अमेरिका में ट्रंप प्रशासन के आने के बाद नेपाल अपने भविष्य को लेकर चिंतित दिखा. यह चिंता राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बातों में वैश्विक हितों की परवाह न करने की ध्वनि से और बढ़ी. हालांकि नैन्सी पेलोसी के नेतृत्व में नेपाल भ्रमण पर आए डेमोक्रेट सांसदों की यात्रा नेपाल को आश्वस्त करने वाली है. नैन्सी के अनुसार, 70 साल पुराने दोनों देशों के रिश्तों पर अमेरिका में सत्ता परिवर्तन का कोई असर नहीं पडे़गा.

नेपाल में अमेरिका की भूमिका खासी महत्वपूर्ण रही है. 23 जनवरी, 1951 को दोनों देशों के बीच हुए यूएस एड वाले समझौते की परिणति थी कि नेपाल को मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम में बड़ी सफलता मिली. 1951 में हालत यह थी कि नेपाल का हर चौथा व्यक्ति मलेरिया से ग्रस्त था. तराई क्षेत्र तो इससे बुरी तरह त्रस्त था, पर यूएस एड का असर था कि नेपाल न केवल इस संकट से मुक्त हुआ, बल्कि खेती योग्य उपजाऊ भूमि विकसित करने का भी रास्ता खुला.

हाल के वर्षों में नेपाल की शिक्षा प्रणाली पर अमेरिका का खासा असर दिखा है. यूएस एड की पहल पर पहली बार देश में दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम की शुरुआत हुई और तमाम नेपाली इसका लाभ उठा चुके हैं. ऑस्ट्रेलिया और जापान के बाद पढ़ाई के मामले में अमेरिका नेपाली युवकों की पसंद बना हुआ है. इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एजुकेशन के 2015-16 के आंकडे़ बताते हैं कि अमेरिका में कुल विदेशी छात्रों का पांच प्रतिशत नेपाली हैं. हालांकि यह दुर्भाग्यपूण है कि द्विपक्षीय संबंधों से नेपाल के आर्थिक विकास को कोई खास गति नहीं मिली.

प्रधानमंत्री प्रचंड भले आश्वस्त हों कि ट्रंप शासनकाल में अमेरिका-नेपाल के रिश्ते नई ऊंचाइयों पर जाएंगे, पर उन्हें इस आशावाद से आगे जाने की जरूरत है. राष्ट्रपति ट्रंप को अभी बहुत दिन नहीं हुए हैं, लेकिन विदेशी छात्रों सहित अमेरिका की अप्रवासी आबादी को लेकर उनके रुख पर सवाल उठने लगे हैं. यह एक ऐसा मामला है, जिस पर नेपाल के हजारों छात्रों और उनके परिजनों की नजर इसलिए भी लगी रहेगी कि इसी से तय होगा कि अमेरिकी सांसदों के दल के नेपाल भ्रमण में किए गए दावे और वादे कितने सच साबित होते हैं.

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