सोशल मीडिया पर फेक न्यूज और उनके वायरल होने के बढ़ते ट्रेंड के चलते फेसबुक, ट्विटर और गूगल को बड़ी कीमतें चुकानी पड़ रही है. फेक न्यूज को लेकर लगातार आ रही शिकायतों ने इन दिग्गज सोशल मीडिया प्लेटफार्म की कमाई के बड़े स्त्रोत में भारी गिरावट ला दी है.
बताते चलें कि इनकी कमाई का सबसे बड़ा जरिया है उन्हें विभिन्न कंपनियों द्वारा मिलने वाले विज्ञापन. लेकिन अब विभिन्न कम्पनियां उन्हें विज्ञापन देने से कतरा रही हैं. बताया जा रहा है कि कोई भी ब्रांड ये नहीं चाहता कि किसी भी तरह की फेक या विवादित समाचार के साथ उनका विज्ञापन नजर आए. उनका मानना है कि इससे उनकी छवि पर भी बुरा असर पड़ता है.
जानकारी के मुताबिक, सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स ने डिजिटल मीडिया के स्ट्रान्ग नेटवर्क का इस्तेमाल कर रेवेन्यू में बढ़ोतरी की उम्मीद की थी, लेकिन फेक न्यूज के कारण उनकी उम्मीदों को गहरा झटका लगा है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गूगल, एफबी और यू-ट्यूब को इस साल की शुरुआत में आस थी कि साल के अंत तक उन्हें 15 फीसदी से ज्यादा रेवेन्यू मिलेगा, लेकिन नौ महीने बीत जाने पर भी ये आंकड़ा 11 फीसदी ही है. आखिर के महीनों में भी विज्ञापनों के मामले में कोई बड़ा फायदा होने की उम्मीद नहीं है.
डिजिटल मीडिया पर करीब 4 लाख करोड़ रुपए के एड-स्पेस बिजनेस का संचालन करने वाली कंपनी ग्रुप-एम के निदेशक एडम स्मिथ ने बताया, इस साल मार्च के बाद से कंपनियों का सोशल मीडिया पर विज्ञापन देने के प्रति नजरिया बदल गया. कंपनियां कंटेंट को लेकर यूजर्स की विश्वसनीयता घटने के कारण सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स को विज्ञापन देने से कतरा रही हैं. वहीं जो कंपनियां विज्ञापन दे भी रही हैं, वो एकमुश्त पेमेंट नहीं कर रही हैं. उन्होंने कहा कि ये बदलाव अचानक से नहीं हुआ है, बल्कि ये काफी समय से आ रही शिकायतों का असर है.
लंदन की एक मीडिया एजेंसी के अनुसार, फेक न्यूज के लिए 70 फीसदी यूजर फेसबुक और ट्विटर को ही जिम्मेदार मानते हैं.
फेसबुक पर हुआ इसका सबसे बुरा असर
दुनिया की सबसे बड़ी विज्ञापन कंपनी हावास ने जहां फेसबुक को दिए जाने वाले विज्ञापनों में कमी की है, वहीं यूके की बड़ी कंपनियां ओ-2, ईडीएफ और रायल मेल ने फेसबुक को दिए जाने वाले करीब 1500 करोड़ के ऐड देने ही बंद कर दिए हैं.