बिहार की राजधानी पटना का इतिहास देश के सब से प्राचीन गौरवशाली इतिहासों में एक है. यहां एक के बाद एक प्रतापी राजाओं का शासन रहा जिन्होंने अपने राजवंश की ख्याति को बढ़ाते हुए अपनी राजधानी को हर बार एक नया नाम दे कर संबोधित किया. कुसुमपुर, पुष्पापुर, पाटलिपुत्र, अजीमाबाद और अब इस का नाम पटना पड़ा है. मगध नरेश अजातशत्रु ने 600 ईसापूर्व पाटलिग्राम में गंगा नदी के किनारे एक छोटा सा किला बनाया था, जोकि बीते समय तक इस की शानोशौकत का परिचय देता रहा. आज भी वही शानशौकत इस के आसपास के क्षेत्रों जैसे कुमराहर, अगम कुआं, बुलंदी बाग, कंकड़ बाग क्षेत्रों में देखी जा सकती है. गंगा किनारे तक फैला होने के कारण यह शहर उपज की दृष्टि से भी बहुत समृद्ध रहा है. इसीलिए लंबे समय से कृषि क्षेत्र का बड़ा व्यापारिक केंद्र भी रहा है.

दर्शनीय स्थल

स्मृति स्मारक : भारत छोड़ो आंदोलन में मारे गए 7 शहीदों की याद में यह स्मारक बनाया गया है. आजादी के ये दिवाने सचिवालय भवन पर तिरंगा फहराने की जिद के साथ आगे बढ़े थे और तिरंगे की शान में अपनी कुर्बानी दे दी.

पटना संग्रहालय : इस संग्रहालय में प्रथम विश्व युद्ध के हथियारों, मौर्य और गुप्तकाल की धातु और पत्थर की बनी प्रतिमाओं तथा प्राचीन मिट्टी के बने शिल्प आदि को संजो कर रखा गया है. संग्रहालय में एक 16 मीटर लंबे पेड़ का अवशेष भी इस की विशेषताओं में से एक है.

पत्थर की मसजिद : यह खूबसूरत मसजिद गंगा के किनारे स्थित है. इस को जहांगीर के बेटे परवेज शाह ने उस वक्त बनवाया था जब वह बिहार का शासक था. शेरशाह सूरी की मसजिद : 1545 में इस मसजिद को शेरशाह सूरी ने बनवाया था. यह मसजिद पुराने अफगान स्टाइल में बनाई गई थी, जो बिहार की सब से खूबसूरत मसजिदों में से एक है.

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