विकासशील भारत की तरक्की में महिलाओं का योगदान कम नहीं है. वे पुरुषों के बराबर या पुरुषों से अधिक वेतन पा कर उच्च पदों पर आसीन हैं. सवाल यह है कि क्या तरक्की की चोटी पर पहुंच कर महिलाओं की स्थिति में कोई खास बदलाव आया है? क्या महिलाएं पुरुषों की तरह सबल हैं? क्या महिलाएं अपने खिलाफ हो रहे अत्याचारों का खुल कर विरोध कर पा रही हैं? शायद नहीं, या शायद हां. कुछ मामलों में तो महिलाएं खुल कर सामने आ जाती हैं जबकि अधिकतर मामले आज भी चारदीवारी के भीतर दफन हो कर रह जाते हैं क्योंकि वे घरेलू बदनामी के डर से चुप्पी साध लेती हैं. ऐसी महिलाएं या तो जीवनभर तिरस्कार सहती हैं या फिर मौत को गले लगा लेती हैं.

घरेलू हिंसा के बढ़े मामले

महिलाएं कामकाजी हों या घरेलू, हर जिम्मेदारी को वे बखूबी निभा रही हैं. बावजूद इस के, घरेलू हिंसा के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं. मारपिटाई, जबरदस्ती और प्रताड़ना से महिलाओं को अब भी दोचार होना पड़ रहा है. पतिपत्नी के बीच हुई कहासुनी से बात अकसर इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि नौबत मारपिटाई तक आ जाती है. यह बात सिर्फ कम पढ़ेलिखे लोगों में ही नहीं, बल्कि हाईप्रोफाइल लोगों में भी कई बार सामने आ चुकी है. आम महिलाओं से ले कर बौलीवुड की कई अभिनेत्रियों के साथ मारपिटाई की घटनाएं सरेआम हो चुकी हैं.

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष तथा वाशिंगटन स्थित संस्था इंटरनैशनल

सैंटर फौर रिसर्च औन वुमेन यानी आईसीआरडब्ल्यु से पता चला है कि भारत में 10 में से 6 पुरुषों ने कभी न कभी अपनी पत्नी अथवा प्रेमिका के साथ हिंसक व्यवहार किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह प्रवृत्ति उन लोगों में ज्यादा देखने को आती है जो आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं.

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