वर्षों से जमीजमाई सियासत की भ्रष्ट परतों को उधेड़ कर राजनीति में उतरे अरविंद केजरीवाल और अन्ना आंदोलन ने देशदुनिया में नया सार्थक उदाहरण पेश किया. कुछ समय से दुनियाभर में ऐसी नई पीढ़ी का उदय हो रहा है जो मौजूदा भ्रष्ट, भेदभावपूर्ण और अकर्मण्य व्यवस्था को ले कर आक्रोशित है और इसे बदलने पर आमादा दिखाई दे रही है. क्रांतियां शताब्दियों में कभीकभार ही होती हैं, क्रांति तो व्यवस्था में बदलाव के लिए जनाक्रोश से पैदा होती है. पिछली शताब्दियों में हुई क्रांतियों ने दुनियाभर में सियासत और सोच को बदला है. व्यवस्था के प्रति आक्रोश से नई सोच का राजनीतिक नेतृत्व निकलता रहा है. अमेरिका में औक्युपाई वालस्ट्रीट, मिस्र में गुलाबी क्रांति तथा भारत में जंतरमंतर पर अन्ना आंदोलन समेत कई देशों में बदलाव के लिए जंग चली. यह जंग भी 17वीं, 18वीं, 21वीं सदी की क्रांतियों जैसी ही है जो धर्म व सामंती वर्चस्व के खिलाफ है. वर्षों से जमीजमाई भ्रष्ट हुकूमत की सोच को बदलने पर सोचना पड़ रहा है. जंतरमंतर के आंदोलन से अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से कन्हैया कुमार, सूरत से हार्दिक पटेल, हैदराबाद से रोहित वेमुला (जिस ने भ्रष्ट, भेदभावपूर्ण राजनीतिक व सामाजिक व्यवस्था के चलते जान गंवा दी थी) जैसे उभरते नेताओं का उदय हुआ है.

ये सभी भ्रष्ट राजनीतिक नेतृत्व और सामाजिक सत्ता को चुनौती देते नजर आ रहे हैं. नई सोच के इन नेताओं को हर संभव दबाने की कोशिशें की जा रही हैं. घबराए पुराने सत्ताधीश इन्हें कुचलने के कुचक्र रच रहे हैं. कुछ नेताओं के खिलाफ झूठे मानहानि, देशद्रोह जैसे कठोर मुकदमे ठोक दिए गए हैं. देश का 80-85 प्रतिशत वर्ग सदियों से धार्मिक व धर्मरूपी राजनीतिक व्यवस्था का गुलाम रहा है. इस व्यवस्था के चलते पीढि़यों से उस की दशा वहीं की वहीं पौराणिक ही है. शिक्षा, रोजगार, रहनसहन, जमीनजायदाद, पैसा, सम्मान जैसे मामलों में उस के साथ हमेशा भेदभाव बरता गया. इन चीजों से उसे वंचित रखा गया और मुगलों व अंगरेजों का 3 बार शासन भी इस हकीकत को बदल न सका.

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