बढ़ते शहरीकरण और सिमटती जीवनशैली का एक चिंतनीय प्रभाव पुरानी तो पुरानी, नई पीढ़ी पर भी यह पड़ रहा है कि बच्चे एकाध एकड़ के खेत को ही जंगल और खरगोश व कुत्ते जैसे जानवरों को ही वन्यजीव समझने लगे हैं. निसंदेह यह स्थिति उन्हें न केवल प्रकृति से दूर कर रही है बल्कि उन्हें वन्यजीवन के लुत्फ व रोमांच से भी वंचित कर रही है. पर, अच्छी और सुकून देने वाली बात यह है कि लोगों का रुझान अब तेजी से पर्यटन में बढ़ रहा है और इस में भी उन की प्राथमिकता वाइल्डलाइफ है. वन्यजीवन को नजदीक से देखने, महसूस करने और समझने के लिए छत्तीसगढ़ बेहतर राज्य है जहां कुदरत ने जंगल इफरात से संजोए हैं और तरहतरह के दुर्लभ पशुपक्षी भी अपना आशियाना यहां बनाए हुए हैं. इसीलिए सैरसपाटे के शौकीन सैलानी अब बड़ी तादाद में छत्तीसगढ़ का रुख करने लगे हैं. वे यहां के वन्यजीवन को नजदीक से देख शहरी आपाधापी को भूलते, कुदरत के बख्शे नजारों को देख सुधबुध खो बैठते हैं.

3-3 राष्ट्रीय उद्यान — कांगेर घाटी, इंद्रावती और गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान इस राज्य की ही नहीं, बल्कि देश की भी शान हैं. 11 अभयारण्यों में कई दुर्लभ वनस्पतियां और ऐसेऐसे पशुपक्षी मौजूद हैं जो पर्यटकों को ऐसे सम्मोहन में बांध लेते हैं कि उन का मन बारबार यहां आने को करता है.

कुदरती खूबसूरती और जैव विविधता के लिए मशहूर कांगेर नैशनल पार्क में घूमती हजारों तरह की रंगबिरंगी तितलियां देखना अपनेआप में एक अलग एहसास है. जगदलपुर से महज 25 किलोमीटर दूर इस पार्क की और भी कई खूबियां हैं जिन में से एक है छत्तीसगढ़ का राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना जो इंसानी आवाज की हूबहू ऐसी नकल करती है कि पर्यटक अचंभित रह जाते हैं.

कांगेर नैशनल पार्क में चीता, बाघ, जंगली बिल्ली, लंगूर, जंगली भेडि़या, चीतल, अजगर, कोबरा जैसे दर्जनों पशुओं को नजदीक से देखने का रोमांच ही अलग है. पर एक बड़ा आकर्षण वहां उड़ने वाली गिलहरी भी है.

जगदलपुर से नीचे उतरने पर पड़ता है इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान जो बस्तर संभाग के बीजापुर जिले से ले कर भोपालपट्टनम तक 800 किलोमीटर में फैला हुआ है. इंद्रावती नदी इस नैशनल पार्क में जगहजगह दिखती है. अधिकतर पर्यटक, शोधार्थी और वन्यजीवन में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के यहां आने की एक बड़ी वजह जंगली भैंसों का सहजता से दिखना भी है. सागौन, शीशम, साजा, सलाई, बीजा और सार के अलावा जामुन व तेंदू के पेड़ इंद्रावती नैशनल पार्क की शान में चारचांद लगाते हैं. यहां आप 102 तरह के वृक्ष, 46 तरह की झाडि़यां और 28 तरह की लताएं देख कर हैरान रह जाएंगे.

बैकुंठपुर जिला कोरिया का गुरु घासीदास नैशनल पार्क भी कम अद्भुत नहीं जो साल 2001 में बना था. घने जंगलों और पशुपक्षियों के अलावा इस नैशनल पार्क से 3 नदियां हो कर बहती हैं. यहां आ कर लगता है मानो किसी स्वप्नलोक में खड़े हैं. छत्तीसगढ़ के वन्यजीवन को शब्दों में बांध पाना बेहद मुश्किल और चुनौतीभरा काम है.

राजधानी रायपुर से 100 किलोमीटर दूर स्थित बारनवापारा अभयारण्य देखते ही यह बात स्पष्ट भी हो जाती है कि अगर वाकई वाइल्डलाइफ को समझना, देखना और उस का लुत्फ उठाना है, एक दफा यहां आना जरूरी है. यहां सबकुछ है. छत्तीसगढ़ टूरिज्म बोर्ड यहां वे सभी सहूलियतें मुहैया करा रहा है जिन की जरूरत आम व खास दोनों तरह के पर्यटकों को पड़ती है.      

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