Writer- रितु वर्मा

रोहन को लेटेलेटे आभास हो रहा था कि वह किसी हौस्पिटल में हैं. उस ने बड़ी मुश्किल से आंखें खोलीं तो अपने परेशान दादा, दादी के चेहरे उस को नज़र आए थे. उसे अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था कि क्यों वह यह सब करता है.

तभी रोहन ने देखा, यमुना टिफ़िन ले कर अंदर आई. यमुना दादाजी से कह रही थी, “दादाजी, आप ने कल रात से कुछ नही खाया, थोड़ा सा मुंह जुठार लीजिए."

दादी यमुना की तरफ देख कर गुस्से में बोली, "तेरे ही कारण मेरे रोहन की यह दशा है."

यमुना अपनी कजरारी आंखों को और बड़ा करते हुए बोली, "मैं ने क्या किया है, दादी? मैं तो रोहनजी को शांति के लिए कनावनी वाले गुरुजी के पास ले कर गई थी."

दादाजी दादी से मुखातिब होते हुए बोले, "अरे, तुम चुप करोगी, यह सब घर जा कर सुलटा लेना."

रोहन यमुना की तरफ प्यारभरी नजरों से देख रहा था.

“एक यमुना ही तो हैं जो उस का सारा कहना मानती है. वह उसे मारे, डांटे या कैसा भी व्यवहार करे, वह फिर भी रोहन के आसपास ही बनी रहती है.”

तभी यमुना के मोबाइल की घंटी बजी. उस ने फ़ोन उठाया और रोहन के कानों में फुसफुसा कर कहा, "रोहनजी, सुरुचि मैडम का फ़ोन है."

इस से पहले रोहन कुछ कहता, दादी चिल्लाती हुई बोली, "तू इस घर की मालकिन हैं या मैं, मेरा पोता किसी सुरुचिवुरुचि से बात नहीं करेगा?"

"जब यही सुरुचि इसे 6 साल की उम्र में छोड़ कर अपने प्रेमी के पास चली गई थी तो मैं ने अपनी रातों की नींद खराब कर इसे पाला था. अब रहे खुश वह अपने नए परिवार में. क्यों फ़ोन करती रहती है."

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