62 साल के विनोद कुमार और उन की 58 साल की पत्नी रजनी दिल्ली के पौश इलाके में एक आलीशान फ्लैट में रहते हैं. यह फ्लैट कुछ साल पहले उन की एकलौती इंजीनियर बेटी सीमा ने अपने मातापिता के लिए खरीदा था. सीमा शादी के बाद आस्ट्रेलिया चली गई. वहां नौकरी करने लगी. 2 साल में एक बार वह अपने मातापिता से मिलने दिल्ली आती. पिछले साल सीमा की बातों से लगा कि वह अपनी शादीशुदा जिंदगी से खुश नहीं है.

उस ने बातोंबातों में अपनी मां रजनी से कहा कि उस का पति रितेश बहुत शराब पीने लगा है, किसी एक नौकरी में टिक कर काम नहीं करता. यही नहीं, पिछले कुछ दिनों से वह गालीगलौज करने लगा है. रितेश और उस का रोज झगड़ा होता है.

रजनी ने अपनी बेटी को समझाया कि किस पतिपत्नी के बीच झगड़ा नहीं होता. कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा. लेकिन 6 महीने पहले जब सीमा ने अपनी मां से फोन पर कहा कि वह रितेश से तलाक लेने जा रही है तो उन का माथा ठनका. तलाक लेने के बाद सीमा आस्ट्रेलिया में ही रह कर अपनी बेटी को बड़ा करना चाहती थी.

रजनी बताती हैं कि उन के परिवार में आज तक किसी ने तलाक नहीं लिया है. जब सीमा ने उन से कहा कि वह तलाक लेना चाहती है तो उन्हें जबरदस्त झटका लगा. उन्होंने उसे समझाने की कोशिश की कि हमारे समाज में तलाक लेना अच्छा नहीं माना जाता. उस की बेटी की सही परवरिश बिना पिता के मुश्किल हो जाएगी.

सीमा ने अपनी मां को समझाया कि आस्ट्रेलिया में तलाक बहुत बड़ी बात नहीं है और हर 10 शादीशुदा दंपती में से 5 या तो तलाकशुदा मातापिता के बच्चे होते हैं या खुद तलाक की प्रक्रिया से गुजरते हैं.

सीमा का तर्क था कि उस ने रितेश के साथ निभाने की बहुत कोशिश की लेकिन उस के साथ रह कर वह एक सामान्य जिंदगी नहीं जी सकती. इस से अच्छा है, वह अलग रहे. ठीक है उस की बेटी को पापा की कमी खलेगी, पर कुछ दिनों तक. उस के बाद वह इस तथ्य को हजारों दूसरे आस्ट्रेलियाई बच्चों की तरह स्वीकार लेगी कि उस के पापा नहीं हैं.

समाज का डर

रजनी ने अब तक अपने परिवार वालों को यह बात नहीं बताई. उन का मानना है कि उन के देवर की बेटी की शादी होने तक उन्हें सीमा के तलाक की बात छिपानी होगी. हो सकता है कि यह जानने के बाद शादी रुक जाए. उन्होंने सीमा से भी कहा कि वह अपनी बहन की शादी में दिल्ली न आए, कोई बहाना बना दे. रजनी बताती हैं कि वे जिस तरह के परिवार से हैं वहां शादी बहुत पवित्र रिश्ता माना जाता है. उन की दूर के रिश्ते की बहन को भी अपनी शादीशुदा जिंदगी में काफी दिक्कतें थीं, पर किसी ने उसे तलाक लेने नहीं दिया. हम औरतों को हमेशा यही सिखाया जाता है कि वे ससुराल में समझौता कर के रहें, पर आजकल की लड़कियों की बात अलग है. वे पढ़ीलिखी हैं और कमाती हैं. वे एक हद से ज्यादा ऐडजस्ट नहीं करना चाहतीं.

यह पूछने पर कि उन की दूर की रिश्ते की बहन ने किस तरह समझौता किया, तो रजनी दबे शब्दों में बताती हैं कि 2-3 साल बाद बहन ने आत्महत्या कर ली थी और उन के पति ने तुरंत दूसरी शादी कर ली, ताकि उन के बच्चे पल जाएं.

रजनी मानती हैं कि उन की बहन के साथ गलत हुआ, अगर वे समय पर अपनी ससुराल से निकल आतीं तो उन्हें आत्महत्या नहीं करनी पड़ती. इस के बावजूद रजनी यही कहती हैं कि तलाक शब्द हमारे परिवार में वर्जित है और हमें अफसोस है कि हमारी बेटी ने तलाक लिया. अब जब वह दिल्ली हम से मिलने आएगी तो हम समाज को क्या मुंह दिखाएंगे?

रजनी और विनोद कुमार की तरह देश में आज 12 प्रतिशत ऐसे बुजुर्ग हैं जिन्हें जीतेजी अपने बच्चों का तलाक देखना पड़ रहा है. इस पीढ़ी ने बड़े उत्साह से अपने बच्चों की शादियां कीं. कभी बच्चों की पसंद पर मोहर लगाई तो कभी उन के लिए अपनी पसंद का जीवनसाथी ढूंढ़ा.

यह सच है कि आज की तारीख में तलाक के नाम पर मध्यवर्गीय परिवार के अधिकांश बड़ेबूढ़े कानों पर उंगली नहीं रखते. 2 दशक पहले तक भी अगर किसी परिवार में किसी  को तलाक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता तो उन्हें समाज और परिवार के दूसरे सदस्यों की तीखी नजरों और प्रहारों से भी गुजरना पड़ता था.

मातापिता की रजामंदी

अब कम से कम शिक्षित परिवारों में अगर लड़का या लड़की किसी कारण से शादी निभा नहीं पाते तो कई बार मातापिता खुद आगे आ कर कहते हैं कि रिश्ता निभ नहीं रहा तो तलाक ले लो, हालांकि आज भी अधिकांश परिवारों में तलाक सब से अंतिम विकल्प होता है. परिवार के सदस्य आखिरी हद तक कोशिश करते हैं कि तलाक होने के बजाय पतिपत्नी के बीच सामंजस्य बिठाया जाए, उन की समस्या दूर की जाए या उन्हें साथ रहने का एक मौका और दिया जाए.

तलाक के कारण कुछ भी हो सकते हैं. आजकल ऐडजस्टमैंट के चलते कई पतिपत्नी एकदूसरे का साथ निभा नहीं पा रहे. रोज के झगड़े और मनमुटाव के चलते वे सामान्य जिंदगी जी नहीं पाते. पति या पत्नी की महत्त्वाकांक्षाएं भी रिश्तों को सामान्य बनाने में आड़े आती हैं.

कामकाजी पतिपत्नी को लगता है कि वे इतना क्यों झुकें? बात अलगाव तक, फिर तलाक तक पहुंच जाती है. युवा दंपती अलग हो जाते हैं, बिना यह सोचे कि उन के मातापिता या भाईबहनों पर उन के तलाक का क्या असर होगा? यह सच है कि तलाक के बाद कई दिनों तक पतिपत्नी सदमे में रहते हैं. शादी का रिश्ता तोड़ना उन्हें अंदर से भी तोड़ जाता है. उन्हें संभालने वाले कई होते हैं, पर जो लोग (मातापिता) सब से ज्यादा टूटते हैं, उन के दिल को तसल्ली देने वाला कोई नहीं रहता.

बच्चों के तलाक का मातापिता पर गहरा असर पड़ता है. जैसे रजनी और विनोद कुमार इतने समय के बाद आज भी सामान्य नहीं हुए हैं और बेटी सीमा के जिक्र से उन दोनों बुजुर्गों की आंखों से पानी बह निकलता है. रजनी का मन तो यह मानने को तैयार ही नहीं कि तलाक के बाद सीमा पहले से कहीं ज्यादा सुकून के साथ जी सकती है. वे अब भी अपना पुरातनपंथी राग अलापती रहती हैं कि पति के बिना कैसे सुखी रह सकती है पत्नी?

क्या वे अपनी बेटी की दूसरी शादी की सोच रही हैं? इस बात पर वे चुप्पी लगा जाती हैं. सीमा के पिता विनोद कुमार जरूर कहते हैं, ‘‘सीमा की मरजी है. हम तो इतनी दूर रहते हैं, क्या सोचें  उस के लिए? तलाक उस ने लिया, अब जो करना है, वही करेगी.’’

मुंबई की रहने वाली सुलेखा अपने बेटे के तलाक से इतना हिल गईं कि अपने पति के साथ एक वृद्धाश्रम में रहने चली गईं. सुलेखा अपने परिवार वालों के बीच अपने बेटे की शादी के टूटने की वजह से शर्मिंदगी सी महसूस करती थीं. सुलेखा ने अपनी सहेली निशा की बेटी की शादी में जाने से इनकार कर दिया. सुलेखा ने निशा को चिट्ठी लिख कर अपने दिल का दर्द बताया कि वे अपने ससुराल वालों और मायके वालों से आंख मिलाते डर रही हैं. सब के सवालों का जवाब देने में वे असमर्थ हैं, इसलिए किसी भी शादी या त्योहार में लोगों से मिलने से कतराती हैं.

शोक किस बात का

सुलेखा की मानसिक स्थिति का जायजा लेती हुई अनुभवी  मनोचिकित्सक डा. आराधना बघेल कहती हैं कि सुलेखा जैसी बुजुर्ग महिला का सामाजिक ऐक्सपोजर बहुत कम रहा है. वे शुरू से अपने परिवार और अपने लोगों के बीच ही रहीं. अगर आप आसपास की दुनिया पर नजर डालें तो फिर बच्चों के तलाक पर आप इतना दुरूह कदम नहीं उठाएंगे. मातापिता को भी आज की तारीख में यह समझना चाहिए कि उन के बच्चों की खुशी ही उन की खुशी है. जिस तरह बच्चों की जबरदस्ती शादी करना गलत है उसी तरह उन के तलाक पर शोक मनाना भी सही नहीं है.

देहरादून की वर्षा इस मामले में पूरी तरह अपनी बेटी के साथ हैं. उन की बेटी की 7 साल पहले अरेंज्ड मैरिज हुई. शादी के शुरू के 2 साल ठीक रहे. फिर दिक्कतें शुरू हो गईं. सास और ननद की जरूरत से ज्यादा दखलंदाजी, पति के दूसरी औरतों के साथ संबंध कुछ ऐसे मुद्दे थे जिन्होंने उन की बेटी को तलाक लेने पर मजबूर किया. दिक्कत आई उन के 4 साल के बच्चे की कस्टडी को ले कर. पति की कोशिश थी कि बेटे की कस्टडी उसे मिले.

वर्षा कहती हैं कि उन की बेटी जब अपने बेटे के साथ घर लौट कर आई, उन्होंने उस का पूरा साथ दिया. उन्होंने पुराना घर बेच कर दूसरी जगह नया फ्लैट ले लिया ताकि पासपड़ोस वालों की खोजी नजरों से बचा जा सके. हालांकि उन्हें यह कहते हुए शर्म या हिचक नहीं कि उन की बेटी अलग हो गई है. वह अगर इन परिस्थितियों में वहां बनी रहती तो उन्हें दुख होता. उन की बेटी नौकरी करती है, वे अपने नाती को संभालती हैं. पिछले साल कोर्ट ने नाती की कस्टडी उन की बेटी को दे दी है. हालांकि उस का पिता हफ्ते में एक दिन उस से मिल सकता है, पर उस ने दूसरी शादी कर ली है और अब उसे अपने बेटे से मिलने की फुरसत ही नहीं है. वे तीनों खुश रहते हैं. अगर उन की बेटी दूसरी शादी करना चाहेगी तो वे इस के लिए भी उसे प्रोत्साहित करेंगी. आखिर वे उस की मां हैं और हर तरह से उस की खुशी चाहती हैं.

दरअसल, विवाह पर आज भी कोई प्रश्न नहीं उठाता, बस प्रश्न उठाते हैं इस से जुड़े विचारों पर. विवाह के बदलते रूप की तरह यह भी जरूरी है कि पुरानी सोच को नया चोला पहनाया जाए तो शायद बुजुर्गों को अपने बच्चों पर शर्मिंदगी नहीं उठानी पड़े.

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