प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कितने पढ़े हैं, यह विवाद रोचक बन रहा है. साफसफाई और ट्रांसपेरैंसी के पैरोकार नरेंद्र मोदी को अपनी डिग्री के बारे में चुप्पी साधनी पड़ रही है और विश्वविद्यालयों को रिकौर्ड खंगालने पड़ रहे हैं कि उन के यहां कोई नरेंद्र मोदी तो नहीं था. दिल्ली का एक और नरेंद्र मोदी तो सकते में है कि लोग उस के पास पहुंच गए कि कहीं वही तो असल नरेंद्र मोदी नहीं. डिग्री होना या न होना कोई विशेष योग्यता नहीं है पर अगर नहीं है तो छिपाने की बात क्या है, यह समझ से परे है. नरेंद्र मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वे तो केवल 10वीं पास हैं पर बाद में उसी इंटरव्यू में कहा था कि पत्राचार से आगे की पढ़ाई की पर कहां से कब कैसी डिग्री ली, यह नहीं बताया. उस समय उन्हें मालूम नहीं था कि कभी प्रधानमंत्री बनेंगे.

डिग्री को महत्त्च देना अच्छी बात नहीं है पर कठिनाई यह है कि डिग्री ही बताती है कि व्यक्ति से किस तरह की अपेक्षा की जाए. यदि डिग्री न हो तो डाक्टर या वकील से क्या पूछा जाए, यह कभी साफ न होगा. उसे क्या काम सौंपा जाए, यह पता नहीं चलेगा. माना कि देश के स्कूलकालेज लाखों ऐसे डिग्रीधारी निकालते हैं जिन्हें कुछ आताजाता नहीं है, पर यह भी सच है जो भी जहां कहीं अच्छा काम कर रहा है, उस के पास कोई अच्छी डिग्री होती ही है. सफल नेता, जज, अफसर, पत्रकार, उद्योगपति डिग्रीधारी ही होते हैं. कुछ अधपढ़े नेता होते हैं पर वे बाद में अपनी कमजोरियों से मारे जाते हैं. कई बार सफल लोग बनावटी डिग्रियां खरीदते हैं ताकि थ्री इडियट की तरह अपने को योग्य साबित कर सकें. नरेंद्र मोदी इस विवाद को उछलने दे रहे हैं उस से साफ है कि कहीं दाल में काला है. जैसे वे चाय बेचने पर शर्मिंदा नहीं हैं, उन्हें अपनी डिग्री के होने या न होने पर शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं. प्रधानमंत्री के तौर पर वे कमजोर नहीं दिख रहे और डिग्री का शगूफा बेकार का है.

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