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अनुराग जाएंगे कोर्ट

अपनी अलग तरह की फिल्मों के लिए मशहूर निर्मातानिर्देशक अनुराग कश्यप सैंसर बोर्ड से दोदो हाथ करने में जुटे हैं. दरअसल, वे अपनी आगामी फिल्म ‘अगली’ में धूम्रपान विरोधी विज्ञापन जोड़ने से इनकार करने पर सैंसर बोर्ड द्वारा जताई गई आपत्ति के खिलाफ लड़ रहे हैं.

अनुराग अपनी फिल्म को इस तरह की चेतावनी विज्ञापन के साथ प्रदर्शित करने के खिलाफ हैं. उन के हिसाब से यह गैरजरूरी है. गौरतलब है कि पिछले दिनों अनुराग कश्यप कल्की कोचलीन से संबंधविच्छेद होने के चलते सुर्खियों में थे.                       

सैफई महोत्सव में बुरे फंसे सलमान

पिछले दिनों सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के गांव सैफई में रंगारंग महोत्सव हुआ. महोत्सव में सलमान खान, माधुरी दीक्षित समेत कई बड़े सितारों ने शिरकत की. सियासी हलके में इस महोत्सव को ले कर जहां समाजवादी पार्टी की काफी किरकिरी हुई, वहीं सलमान खान की आने वाली फिल्म ‘जय हो’ का अलीगढ़ की यंग ब्रिगेड ने बौयकाट करने का फैसला लिया है. हालांकि, सलमान ने दरियादिली दिखाते हुए उत्तर प्रदेश के एक अस्पताल में बाल एवं शिशु वैंटिलेटर और इको मशीन लगाने के लिए 25 लाख रुपए दिए लेकिन यंग ब्रिगेड ने जिस तरह से विरोध किया है उस से तो यही लगता है सलमान के लिए अच्छी खबर नहीं है.

 

3 डी फिल्मों का जमाना

कुछ साल पहले हौलीवुड ने अपने ‘3 डी’ वर्जन की फिल्मों को भारतीय सिनेमाघरों में रिलीज किया. उस दौरान 3 डी वर्जन में ‘स्पाई किड्स’ शृंखला बड़ी हिट साबित हुई थी. लिहाजा 3 डी फिल्मों के बढ़ते बाजार के मद्देनजर हिंदी में भी 3 डी फिल्मों का चलन शुरू हो गया. हालिया रिलीज ‘शोले 3 डी’ की पहले हफ्ते में 15 करोड़ रुपए से ज्यादा की हुई कमाई से उत्साहित कई निर्माताओं ने अपनी पुरानी फिल्मों का 3 डी वर्जन रिलीज करने की ठानी है. इस क्रम में ‘मुगल ए आजम’, ‘लावारिस’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’ जैसी कई फिल्मों को 3 डी में कन्वर्ट किए जाने की चर्चा है.

अब देखना है कि 3 डी का तकनीकी तड़का पुरानी फिल्मों को किस अंदाज में पेश करता है.

 

 

बड़बोले कपिल का मजाक

कौमेडी की दुनिया में बड़ा नाम बन चुके कपिल शर्मा आजकल कुछ ज्यादा ही बड़बोले होते जा रहे हैं. हंसीमजाक में किसी की भी बेइज्जती करने से गुरेज न करने वाले कपिल इस बार महिला आयोग के शिकंजे में फंस गए हैं.

दरअसल, हाल ही में अपने शो ‘कौमेडी नाइट्स विद कपिल’ के एक एपिसोड में कपिल ने गर्भवती महिलाओं पर एक अभद्र टिप्पणी कर दी जिस को ले कर अब वे कानूनी झमेले में फंसते जा रहे हैं. महाराष्ट्र महिला आयोग की ओर से उन्हें कारण बताओ नोटिस भी भेजा गया.

गौरतलब है कि उक्त एपिसोड में हेमा मालिनी बतौर गेस्ट मौजूद थीं. अब अगर किसी महिला के सामने ही कपिल महिलाओं पर अभद्र बयानबाजी करेेंगे तो फंसेंगे ही. कपिलजी, जरा संभल जाइए. स्टारडम का नशा बड़ा खराब होता है.

 

बिपाशा की शादी

बौलीवुड में इन दिनों लगता है सैलिब्रिटीज पर शादी का बुखार चढ़ा है. तभी तो पहले 2 बड़ी अभिनेत्रियों फिर कुछ टीवी कलाकारों के बाद अभिनेता जौन अब्राहम ने भी गुपचुप तरीके से प्रिया रुंचल से विदेश में शादी रचा ली. अब सुनने में आ रहा है कि जौन की ऐक्स गर्लफ्रैंड बिपाशा बसु भी शादी करने की फिराक में हैं.

इसे संयोग कहें या बिपाशा का जौन को जवाब कि जौन की शादी की खबरों के सप्ताह में ही बिपाशा ने भी अपनी शादी की खबर जगजाहिर कर दी. बिपाशा काफी अरसे से हरमन बावेजा के साथ डेटिंग कर रही थीं. हरमन की फिल्म ‘ढिश्कियाऊ’ के रिलीज होने के बाद वे शादी कर लेंगी. फिल्म के अगस्त में रिलीज होने की संभावना है. यानी बिपाशा भी अगस्त तक मिसेज बावेजा हो जाएंगी.

 

यारियां

यारियां’ कालेज लाइफ की मस्ती पर बनी फिल्म है, जिस में ढेर सारे चुंबन दृश्य हैं, शराब के पैग पर पैग चढ़ाती तंग टौप्स और हौट पैंट पहने लड़कियां हैं, अंग प्रदर्शन है और साथ में है बेहद भद्दी कौमेडी. फिल्म में एक ऐसा कालेज दिखाया गया है जहां सारे के सारे छात्रछात्राएं इश्क के रंग में रंगे हैं, साथ ही अध्यापक और अध्यापिकाएं भी खुलेआम एकदूसरे को लिपटतेचूमते हैं.

कौमेडी का आलम तो यह है कि स्टेज पर दिखाए जा रहे देशभक्ति के प्रोग्राम में एक छात्र जबरन मां का रोल कर रही एक छात्रा के सीने लगना चाहता है और उस से कहता है, मां, लोरी सुना दो. वह छात्रा तुरंत खड़ी हो कर ‘माई नेम इज शीला… शीला की जवानी’ पर नाचने लगती है. इस तरह की फिल्में युवाओं के कैरेक्टर को लूज ही करती हैं.

फिल्म की कहानी कालेज में छात्रों की मस्ती से शुरू होती है. कालेज का पिं्रसिपल लक्ष्य (हिमांशु कोहली) स्वयं सहित अपने 4 साथियों को एक लक्ष्य के लिए चुनता है. उन सब को एक विदेशी व्यापारी से कालेज को बचाना होता है क्योंकि वह विदेशी व्यापारी कालेज की जगह पर होटल व बार बनाना चाहता है. लक्ष्य और उस के साथी बौलीवुडिया तरीके से उस विदेशी के छक्के छुड़ा देते हैं और अपने कालेज को बचा लेते हैं.

फिल्म में पढ़ाईलिखाई का मजाक उड़ाया गया है. प्यार मोहब्बत, चीटिंग को प्रमुखता से दिखाया गया है. छात्र कालेज में पढ़ाई के अलावा सबकुछ करते नजर आते हैं.

फिल्म में 2 मांएं हैं – दीप्ती नवल और स्मिता जयकर. यही कुछ गंभीर लगी हैं. बाकी सभी कलाकार नए हैं. सभी ने उछलकूद ही की है. फिल्म में आस्टे्रलिया में भारतीयों पर होने वाले हमलों को भी दिखाया गया है. फिल्म में पैसा पानी की तरह बहाया गया है. गीतसंगीत कुछ अच्छा है. एक गीत ‘आज तू है पानी पानी…’ अच्छा बन पड़ा है. आस्ट्रेलिया की लोकेशनों पर खूबसूरत फोटोग्राफी की गई है.

मि. जो बी कारवाल्हो

इस फिल्म का टाइटल भले ही ‘जो भी करवा (कारवाल्हो) लो’ हो लेकिन किसी भी कलाकार ने कुछ कर के नहीं दिखाया है. अरशद वारसी की पिछली फिल्मों पर नजर डालें तो उस ने अलगअलग तरह की भूमिकाएं कर बौलीवुड में एक मुकाम बनाया है. लेकिन इस कारवाल्हो ने इतना ज्यादा बोर किया कि हौल में बैठना तक मुश्किल हो गया.

फिल्म की कहानी एकदम फूहड़ है. रहीसही कसर निर्देशक ने पूरी कर दी है. लगता है शूटिंग के दौरान निर्देशक हाथ बांध कर बैठा रहा और उस ने कलाकारों को पूरी छूट दे दी थी कि भैया, जो तुम्हें आता है, कर लो बस. फिल्म पूरी कर लो.

कहानी एक जासूस जो बी कारवाल्हो (अरशद वारसी) की है. एक अंतर्राष्ट्रीय डौन एक किलर कार्लोस (जावेद जाफरी) को अपनी पूर्व प्रेमिका की शादी तोड़ने की सुपारी देता है. दूसरी तरफ एक बिजनैसमैन खुराना (शक्ति कपूर) जो बी कारवाल्हो को अपने प्रेमी के साथ भागी अपनी बेटी की शादी रुकवाने का कौंटै्रक्ट देता है. उधर एक लेडी पुलिस अफसर शांतिप्रिया (सोहा अली खान) कार्लोस को पकड़ने निकलती है. वह जो बी कारवाल्हो की पूर्व प्रेमिका है. वह कारवाल्हो को ही कार्लोस समझ बैठती है. घटनाएं इस तरह घटती हैं कि सभी किरदार गोआ में इकट्ठे होते हैं. कौमेडी स्टाइल में घमासान होता है और सभी भाग जाते हैं. कारवाल्हो को उस की प्रेमिका फिर से मिल जाती है.

फिल्म की इस कहानी में सभी कलाकारों ने ओवरऐक्ंिटग की है. जावेद जाफरी ने जोकरनुमा हरकतें की हैं तो सोहा अली खान ने बिकनी पहन कर अपनी हंसी ही उड़वाई है. शक्ति कपूर चिल्लाता रहा है. कौमेडी के नाम पर कुछ भी नहीं है. गीतसंगीत, निर्देशन, संपादन सभी कुछ बेकार है. छायांकन कुछ अच्छा है. जो बी कारवाल्हो से कह दीजिए, भैया हमें कुछ नहीं करवाना. आप जाइए, हमारा वक्त खराब मत करिए.

 

डेढ़ इश्किया

जिन दर्शकों ने माधुरी दीक्षित को ‘धकधक करने लगा… जिया…’ और ‘एक दो तीन… चार पांच छ: सात…’ गानों पर थिरकते देखा होगा या ‘हम आप के हैं कौन’ फिल्म में ‘दीदी तेरा देवर दीवाना…’ गाने पर मचलते देखा होगा, उन्हें इस फिल्म में एक नई माधुरी दिखाई देगी, जो अब प्रौढ़ावस्था की ओर बढ़ चली है. आज की युवा पीढ़ी को ‘हमरी अटरिया पे आ जा रे सांवरिया…’ जैसे शमशाद बेगम के गाए गाने पर क्लासिकल डांस करती माधुरी दीक्षित कुछ अजीब ही लगेगी. हां, प्रौढ़ हो चली पीढ़ी के दर्शक जिन्हें क्लासिकल ऐक्टिंग ज्यादा पसंद आती है, उर्दू जबान अच्छी तरह समझ लेते हैं और जिन्हें उर्दू की शेरोशायरी में मजा आता है उन्हें इस फिल्म में माधुरी का अंदाज अच्छा लगेगा.

निर्देशक अभिषेक चौबे की ‘डेढ़ इश्किया’ उस की पिछली फिल्म ‘इश्किया’ की सीक्वल है. उस की पिछली फिल्म में चालू मसाले थे, विद्या बालन के गरमागरम सैक्स सीन थे. सब से बड़ी बात फिल्म आम दर्शकों के मतलब की थी जबकि ‘डेढ़ इश्किया’ एक खास वर्ग के लिए है, उन के लिए है जिन्हें क्लासिकल मूवी देखना पसंद है. हालांकि निर्देशक ने इस फिल्म में भी अरशद वारसी और हुमा कुरैशी पर लंबे लिप टू लिप किस सीन फिल्माए हैं, फिर भी उस ने फिल्म में नवाबी माहौल बनाए रखते हुए जबरदस्ती चालू मसाले ठूंसने की कोशिश नहीं की है. उस ने माधुरी दीक्षित को 20-25 साल की युवती दिखाने की कोशिश नहीं की है, बल्कि 30-40 साल की विधवा बेगम के किरदार में दिखाया है. बड़ी उम्र की दिखाते हुए भी उस ने माधुरी को गे्रसफुल दिखाया है. उस ने माधुरी से क्लासिकल डांस भी कराए हैं.

‘डेढ़ इश्किया’ में निर्देशक ने नवाबी कल्चर को दिखाया है. बहुत से दर्शकों को किरदारों द्वारा उर्दू में बोले गए संवाद भले ही अटपटे लगे जैसे ‘इंतजारी टिकट’ यानी वेटिंग लिस्ट, फिर भी सुनने में ये संवाद अच्छे लगते हैं.

पिछली ‘इश्किया’ में नसीरुद्दीन शाह और अरशद वारसी के किरदार खालू और बब्बन छोटेमोटे चोर थे, इस फिल्म में भी ये दोनों किरदार छोटेमोटे चोर हैं. दोनों का लुक वैसा ही है जैसा पिछली फिल्म में था. इस के बावजूद नसीर का किरदार अलग अंदाज लिए है. वह नवाब जैसा दिखता है और उस का लिबास मिर्जा गालिब सा है.

कहानी पुराने दौर की है परंतु चलती आज के दौर में है. खालूजान (नसीरुद्दीन शाह) और बब्बन (अरशद वारसी) चोर हैं. इस बार खालूजान एक जौहरी से बेशकीमती हार चुरा कर भाग कर महमूदाबाद पहुंचता है. वहां की विधवा बेगम पारा (माधुरी दीक्षित) ने अपने स्वयंवर के लिए एक मुशायरा आयोजित किया है. खालूजान एक नकली नवाब बन कर वहां पहुंचता है. वह बेगम से प्यार करने लगता है. उस का मकसद बेगम की तिजोरी से दौलत हथियाना है.

उधर, बब्बन खालूजान को ढूंढ़ता हुआ महमूदाबाद पहुंचता है. उसे वहां बेगम की खास सेविका मुनिया (हुमा कुरैशी) से इश्क हो जाता है. बेगम के स्वयंवर में कई नवाब पहुंचते हैं जिन में जौन मोहम्मद (विजयराज) भी है. उस का लक्ष्य बेगम का शौहर बन कर नवाबी पदवी पाना है. स्वयंवर में बेगम जान मोहम्मद को विजयी घोषित करती है. तभी बब्बन बेगम का किडनैप कर लेता है. खालूजान भी पीछेपीछे पहुंच जाता है. तभी रहस्य खुलता है कि बेगम ने ही खुद को किडनैप कराया था ताकि वह जौन मोहम्मद से मोटी रकम ऐंठ सके. खूब घमासान होता है. खालूजान को बेगम नहीं मिल पाती. इसलिए वह बब्बन के साथ फिर से चोरी की दुनिया में लौट जाता है.

पूरी फिल्म नसीरुद्दीन शाह और माधुरी दीक्षित पर टिकी है, परंतु जो बढि़या ऐक्टिंग विजयराज ने की है, उस का मुकाबला नहीं. फिल्म की पटकथा अच्छी है. मध्यांतर से पहले का भाग कुछ अच्छा है. फिल्म का आखिरी हिस्सा बोझिल बन गया है.

अरशद वारसी और नसीरुद्दीन शाह के किरदारों में अच्छा तालमेल है. मनोज पाहवा भी प्रभावशाली है. फिल्म में बस एक ही कमी है और वह है इस की भाषा. संवादों में उर्दू और फारसी के शब्द काफी हैं, जो आज की युवा पीढ़ी को शायद समझ नहीं आएंगे.

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