मेरा बेटा तुषार 3 साल का था. एक दिन मैं पौधों को ठीक कर रही थी, तभी उस ने पूछा, ‘‘मम्मी, पौधे क्या खा कर बड़े होते हैं?’’ मैं ने कहा कि मिट्टी खा कर. तब वह कहने लगा कि गुडि़या भी बड़ी हो कर पौधा बन जाएगी क्योंकि वह भी मिट्टी खाती है.

मधु गोयल, बागपत (उ.प्र.)

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मैं अपने 8 वर्ष के बेटे को सामान्य ज्ञान पढ़ा रही थी. उस में एक प्रश्न था कि भारत का फ्लाइंग सिख कौन है?

मैं ने उसे बताया, ‘‘मिल्खा सिंह.’’

उसे सुनाई दिया, मिल्का सिंह. वह मुझ से बोला, ‘‘मम्मी, दूध वाला अपनी बाइक ले कर कैसे उड़ा होगा?’’ यह सुन कर मुझे उस के भोलेपन पर हंसी आ गई.  

हेमलता गुप्ता, जयपुर (राज.)

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मेरी 7 वर्षीय पुत्री श्रेया स्वभाव से बड़ी चंचल, शरारती और हाजिरजवाब है. एक दिन वह मेरे पास बैठी अपने विद्यालय में मिले गृहकार्य को दिखा रही थी और उसे पूरा कराने के लिए ट्यूशन लगवाने की जिद कर रही थी. इस पर मैं ने श्रेया को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, तुम तो पहले से ही बड़ी होशियार हो, फिर ट्यूशन की क्या जरूरत है?’’

इस बात को कुछ दिन ही बीते थे. एक दिन मैं अपनी पत्नी के साथ बैठा बातें कर रहा था. वहीं श्रेया भी बैठी थी. वह बातें पकड़ने में बड़ी तेज है. घर में काम की व्यस्तता के चलते पत्नी ने मुझ से कहा, ‘‘क्यों न घर के काम के लिए एक बाई को रख लिया जाए?’’ यह सुन कर एकाएक अपने चंचलतापूर्ण भोलेपन से उस ने कहा, ‘‘मां, तुम तो घर का काम करने में होशियार हो, फिर काम करने के लिए बाई रखने की क्या जरूरत है?’’ उस की इस हाजिरजवाबी पर हम सब ठहाका मार कर हंस पड़े.

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