बुजुर्ग और युवा, ये 2 पीढि़यां एक ऐसा पुल है जो नदी के 2 किनारों को जोड़ता है, प्रेम की एक डोर से. लेकिन इन दोनों के बीच पीढ़ी अंतराल एक पहाड़ बन कर खड़ा है. सवाल उठता है कि पीढ़ी अंतराल आखिर है क्या? छोटा सा जवाब है, 2 पीढि़यों के बीच जो असमानता है, जो खाई है, जो दोनों छोर को निगलने के लिए तत्पर है, वही पीढ़ी अंतराल है. युवा पीढ़ी कहती है कि मातापिता हमारी बात नहीं समझते. कहते हैं, ‘मौम यू कांट अंडरस्टैंड मी’ या फिर ‘डैड, आप नहीं समझ सकते’, ‘इट्स नौट लाइक दैट’. मातापिता कहते हैं, ‘बच्चे बड़े हो गए हैं, अब शायद हम से भी बड़े हो गए हैं’ या ‘जमाना बदल गया है, अब हमारी कौन सुनेगा’. ये तसवीरें एक चिंताजनक दृश्य उभारती हैं. 2 पीढि़यों के विचारों में यह असमानता क्या वाकई सचाई है या बनावटीपन है या फिर समस्याओं को टालने का बहाना है. गौर से देखें तो आज दोनों ही पीढि़यां बदल चुकी हैं. अब वह दौर नहीं रहा जब रिटायर होते ही लोग खुद को बेकार समझने लगते थे और लोगों से कट कर बस अपनी जिंदगी के दिन गिनते थे. आधुनिक जीवनशैली ने उन की सोच को पूरी तरह से बदल दिया है. अब वे अपनी वृद्धावस्था को भी पूरी तरह से एंजौय कर रहे हैं.

आज के बुजुर्ग अब दिमागी झंझटों से दूर हो गए हैं. वे आधुनिक जीवनशैली को अपनाना पसंद करते हैं. फेसबुक, वाट्सऐप पर चैट करते हैं और अपनी जिंदगी को जवानी का दूसरा पड़ाव मानते हैं. बुजुर्ग आज न तो उपेक्षित हैं और न आर्थिक रूप से लाचार. अब वे बच्चों की छत्रछाया में नहीं है बल्कि बच्चे खुद उन की छत्रछाया में हैं. वे किसी पर बोझ नहीं हैं. वे अपने स्वास्थ्य, मनोरंजन, अच्छा जीवनयापन, दोस्तों के साथ मौजमस्ती पर पूरा ध्यान देते हैं. उन की जिंदगी के उद्देश्य इस उम्र में भी पूरी तरह स्पष्ट हैं. यही नहीं, वे अपनी निजता बनाए रखने की भी कोशिश करते हैं. वहीं, युवा पीढ़ी यानी नई पीढ़ी विकासशील होने के साथ अधिक योग्य, समझदार, अधिक विचारशील, उन्नत विचार वाली है. उस की नई मान्यताएं हैं, नई महत्त्वाकांक्षाएं हैं.

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