याद हो कि दूरसंचार नियामक ट्राई ने नेट न्यूट्रैलिटी के पक्ष में सिफारिशें की थी और कहा था कि इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को नेट निरपेक्षता के मुख्य सिद्धांत यानि इंटरनेट के एक खुले मंच पर कायम रहना चाहिए और किसी तरह के पक्षपात वाले करार नहीं होने चाहिए. सरकार के इस फैसले से इंटरनेट की आजादी बनी रहेगी. जिसके बाद दूरसंचार विभाग ने बुधवार को नेट निरपेक्षता (नेट न्यूट्रैलिटी) को हरी झंडी प्रदान कर दी है. इसे मंजूरी मिलने के बाद इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियां अपने नेटवर्क पर हर ट्रैफिक को एक समान तवज्जो देंगी. अब सवाल यह है कि आखिर नेट न्यूट्रैलिटी क्या है और अगर इसका प्रस्ताव मंजूर नहीं होता तो आपकी जिन्दगी पर क्या असर पड़ता. आइए जानते हैं.

क्या है नेट न्यूट्रैलिटी?

नेट न्यूट्रैलिटी इंटरनेट की आजादी का वह सिद्धांत है जिसके तहत माना जाता है कि इंटरनेट सर्विस प्रदान करने वाली कंपनियां इंटरनेट पर हर तरह के डाटा को एक जैसा दर्जा देंगी और एक ही कीमत लेंगी. अगर नेट न्यूट्रैलिटी की सिफारिशों को मंजूर नहीं किया जाता तो इंटरनेट सेवा देने वाली और टेलीकौम कंपनियां अपने ग्राहकों से अलग से इंटरनेट सेवा के लिए अलग-अलग कीमतें वसूलतीं. उदाहरण के लिए अगर आप यूट्यूब देखने के लिए अलग से डाटा पैक और किसी वेबसाइट पर विजिट करने के लिए अलग से प्लान. यह ठीक वैसा ही है जैसे कारों से उनके मौडल या ब्रांड के आधार पर पेट्रोल की अलग-अलग कीमतें या अलग रेट पर रोड टैक्स नहीं वसूले जाते हैं.

नेट न्यूट्रैलिटी के फायदे और नुकसान क्या हैं?

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