है अगर उस पर ध्यान दिया जाए तो पूरा सिलेबस जल्दी समझने और कवर करने में समय नहीं लगता. क्लास में टीचर द्वारा पढ़ाने के साथसाथ यदि खुद भी पढ़ा जाए तो पिछड़ने से बच सकते हैं, क्योंकि टीचर पूरे साल का सिलेबस, ऐग्जाम के हिसाब से ही पूरा करवाता है. अगर क्लास में टीचर के साथसाथ पढ़ा जाए तो आप अपनी प्रौब्लम टीचर से पूछ कर सौल्व कर सकते हैं और ऐग्जाम टाइम में बस आप को रिवीजन ही करना पड़ेगा, क्योंकि पढ़ तो आप पहले ही चुके होंगे.

नोट्स बनाएं : हर सब्जैक्ट के महत्त्वपूर्ण बिंदुओं के नोट्स बनाएं. ऐग्जाम के समय पूरे सिलेबस को बारबार रिवाइज करना कठिन होता है, इसलिए जब भी किसी पाठ को पढ़ें तो जरूरी चीजों के नोट्स बना लें ताकि बारबार पूरे पाठ को दोहराने की आवश्यकता न पड़े. वे नोट्स आप को ऐग्जाम के समय काफी काम आते हैं. जब समय कम होता है और रिवाइज बहुत सारा करना होता है, नोट्स आप के बेहतर रिजल्ट में मददगार साबित होते हैं.

पढ़ाई कल पर न टालें : कहते हैं न कल करे सो आज कर आज करे सो अब, पल में प्रलय आएगी फिर करेगा कब. यह बात पढ़ाई पर तो बिलकुल सही लागू होती है. आप किसी भी काम को टाल लें, लेकिन पढ़ाई को नहीं टाल सकते. अगर नियमित पढ़ाई करेंगे तो किसी फालतू टोटके की जरूरत ही नहीं पड़ेगी और सफलता भी मिलेगी.

कठिन विषय पर अतिरिक्त ध्यान दें : जिस सब्जैक्ट में आप को जरा भी डाउट हो उस में टीचर से मदद ली जा सकती है. ऐक्स्ट्रा क्लास लेने के बारे में भी बात की जा सकती है या फिर कोई प्राइवेट ट्यूशन ले कर प्रौब्लम सौल्व की जा सकती है. यदि आप उस विषय की पढ़ाई अच्छी तरह करेंगे तो ऐग्जाम आतेआते उस में माहिर हो जाएंगे.                                    

धार्मिक ढकोसलों का शिकार न बनें

घर में बच्चे के जन्म लेते ही मातापिता उसे बुरी नजर से बचाने के लिए तरहतरह के पूजापाठ व टोनेटोटके करवाते हैं. बच्चा डरे नहीं इसलिए उस के तकिए के नीचे लोहे की कोई चीज चाकू वगैरा रखते हैं, उस के गले में बाबाओं द्वारा सिद्ध किए ताबीज व धागे बांधने से भी गुरेज नहीं करते.

बालपन में तो बच्चे को इन की समझ नहीं होती, लेकिन जैसेजैसे वह बड़ा होता है उस के दिमाग में इन चीजों को बैठाने की कोशिश की जाती है और उस पर इतना अधिक दबाव डाला जाता है कि उसे लगने लगता है कि अगर मैं मेहनत नहीं भी करूंगा तब भी पास हो जाऊंगा, लेकिन अगर मैं ने मूर्ति के आगे हाथ नहीं जोड़े या मां के बताए टोटके नहीं किए तो अवश्य फेल हो जाऊंगा और वह कर्म से ज्यादा ढकोसलों में विश्वास करने लगता है जो उस का कैरियर टौनिक नहीं बल्कि उसे दिग्भ्रमित कर देते हैं.

यदि आप के पेरैंट्स भी आप को जबरदस्ती धार्मिक ढकोसलों में फंसाने की कोशिश करते हैं तो उन्हें बताएं कि कर्म करने से फल मिलता है न कि घंटों धार्मिक पाखंडों में उलझ कर अपना समय बरबाद करने से.

जब रखें बर्थडे पर जागरण का प्रस्ताव

यदि पेरैंट्स कहें कि हम ने मन्नत मांग रखी थी कि जब तुम 15 साल के हो जाओगे तो तुम्हारे बर्थडे पर जागरण करवाएंगे इसलिए इस बार नो पार्टी विद फ्रैंड्स ओनली जागरण, तो आप उन्हें समझाएं कि मन्नतवन्नत कुछ नहीं होती, ये सब मन का वहम है. जागरण पार्टी वाले भी सिर्फ संगीत की धुन पर इमोशनली ब्लैकमेल करते हैं. वे खुद भी बजाय भगवान के, पैसे को अहमियत देते हैं, बातबात पर पैसा चढ़ाने को कहते हैं, इस से तो दोस्तों के साथ ऐंजौय करना ज्यादा अच्छा है. अत: इस बार मैं बर्थडे पर धमाल वाली पार्टी करूंगा. 

ऐसी चीज का क्या फायदा जिस में मैं मन से ही न बैठ पाऊं और अंदर ही अंदर किलसता रहूं. अगर मैं आप की तरह धार्मिक पाखंडों में फंसा रहा तो कभी न लाइफ ऐंजौय कर पाऊंगा और न ही गोल अचीव कर पाऊंगा, इसलिए मैं तो आप को भी यही सलाह दूंगा कि इन चक्करों में फंसने से अच्छा है कि जी लो अपनी जिंदगी.

परीक्षा के लिए उपवास

हम ने पंडितजी से पूछा है कि इस समय तुम पर शनि का प्रभाव है और इसी दौरान तुम्हारी परीक्षाएं भी हैं, ऐसे में तुम्हें ग्रह प्रभाव के कारण मेहनत का फल कम मिलेगा लेकिन यदि तुम पंडित द्वारा बताया उपवास करोगे तो तुम्हें अधिक सफलता मिलेगी.

एक तो सिर पर ऐग्जाम का प्रैशर और ऊपर से घर वालों का उपवास रखने की जिद, अंदर ही अंदर आप को खाए जा रही है. ऐसे में आप साफसाफ इनकार कर दें कि मैं व्रत वगैरा नहीं रखूंगा. आप के कहने का मतलब यदि ग्रह सही चल रहे हैं तो मैं किताबें न भी पढ़ूं तब भी फर्स्ट डिवीजन से पास हो जाऊंगा. मौमडैड प्लीज इन ऊटपटांग बातों में न फंसें. ये सब पंडितों के अपने जाल में फंसाने के बहाने हैं. यदि मुझे कभी व्रत रखना होगा तो मैं अपने पेट को आराम देने के लिए रखूंगा, जिस से चटोरी जबान पर भी एक दिन के लिए लगाम लगेगी.

वास्तुदोष के चक्कर में पढ़ाई का स्थान बदलना

हर बार तुम्हारे इतने कम मार्क्स आ रहे हैं जबकि तुम रातभर पढ़ाई करते हो. ऐसा अगर एक बार होता तो मुझे ज्यादा चिंता नहीं होती, लेकिन ऐसा पिछले साल से लगातार हो रहा है इसलिए मैं ने इस संबंध में अपनी फ्रैंड से बात की तो उस ने वास्तुदोष के बारे में बताया और उसी के कहने पर मैं ने जानेमाने पंडित से बात भी कर ली है. उन्होंने घर का जायजा लेने के बाद बताया है कि आप का घर वास्तुदोष से प्र्रभावित है जिस वजह से तुम्हारे मार्क्स कम आ रहे हैं. इस के लिए तुम्हारा पढ़ाई का स्थान बदलना जरूरी है.

ऐसे में मां को समझाएं कि कम मार्क्स वास्तुदोष के कारण नहीं बल्कि पढ़ाई में मन लगाने के बजाय कंप्यूटर पर वक्त जाया करने के कारण आ रहे हैं और ऐसे में आप जबरदस्ती मेरी पढ़ाई की जगह बदल देंगे तो मैं बेमन से पढ़ूंगा, इस से न तो आप का और न ही मेरा कोई फायदा होगा. इसलिए मैं तो अपनी पढ़ाई की जगह किसी भी कीमत पर बदलने को तैयार नहीं हूं.

टोटके सफलता के साथी नहीं

धर्म के ठेकेदारों ने अंधविश्वास के नाम पर लूट मचा रखी है. अपनी दुकानदारी के तहत वे श्रीयंत्र, घोड़े की नाल, ग्रहनक्षत्रों, दशाओं के आधार पर जहां अंधी लूट मचाते हैं वहीं विदेशी टोटके जैसे लाफिंग बुद्धा, रिंगिंग बैल आदि तक को बेचने के लिए अंधविश्वास का पल्ला पकड़ने से भी गुरेज नहीं करते. इस में नुकसान हर हाल में बेवकूफ बनने वालों का ही होता है.

पेरैंट्स बच्चों का हमेशा शुभ चाहने के लिए टीवी पर विज्ञापन देख प्रभावित हो जाते हैं और फिर बच्चों के मन में इन चीजों को ला कर शुभअशुभ का पाखंड पैदा करते हैं कि अगर कछुए, मछली वगैरा को देखोगे तो शुभ होगा.

ऐसे में आप उन से पूछें कि इस का मतलब तो यही हुआ कि पढ़ो नहीं बल्कि ऐग्जाम देने जाते समय इन के आगे नतमस्तक हो जाओ. ऐसी बातें सुन कर भला किस का दिल करेगा मेहनत करने का और फिर जब नंबर कम आएंगे तो सारा आरोप इन पर लगा दोगो. अरे, जब सिखाओगे गलत तो परिणाम तो गड़बड़ निकलेंगे ही. हो सकता है आप की बातें उन्हें समझ आ जाएं और आगे से वे भी इन चक्करों में पड़ना छोड़ दें.

जबरदस्ती धार्मिक किताबें पढ़ने का दबाव

अकसर देखने में आता है कि घर में उन्हीं सब चीजों को करने की कोशिश की जाती है जिन्हें हमारे बड़ेबुजुर्ग सदियों से करते आ रहे हैं. जैसे धार्मिक किताबें पढ़ना. इन को पढ़ने का महत्त्व भले ही किसी को न पता हो, लेकिन ये जरूर पता होता है कि सुबह नहाधो कर ये धार्मिक किताबें अवश्य पढ़नी हैं ताकि मन व बुद्धि सही रहे. यही सीख पेरैंट्स अपने बच्चों को भी देते हैं. यदि आप के पेरैंट्स भी आप पर इस तरह की धार्मिक पुस्तकें पढ़ने का दबाव डालते हैं तो उन्हें समझाएं कि ऐसी भक्ति का क्या फायदा जिस में व्यक्ति मन लगा कर न बैठे. इस से उन्हें एहसास होगा कि आप बिलकुल सही कह रहे हैं. आगे से वे भी आप की बात सुन कर धर्म से ज्यादा कर्म करने में विश्वास करने लगेंगे.

धार्मिक सिद्धपीठों पर जाने की जिद

यदि घर में काफी समय से अशांति का माहौल है तो अकसर पेरैंट्स मन की शांति व अच्छा हो इस के लिए धार्मिक स्थलों पर जाने का प्रोग्राम बनाते हैं. उन का मकसद होता है कि सिद्धपीठ में हमें साक्षात भगवान के दर्शन होंगे जो हमारे हर दुख को हर लेंगे, जबकि ऐसा कुछ नहीं है. वहां तो धर्म के धंधेबाज यजमानों को लूटने के लिए बैठे रहते हैं.

ऐसे में आप मातापिता को समझाएं कि यदि आप लोग रिलैक्स होने के लिए कहीं जाना चाहते हैं तो ऐसी जगह जाएं जहां प्राकृतिक नजारे मन को तरोताजा कर दें, क्योंकि प्रौब्लम तो एफर्ट से ही दूर होगी न कि सिद्ध पीठ के दर्शन करने से.

नजर के धागेताबीज बांधने का नाटक

जल्दीजल्दी बीमार होना या फिर खाना छोड़ने पर इसे नजर लगी मान कर हाथ या गले में काला धागा बांध देने जैसे टोटके आज भी अधिकांश पेरैंट्स करते हैं, जो अंधविश्वास के सिवा कुछ नहीं हैं.

अरे, जब बच्चे हैल्दी खाना नहीं खाएंगे तो बीमार ही पड़ेंगे. ऐसे में काले धागे क्या मैजिक दिखा पाएंगे. इसलिए इन फुजूल के चक्करों में न पड़ कर सही तरफ ध्यान केंद्रित कर मुझे भविष्य उज्ज्वल बनाने दें.                              

समझदार बनें, अंधविश्वास से बचें

हमारे परिवारों में बच्चे को अंधविश्वास के घेरे में पालपोस कर बड़ा किया जाता है. बचपन से बच्चे के दिमाग में बैठा शुभअशुभ का डर उस के जीवन में मजबूती से पकड़ बना कर उसे कमजोर और भाग्यवादी बना देता है. किस दिन किस दिशा की तरफ जाना है, घर से क्या खा कर जाने से शुभ होगा, किस रंग के कपड़े पहनने से हर इच्छा पूरी होगी, इस तरह के अंधविश्वासों के घेरे में जब बच्चा बड़ा होता है तो वह इसे अपने बुजुर्गों की परंपरा समझ पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाता है.

अब प्रश्न उठता है कि एक बेहद अंधविश्वासी बच्चे को जो हर रूढ़ी को बड़ी सख्ती से बचपन से जवान होने तक निभाता है, अपने जीवन में असफलता का सामना क्यों करना पड़ता है? जवाब बहुत ही सहज और सरल है, सफलता और असफलता जीवन के 2 अभिन्न अंग हैं. हम कितने भी जादूटोने व अंधविश्वास अपनाएं सफलताअसफलता, सुखदुख सामान्य रूप से हमारे जीवन में आतेजाते रहेंगे.

कैसे मिलता है अंधविश्वास को बढ़ावा

राजीव का बेटा पिछले साल 12वीं में फेल हो गया था. सभी को काफी बुरा लगा. पढ़ने में एवरेज स्टूडैंट उन का बेटा इस साल काफी मेहनत कर रहा था. बच्चे को गले में एक देवी की आकृति वाला लौकेट पहनाया गया था जिसे कभी न उतारने की उसे सख्त हिदायत दी गई थी. पूछने पर राजीव ने बताया, ‘‘जब से परीक्षा में अच्छे अंक दिलाने वाला लौकेट बेटे को पहनाया है, उस का मन पढ़ने में खूब लग रहा है.’’

सच यह था कि राजीव का बेटा साइंस साइड से नहीं पढ़ना चाहता था. उस का मन आर्ट साइड में था पर राजीव ने प्रैशर में उसे साइंस दिला दी. इस तरह समस्या का मूल कारण जाने बिना किशोर के दिल में बैठ गया कि लौकेट पहनने से वह अच्छे अंकों से पास हो जाएगा. अब वह अपने मित्रों में भी इस लौकेट के चमत्कार को बताएगा और बहुत से उस के साथी इस अंधविश्वास को अपना कर बिना मेहनत के पास होने का भ्रम पाल लेंगे.

इस में कोई शक नहीं कि समाज में अंधविश्वास की जड़ें काफी मजबूती से हमारे दिलोदिमाग में बैठ जाती हैं. बारबार असफल होने पर मन बहुत कमजोर हो जाता है, कमी कहां हुई जो सफलता की राह में रोड़ा बनी उन के कारण जानने के स्थान पर टोनेटोटके, तंत्रमंत्र, गंडेताबीज और भी न जाने कितनी तरह के अंधविश्वासों में फंस जाता है.

कैसे पाएं अंधविश्वास पर काबू

अंधविश्वास का मतलब है किसी पर भी आंख मूंद कर विश्वास करना औैर जब हम किसी के बताए रास्ते पर बिना अपनी बुद्धिविवेक के इस्तेमाल के चल पड़ते हैं, तो वह रास्ता हमें प्रगति के बजाय विनाश की ओर ले जाता है. कुछ समय के लिए ये रास्ते सुखद लग सकते हैं, परंतु अंत में अंधविश्वासी व्यक्ति अपने को लुटा हुआ ही महसूस करता है.

बहुत से परिवारों में बरसों पुराने ऐसे ही अंधविश्वास चलते रहते हैं. बिना लौजिक जाने घरपरिवार में बेतुके बिना सिरपैर के अंधविश्वास इसलिए चलाए जाते हैं, क्योंकि बुजुर्गों ने इन्हें शुरू किया था. ऐसे अंधविश्वासों को छोड़ना ही समझदारी है, लेकिन बच्चों के मन में इन का इतना डर बैठा होता है कि वे सोचते हैं अगर हम ने कुछ नया किया तो परिवार के साथ कुछ न कुछ बुरा हो जाएगा. पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही परंपरावादी रूढि़यों को एकदम से तोड़ना भी आसान नहीं है परंतु प्रयास करने से बहुत कुछ किया जा सकता है. आइए, देखें कैसे बच्चे इन प्रगतिबाधक अंधविश्वासों पर काबू पा सकते हैं :

मेहनत और लगन से करें काम : किशोरावस्था नए जोश और हौसले का दूसरा नाम है. किशोरों को खुद भी अंधविश्वास का बहिष्कार करना चाहिए और अपने परिजनों से भी पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही इस खोखली परंपरा से होने वाले नुकसान पर बात करनी चाहिए. संभव हो तो अपने आसपास के मित्रों को भी बताएं कि मेहनत ही एक ऐसी सीढ़ी है जो सफलता तक पहुंचा सकती है. अंधविश्वास पर निर्भरता इंसान को बुजदिल और आलसी बनाती है, जो किशोरों के पूरे व्यक्तित्व को कुंठित कर देता है.

सकारात्मक सोच को दें वरीयता :  नकारात्मक विचारों के लोग ही अंधविश्वास में ज्यादा विश्वास करते हैं. सुखसुविधाओं में पले लोग जरा सी परेशानी आते ही टोनेटोटकों या किसी जादुई शक्ति में विश्वास करने लगते हैं. जहां नकारात्मक विचार होंगे वहां अंधविश्वास लंबे समय तक पैर जमा कर अपना राज करता है. पंडेपुजारियों, पूजापाठ और तंत्रमंत्र पर पैसा व वक्त बरबाद होता है. अत: सकारात्मक विचारों को वरीयता दें. कई बार हमारे प्रयास और मेहनत में कोई कमी नहीं होती, परंतु दिशा ठीक न होने के कारण बारबार असफलता का मुंह देखना पड़ता है. अगर मन को मजबूत कर तथ्यहीन अंधविश्वासों को त्याग कर सही दिशा में सकारात्मक प्रयास करें तो आप को सफलता अवश्य मिलेगी.

एक अन्वेषक की तरह जागरूक बनें : एक जागरूक अन्वेषक की तरह हर समय यह विश्लेषण करें कि अंधविश्वास हमें कितना नुकसान पहुंचा रहा है. उस पर अमल कर के घरपरिवार का कितना भला हो रहा है. अपनी कमियों पर बारीकी से विचार करें, संभव हो तो परिजनों के साथ बैठ कर अपने सफलअसफल कार्यों की लिस्ट बनाएं और उस पर ध्यान दें.

कैरियर के लिए प्रयास कर रहे युवाओं के लिए यह फौर्मूला बहुत उपयोगी है. इस के बाद उन्हें किसी जादुई ताबीज या अंधविश्वास की जरूरत नहीं रहेगी.

अंत में हम कह सकते हैं कि अंधविश्वास हमारी बुद्धि, विद्या और बल को बाधित करते हैं और जीवन में उन्नति के सारे दरवाजे बंद कर देते हैं.

अपनी कड़ी मेहनत और लगन का पूरा श्रेय किसी ताबीज, टोनेटोटके या तंत्रमंत्र को देना ठीक नहीं. कैरियर में सफलता चाहिए या परीक्षा में अच्छे अंक तो सही दिशा में मेहनत करें. कदमकदम पर अंधविश्वास की दुकानें खोले ढोंगी बाबातांत्रिक मौके का फायदा उठाते हैं. अत: किशोर हर समय जागरूक रहें, समझदार बनें और अंधविश्वास से बचें.                    

वायरल सुंदरता

हर युग में इंसान में सुंदरता को ले कर एक इच्छा मौजूद रही है. वैसे यह सुंदरता किसी भी तरह की हो सकती है, जैसे प्रकृति की सुंदरता. किसी वैज्ञानिक के लिए उस की कोई खोज सुंदर हो सकती है पर सब से ज्यादा चर्चा उस सुंदरता की होती है जिस में किसी का चेहरा लोगों को आकर्षित करता है. इस सुंदरता का इतना ज्यादा महत्त्व है कि इस के बारे में प्राचीन दार्शनिक अरस्तू ने एक बार कहा था, ‘सुंदरता दिलों में धड़कन पैदा कर देती है, दिलोदिमाग पर छा जाती है और भावनाओं के जंगल में जैसे आग ही लगा देती है.’

इधर कुछ समय से कुछ चेहरों की सुंदरता के ज्यादा चर्चे इंटरनैट पर हो रहे हैं. थोड़ेथोड़े अंतराल पर दुनिया के किसी कोने से किसी सुंदर लड़की या लड़के की तसवीरें इंटरनैट पर वायरल हो जाती हैं. लोगों में उन्हें देखने की दीवानगी का आलम यह होता है कि वे इस के लिए कुछ भी कर गुजरते हैं. कभी इस के लिए मारपीट की नौबत आ जाती है, तो कभी उस सुंदर व्यक्ति की ओर से मिले आमंत्रण में शामिल होने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है. पिछले कुछ समय में मैक्सिको से ले कर नेपाल, चीन तक से ऐसे युवकयुवतियों के चेहरे इंटरनैट पर छाए रहे जिन्हें पहले तो कोई नहीं जानता था, लेकिन जब किसी ने उन की तसवीरें या वीडियो इंटरनैट पर डाले तो वे रातोंरात पूरी दुनिया में छा गए. ऐसा ही एक सनसनीखेज किस्सा मैक्सिको की 15 साल की किशोरी रूबी इबार्रा गार्सिया का है.

रूबी की बर्थडे पार्टी

दिसंबर, 2016 में उत्तरी मैक्सिको के सैन लुईस पोटोसी में रहने वाली रूबी के पिता ने रूबी का एक वीडियो बना कर फेसबुक पर अपलोड किया और उसे देखने वाले हर शख्स से उस की बर्थडे पार्टी में शामिल होने का आमंत्रण दे डाला. इस वीडियो के साथ दी गई सूचना में बताया गया कि रूबी की बर्थडे पार्टी पर खानापीना होगा, एक घुड़दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन होगा और स्थानीय बैंड इस मौके पर अपना प्रदर्शन करेगा.

फेसबुक पर पोस्ट किया गया यह वीडियो यूट्यूब पर पहुंच गया और देखते ही देखते इस पर संगीत के कई सितारों ने टिप्पणी की, इस पर जोक बनाए गए और कई कंपनियों ने रूबी के बर्थडे से जुड़े आयोजनों की स्पौंसरशिप तक का प्रस्ताव कर डाला. घुड़दौड़ जीतने वाले को 500 डौलर इनाम देने की घोषणा भी की गई. सब से उल्लेखनीय मैक्सिकन एयरलाइंस इंटरजैट का प्रस्ताव रहा, जिस ने इस मौके पर सैन लुईस पोटोसी पहुंचने वालों को किराए में 30त्न छूट देने का ऐलान किया.

एक अनजान किशोरी रूबी की बर्थडे पार्टी का आमंत्रण इंटरनैट पर वायरल हो जाना और उस में लाखों लोगों की भीड़ जुटना आश्चर्यजनक तो है, लेकिन इस की एक वजह थी रूबी की सुंदरता. सुंदर चेहरेमुहरे वाली रूबी का फोटो और वीडियो जिस किसी ने देखा, वह उस की सुंदरता का कायल हो गया और उस की बर्थडे पार्टी में शामिल होने को उतावला हो उठा.

इंटरनैट पर सुंदर लोगों के फोटो के वायरल होने का यह अकेला किस्सा नहीं है. हाल में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जब बिलकुल अनजान लोग अपने चेहरे और देहयष्टि की वजह से दुनिया में अचानक चर्चा में आ गए.

पाकिस्तान का चाय वाला

एक चाय वाला जिस का नाम है अरशद खान, पिछले कुछ समय से हर किसी की जबान पर है. नीली आंखों वाले पाकिस्तान के चाय वाले अरशद खान की कुछ तसवीरें एक पत्रकार ने इंटरनैट पर क्या डालीं, वह रातोंरात मशहूर हो गया. इंटरनैट पर मिली शोहरत का नतीजा यह निकला कि अरशद को एक वैबसाइट रीटेल साइट फिटइन डौट पीके ने मौडलिंग के लिए अनुबंधित कर लिया. उसे टीवी शोज में भी बुलाया जाने लगा.

इंटरनैट पर अरशद का फोटो वायरल होने के बाद लड़कियां उसे सुपरमौडल बता रही थीं और फैशन एजेंसियों से उसे हायर करने की सलाह दे रही थीं.

सिक्योरिटी अफसर ली मिनवेइ

अरशद खान की तरह अपनी स्मार्टनैस की वजह से सिंगापुर एयरपोर्ट पर तैनात सिक्योरिटी अफसर ली मिनवेइ भी इंटरनैट का सितारा बना. लोग ली मिनवेइ की ड्यूटी का समय पूछने लगे ताकि उसे देखा जा सके. इस हौट और हैंडसम सिक्योरिटी अफसर का एक फोटो उस की कंपनी सर्टिस सिस्को ने अक्तूबर, 2016 को ट्विटर पर शेयर किया था. वैसे तो ली मिनवेइ सिंगापुर के चांगी एयरपोर्ट पर अपने गुड लुक्स की वजह से पहले से चर्चा में था, लेकिन सोशल मीडिया पर उस की तसवीर आने के बाद तो लोग उस के साथ फोटो खिंचवाने को बेताब दिखने लगे. इंटरनैट पर वायरल होने के बाद ली मिनवेइ ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा कि लोग मुझ से मिलने और मेरे साथ फोटो खिंचवाने के लिए एयरपोर्ट तक चले आते हैं. मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि इंटरनैट ऐसा कमाल कर सकता है.

नेपाल की तरकारी वाली

जैसी चर्चा पाकिस्तान के चाय  वाले की इंटरनैट पर हुई, कुछ वैसा ही नजारा नेपाल में सब्जी बेचने वाली एक लड़की को ले कर देखने को मिला. यह लड़की नेपाल के एक स्थानीय बाजार में जाने के लिए पुल से गुजर रही थी तो उस की कुछ तसवीरें ली गईं. इसी तरह बाजार में सब्जी का ठेला लगाए वह खड़ी दिखाई दी. उस की ये तसवीरें जब ट्विटर पर डाली गईं, तो लाइक करने वालों का तांता लग गया. नेपाल के गोरखा जिले के भूमली चौक में दिखी कुसुम श्रेष्ठा नामक यह लड़की वैसे तो चितवन जिले के रतननगर में मैनेजमैंट की स्टूडैंट है पर त्योहारी छुट्टियों में जब वह सब्जी विक्रेता अपने पिता के घर पहुंची, तो उस ने पिता के कामकाज में हाथ बंटाया. उसी दौरान एक फोटोग्राफर रूपचंद्र महाराज ने उस की ये तसवीरें खींची और उन्हें इंटरनैट पर पोस्ट कर दिया. इन तसवीरों में से एक में वह गोरखा और चितवन के बीच बने फिशलिंग सस्पैंशन ब्रिज पर नजर आ रही है जबकि दूसरी में वह स्थानीय सब्जी मंडी में मौजूद है.

इन तसवीरों के वायरल होने के बाद कुसुम को मौडलिंग के कई औफर मिले और उस ने कुछ हौट फोटोशूट भी कराए. ट्विटर पर हैशटैग प्तञ्जड्डह्म्द्मड्डह्म्द्ब2ड्ड-द्ब के साथ लोगों ने कुसुम के फोटो शेयर किए और उस की खूबसूरती की तारीफ की.

चीन की मिर्ची

बात जब चाय और सब्जी की चली है, तो यह बताना रोचक होगा कि नेपाल की तरकारी वाली की तरह चीन में मिर्च बेचने वाली एक लड़की की तसवीरें भी खूब वायरल हुईं. सोशल मीडिया पर उस के वायरल फोटो देख कर उस की खूबसूरती की तारीफ करते लोगों ने कमैंट किया कि गांव की यह छोरी कई मौडल्स को टक्कर दे सकती है. हालांकि यह नहीं पता चल सका कि यह लड़की चीन के किस गांव की थी. बेशक, इंटरनैट पर खूबसूरत लोगों की तसवीरों के वायरल होने का यह सिलसिला आगे भी चलता रहेगा, क्योंकि प्राकृतिक या स्वाभाविक रूप से सुंदर लोग जरूरी नहीं कि खास तबके से ही हों, साधारण काम करने वाले लेकिन हंसीखुशी जिंदगी गुजारने वाले लोग भी स्वभाव से ही नहीं, शारीरिक रूप से भी कई बार असाधारण सुंदर होते हैं. ऐसे लोगों पर जब किसी की नजर पड़ती है, तो लोग उन्हें देखते ही रह जाते हैं.

लकीर का फकीर न बनें

एक पुरानी कहावत है, ‘लकीर का फकीर बनना’ यानी कहेसुने को गांठ बांध लेना और आंख मूंद कर एक ही ढर्रे पर चलते जाना. यदि घर में धार्मिक मान्यताओं पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है तो घर के बच्चे भी इस में शामिल हो जाते हैं और आंखें मूंदे वही सब करते हैं, जो उन्हें कहा जाता है.

बात सिर्फ पूजाअर्चना या अंधभक्ति तक ही सीमित नहीं है, कई बार तो इन अंधविश्वासों के कारण किशोरों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ जाता है. इस बारे में चंदन कुमार एक वाकेआ सुनाते हैं, कि औल इंडिया मैडिकल प्रवेश परीक्षा के दौरान मेरी मां ने घर से निकलते वक्त मुझे सख्त हिदायत दी कि बगल वाले मंदिर के  पुजारी का आशीर्वाद लिए बगैर परीक्षा देने मत जाना और जो मन्नत का धागा है उसे जरूर अपनी कलाई पर बंधवा लेना, इसे भूलना मत.

इस चक्कर में मैं काफी देर तक मंदिर में पुजारी की प्रतीक्षा करता रहा. वे किसी कार्यवश बाहर गए थे. जब वे काफी देर तक नहीं आए तो आखिर मुझे वहां से निकलना पड़ा. न पुजारी आए औैर न मैं धागा अपनी कलाई पर बंधवा पाया. उलटे देर से पहुंचने पर ऐग्जाम में नो ऐंट्री होतेहोते बची.

मेरे जीवन का यह बहुत कड़वा अनुभव था. मैं ने उस दिन से हर बात को पत्थर की लकीर मानना छोड़ दिया. अब मैं सहीगलत का आकलन कर उस बात पर अमल करता हूं.

एक किशोर होने के नाते मैं अपने दोस्तों को भी यही सलाह दूंगा कि लकीर का फकीर न बनें बल्कि अपने विवेक का इस्तेमाल कर कदम बढ़ाएं.

कई बार हमें बोझिल परंपराओं को मानने के लिए मजबूर होना पड़ता है. हम इन्हें मानने से इनकार नहीं कर पाते. ये सब आज 21वीं सदी में हो रहा है, जब सुपर कंप्यूटर और उन्नत तकनीक के युग में इंसान चांद की यात्रा कर चुका है लेकिन हम आज भी वैचारिक रूप से उन्नत नहीं हुए हैं. अंधविश्वास, ढोंग, जादूटोना आज भी हमारा पीछा नहीं छोड़ रहे हैं और हम बरबस ही अपना अहित न होने की शंका में आंख मूंद कर इन्हें अपनी जिंदगी में उतार रहे हैं.

कुल मिला कर ‘लकीर का फकीर’ बनने की परंपरा को अपने घर से तोड़ने की शुरुआत करें. छोटीछोटी दकियानूसी मान्यताओं मसलन, बिल्ली के रास्ता काटने पर आगे न बढ़ना, हमेशा दही खा कर ही घर से निकलना, छींक आ जाए तो यात्रा रोक देना, जाते वक्त किसी के पीछे से टोकने पर खिन्न होना, शाम को घर में झाड़ू लगाना, टिटहरी की आवाज सुनते ही रामराम करने लगना, रात को पीपल या नीम के पेड़ के आसपास न जाना आदि से बचें.       

ऐसे बनाएं खुद को वैचारिक रूप से सशक्त

– सुनीसुनाई बातों पर यकीन न करें. तथ्य एकत्रित करें, फिर उस पर विश्वास करें.

– ऐक्सप्लोरर बनें. आप का ऐक्सप्लोरर नेचर दूसरों को उस बात को न मानने पर विवश कर सकता है.

– टैबू ब्रेकर बनें. इसी से आप दूसरों के लिए प्रेरक बन सकते हैं. यदि आप के लौजिक में दम होगा तो लोग जरूर आप को फौलो करेंगे.

– ‘रिस्क गेनर’ बनें. अंधविश्वासों और खोखली मान्यताओं के खिलाफ चलें. इस से दूसरों में विश्वास भी पैदा होगा और वे आप का अनुसरण भी करेंगे.                 

अमानत

कानपुर सैंट्रल रेलवे स्टेशन के भीड़ भरे प्लेटफार्म से उतर कर जैसे ही मैं सड़क पर आया, तभी मुझे पता चला कि किसी जेबकतरे ने मेरी पैंट की पिछली जेब काट कर उस में से पूरे एक हजार रुपए गायब कर दिए थे. कमीज की जेब में बची 2-4 रुपए की रेजगारी ही अब मेरी कुल जमापूंजी थी. मुझे शहर में अपना जरूरी काम पूरा करने और वापस लौटने के लिए रुपयों की सख्त जरूरत थी. पूरे पैसे न होने के चलते मैं अपना काम निबटाना तो दूर ट्रेन का वापसी टिकट भी कैसे ले सकूंगा, यह सोच कर बुरी तरह परेशान हो गया. इस अनजान शहर में मेरा कोई जानने वाला भी नहीं था, जिस से मैं कुछ रुपए उधार ले कर अपना काम चला सकूं.

हाथ में अपना सूटकेस थामे मैं टहलते हुए सड़क पर यों ही चला जा रहा था. शाम के साढ़े 5 बजने को थे. सर्दी का मौसम था. ऐसे सर्द भरे मौसम में भी मेरे माथे पर पसीना चुहचुहा आया था. मुझे बड़ी जोरों की भूख लग आई थी. मैं ने सड़क के किनारे एक चाय की दुकान से एक कप चाय पी कर भूख से कुछ राहत महसूस की, फिर अपना सूटकेस उठा कर सड़क पर आगे चलने के लिए जैसे ही तैयार हुआ कि तकरीबन 9 साल का एक लड़का मेरे पास आया और बोला, ‘‘अंकलजी, आप को मेरी मां बुला रही हैं. चलिए…’’ इतना कहते हुए वह लड़का मेरे बाएं हाथ की उंगली अपने कोमल हाथों से पकड़ कर खींचने लगा.

मैं उस लड़के को अपलक देखते हुए पहचानने की कोशिश करने लगा, पर मेरी कोशिश बेकार साबित हुई. मैं उस लड़के को बिलकुल भी नहीं पहचान सका था.

अगले ही पल मेरे कदम बरबस ही उस लड़के के साथ उस के घर की ओर बढ़ चले. उस लड़के का घर चाय की उस दुकान से कुछ ही दूर एक गली में था.

मैं जैसे ही उस के दरवाजे पर पहुंचा, तो उस लड़के की मां मेरा इंतजार करती नजर आई.

मैं ने तो उसे पहचाना तक नहीं, पर उस ने बिना झिझकते हुए पूछा, ‘‘आइए महेशजी, हम लोग आप के पड़ोसी गांव सुंदरपुर के रहने वाले हैं. यहां मेरे पति एक फैक्टरी में काम करते हैं.

‘‘मैं अभी डबलरोटी लेने दुकान पर गई थी, तो आप को पहचान गई. आप रामपुर के हैं न?

‘‘जब आप गांव से कसबे के स्कूल में पढ़ाने के लिए साइकिल से आतेजाते थे, तब मैं सड़क से लगी पगडंडी पर घास काटती हुई आप को हर दिन देखती थी. कभीकभी तो आप मेरे कहने पर मेरा घास का गट्ठर भी उठवा दिया करते थे.’’

पलभर में ही मैं उस लड़के की मां को पहचान गया था. 10 साल पहले की बात है, तब मैं गांव से साइकिल चला कर कसबे के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने जाया करता था. उस समय शायद यह औरत तकरीबन 16-17 साल की थी. तब इस की शादी नहीं हुई थी. यह अकसर पगडंडियों पर अपने गांव की दूसरी औरतों और लड़कियों के साथ घास काटती रहती थी.

उस समय की एक घटना मुझे अब भी याद है. एक दिन मैं ने उन सभी घास वालियों को बहुत भलाबुरा कहते हुए उन पर चोरी का इलजाम लगाया था. हुआ यह था कि मुझे उस दिन स्कूल से तनख्वाह मिली थी. पूरे ढाई हजार रुपए थे तनख्वाह के.

मैं ने एक लिफाफे में उन रुपयों को रखा और अपनी कमीज की ऊपरी जेब में डालते हुए साइकिल से घर चल पड़ा था. उस दिन कई जगहों पर बीचबीच में साइकिल की चेन उतर जाने से उसे चढ़ाते हुए मैं घर आया था.

घर आने पर पता चला कि मेरा रुपयों वाला लिफाफा साइकिल की चेन चढ़ाते समय रास्ते में कहीं गिर गया था. मैं उसी समय साइकिल से रास्ते में अपना रुपयों वाला लिफाफा ढूंढ़ते हुए उन घास वालियों से जा कर पूछताछ करने लगा.

घास वालियों ने लिफाफा देखने से साफ इनकार कर दिया. मैं ने बारबार उन घास वालियों पर शक जताते हुए उन्हें बहुत ही बुराभला सुनाया था और तभी से नाराज हो कर फिर कभी उन के घास के गट्ठर को उठाने के लिए सड़क पर साइकिल नहीं रोकी. मैं ने उस औरत के यहां रह कर कुछ रुपए उधार मांग कर अगले 3 दिनों में अच्छी तरह अपना काम पूरा किया था.

उस औरत का पति बहुत अच्छे स्वभाव का था. वह मुझ से बहुत घुलमिल कर बातें करता था, जैसे मैं उस का कोई खास रिश्तेदार हूं. 3 दिनों के बाद जब मैं वापस जाने लगा, तो उस औरत का पति फैक्टरी के लिए ड्यूटी पर जा चुका था और छोटा बच्चा स्कूल गया था. घर में केवल वह औरत थी. मैं ने सोचा कि चलते समय किराए के लिए कुछ रुपए उधार मांग लूं और घर जा कर रुपया मनीऔर्डर कर दूंगा.

मैं उस औरत के पास गया और उस से उधार के लिए बतौर रुपया मांगने ही वाला था कि तभी वह बोली, ‘‘भाई साहब, अगर आप बुरा न मानें, तो मैं आप की एक अमानत लौटाना चाहूंगी.’’

मैं उस औरत की बात समझा नहीं और हकलाते हुए पूछ बैठा, ‘‘कैसी अमानत?’’

उस ने मुझे पूरे ढाई हजार रुपए लौटाते हुए कहा, ‘‘सालों पहले आप ने एक दिन सभी घास वालियों पर रुपए लेने का जो इलजाम लगाया था, वह सच था.

‘‘जब आप साइकिल की चेन चढ़ा रहे थे, तो आप के रुपए का लिफाफा जमीन पर गिर पड़ा था और आप को रुपए गिरने का पता नहीं चला था. मैं ने दूसरी घास वालियों की नजर बचा कर वह लिफाफा उठा लिया था.

‘‘उस समय मेरे बापू की तबीयत बहुत ज्यादा खराब चल रही थी. दवा के लिए रुपयों की सख्त जरूरत थी और कहीं से कोई उधार भी देने को तैयार न था.

‘‘मैं ने बापू की दवा पर वे रुपए खर्च करने के लिए झूठ बोल दिया कि मैं ने रुपयों का कोई लिफाफा नहीं उठाया है. फिर तो उन रुपयों से मैं ने अपने बापू का अच्छी तरह इलाज कराया और वे बिलकुल ठीक हो गए, उन की जान बच गई.

‘‘इस के बाद मुझे आज तक यह हिम्मत नहीं हुई कि सच बोल कर अपने झूठ का पछतावा कर सकूं.’’

मैं उन रुपयों को अपने हाथ में थामे हुए उस औरत की आंखों में झांकते हुए यह सोच रहा था कि वह झूठ जो कभी किसी की जान बचाने के लिए बोला गया था, झूठ नहीं कहा जा सकता. क्योंकि वह तो इस औरत ने सच की पोटली में अमानत के रुपए बतौर बांध कर अपने पाकसाफ दिल में महफूज रखा हुआ था.

मैं उस औरत के मुसकराते हुए चेहरे को एक बार फिर सच के आईने में झांकते हुए, उस के नमस्ते का जवाब देता हुआ तेज कदमों से रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ गया.                        

जीएसटी को लेकर आपके मन में भी है सवाल तो..

वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) को 1 जुलाई को लागू किया जाना तयशुदा है. हालांकि इसे लागू करने में जहां एक महीने के करीब ही वक्त बचा है, वहीं लोगों और कारोबारियों के मन में इसे लेकर अभी कई सवाल बाकी हैं और कई उधेड़बुन बनी हुई हैं.

इसी के चलते डिपार्टमेंट ऑफ रेवन्यू ने एक नया ट्विटर हैंडल शुरू किया है जिस पर इस नयी अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था से जुड़े उद्योग जगत के सवालों का जवाब दिया जाएगा. व्यापारी और उद्योग जगत ‘एटदरेट आस्कजीएसटी अंडरस्कोर जीओआई’ ट्विटर हैंडल पर सवाल पूछ सकते हैं. केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क के अधिकारी इन सवालों का जवाब देंगे.

@askgst_goi पर जाकर करदाता और व्यापारी-कारोबारी अपने सवालों के जवाब पूछ सकते हैं.  वित्त मंत्रालय ने कहा है कि सभी करदाता और अन्य हितधारकों का उपरोक्त वर्णित ट्विटर हैंडल पर जीएसटी से जुड़े सवाल सीधे पूछने का स्वागत है ताकि उनका जल्द से जल्द समाधान और स्पष्टीकरण किया जा सके.

केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली जीएसटी परिषद ने इस महीने की शुरुआत में जीएसटी के तहत 1200 से ज्यादा वस्तुओं और 500 सेवाओं का टैक्स स्लैब निर्धारित करने का फैसला किया था. इन सभी वस्तुओं और सेवाओं को 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत के चार स्तरीय स्लैब में वर्गीकृत किया गया था.

भूल गए हैं अपने फोन का पासवर्ड!

स्मार्टफोन में निजी जानकारी सेव होने के कारण लोग फोन में पासवर्ड या पैटर्न लॉक लगा लेते हैं. फोन में लॉक के अलावा यूजर्स एप लॉक भी लगाते हैं जिससे उनकी पसर्नल चैट, फोटोज या डॉक्यूमेंट्स कोई और न देख पाए.

यूजर्स फोन गैलरी, व्हाट्सएप, फेसबुक, मैसेज, कॉन्टेक्ट नंबर आदि को लॉक करते हैं. लेकिन जरा सोचिए, अगर कभी आप अपना एप लॉक भूल गए तो क्या होगा? ऐसे में हम आपको एक ऐसा तरीका बताने जा रहे हैं जिसके जरिए अगर आप लॉक कोड या पासवर्ड भूल भी गए हैं तो उसे आसानी से खोल पाएंगे.

पासवर्ड भूल जाने पर कैसे खोलें एप लॉक

आपको बता दें कि जो ट्रिक हम आपको बताने जा रहे हैं वो हर तरह के एप लॉक पर काम करती है. इसके लिए सबसे पहले फोन सेटिंग्स में जाएं और एप्स पर टैप करें.

इसके बाद आपके फोन की स्क्रीन पर एप की लिस्ट ओपन हो जाएगी. अब एप लॉक वाले एप पर टैप करें. आपके फोन में एप लॉक या CM Security जो भी एप हो उस पर क्लिक कर दें.

इसके बाद आपके सामने एक विंडो ओपन होगी जिसमें एप का वर्जन, अनइंस्टॉल समेत कई ऑप्शन दिए गए होंगे. इसमें FORCE STOP पर टैप करें.

अब आपके फोन स्क्रीन पर एक मैसेज आएगा, जिसे आपको OK करना है. जैसे ही यह एप बंद हो जाएगी आपके फोन में लगे एप लॉक भी बंद हो जाएंगे.

यह तरीका तब कारगर होगा जब आपके फोन में होम स्क्रीन और सेटिंग्स में लॉक न लगा हो. इस ट्रिक का इस्तेमाल एप लॉक का पैटर्न भूल जाने पर भी कर सकते हैं.

क्लास में भी ग्लव्स पहनकर जाते थें द्रविड़

चैंपियंस ट्रॉफी के लिए टीम इंडिया के साथ इंग्लैंड गए कोच अनिल कुंबले का कार्यकाल जल्द ही खत्म होने वाला है. भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने नए कोच के पद के लिए आवेदन लेना भी शुरू कर दिया है. अब कोच के पद की दौड़ में राहुल द्रविड़ भी शामिल हो गए हैं.

ऑस्ट्रेलिया के सबसे सफल कप्तान रिकी पॉन्टिंग का कहना है कि पूर्व भारतीय खिलाड़ी राहुल द्रविड़ टीम इंडिया के कोच बनने के लिए सबसे उपयुक्त खिलाड़ी हैं. द्रविड़ ने अंडर-19 और भारत ए टीम की कोचिंग करने के बाद आईपीएल में दिल्ली डेयरडेविल्स के कोच का पद भी संभाला था.

आईपीएल में मुंबई इंडियंस के मेंटॉर रह चुके पॉन्टिंग ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि बीसीसीआई द्रविड़ से बेहतर उम्मीदवार ढूंढ पाएगी. अगर वह इस पद पर काम करने में रुचि रखते हैं तो वह एक अच्छे कोच साबित होंगे. उनके पास काफी अनुभव और जानकारी है, साथ ही वह तीनों प्रारूपों को अच्छे से समझते हैं.”

चलिए आज हम आपको भारतीय क्रिकेट के ‘मिस्टर भरोसेमंद’, ‘दि वॉल’ आदि नामों से पहचाने जाने वाले राहुल द्रविड़ के करियर से अवगत कराते हैं. द्रविड़ भारतीय क्रिकेट के महान बल्लेबाजों में से एक हैं. उनकी गिनती ना सिर्फ भारत के बल्कि विश्व के महान बल्लेबाजों में की जाती है. वे सचिन तेंदुलकर के बाद एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने 10 हजार से ज्यादा रन बनाये हैं.

टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक रन बनाने वाले खिलाड़ियों में द्रविड़ को चौथा स्थान प्राप्त है, उनसे ऊपर भारत के सचिन तेंदुलकर, आस्ट्रेलिया के रिकी पोंटिंग और दक्षिण अफ्रीका के जैक कैलिस के बाद उनका नाम है. राहुल बल्लेबाजी में अपनी तकनीक के कारण विश्वप्रसिद्ध हैं.

करियर रिकॉर्ड

प्रथम क्रम पर बल्‍लेबाजी करते हुए द्रविड़ ने टेस्‍ट और वनडे, दोनों में ऐसी पारियां खेलीं, जो उनके करियर के लिहाज से मील का पत्‍थर रहीं. द्रविड़ की डिफेंस इतनी मजबूत थी कि उनके विकेट को हासिल करना दुनिया के तमाम मशहूर गेंदबाजों की चाहत हुआ करती थी.

राहुल द्रविड़ ने 164 टेस्ट और 344 वनडे मैच खेले हैं. जिनमें टेस्ट में 13,288 और वनडे में 10,889 रन बनाये हैं. वर्ष 2011-12 में उन्होंने दोनों ही फॉरमेट में अपना अंतिम मैच खेला. वर्ष 2012 में इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्‍यास लेने के बाद भी द्रविड़ कोच के तौर पर क्रिकेट से जुड़े हुए हैं.

टेस्ट

11 जनवरी 1973 को मध्‍यप्रदेश के इंदौर शहर में जन्‍मे राहुल शरद द्रविड़ ने जून 1996 में टेस्‍ट करियर का आगाज किया था. टेस्ट में द्रविड़ के नाम 36 शतक और 63 अर्द्धशतक हैं.

इसमें पाकिस्‍तान के खिलाफ रावलपिंडी में खेली गई 270 रन की पारी (वर्ष 2004)और ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ एडीलेड में खेली गई 233 रन की बेहतरीन पारी (वर्ष 2003) शामिल रही. इन दोनों टेस्‍ट मैचों में टीम इंडिया को जीत दिलाने में द्रविड़ के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. टेस्‍ट करियर में राहुल ने पांच दोहरे शतक जमाए और पाकिस्‍तान के खिलाफ 270 उनका टॉप स्‍कोर रहा.

वनडे

द्रविड़ ने 1996 में टेस्ट और एकदिवसीय मैच में डेब्यू किया था. हालांकि वनडे के लिहाज से द्रविड़ की बैटिंग को आदर्श नहीं माना जाता था क्‍योंकि वे हवा में शॉट बेहद कम मौकों पर खेलते थे. लेकिन कई मौकों पर वे बेहद तेज गति से बैटिंग करके अपने आलोचकों को हैरान भी करते रहे. वनडे में द्रविड़ के नाम 12 शतक और 83 अर्द्धशतक हैं.

जब स्कूल की क्लास में भी ग्लव्स पहनकर लिखते थे राहुल

राहुल द्रविड़ के बारे में एक रोचक कहानी है. कहा जाता है कि क्रिकेट के कारण राहुल हमेशा क्लास छोड़ देते थें. एक बार वे क्लास में ग्लव्स पहनकर नोट्‌स लिख रहे थे. यह देख उनके साथियों ने उनका यह कहकर मजाक उड़ाया था कि वो क्लास की सबसे सुंदर लड़की को इंप्रेस करने के लिए ऐसा कर रहे हैं, तो द्रविड़ ने कारण बताया कि वो लड़की तो इंप्रेस है ही दरअसल वे अपने नये ग्लव्स को अपनी हाथों में सेट करने के लिए ऐसा कर रहे हैं.

सबसे सेक्सी खिलाड़ी की उपाधि

वर्ष 2004 में राहुल द्रविड़ को एक मैगजीन द्वारा कराये गये सर्वे में सबसे सेक्सी खिलाड़ी के रूप में चुना गया था. उस सर्वे में द्रविड़ को सानिया मिर्जा और युवराज सिंह से ज्यादा वोट मिले थे. द्रविड़ हिंदी, अंग्रेजी, मराठी और कन्नड़ भाषा अच्छे से जानते हैं.

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