अनिरुद्ध, तेजस और नक्षत्र तीनों सोच रहे थे कि इस बार छुट्टियों में किसी ऐसे स्थान पर घूमने जाएं जहां कम खर्च हो और यात्रा रोमांचक और ज्ञानवर्धक भी हो. तरहतरह के आइडियाज तीनों ने पेश किए, लेकिन कोई आइडिया बोरिंग था तो कोई ज्यादा खर्चीला. इस चर्चा से वे रोमांचित और उत्साहित जरूर हुए थे. अभी तीनों इस बात पर चर्चा कर ही रह थे कि नक्षत्र की नजर अचानक सैंटर टेबल पर रखी पत्रिका सरिता के नए पर्यटन विशेषांक पर पड़ी तो वह एकदम उछल पड़ा और बोला, ‘‘क्यों न हम इस बार कहीं पहाड़ी पर्यटन स्थल पर घूमने चलें?’’
‘‘फिर वही बात, घूमनेफिरने में पैसा और समय ज्यादा खर्च होता है और यह हम लोग पहले ही तय कर चुके हैं कि पैसा खर्च नहीं करना है,’’ बगैर नक्षत्र की मनशा जाने तेजस बोल पड़ा. वह आगे और बोलता इस से पहले ही नक्षत्र ने समझाया, ‘‘अरे यार, मैं तो अपना भोपाल घूमने की बात कर रहा हूं टूरिस्टों की तरह.’’ ‘‘आइडिया अच्छा है,’’ अनिरुद्ध बोला, ‘‘पर सबकुछ तो हमारा देखा हुआ है.’’
‘‘नहीं है सबकुछ देखा हुआ,’’ नक्षत्र जैसे चुनौती देते हुए बोला, ‘‘हम ने पूरा भोपाल कहां देखा है. सभी दोचार जगह गए हैं और वह भी काफी पहले, जब पर्यटन के बारे में हम कुछ जानतेसमझते नहीं थे. अब हम सैलानियों की तरह घूमेंगे तो देखना एक अलग अनुभव होगा,’’ अपनी बात में दम लाते हुए नक्षत्र बोला, ‘‘और इस में पैसा भी ज्यादा खर्च नहीं होगा.’’
थोड़ी सी चर्चा के बाद तीनों इस प्रस्ताव पर सहमत हुए और तय किया कि वे लो फ्लोर बस से घूमेंगे और पैसे बचाने के लिए स्नैक्स और खाना घर से ले जाएंगे.
आइडिया सर्वसम्मति से पास हो गया तो तीनों ने कम खर्च में अपना शहर भोपाल घूमने के लिए बजट बनाना शुरू कर दिया.
‘‘मेरे खयाल से 500-500 रुपए इकट्ठा कर लेते हैं तो आराम से घूम लेंगे,’’ तेजस बोला.
‘‘500-500 रुपए, आखिर इतना खर्च कहां होगा. जब खाना घर से ले जाएंगे और लो फ्लोर बस से घूमेंगे तो पैसे तो बहुत कम खर्च होंगे, वे भी सिर्फ किराए में…’’नक्षत्र अपनी बात पूरी कर पाता इस से पहले ही अनिरुद्ध बोल पड़ा, ‘‘और बाकी आइसक्रीम में…’’
तीनों हंस पड़े. उन्हें समझ आ गया था कि वाकई खर्च कुछ खास नहीं होगा और लुत्फ काफी उठाया जाएगा. इस के बाद प्लान तैयार हो गया और कितना खर्च आएगा इस का हिसाब लगा लिया गया. 100 रुपए हर रोज हर व्यक्ति के हिसाब से खर्च होगा. अनिरुद्ध ने डायरी में बाकायदा इस का ब्योरा लिखा और रूट भी तय कर लिया. तीनों ने अपनेअपने घर जब छुट्टियां बिताने का यह आइडिया बताया तो उन के मम्मीपापा को भी बहुत अच्छा लगा सो उन्होंने झट इजाजत और पैसों के साथसाथ नसीहतें भी दे डालीं कि संभल कर घूमना, किसी से लड़ाईझगड़ा मत करना, अच्छे से पर्यटन स्थल देखना, वहां का इतिहास और उस जगह का महत्त्व समझना. दूसरे दिन तीनों तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक सुबह 6 बजे न्यू मार्केट के बस स्टौप पर इकट्ठा हुए. तीनों के हाथ में टिफिन और पानी की बोतलें थीं. अनिरुद्ध दूरबीन और तेजस अपना स्मार्टफोन लाया था, तो नक्षत्र के हाथ में डायरी और पैन था.
‘‘यहां से हम बस से स्टेशन जाएंगे और वहां से बुदनी तक पैसेंजर ट्रेन में चलेंगे, जिस में किराया सिर्फ 10 रुपए है,’’ अनिरुद्ध ने उत्साहित हो कर बताया, ‘‘इस तरह 30 रुपए में हम भीमबैठका पहुंच जाएंगे. हालांकि बुदनी से 5-7 किलोमीटर तक पैदल परेड करनी पड़ेगी.’’
पैदल चलना उन के लिए अब फिक्र की नहीं बल्कि खुशी की बात थी. 300 रुपए में 3 लोगों को भोपाल के सभी पर्यटन स्थल घूमने थे. ट्रेन में आराम से जगह मिल गई तो तीनों भीमबैठका के बारे में बातें करने लगे. नक्षत्र ने किंवदंतियों के आधार पर बताया कि महाभारत में जिक्र है कि पांडवों का ताकतवर पहलवान भाई भीम यहां बैठा करता था इसलिए इस जगह का नाम भीमबैठका पड़ा.
यों ही बातें करते 50 मिनट का सफर कट गया, उन्हें पता भी नहीं चला. बुदनी स्टेशन उतरे तो तीनों को नया अनुभव हुआ. यह छोटा सा स्टेशन था, जिस में कोई खास चहलपहल यानी भीड़भाड़ नहीं थी. चारों तरफ कच्चेपक्के मकान और खेतखलिहान देख मन खुश हो गया. 8 बजे गए थे और अब धूप पड़ने लगी थी लिहाजा, एहतियात बरतते हुए तीनों ने अपनीअपनी कैप लगाई और गौगल्स भी पहन लिए. स्टेशन से बाहर आ कर पैदल चलना शुरू किया तो इन्हें लगा मानो वे किसी दूसरी दुनिया में आ गए हों. स्टेशन से आधा किलोमीटर चलने के बाद ही खेतखलिहानों की शृंखला शुरू हो गई. अनिरुद्ध ने बताया कि यहां बहुत घने जंगल हैं और कभीकभी जंगली जानवर भी दिख जाते हैं. जंगल देख रोमांचित हो रहे नक्षत्र ने आम के पेड़ों पर लटकते हुए कच्चे आम देखे तो खुद को रोक नहीं पाया और पत्थर मार कर आम तोड़े. तीनों यह देख कर हैरान थे कि जो कच्चे आम यहां से महज 35 किलोमीटर दूर 20 रुपए किलो बिक रहे हैं वे यहां पेड़ों के नीचे ऐसे ही बिखरे पड़े हैं और इन्हें उठानेतोड़ने पर कोई एतराज भी नहीं जताता. मन तो हुआ कि थैला भर कर घर ले चलें पर ढोएंगे कैसे? अत: दोचार ही रखे.
पैदल चलने का मजा, जोश और लुत्फ 2 किलोमीटर तक ही कायम रहा. थकहार कर तेजस ने पहल की, ‘‘भाइयो, थोड़ा सुस्ता लें.’’
बाकी दोनों भी यही चाहते थे पर झेंप की वजह से कह नहीं पा रहे थे. लेकिन कहीं बैठ कर सुस्ताने के बजाय तीनों ने लिफ्ट ले कर भीमबैठका जाना बेहतर समझा. हाईवे पर फर्राटे से वाहन आजा रहे थे. थोड़ी कोशिश के बाद एक ट्रक वाले ने लिफ्ट दे दी तो तीनों खुशी से झूम उठे. 15 मिनट बाद ही वे भीमबैठका में थे. तय हुआ था कि भीमबैठका में ही नाश्ता करेंगे, लेकिन वहां उतरते ही तीनों सुधबुध खो बैठे. इतनी खूबसूरत जगह और हरियाली उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थी, इस पर यहां से वहां कूदतेफांदते बंदर देख कर तो वे खानापीना और थकान भूल गए और सीधे अंदर जा पहुंचे.
पुरातत्त्व विभाग के बोर्ड और कर्मचारियों से उन्हें पता चला कि भीमबैठका के कई शैलचित्र तो 12 हजार साल पुराने हैं. चट्टानों पर बारीकी से उकेरे गए चित्र उन्हें समझ नहीं आए, लेकिन एक कर्मचारी की बातों से मालूम हुआ कि ये तिरछीआड़ी रेखाएं और आकृतियां दरअसल आदिमानव की भाषा है और ये प्रागैतिहासिक काल की हैं. जैसेजैसे वे अंदर बढ़ते जा रहे थे, वैसेवैसे ठंड और बढ़ती जा रही थी. इस वक्त इक्कादुक्का पर्यटक ही उन्हें नजर आए. इसी दौरान इन्हें यह भी पता चला कि यह विंध्य पर्वतमाला की शृंखला का एक हिस्सा है. कुछ चित्र देख कर तीनों ने अंदाजा लगाया कि प्राचीन मानव का रहनसहन कैसा रहा होगा. जानकारी के लिहाज से उन के लिए यह नई और रोमांचित कर देने वाली बात थी. फिर तीनों ने नाश्ता किया और पर्यटन विभाग के होटल के बाहर लगे कूलर से बोतलों में ठंडा पानी भरा. हालांकि उन का यहां से जाने का दिल नहीं कर रहा था पर वक्त कम था इसलिए गुफाएं देख कर वे सड़क पर आ गए और अगले पड़ाव भोजपुर के मंदिर का रुख किया. तरीका वही लिफ्ट लेने का अपनाया, लेकिन इस बार किसी ने लिफ्ट नहीं दी तो वे औबेदुल्लागंज से आ रही एक यात्री बस में सवार हो गए, जिस के कंडक्टर ने स्कूली बच्चे समझ पैसों के लिए उन से ज्यादा झिकझिक नहीं की. कैशियर और मैनेजर बने अनिरुद्ध ने अपने हिसाब से 30 रुपए कंडक्टर को थमा दिए तो उस ने हंसते हुए चुपचाप रख लिए. वह समझ गया था कि लड़के शरीफ हैं और घूमनेफिरने की गरज से निकले हैं.
भोजपुर मंदिर के बारे में तीनों ने बहुत कुछ सुना था पर यहां आने का उन का यह पहला मौका था. सड़क पर उतर कर पैदल चलना पड़ा लेकिन इस बार थकान नहीं हुई, क्योंकि यहां चहलपहल ज्यादा थी और ज्यादा लंबा भी नहीं चलना पड़ा. भोजपुर गांव में दाखिल होते ही पैरों में मानो जान आ गई. मंदिर का विशाल प्रांगण हैरान कर देने वाला था. ऊपर चढ़ते वक्त गांव वालों ने बताया था कि मंदिर के पीछे एक बगीचा भी है और नदी भी बहती है. नदी का नाम सुनते ही तीनों का नहाने का मन हुआ पर घर वालों की नसीहत याद आ गई तो उन्होंने यह इरादा भी खारिज कर दिया जो खतरनाक भी साबित हो सकता था. यहीं उन्हें पता चला कि यह शंकर मंदिर भोजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है और इसे पूर्व का सोमनाथ भी कहा जाता है. गर्भगृह में झांक कर देखा तो विशाल शिवलिंग देख कर वे हैरान रह गए, जिस की ऊंचाई 2.1 मीटर और परिधि 5.1 मीटर है. 11वीं शताब्दी में राजा भोज ने इसे बनवाया था और उन्हीं के नाम पर भोपाल का नाम पड़ा था जो पहले भोजपाल था.
मंदिर के पीछे दर्शनीय बगीचे में बैठ तीनों थोड़ा सुस्ताए और फिर भोपाल की तरफ रुख किया. अब सूरज सिर पर था. बाकी भोपाल घूमने के लिए 6-7 घंटे ही बचे थे, पर वे निश्चिंत थे कि अब शहर के काफी पास आ गए हैं. नीचे आ कर एक टपरीनुमा होटल में इन्होंने चाय पी और मुख्य सड़क पर आ कर मिनी बस में बैठ कर अपनी रोमांचक यात्रा के तीसरे पड़ाव अरेरा पहाड़ी पर बने बिड़ला मंदिर जा पहुंचे जो पहले तीनों ने अपने परिवारों के साथ देखा था, लेकिन अकेले आ कर घूमने का मजा ही और था. यहां उन्होंने भीमबैठका और भोजपुर की तरह मोबाइल से खूब फोटो खींचे और सैिल्फयां भी लीं.
पेड़ की छाया में बैठ कर तीनों ने लंच किया तो उस का स्वाद ही कुछ और लगा, जिस की वजह तेज भूख और रोज की तरह हट कर खाने का मजा और मौका था. यहां से इस तिकड़ी ने रुख किया पुराने भोपाल का और बस से जा पहुंचे सीधे ताज उल मसजिद, जो देश की सब से बड़ी मसजिद है. शाहजहां द्वारा निर्मित गुलाबी रंग की इस मसजिद की नक्काशी देख वे हैरान रह गए. पुराने भोपाल में जल्द ही तीनों ने गोहर महल और शौकत महल भी देख डाले, क्योंकि अब उन्हें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय पहुंचने की जल्दी थी जो अपनेआप में अनूठा संग्रहालय है. तेजस को इतना पता था कि संग्रहालय में आएदिन सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं, पर यहां पहुंच कर उन्हें पता चला कि श्यामला हिल्स पर बना यह संग्रहालय कोई 200 एकड़ क्षेत्र में फैला है, जिस में देश के विभिन्न हिस्सों से लाई गई मूर्तियों को रखा गया है. मानव संग्रहालय के नाम से जाने जाने वाले इस संग्रहालय में जनजातीय जीवन से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण और उपयोगी जानकारियां उन्हें मिलीं.
संग्रहालय घूमने में थोड़ा वक्त लगा पर कई जगह आदिवासी मूर्तियां देख तीनों को लगा मानो ये अभी बोल पड़ेंगी. इतनी सजीव मूर्तियां उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थीं. जगहजगह बने कौटेज में बैठ कर वे सुस्ताए और फोटो भी खींचे.
यहीं कैंटीन में तीनों ने चायनाश्ता किया और यहां से बागणगंगा रोड स्थित पुरातत्त्व संग्रहालय देखने भारत भवन जा पहुंचे, जो दुनिया भर में मशहूर है. 1982 में निर्मित भारत भवन दरअसल सास्ंकृतिक, साहित्यिक और रचनात्मक कलाओं का केंद्र है. भारत भवन का नाम आएदिन अखबारों में छपता रहता है, क्योंकि यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते हैं. अंदर घूम कर पता चला कि अलगअलग हिस्सों व प्रकोष्ठों के नाम भी अलगअलग हैं, जैसे रूपांकर, रंगमंडल बागर्थ और अनहद.
इसे प्रसिद्ध वास्तुकार चार्ल्स कोरिया ने डिजाइन किया था, यह भी इन्होंने पहली बार जाना. बाहर जातेजाते तीनों की नजर एक पुस्तकालय पर पड़ी, जिस में विभिन्न साहित्यिक पुस्तकें थीं.
वीआईपी रोड आ कर उन्हें महसूस हुआ कि क्यों उन के शहर को झीलों और तालाबों का शहर कहा जाता है. शाम हो चली थी और यह उन का आखिरी पड़ाव था, इसलिए अब वे बेफिक्री से जू जाने वाली इस रोड पर चल रहे थे. यह रास्ता एयरपोर्ट भी जाता है. पशुपक्षियों के स्वच्छंद विचरण के लिए मशहूर वन विहार वे स्कूल की तरफ से पहले भी 3 बार आ चुके थे. कुछ देर किनारे खड़े हो कर उन्होेंने तालाब को निहारा तो मन झूम उठा, क्योंकि इस भीषण गरमी में भी तालाब में पानी बहुत था और नावें और मोटरबोट चल रही थीं. शाम के वक्त की भीड़भाड़ और चाटखोमचे वाले माहौल को और मस्त बनाने में लगे थे.
अब शाम के 7 बज चुके थे, तीनों का मारे थकान के बुरा हाल था, लेकिन घूमने की इच्छा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी. अत: उन्होंने तय किया कि अब बोट क्लब की ओर चला जाए.
अनिरुद्ध ने मन ही मन हिसाब लगाते हुए बताया कि अभी 80 रुपए और बचे हैं तो तेजस और नक्षत्र की हैरानी का ठिकाना नहीं रहा, उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि इतने कम पैसों में उन्होंने भोपाल भ्रमण कर लिया है और उस के बाद भी कुछ पैसे बच गए हैं. वे मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा विकसित पिकनिक स्पौट सैरसपाटा नहीं गए, क्योंकि वहां अकसर जाते रहते थे. सैरसपाटा में बच्चों के मनोरंजन के तमाम साधन मौजूद हैं, झूले, रेलगाड़ी और रैस्टोरैंट आदि.
‘‘चलो, बचे हुए पैसों से बोट क्लब पर आइसक्रीम खाएंगे, जिस से गला तर हो जाए,’’ नक्षत्र ने प्रस्ताव रखा तो तुरंत दोनों ने उस पर हामी भर दी. पैदल ही तीनों बोट क्लब पहुंचे तो वहां भी खासी चहलपहल थी. तीनों ने वहां आइस्क्रीम खाई और अपनेअपने घर जाने से पहले एकदूसरे को गुडबाय कहा. तीनों ही घर जा कर मम्मीपापा को दिन भर की कहानी बताने के लिए बेचैन थे. नक्षत्र ने दूसरे दिन जो कुछ भी पर्यटन स्थलों के बारे में नोट किया था उसे तेजस और अनिरुद्ध के व्हाट्सऐप नंबर पर शेयर किया तो तेजस ने फोटो साझा किए. यह उन तीनों का अब तक का एक यादगार टूर था, जिसे उन्होंने खुद प्लान किया था और मात्र 100 रुपए में पूरा भोपाल घूम लिया था.