पड़ोसी के घर में सांप निकला, तो उन्होंने उसे मार दिया. अन्य पड़ोसियों को इस बात का पता चला तो उन्होंने उस पड़ोसी को अधर्मी बताते हुए उस से कहा, ‘‘तुम ने सावन के महीने में बहुत बड़ा पाप किया है. सावन के महीने में तो सांपों को दूध पिलाया जाता है.’’ कुछ दिनों बाद बारिश में भीगने के बाद उस पड़ोसी का 7 वर्षीय बेटा बीमार हो गया तो पड़ोसियों ने इसे सांप की घटना से जोड़ दिया. पड़ोसियों ने उस से पंडितों से पूजापाठ करवाने व उन्हें दिल खोल कर दक्षिणा देने को कहा.

उस ने मजबूरीवश ऐसा ही किया. आखिर कब तक हम ऐसी बेडि़यों में जकड़े रहेंगे? सांप को न मारता तो वह पड़ोसी और क्या करता, यदि सांप उस के  परिवार के किसी सदस्य को डस लेता, तब क्या अनर्थ न होता? 

सुनंदा गुप्ता

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मेरे घनिष्ठ शर्माजी का परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का माना जाता था. बैसाख शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन उन के घर पर धूपपूजा होती थी. घर के सभी लोगों को हिदायत थी कि कोई भी भैरवबाबा की पूजा होने तक अन्नजल ग्रहण नहीं करे. एक बार पूजा में देर हो गई और दिन के 1 बज गए. घर में दादाजी भूखप्यास से व्याकुल हो रहे थे. उन्हें शुगर, रक्तचाप व अन्य बीमारियां थीं. डायबिटीज के मरीज को अधिक समय तक भूखा नहीं रहना होता है. इस बात को जानते हुए भी घर के बाकी सदस्य पूजापाठ के कर्मकांडों में व्यस्त रहे.

समय पर खानापीना न होने से दादाजी अचेत हो गए. उन की अचानक ऐसी स्थिति होने से पूरा परिवार सदमे में आ गया. तत्काल उन्हें अस्पताल ले जाया गया. डाक्टर ने उन की ऐसी हालत देख कर उन्हें आईसीयू में दाखिल करवाया. अस्पताल में 2 दिनों तक उन का इलाज चला.

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