सर्दियों में दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं. दिख यह रहा है कि इस बार देश में रातें काफी दिनों तक काली ही रहेंगी और दिन भी चमचमाएंगे नहीं कि गुनगुनाती धूप का मजा ले सको. दिन में बैंकों के आगे लाइनों में लगना पड़ेगा और रातों को जाग कर सोचना होगा कि अब क्या होगा. पहले सोचा था कि नोट बदलने का काम 2-3 दिन में पूरा हो जाएगा पर अब लगता है कि यह कई सप्ताह तो चलेगा ही. किशोर जिस जीवनशैली के आदी हो चुके थे वह काफी दिनों तक लौटने वाली नहीं, क्योंकि सरकार ने एक हठधर्मी कदम उठा कर हर जेब में घुस कर डकैती मार ली और मातापिता का ही नहीं बल्कि किशोरों का भी पैसा छीन लिया है. बच्चों की गोलकों को खाली कर दिया गया है, किशोरों का जेबखर्च बंद हो गया है, कोचिंग कक्षाएं रोक दी गई हैं और हो सकता है अगली पहली तारीख के बाद हर स्कूल में फीस न देने के सवाल पर विवाद खड़े होने लगें.

स्कूलों के बाहर मुर्दनी का सा वातावरण है मानो एक अंधियारा छाने वाला हो और सब को घर जाने की जल्दी हो.  अब बाहर खर्च करना कम हो गया है, क्योंकि कम के पास ही 100 रुपए के नोट हैं और पुराने 500 व 1000 के नोट बेकार हो गए हैं. घरों में सब को जेब संभालनी पड़ रही है, इसलिए नहीं कि कमाने वाला बीमार है बल्कि इसलिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना बख्शे देश की हर जेब पर सर्जिकल स्ट्राइक कर के सब का पैसा लूट लिया है और अब मुआवजा ऐसे मिल रहा है मानो भिखारियों को बैंकों से लोन लेने दिया जा रहा हो. यह पाठ है सरकार की असीम शक्ति का, जो कोई किशोर अपनी किसी पाठ्यपुस्तक में नहीं पढ़ पाया. इस तरह की लूट इतिहास में कभीकभार ही होती है और होती है तो भी एकसाथ पूरे देश में नहीं होती. कालेधन, नकली मुद्रा, आतंकवाद की आड़ में हर सामान्य घर को बहाना बना कर हर किशोर के घर में घटाटोप अंधियारा कर दिया गया है. मौसम को सर्द नहीं, बर्फीला बना दिया गया है, जिस में हर नस जकड़ गई है. हाथ जेबें टटोलते रह जाते हैं कि कहीं कुछ रह तो नहीं गया.

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