माधवजी शायद गलती से ही अध्यापन के व्यवसाय में आ गए होंगे, वरना उन की हरकतों से लगता है कि उन्हें राजनीति में होना चाहिए. घरबाहर, क्लास में भी वे हर बात में राजनीति के रंग में डूबे रहते. उन की कक्षा के स्टूडैंट मनोज का घर का नाम पप्पू है, इस बात पर उन्हें बहुत मजा आता है.

पप्पू मेधावी छात्र है, मेहनती बच्चा है पर उन के लिए पप्पू का एक ही मतलब है, मूर्ख इंसान. टीचर हो कर भी वे रोज इस नाम पर अपना मनोरंजन करते हैं. 'पप्पू' शब्द सुनने में ही उन्हें आनंद आता है और वे जोरजोर से हंसते हैं. मनोज सब समझ रहा है पर क्या कर सकता है. भला, टीचर से पंगा ले कर भी कभी किसी स्टूडैंट का भला हुआ है?

हिंदी का पीरियड चल रहा था. पढ़ाने में उन का मन खास लगता नहीं. उन्हें मस्ती सूझी. माधव सर ने गाते हुए पूछा, “बोलो बच्चो, प से…”

बच्चों को भी शरारत सूझी. शरारत करना हर बच्चे का मौलिक हक जो है. उन्होंने भी गाते हुए कहा, “पप्पू...” माधव सर का मन गदगद हो गया. वे हा हा हा हा... कर के हंस पड़े. शाबाशी दी, बोले, “बढ़िया बच्चो, सही बोला...” अब पप्पू का मुंह लटक गया. उस का मुंह लटका देख बच्चे जोरजोर से हंसने लगे.

कसबे के इस स्कूल में सब को पता था कि मनोज का घर का नाम पप्पू है. माधव सरजी में बचपना कहां कम था, “देखो, पप्पू बेटा, अब तो मुंह लटकाने से कुछ न होगा, अब तो तुम्हारा नाम बदनाम हो चुका है.” पप्पू चुप रहा, सब समझ रहा था पर किसकिस से पंगा ले पप्पू.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...