अमेरिका में चुनावों के जो परिणाम आए हैं वे भारत के नोटबंदी के फैसले की तरह एक डराने वाले भविष्य का संदेश लाए हैं. डोनाल्ड ट्रंप को रिपब्लिकन पार्टी का टिकट मिल जाना ही एक आश्चर्य माना जा रहा था और तमाम पूर्वानुमानों को अटलांटिक महासागर में डुबोते हुए हिलेरी क्लिंटन पर उन की जीत और साथ ही अमेरिकी संसद के दोनों सदनों में अच्छे बहुमत ने एक सिरफिरे, खब्ती, बड़बोले, सैक्सी, बकबकी शख्सीयत को असीमित ताकत के ढेर पर बैठा दिया है.

दुनियाभर के देशों में सुरसुरी फैल गई है कि सब से शक्तिशाली देश पर राज करने का मौका एक ऐसे व्यक्ति को मिला है जिस में नेतृत्व के गुण दिखते ही नहीं हैं और जो केवल अपने पैसे, दंभ और अमेरिकी जनता में फैल रहे डर के कारण अच्छी अप्रत्याशित जीत पा सका है.

अमेरिका अपने उदार विचारों और हर संस्कृति, रंग, धर्म, देश के लोगों को मैल्ंिटग पौट में खपा लेने के लिए जाना जाता रहा है. दुनियाभर के सताए लोगों को यह उम्मीद रहती थी कि उन पर यदि उन की ही सरकार ने कुछ अति की तो अमेरिका का दबाव पड़ सकता है. खूंखार देशों के आसपास के छोटे देशों को भरोसा रहता था कि रूस व चीन जैसे देश अपनी विशाल सेनाओं का दुरुपयोग कर छोटे देशों को हड़पने की हिम्मत अमेरिका की मौजूदगी के कारण नहीं करेंगे.

अमेरिका में अपनी चाहे लाख कमियां हों फिर भी वह हर तरह के सताए गए और नई उम्मीदों की चाह रखने वालों का भी पनाहगार रहा है पर पहली बार ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति बन गया जो गोरे, कट्टरपंथियों का खुल्लमखुल्ला समर्थक है, जो काले, पीले, भूरे कामगारों के खिलाफ है, जो औरतों को अपनी हद में रहने की वकालत करता है, जो अमीरों का हमदर्द है, जिसे गरीबों पर कोई दया नहीं है, जो दुनियाभर के तानाशाहों को आदर्श मानता है.

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