पुडुचेरी के तट के नजदीक 35 वर्षों से मछली पकड़ रहे के. अंजापुली का काम करने का तरीका अब बदल गया है. अब वह समुद्र में जाने से पहले अपना फोन निकालकर एक एंड्रॉयड ऐप में लॉग इन करते हैं.

उन्होंने बताया, '2004 की सुनामी के बाद हम पहले के मुकाबले बहुत कम मात्रा में मछली पकड़ पा रहे थे. मछलियों के मूवमेंट का पता लगाना मुश्किल हो गया था.' इन दिनों मछुआरों को पता होता है कि उन्हें किस जगह पर मछली मिल सकती है. उन्हें यह जानकारी फिशर फ्रेंड मोबाइल एप्लिकेशन (FFMA) से मिलती है.

यह ऐप उन्हें मछली की लोकेशन के साथ ही लहरों की ऊंचाई और हवा की रफ्तार के बारे में भी सटीक डेटा अवलेबल कराता है. ऐप को एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (MSSRF) ने क्वालकॉम और टीसीएस के साथ मिलकर 2013 में तैयार किया था.

इसका इस्तेमाल तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल में लगभग 10,000 मछुआरों के परिवार कर रहे हैं. ऐप में मछलियों के मूवमेंट की जानकारी हर 24 घंटे में अपडेट की जाती है.

इसमें कोरल रीफ और डूबे हुए जहाजों के मलबे जैसे डेंजर जोन भी बताए जाते हैं. हवा की रफ्तार और लहरों की ऊंचाई जैसी जानकारियां भी हर 6 घंटे में अपडेट की जाती हैं.

मछुआरों का कहना है कि ऐप की मदद से वे ज्यादा मछलियां पकड़ रहे हैं. इससे उनकी कमाई बढ़ी है. चेन्नई के रहने वाले मछुआरे के एलेक्स ने बताया, 'पहले मैं 6 से 10 टन तक मछली पकड़ता था, लेकिन ऐप की मदद से मैं 20 टन तक मछली पकड़ लेता हूं.' मछुआरों ने बताया कि ऐप से उनकी यात्रा का समय और खर्चे भी घटे हैं.

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