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“मां, क्या सामने वाले मकान में कोई किराएदार आ गए हैं? वहां लाइट जल रही है,” रोहन ने अपनी मां सुजाताजी से पूछा.

‘‘हां, दोपहर में मैं ने ट्रक से सामान उतरते हुए देखा था. पतिपत्नी और एक सुंदर और नाजुक सी बेटी है. मैं उन के घर चाय ले कर गर्ई थी, तो उन्होंने कह दिया कि हमलोग चाय नहीं पीते हैं. महिला ने अपना नाम भी नहीं बताया था. थोड़ी अक्खड़ सी लग रही थीं.’’

रोहन 22 साल का स्वस्थ, सजीला, हंसमुख सुजाता और सुरेश का इकलौता बेटा है. पिता की बाजार में रैडीमेड कपड़ों की चलती हुई दुकान है. मां सुजाता गृहिणी हैं. मध्यवर्गीय परिवार था.

मां के मुंह से सुंदर और नाजुक सी लडक़ी सुन कर उस को देखने की जिज्ञासा जाग उठी थी. उस की बालकनी और उन का कमरा आमनेसामने था. किशोरवय मन की असीम उत्कंठा के कारण हवा में परदों के हिलते ही वह सुंदर सी लड़की को झांकने का प्रयास करता, पर उस के दीदार से वह वंचित रह जाता था.

लगभग 10-15 दिनों के बाद वह जबतब दिखने लगी थी. कभी झाड़ू लगाती हुई, तो कभी कपड़े सुखाती हुई. हर समय व्यस्त और अपने में उलझी हुई.

एक दिन सुजाता ने उसे बताया कि उस की मां का नाम माधुरी है. वे पार्षद का चुनाव लड़ी थीं, लेकिन चुनाव हार गई थीं.

“मां, तभी उन के यहां लोगों की चहलपहल बनी रहती है. अच्छा है, कोई परेशानी होगी, तो काम आसानी से हो जाएगा.”

“मुझे तो नहीं लगता कि वे किसी का काम करती होंगी,” सुजाताजी बोलीं.”

रोहन सामने वाली लडक़ी के बारे में अधिक से अधिक जानने को उत्सुक हो उठा था. वह बदरंग सा सलवारकुरता पहनी रहती. उस का चेहरा डराडरा हुआ, उदासी के आवरण से ढका रहता. वैसे, उस का रंग दूध के माफिक सफेद था, आंखें बड़ीबड़ी, कजरारी और पतले होंठ और काले घुंघराले बाल. रोहन की नजरें तो उस पर से हठती ही नहीं थीं, लेकिन आपस में नजरें मिलते ही वह डरी हुई हिरणी की भांति कुलांचे भरती हुई पलभर में अंदर भाग जाती थी. रोहन तो उस के प्यार में पागल ही हो चुका था.

काफी दिनों की लुकाछिपी के बाद एक दिन जब वह कालेज जाने के लिए अपनी स्कूटी निकाल रहा था, तभी वह भी अपनी साइकिल निकाल कर गेट बंद कर रही थी. दोनों की आंखें चार हुई थीं. उस को मुसकराते देख कर मंजरी ने अपनी आंखें झुका ली थीं. उस के माथे पर चोट का काला निशान देख वह चौंक उठा था, फिर उस के हाथों की चोट, जिसे वह अपने दुपट्टे से छिपाने का असफल प्रयास कर रही थी, उस की आंखों से छिप नहीं सकी थी.

अब तो वह उस से बात करने के लिए बेचैन हो उठा था. वह उस के इंतजार में एक जगह रुक गया था. संयोगवश कुछ दूर जाने के बाद चौराहे पर रैडलाइट हो जाने के कारण सारा ट्रैफिक रुक गया था. वह अपनी साइकिल किनारे से निकालने का प्रयास कर रही थी, तभी एक बाइक वाले के धक्के के कारण वह
अपना बैलेंस नहीं संभाल सकी और साइकिल के साथ ही गिर पड़ी थी. रोहन की सांसे तेजी से चलने लगी थीं और दिल जोरजोर धडक़ने लगा. उस ने जल्दी से उसे सहारा दे कर उठाया था,”आप को चोट तो नहीं लगी?”

“नहीं, मैं ठीक हूं.”

“चलिए, मैं आप की चोट की ड्रैसिंग करवा दूं. उस के हाथ से खून बह रहा था.

“नहीं, आप रहने दीजिए. अम्मां को मालूम होगा तो वह मुझे मारेंगी. सचाई उस के मुंह से निकल पड़ी थी.”

उस ने अपने जेब से रूमाल निकाल कर उस की चोट पर जबरदस्ती बांध दिया था. कैमिस्ट शौप से एक ट्यूब भी खरीद कर दिया था.

“आप के माथे पर चोट कैसे लगी?”

“मैं सीढ़ी से गिर गई थी.” उस के चेहरे से उस का सफेद झूठ साफ झलक रहा था.

उस ने घबरा कर रूमाल खोल कर वापस कर दिया,”मैं स्कूल के लिए बहुत लेट हो गई हूं,” कहती हुई वह जल्दी से अपनी साइकिल पर बैठ कर वहां से चली गर्ई. वह कुछ देर तक वहां पर ठगा सा खड़ा रह गया था.

यह थी, उस की पहली मुलाकात. उस ने घर लौट कर मां को पूरी बात बता दी. घर सामने होने के कारण वहां आनेजाने वालों पर उन लोगों की निगाहें पड़ ही जाती थीं. उन के यहां अकसर शाम को कुछ लोग आया करते और देर तक बैठकें हुआ करती थीें पर मोटे परदे और बंद दरवाजे अपने अंदर का रहस्य अपने अंदर ही समेटे रहते.

अब वह रोहन की मुसकराहट का प्रतिउत्तर छोटी सी मगर डरी हुई मुसकान से देने लगी थी. उस का मासूम चेहरा जैसे अपने दिल के दर्द की कहानी बयां न करने को बेचैन हो. लगभग 3 महीने बीत गए थे, लेकिन उन लोगों के विषय में कुछ अधिक नहीं मालूम हो सका था. रोज शाम को कुछ छुटभैये टाइप के दबंगों का चेहरा पहचान में आने लगा था.

सुजाता और माधुरी के बीच थोड़ीबहुत बातचीत होने लगी थी. माधुरी ने एक दिन शिकायती लहजे में उन्हें बताया कि मंजरी का पढ़ने में मन नहीं लगता है जबकि इस साल बोर्ड की परीक्षा है. दिनभर टीवी देखती रहती है.

सुजाता की तो मानों मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई,”आप, आज से ही मेरे पास भेज दिया करिए. मैं उसे पढ़ा दिया करूंगी.”

वह सुजाता के पास पढ़ने आने लगी थी. वह उसे प्यार से कुछ खिलापिला भी दिया करती थी. धीरेधीरे वह खुलने लगी थी.

“आंटी, मैं पढऩा चाहती हूं, लेकिन अम्मां मेरी स्कूल की अकसर ही छुट्टी करवा देती हैं. मैं जैसे ही पढ़ने बैठती हूं, वे चिल्ला पड़ती हैं. घर का सारा काम करना फिर भी गाली और पिटाई. मैं तो अपनी जिंदगी से थक चुकी हूं.”

रोहन उस की बातों को सुन रहा था. उस की बड़ीबड़ी आंखें रोतेरोते लाल हो उठी थीं. उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस नाजुक सी लडक़ी के दर्द को वह कैसे दूर करे.

सुजाताजी ने प्यार से उसे अपने कलेजे से लगा लिया था, “बेटी, मत घबराओ, कोई भी परेशानी हमेशा नहीं रहती. तुम्हारे जीवन में भी खुशियां आएंगी.”

रोहन और मंजरी की छोटीेछोटी मुलाकातें कभी उन के घर पर तो कभी घर से बाहर, तो कभी इशारेइशारे से होने लगी थी. दोनों एकदूसरे के प्यार में खोने लगे थे.
एक दिन वह अपनी बालकनी में कपड़े सुखाते हुए रोशन को इशारा कर रही थी, तब उस की मां माधुरी ने उसे रोहन को इशारा करते हुए देख लिया था और उस दिन सुजाता के साथ उन्होंने खूब गालीगलौच और लड़ाई की और रोहन पर अपनी बेटी को फुसलाने का इलजाम लगा कर उसे गुंडों से पिटवाने और जेल में डलवाने की धमकी तक दे डाली थी.

वे खुलेआम चिल्ला रही थीं,”मेरी पहुंच बड़ेबड़े नेताओं तक है, तुुहारा बेटा जेल चला गया, तो जमानत भी नहीं होगी.”

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