लेखिका- डा. मंजरी अमित चतुर्वेदी
‘‘विहान... मेरा नाम इस से पहले इतना अच्छा कभी नहीं लगा,’’ विहान पीछे से खड़ेखड़े ही बोला.
मिशी ने हड़बड़ाहट में नाम पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कहां है... कब आए तुम, कहां है वह?’’
मिशी की आंखें उस लड़की को ढूंढ़ रही थीं जिस से मिलवाने विहान उसे वहां ले कर आया था.
‘‘नाराज हो कर चली गई,’’ मिशी के पास बैठते हुए विहान ने कहा.
‘‘नाराज हो गई, पर क्यों?’’ मिशी ने पूछा.
‘‘अरे वाह, मैं जिसे प्रपोज करने वाला हूं, वह लड़की यदि देखे कि मेरे बचपन की दोस्त रेत पर इस कदर प्यार से उस के बौयफ्रैंड का नाम लिख रही है, तो गुस्सा नहीं आएगा उसे,’’ विहान ने नाटकीय अंदाज में कहा.
‘‘मैं ने कब लिखा तुम्हारा नाम,’’ मिशी सकपका कर बोली.
‘‘जो अभी अपनेआप रेत पर उभर आया था, उस नाम की बात कर रहा हूं.’’
उस ने नजरें झका लीं, उस की चोरी जो पकड़ी गई थी. फिर भी मिशी बोली, ‘‘मैं ने... मैं ने तो कोई नाम नहीं लिखा.’’
‘‘अच्छा बाबा, नहीं लिखा,’’ विहान ने मुसकरा कर कहा.
मिशी समझ ही नहीं पा रही थी कि यह हो क्या रहा है.
‘‘और वह लड़की जिस से मिलवाने तुम मुझे यहां ले कर आए थे? सच बताओ न विहान.’’
‘‘कोई लड़कीवड़की नहीं है, मैं अभी जिस के करीब बैठा हूं, बस, वही है,’’ उस ने मिशी की आंखों में देखते हुए कहा.
नजरें मिलते ही मिशी नजरें चुराने लगी.
‘‘मिशी, मत छिपाओ, आज कह दो जो भी दिल में हो,’’ विहान बोला.
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