लेखिका- ममता मेहता

सब्जीवाले की आवाज सुन कर सुमि सब्जी लेने बाहर निकली तो उस के साथसाथ उस की पड़ोसिन रीमा भी बाहर आई और बोली, ‘‘सुमि, क्या तुझे पता है कि नम्रता की बेटी की डैथ हो गई है?’’‘‘क्या?’’ सुमि का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘‘कब? कैसे?’’

‘‘कल. कैसे हुई, यह तो मुझे भी पता नहीं… मुझे तो कुछ देर पहले शैली ने फोन किया था तब पता चला,’’ रीमा बोली.‘‘उफ, नम्रता बेचारी का तो बहुत बुरा हाल होगा,’’ सुमि ने अफसोस प्रकट किया.

रीमा बोली, ‘‘किसी की 18-19 साल की बेटी यों चली जाए तो हाल तो बुरा होगा ही. सुन, अब हमें भी जाना चाहिए वरना अच्छा नहीं लगेगा.’’सुमि मटर टटोलती हुई बोली, ‘‘हां भई, जाना तो पड़ेगा ही… तू शैली, सोनू, निम्मी, निशि, निक्की सब से पूछ ले. हम सब एकसाथ एक ही गाड़ी में चल पड़ेंगी.’’

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‘‘हां, यह ठीक रहेगा. तो फिर कब चलें?’’ रीमा ने गोभी तुलवाते हुए पूछा.‘‘मैं आज नहीं जा सकूंगी, क्योंकि कल टीनू का पेपर है… मुझे उसे पढ़ाना है,’’ सुमि बोली.रीमा ने मन ही मन सोचा, ‘इसे बेटे के पेपर की पड़ी है… उस की पलीपलाई बेटीचली गई…’ पर प्रत्यक्षत: बोली, ‘‘कल मेरे आदि का बर्थडे है, इसलिए कल मैं नहीं जा पाऊंगी.’’

‘किसी की जवान बेटी की मौत हो गई और इसे बर्थडे मनाने की पड़ी है… सांत्वना नाम की तो जैसे कोई चीज ही नहीं रह गई है,’ सुमि ने मन में सोचा. पर फिर वह प्रत्यक्षत: बोली, ‘‘ठीक है, तो फिर परसों चलेंगे.’’रीमा ने भी हामी भरते हुए कहा, ‘‘ठीक है, शैली, निशि व निक्की से तू बात कर लेना और सोनू व निम्मी से मैं कर लूंगी.’’

सुमि मन ही मन बड़बड़ाई कि किसी दिन 2 फोन ज्यादा कर लेगी तो मर नहीं जाएगी… कंजूस कहीं की. फिर बोली, ‘‘हां, कर लूंगी.’’नियत दिन नम्रता के घर जाने के लिए सब इकट्ठी हुईं. चूंकि सुमि की कार बड़ी थी, इसलिए उसी में जाना तय हुआ. कार में बैठते ही शैली बोली, ‘‘सच पूछो तो आजकल किसी बात का कोई भरोसा नहीं… पता नहीं कब क्या हो जाए.’’निक्की बोली, ‘‘हां, ठीक कह रही हो… बताओ किसे पता था कि इस तरह हंसतीबोलती लड़की यों अचानक चली जाएगी.’’

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आगे की सीट पर बैठी निशि बोली, ‘‘मेरी मौसी की लड़की के साथ भी ऐसा ही हुआ था. मौसी बेचारी बहुत दिनों तक इस सदमे से नहीं उबर सकी थीं… नम्रता का पता नहीं क्या हाल हो रहा होगा.’’पीछे बैठी निम्मी बोली, ‘‘क्यों, कहीं लड़केवड़के का चक्कर तो नहीं था… आजकल की जनरेशन… कुछ बोल नहीं सकते बाबा…’’

निक्की ने भी हां में हां मिलाई, ‘‘कुछ भी हो सकता है. आजकल के बच्चे टीवी, इंटरनैट से और कुछ सीखें न सीखें इश्क, प्यार, मुहब्बत की बातें जरूर सीख जाते हैं.’’ शैली बोली, ‘‘क्या कह सकते हैं भई, मैं ने तो यही सुना है कि कुछ प्यारव्यार का चक्कर था. अब पता नहीं उस ने क्या किया पर ये लोग कुछ बताएंगे नहीं,’’ कहतेकहते शैली ने निक्की की

साड़ी छुई, ‘‘साड़ी अच्छी लग रही है… कितने की ली?’’ निक्की गर्व से बोली, ‘‘3 हजार की है. तुझे तो पता ही है ऐसीवैसी चीज मुझे पसंद नहीं… अब कहीं ऐसे में जाना हो तो मेरी बड़ी आफत हो जाती है, क्योंकि ढाईतीन हजार से कम की तो मेरे पास कोई साड़ी है ही नहीं.’’

उस की गर्वोक्ति पर निशि मुसकराती हुई बोली, ‘‘अरे, कुछ नहीं सीरियल ज्यादा देखती है न, इसलिए उन का असर ज्यादा हो रहा है. जब देखो तब सीरियलों की हीरोइनों की तरह बनीठनी घूमती रहती है.’’ यह सुनते ही सब हंस पड़ीं.

तभी ड्राइविंग सीट पर इतनी देर से चुप बैठी सुमि बोली, ‘‘इसीलिए मैं सीरियल नहीं देखती हूं. कुछ थोड़ा अच्छा लगने लगता है कि सीरियल निर्माता इलास्टिक की तरह इतना खींचने लगते हैं कि न ओर का पता चलता है और न छोर का. अपने लिए तो कौमेडी बढि़या है. देखो, हंसो और भूल जाओ.’’

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निशि बोली, ‘‘नहीं भई, हम तो जब तक कोई सीरियल नहीं देख लेते हमारा खाना ही हजम नहीं होता है.’’ सब हंसने लगीं. इसी बीच नम्रता का घर आ गया. सभी ने तुरंत चेहरे पर गंभीरता ओढ़ ली और धीरेधीरे घर में प्रवेश किया. नम्रता के पास 2-4 और महिलाएं बैठी थीं. उन्हें देख कर सब ने उन के लिए जगह बनाई.

रीमा नम्रता के पास ऐसे खिसक आई जैसे उस की बेटी के मरने का सब से ज्यादा दुख उसे ही हुआ हो. बोली, ‘‘मुझे तो कल शाम ही शैली ने बताया तो मुझे तो विश्वास ही नहीं हुआ. मैं तो कल ही आने वाली थी पर घर में अचानक मेहमान आ गए.’’

शैली की उदासी टपकी, ‘‘हमारे तो घर में किसी को यह विश्वास ही नहीं हो रहा था. मेरी बेटी तो कल से खाना नहीं खा रही. बस यही पूछे जा रही है कि ऐसा कैसे हो सकता है? वैसे हुआ क्या था?’’

फिर सब वही शुरू हो गया. क्या हुआ? कैसे हुआ? तुम ने देखा नहीं क्या? यह सब सुन कर नम्रता फफकफफक कर रोने लगी तो सभी उस के आसपास ऐसी इकट्ठी हो गईं जैसे उन से बड़ा नम्रता का दुख बांटने वाला और कोई है ही नहीं.

सुमि ने सांत्वना दी, ‘‘सब्र कर नम्रता. अब अपने हाथ में तो कुछ है नहीं. जो होना था हो गया.’’ रोने की कोशिश करते हुए निशि बोली, ‘‘हां, प्रकृति की मरजी के आगे किस की चलती है. अब तो तुझे ही देखना है. तू अगर हिम्मत हार जाएगी तो इसे कौन संभालेगा?’’ उस ने नम्रता के बेटे की तरफ इशारा किया.

रीमा बोली, ‘‘जिस ने दी थी उस ने ले ली. वैसे हुआ क्या था?’’ नम्रता रोतेरोते बोली, ‘‘कुछ नहीं, रात को अच्छीभली खाना खा कर सोई. सुबह थोड़ा जल्दी उठ गई. बोली कि मम्मी, मुझे चक्कर सा आ रहा है. मैं ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. कहा कि ऐसे ही आया होगा. तू जा कर सो जा. फिर ऐसी सोई कि उठी ही नहीं.’’

शैली बोली, ‘‘कुछ भी कहो भई, ऐसा पलापलाया बच्चा चला जाए तो कौन हिम्मत रख सकेगा? कुदरत को लेना ही था तो पहले ही ले लेता… इतने दिन भी क्यों रखा?’’उस की इस बात से नम्रता और ज्यादा रोने लगी तो उस की सास बोलीं, ‘‘बस, ऐसे ही रोती रहती है सारा दिन. अब अपने हाथ में होता तो जरूर कुछ करते, पर अब क्या करें? मरने वाले के साथ मरा तो नहीं जाता? रोने से क्या वह वापस आ जाएगी? तुम्हीं लोग समझाओ इसे अब.’’

निक्की बोली, ‘‘सही बात है. रोने से वह वापस नहीं आ जाएगी. यही शुक्र मना कि बेटी थी. बेटा होता तो…’’ निम्मी ने उस का हाथ पकड़ कर दबा दिया तो वह चुप हो गई. सांत्वना प्रकट कर और नम्रता को रुला कर वे घर से बाहर आ गईं. गाड़ी में बैठतेबैठते रीमा बोली, ‘‘उस की देवरानी को देखा कैसी मटकमटक कर घूम रही थी… लग ही नहीं रहा था कि उसे कोई दुख हुआ है.’’

सुमि बोली, ‘‘हां और उस की सास भी. देखा कैसे मुंह बना रही थी जब नम्रता रो रही थी.’’ शैली ने भी हां में हां मिलाई, ‘‘और क्या, बोल रही थी कि मरने वाले के साथ मरा तो नहीं जाता. बता उस की पलीपलाई बेटी चली गई तो क्या वह रोएगी नहीं? ये ससुराल वाले होते ही ऐसे हैं… पर कुछ भी बोलो मुझे तो कुछ प्यारव्यार का ही चक्कर लगता है. बदनामी के डर से कुछ खा लिया होगा.’’

‘‘हां, इसीलिए ससुराल वाले दुख मनाने का नाटक कर रहे थे. सोच रहे होंगे अच्छा हुआ गई, नहीं तो कौन बदनामी का ठीकरा झेलता. फिर दहेज भी बच गया,’’ निक्की ने भी शैली की हां में हां मिलाई.

रीमा बोली, ‘‘और क्या… ऐसीवैसी कोई बात सामने आती तो शादी करना मुश्किल हो जाता… अब छोड़ो सुमि मुझे मार्केट से कुछ सामान खरीदना है तू गाड़ी उस तरफ घुमा ले न.’’ निक्की भी क्यों पीछे रहती. उसे भी बाजार के कई काम याद आ गए. बोली, ‘‘हां यार सुमि, एकडेढ़ घंटा लगेगा पर कुछ खरीदारी हो जाएगी.’’ सब की सब तैयार थीं. अत: सुमि ने गाड़ी मार्केट की तरफ घुमा ली. शौपिंग, खानापीना और हंसीमजाक के बाद सभी सखियां कच्ची मौत का मातम मना कर घर लौट आईं.

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