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डाक्टर सारांश ने मेजर बलदेव का चैकअप किया और फौरन मैडिकल डाइरैक्टर के रूम की ओर भागे, ‘‘सर, मेजर साहब बुरी तरह जख्मी हैं, फौरन उन का औपरेशन करना पड़ेगा.’’ मैडिकल डाइरैक्टर मानो इस सवाल के लिए तैयार थे, ‘‘इन्हें फौरन अनंतनाग या उधमपुर भिजवाने का इंतजाम कराओ, वहीं इन का मुकम्मल इलाज हो पाएगा.’’

‘‘मगर सर, इतना वक्त नहीं है हमारे पास. जहर जिस्म में फैलता जा रहा है. अगर फौरन औपरेशन नहीं किया तो टांग काटनी पड़ जाएगी. फौज का एक तंदुरुस्त जवान अपाहिज हो जाएगा. अगर ज्यादा देर हुई तो उन की जान भी जा सकती है.’’

‘‘डाक्टर सारांश, आप से जो कहा जाए वही कीजिए, फैसला लेने का हक मेरा है, न कि आप का.’’

‘‘सुना है आप ने औपरेशन थिएटर और आसपास के कमरे मंत्रीजी को दिए हुए हैं ताकि वे इस सर्द और बरसाती रात में आराम फरमा सकें.’’ मेजर की टोली के एक जवान ने कहा तो एक बार के लिए मैडिकल डाइरैक्टर की पेशानी पर पसीने की बूंदें उभर आईं, लेकिन अगले ही पल उन्होंने बेशर्मी से कहा, ‘‘आप समय बरबाद कर रहे हैं अपना भी, मेरा भी और सब से ज्यादा घायल मेजर का. जल्दी ही इन्हें ले जाने का इंतजाम कीजिए. जरूरत पड़े तो एयरलिफ्ट करवाइए.’’

‘‘आप जानते हैं सर, इस बरसाती रात में एयरलिफ्ट करवाना मुमकिन नहीं है,’’ डा. सारांश ने आखिरी दावं खेला.

‘‘फिर तो आप को फौरन रवाना होना चाहिए. एकएक पल कीमती है आप के लिए,’’ मैडिकल डाइरैक्टर अड़े रहे.

डाक्टर सारांश पसोपेश में पड़ गए. वे घायल सिपाही, अपना फर्ज और लाल फीताशाही के बीच फंसे बेबस से खड़े किसी भी नतीजे पर पहुंच नहीं पा रहे थे.

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