इस बीच महादेव भी बाहर आ गए थे. उन को जब सोसाइटी के फैसले का पता चला तो बोले, ‘‘कोई डरने की बात नहीं. इन पंडितोंपुरोहितों ने अपनेआप को धर्म का ठेकेदार सम?ा लिया है. सोसाइटी से निकाल कर हमारा क्या बिगाड़ लेंगे. लानत है, ऐसे पोंगापंथी धर्म पर.’’
सहदेव अंदर से 3 कुरसियां निकाल लाया. दोनों बैठ गए. राम प्रसाद खड़ा रहा. उस से कहा, ‘‘तुम भी बैठो.’’
‘‘नहीं सर, साहब लोग मु?ो बैठा देख लेंगे तो नौकरी में रहने भी नहीं देंगे.’’
‘‘हम भी तो ऊंची जाति के हैं,’’ महादेव ने कहा.
‘‘सर, आप की बात और है.’’
‘‘अरे, हम कह रहे हैं, बैठो तो तुम,’’ और उस का हाथ पकड़ उसे कुरसी पर बैठा दिया.
महादेव ने कहा, ‘‘राम प्रसाद, बड़ा भोज न कराने से ब्राह्मण और ऊंचे लोग नाराज हो गए?’’
‘‘जी, सर.’’
‘‘कोई परवा नहीं. हम ने 2 चीजें करने का फैसला किया है.’’
‘‘क्या सर?’’
‘‘एक तो तुम्हारी बस्ती में बोरवैल बनवाएंगे और दूसरे गांव की लड़कियों के लिए बने एडेड स्कूल में स्पोर्ट्स कौंप्लैक्स बनवाएंगे जहां लड़कियां टेबल टैनिस, बास्केटबौल, बैडमिंटन सुरक्षित खेल सकें. ठीक है न?’’
यह सुन कर रामू ने महादेव के पैर पकड़ लिए.
‘‘सरकार, आप तो देवता हो. आप के इन दोनों कामों से आप को, पंडित दीनानाथजी के सारे घर को बड़ा
यश मिलेगा.’’
‘‘हम ने सोचा कि जो पैसा भोज में लगाएं, वह गांव के भले में खर्च करें.’’
‘‘बहुत बढि़या विचार है, सरकार.’’
बोरवैल और स्कूल में कमरे बनाने के बारे में महादेव ने विस्तार से सहदेव को सम?ा दिया. फिर महादेव और बिमला खुशीखुशी मुंबई लौट गए.
यह एडेड स्कूल खस्ताहाल में चलता था, क्योंकि सरकारी सहायता में खर्च पूरा नहीं पड़ता था. आसपास की छोटी बस्तियों की लड़कियां यहीं पढ़ने जाती थीं. उन में कुछ मेधावी भी निकलीं और वे स्कूल को जैसेतैसे जिंदा रख रही थीं. स्कूल के ट्रस्ट में ऊंचे लोगों में अब उस में कोई रुचि नहीं रह गई थी.